Supermoon: धरती के सबसे करीब आया चंद्रमा, जानिए वैज्ञानिक नजरिये से क्या होता है सुपरमून? Read it later

दुनियाभर में आज चांद की चमक (Supermoon) कुछ ज्यादा नजर आई। वैसे तो हर पूर्णिमा को पूरा चांद (supermoon) मतलब कि फुल मून नजर आता है, लेकिन बुधवार रात साल का पहला सुपर मून 15 प्रतिशत ज्यादा चमकीला नजर आया, वहीं इसका आकार भी सामान्य स्थिति से 7 प्रतिशत ज्यादा बढ़ा हुआ था। बता दें कि सुपरमून उस वक्त होता है, जब हमारी पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की दूरी सबसे कम होती है। इसी कारण से चांद ज्यादा बड़ा और चमकीला दिखाई देता है। ऐसी ही स्थिति बीते माह भी बनी थी, जब पूर्णिमा को चांद अपने सफेद रंग से अलग पूरी तरह लाल नजर आया था।

भारत में दिल्ली, हरियाणा, बिहार और अजमेर में चंद्रमा अपनी पूरी चमकीली सफेद आभा के साथ नजर दिखा। दूसरी ओर दुनिया के तमाम बड़े शहरों में भी इसका आकार और चमक सामान्य से ज्यादा नजर आया। भारत में रात 12 बजकर 8 मिनट पर इसके आकार सबसे ज्यादा वृद्धि होने की बात कही गई है,यानी कि इस समय चांद धरती के सबसे करीब था।

जब पूर्णिमा पर चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है, तो हम इसे बड़ा और चमकीला देखते हैं। इसे सुपरमून (supermoon) कहते हैं। इस अवधि के दौरान, चंद्रमा सामान्य चंद्र ग्रहण की तुलना में 30% बड़ा और 14% अधिक चमकदार दिखाई देता है। यानी हम सुपरमून की 2 कंडिशन मान सकते हैं; पहला चंद्रमा पृथ्वी के सबसे नजदीक है और दूसरा दिन भी पूर्णिमा है।

supermoon 2022
दिल्ली में सुपर मून सामान्य से करीब 7% बड़ा और 15% ज्यादा चमकीला नजर आया।

 

हालांकि न तो चंद्रमा अपना आकार बदलता है और न ही चमक, लेकिन पृथ्वी के पास होने से हमें ऐसा आभास होता है। दरअसल, चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर एक ओवल शेप में चक्कर लगाता है। इस वजह से कई बार यह धरती के बेहद करीब आ जाता है। ऐसे में हमें इसका आकार सामान्य से बड़ा दिखाई देने लगता है।

नासा के अनुसार सुपरमून (supermoon) तब होता है जब चंद्रमा की कक्षा पृथ्वी के सबसे करीब होती है और पूर्णिमा होती है। आपको बता दें कि नासा के अनुसार, 1979 में ज्योतिषी रिचर्ड नोल ने पहली बार सुपरमून शब्द का इस्तेमाल किया था। एक सामान्य वर्ष में दो से चार सुपरमून हो सकते हैं। पिछले पूर्णिमा की तुलना में इस महीने पृथ्वी और चंद्रमा 0.04% के करीब हैं।

पूर्णिमा और सुपरमून के बीच क्या संबंध
Photo | Social Media

 

चंद्रमा हर 27 दिन में पृथ्वी का एक चक्कर पूरा करता है। पूर्णिमा भी 29.5 दिन में एक बार आती है। हर पूर्णिमा में सुपरमून नहीं होता, लेकिन हर सुपरमून (supermoon) पूर्णिमा को ही होता है। चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर एक अण्डे के आकार में चक्कर लगाता है, इसलिए पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की दूरी हर दिन बदलती ही रहती है।
जब चंद्रमा पृथ्वी से सबसे दूर होता है, तो उसे एपोजी (Apogee) कहा जाता है और जब वह निकटतम होता है तो उसे पेरिजी (Perigee) कहा जाता है। पेरिजी के समय चंद्रमा की पृथ्वी से दूरी लगभग 3.60 लाख किमी होती है, जबकि एपोजी के समय यह लगभग 4.05 लाख किमी दूर होता है।
सुपरमून वो खगोलीय घटना है, जिसमें चांद अपने नॉर्मल स्थिति से ज्यादा बड़ा नजर आता है। BBC रिपोर्ट के अनुसार सुपरमून सामान्य चांद की तुलना में 7% ज्यादा बड़ा दिखाई देता है। वहीं ये 15% ज्यादा चमकीला भी दिखता है। सुपरमून हर साल तीन से चार बार दिखाई देता है।
सुपरमून (supermoon) दिखने की वजह भी बेहद रोचक है। इस दौरान चांद धरती के चारों ओर घूमते-घूमते उसकी कक्षा के ज्यादा करीब आ जाता है। इस सिचुएशन को पेरिजी (Perigee) कहा जाता है। वहीं, चांद के धरती से दूर जाने पर उसे अपोजी (Apogee) कहा जाता है। एस्ट्रोलॉजर रिचर्ड नोल ने पहली दफा 1979 में ऐसी स्थिति के लिए सुपरमून शब्द का यूज किया था।
super buck moon

 

जुलाई में दिखने वाले सुपरमून को सुपर बक मून भी कहा जाता है (Why is it called the Super Buck Moon?)

जुलाई में दिखाई देने वाले सुपरमून (supermoon) को बक मून भी कहा जाता है। हिंदी में बक को वयस्क नर हिरण कहा जाता है। ये साल के उस समय को लेकर कहा जाता है, जब हिरणों के नए सींग उगने लगते हैं। वहीं, दुनिया की अन्य जगहों में जुलाई के सुपरमून (supermoon) को थंडर मून भी कहते  हैं, क्योंकि ये मानसून का दौर होता है और इस मौसम में बादल गरजना और बिजली कड़कना नॉर्मल होता है।

 
ब्लडमून किसे कहते हैं?
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हम सभी ने अपने बचपन में रोशनी के सात रंगों के बारे में पढ़ा था। प्रिज्म के साथ एक्सपेरिमेंट भी हमने किया होगा कि जब प्रकाश की किरण प्रिज्म से होकर निकलती है तो वह सात रंगों में बिखर जाती है। हमने इसे VIBGYOR यानी बैंगनी (वी), इंडिगो (आई), नीला (बी), हरा (जी), पीला (वाई), नारंगी (ओ) और लाल के रूप में भी कंठस्त किया होगा।

यह पृथ्वी के वायुमंडल से प्रकाश को फिल्टर करता है और फिर हमारे ग्रह की छाया चंद्रमा पर पड़ रही होती है। बैंगनी (बैंगनी) की वेवलेंग्थ सबसे कम ही होती है और वहीं लाल रंग की सबसे अधिक होती है। चंद्र ग्रहण के दौरान, पृथ्वी सूर्य और चंद्रमा के बीच आ जाती है।

तब पृथ्वी सूर्य के प्रकाश को चंद्रमा तक पहुंचने से रोक देती है। सबसे अधिक तरंग दैर्ध्य यानी वेवलेंग्थ वाला लाल रंग ही प्रभावी होता है। इससे चंद्रमा पर लाल चमक आ जाती है। जिसके कारण इसे ब्लड मून भी कहा जाता है।

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