बुधवार को हुई कैबिनेट की बैठक में चुनाव में फर्जी वोटिंग को रोकने के लिए बिल को मंजूरी दे दी गई है। इसके तहत आने वाले समय में वोटर कार्ड को आधार नंबर से लिंक कर दिया जाएगा। सरकार ने यह फैसला चुनाव आयोग की सिफारिश के आधार पर लिया है। माना जा रहा है कि आधार को वोटर कार्ड से लिंक करने पर फर्जी वोटर कार्ड के कारण होने वाली धोखाधड़ी को रोकने में मदद मिलेगी।
क्यों लिया गया यह निर्णय?
चुनाव आयोग ने वोटर कार्ड को आधार से जोड़ने की सिफारिश की थी, ताकि मतदाता सूची अधिक पारदर्शी हो और फर्जी मतदाताओं को हटाया जा सके। आधार को वोटर कार्ड से लिंक करने से कोई व्यक्ति एक से ज्यादा वोटर कार्ड नहीं रख पाएगा।
वोटर कार्ड को आधार से जोड़ा तो क्या होगा
कई बार देखा गया है कि किसी व्यक्ति का नाम उसके शहर की वोटर लिस्ट में होता है और वह लंबे समय से दूसरे शहर में रह रहा होता है। इस वजह से उनका नाम दूसरे शहर की वोटर लिस्ट में भी जुड़ जाता है। ऐसे में उनका नाम दोनों जगहों की वोटर लिस्ट में बना हुआ है। आधार से लिंक होने के बाद मतदाता का नाम एक ही स्थान पर मतदाता सूची में होगा। यानी एक व्यक्ति एक ही स्थान पर अपना वोट डाल सकेगा।
क्या सभी को वोटर कार्ड आधार से जोड़ना होगा?
आधार को वोटर कार्ड से लिंक करना फिलहाल अनिवार्य नहीं बल्कि वैकल्पिक होगा। यानी अगर आप अपने वोटर कार्ड को आधार से लिंक नहीं कराना चाहते हैं तो आपको ऐसा करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।
क्या इससे आम आदमी की निजता को खतरा होगा?
बिल्कुल नहीं, आधार और वोटर कार्ड को जोड़ने के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निजता के अधिकार के फैसले को ध्यान में रखा जाएगा। चुनाव आयोग को और अधिक अधिकार देने के लिए सरकार कदम उठा रही है।
साल में चार बार वोटर आईडी बनवाने का मौका
प्रस्तावित विधेयक देश के युवाओं को हर साल चार अलग-अलग तिथियों पर मतदाता के रूप में अपना पंजीकरण कराने की भी अनुमति देगा। यानी मतदाता बनने के लिए अब साल में चार तारीखों को कटऑफ माना जाएगा। अब तक हर साल 1 जनवरी को या उससे पहले 18 साल के होने वाले युवाओं को ही मतदाता के रूप में पंजीकरण कराने की अनुमति है।
इससे क्या फायदा होगा?
भारत का चुनाव आयोग पात्र लोगों को मतदाता के रूप में पंजीकृत करने के लिए कई ‘कटऑफ तारीखों’ की सिफारिश करता रहा है। चुनाव आयोग ने सरकार को बताया था कि 1 जनवरी की कटऑफ तारीख के कारण कई लोग मतदाता सूची की कवायद से बाहर हो गए थे। केवल एक कटऑफ तिथि होने के कारण 2 जनवरी को 18 वर्ष की आयु पूरी करने वाले व्यक्ति पंजीकरण नहीं करा पा रहे थे। इस वजह से उन्हें 1 साल इंतजार करना पड़ता था।
2015 में भी वोटर आईडी को आधार से जोड़ने का काम शुरू किया था
चुनाव आयोग ने अपने राष्ट्रीय मतदाता सूची शोधन और प्रमाणीकरण कार्यक्रम (एनईआरपीएपी) के हिस्से के रूप में 2015 में मतदाता कार्ड और आधार संख्या को जोड़ने की प्रक्रिया शुरू की थी। बाद में, चुनाव आयोग ने आधार के उपयोग पर रोक लगाने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मद्देनजर कार्यक्रम को छोड़ने का फैसला किया।
क्या यह नियम लागू हो चुका है?
अभी यह बिल संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) में पेश किया जाएगा। यहां से बिल पास होने के बाद इसे राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। उनकी मंजूरी मिलने के बाद ही यह कानून बनेगा।
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