‘डिड नॉट फिनिश्ड’ से मीराबाई के चैंपियन बनने की प्रेरक कहानी: 2016 में विफल हुईं, हार नहीं मानी, अब देश को वेट लिफ्टिंग में 21 साल बाद मेडल दिलाया Read it later

मीराबाई के चैंपियन बनने की प्रेरक कहानी

मीराबाई चानू ने टोक्यो ओलंपिक में भारत के लिए का पहला पदक जीत कर देश का नाम रोशन कर दिया है। ओलंपिक में उन्होंने 49 किग्रा भार वर्ग में कुल 202 किग्रा वेट उठाकर रजत पदक जीता। इस तरह देश को 21 साल बाद वेट लिफ्टिंग में मीराबाई ने ओलंपिक पदक दिलाया। 

 जीत के बाद मीराबाई का उत्साहित दिखीं‚ और उन्होंने क्या कहा‚देखिए वीडियो में

टोक्यो ओलंपिक में सिल्वर मेडल जीतन के बाद मीराबई चानू के चेहरे पर रोनक देखने लायक थी‚ उन्होंने बड़े ही उत्साह के साथ अपना अनुभव शेयर किया। #MIRABAICHANU #mirabaichanu #TokyoOlympic #MirabaiChanu #MirabaiChanuWinsMedal pic.twitter.com/rjAfYPzzyQ

— Thumbs Up Bharat (@thumbsupbharat) July 24, 2021

इससे पहले कर्णम मल्लेश्वरी ने साल 2000 में सिडनी ओलंपिक में कांस्य पदक जीता था। मीराबाई की ये सक्सेस सही मायनों में हर खिलाड़ी के लिए प्रेरणादायक और खास है, क्योंकि  2016 के रियो ओलंपिक में मीराबाई अपने हर प्रयास में ठीक से वजन नहीं उठा सकीं थी 

और उनकी हर कोशिश नाकाम रही, बावजूद इसके ​उन्होंने हार नहीं मानी और लगातार अपने प्रयास जारी रखे। सकीं। 

मीराबाई ने ओलंपिक गेम्स का रुख करने से पहले कहा था कि “मैं इस बार ओलंपिक में पदक जरूर से ही जीतूंगी। क्योंकि मुझे ओलंपिक में खेलने का अनुभव है। पिछली बार मैं ओलंपिक में पदक जीतने से चूक गई। फिर अनुभव की भी कमी रही, इसलिए उस दौरान मैडल जी नहीं पाई थी।”

2016 के रियो ओलंपिक से लेकर ओलंपिक चैंपियन का सफर लाजवाब रहा

2016 के रियो ओलंपिक से लेकर ओलंपिक चैंपियन का सफर लाजवाब रहा

मीराबाई का 2016 के रियो ओलंपिक से लेकर ओलंपिक चैंपियन बनने तक का सफर लाजवाब रहा। 2016 में जब वे वजन ही नहीं उठा सकीं तो उनके नाम के आगे ‘डिड नॉट फिनिश्ड’ लिखा गया। किसी प्लेयर का मेडल की दौड़ में पिछड़ना एक बात है और क्वालिफाई करजाना दूसरी बात है। मीरा कहती हैं, डिड नॉट फिनिश के टैग ने उनका मनोबल तोड़ कर रख दिया था, लेकिन उसी टैग ने मुझे बाउंस बैक के लिए प्रेरित किया। 

मीराबाई के चैंपियन बनने की प्रेरक कहानी
सिल्वर मेडल के बाद पोज देतीं मीराबाई चानू

मेडल न जीत पाने के कारण मीराबाई रातों-रात एक साधारण एथलीट बनकर रह गईं

2016 के ओलंपिक में उनके कार्यक्रम के समय भारत में रात थी। बहुत कम लोगों ने वो नजारा देखा होगा, जब वजन उठाते समय उनके हाथ अचानक रुक गए थे। जबकि इस वजन को उन्होंने पहले भी कई बार आसानी से उठाया था। मेडल न जीत पाने के कारण मीराबाई रातों-रात एक साधारण एथलीट बनकर रह गईं। इस हार के कारण वह डिप्रेशन में चली गई और उन्हें मनोचिकित्सक की मदद लेनी पड़ी। 

अपनी स्वयं की हार ने उन्हें स्तब्ध कर दिया। एक समय तो ऐसा आया जब उन्होंने वेटलिफ्टिंग को अलविदा कहने का मन ही बना लिया था। लेकिन उन्होंने ने खुद को साबित करने के लिए ऐसा नहीं किया और उनके इसी जुनून ने उन्हें टोकियो ओलंपिक में कामयाबी दिलाई। उन्होंने 2018 राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण और अब ओलंपिक में रजत पदक जीता।

वर्ल्ड वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप में जीता गोल्ड

तैयारी के लिए सगी बहन की शादी मिस की और वर्ल्ड वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप में जीता गोल्ड

2017 में मीरा ने 194 किलो वजन उठाकर वर्ल्ड वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप में गोल्ड जीता। मीरा 22 साल में ऐसा करने वाली पहली भारतीय एथलीट बनीं। मीरा ने इस इवेंट के लिए खाना भी नहीं खाया था. वह तैयारी के लिए अपनी सगी बहन की शादी में भी वे मौजूद नहीं रह पाईं थीं। यह मेडल जीतने के बाद उनकी आंखों में आंसू आ गए। 2016 की हार अभी भी उनके दिमाग में थी।

विश्व भारोत्तोलन चैम्पियनशिप में पदक जीतने वाली पहली भारतीय

मीराबाई वर्ल्ड वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप में पदक जीतने वाली पहली इंडियन वेटलिफ्टर हैं। उन्होंने यह उपलब्धि 2017 (49 किग्रा भार वर्ग) में हासिल की थी। उन्होंने 2014 ग्लासगो कॉमनवेल्थ गेम्स में 49 किलोग्राम भार वर्ग में रजत पदक जीता था और मीराबाई ने 2018 कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडल अपने नाम किया था।

चोट के बाद 2019 में जबरदस्त वापसी

मीराबाई को 2018 में पीठ दर्द से जूझना पड़ा था। हालांकि, इसके बाद उन्होंने 2019 थाईलैंड वर्ल्ड चैंपियनशिप से वापसी की और चौथे स्थान पर रहीं। फिर उन्होंने पहली बार 200 किलो से ज्यादा वजन उठाया। चानू बताती हैं, ”उस समय मुझे भारत सरकार का पूरा सहयोग  दिया गया और मुझे इलाज के लिए अमेरिका भेजा गया. इसके बाद मैं न सिर्फ दोबारा वापस आई, बल्कि अपने करियर का सबसे ज्यादा वजन उठाने में भी कामयाब रही.”

मीराबाई ने बनाया विश्व रिकॉर्ड

मीराबाई ने बनाया विश्व रिकॉर्ड

इस साल अप्रैल (2021) में आयोजित ताशकंद एशियाई भारोत्तोलन चैंपियनशिप में मीराबाई चानू ने स्नैच में 86 किलोग्राम भार उठाने के बाद क्लीन एंड जर्क रिकॉर्ड को मेंटेंन रखते हुए 119 किलोग्राम का विश्व रिकॉर्ड बनाया। वे 205 किग्रा के साथ तीसरे स्थान पर रही।

इससे पहले क्लीन एंड जर्क में वर्ल्ड रिकॉर्ड 118 किलो का था। 49 किग्रा में चानू का व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 203 किग्रा (88 किग्रा और 115 किग्रा) है, जो उन्होंने पिछले साल फरवरी में राष्ट्रीय चैंपियनशिप में बनाया था।

11 साल की उम्र में वेटलिफ्टिंग में पहला मेडल जीता था

मीराबाई मणिपुर के इंफाल की रहने वाली हैं। उन्होंने स्थानीय भारोत्तोलन टूर्नामेंट में 11 साल की उम्र में भारोत्तोलन में अपना पहला स्वर्ण जीता था। उन्होंने विश्व और जूनियर एशियाई चैंपियनशिप के साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने भारोत्तोलन करियर की शुरुआत की। मीरा कुंजारानी देवी को अपना आदर्श मानती हैं।

जीत के बाद मां को किया याद

जीत के बाद मां को किया याद 

जीत के बाद मीराबाई ने कहा कि यह मेरे लिए सपने के सच होने जैसा है। मैं यह पदक अपने देश और यहां के करोड़ों लोगों को समर्पित करती हूं। उन्होंने लगातार मेरे लिए प्रार्थना की। मैं अपने परिवार के सदस्यों को धन्यवाद देना चाहती हूं। इस सफर में मेरी मां ने मेरा बहुत साथ दिया। उन्होंने मुझ पर विश्वास किया और मेरे लिए कई बलिदान किए।

मीरा ने कहा कि मुझे सरकार से भी काफी मदद मिली। भारतीय खेल प्राधिकरण (SAI), भारतीय ओलंपिक संघ (IOA) और भारतीय भारोत्तोलन महासंघ ने मेरा समर्थन किया। मैं अपने कोच विजय शर्मा को भी धन्यवाद देती हूं कि उन्होंने मुझे कड़ी मेहनत के लिए प्रेरिक किया। जय हिन्द।

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