Pankaj Udhas Memory: चिट्ठी आई है गाना सुन रो पड़े थे राजकपूर, बोले पंकज से बेहतर इस गाने को कोई नहीं गा सकता था Read it later

Pankaj Udhas Memory: मशहूर गजल गायक पंकज उधास का आज 72 साल की उम्र में निधन हो गया है। उनके निधन की जानकारी उनकी बेटी नायाब ने सोशल मीडिया पर दी है। गजल गायक जैजिम शर्मा ने बताया कि वह पैंक्रियाज कैंसर बीमारी से लंबे समय से जूझ रहे थे।

सांस लेने में तकलीफ के चलते उन्हें करीब 10 दिन पहले मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जहां सोमवार सुबह 11 बजे उन्होंने जीवन की अंतिम सांस ली। पंकज के परिवार में पत्नी फरीदा और दो बेटियां नायाब और रेवा हैं।

आज पंकज उधास हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनसे जुड़ा अनसुना किस्‍सा सबको आज हैरान कर सकता है। दरअसल राजेंद्र कुमार और राज कपूर बहुत अच्छे दोस्त थे। एक दिन उन्होंने राज कपूर को खाने पर बुलाया। डिनर खत्‍म हुआ तो उन्होंने शोमैन राज कपूर को पंकज उधास की ओर से गाई गजल ‘चिट्ठी आई है’ सुनाई तो राजकपूर की आंखों से आंसू छलक पड़े। उन्होंने कहा कि इस गजल को पंकज से बेहतर कोई नहीं गा सकता।

बहरहाल पंकज उधास का पार्थिव शरीर फिलहाल अस्पताल में ही रखा गया है। उनके भाइयों और परिवार के अन्य सदस्यों के आने के बाद पार्थिव शरीर को घर लेकर जाया जाएगा। उनका अंतिम संस्कार मंगलवार को मुंंबई में ही किया जाएगा।

गुजरात के एक जमींदार परिवार में जन्म

पंकज उधास का जन्म 17 मई 1951 को जेतपुर, गुजरात में हुआ था। उनका परिवार राजकोट के निकट चरखड़ी कस्बे का निवासी था। उनके दादा भावनगर के जमींदार और दीवान थे। उनके पिता केशुभाई एक सरकारी कर्मचारी थे। पिता को इसराज (एक संगीत वाद्ययंत्र) बजाने का शौक था और मां जीतूबेन को गाने का शौक था। इसके चलते पंकज उधास और उनके दोनों भाइयों का रुझान संगीत की ओर हो गया।

 

स्कूल में पहले गाने के पहली कमाई 51 रुपए मिली

पंकज ने कभी नहीं सोचा था कि वह सिंगिंग में अपना करियर बनाएंगे। उन दिनों भारत-चीन युद्ध चल रहा था। इस दौरान लता मंगेशकर का गाना ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ रिलीज हुआ था। पंकज ने कहा, ऐ मेरे वतन के लोगों! उनके गाने से लोगों की आंखें नम हो गईं। दर्शकों में से एक शख्स ने उन्हें इनाम के तौर पर 51 रुपये दिए। यह उनकी गायकी से पहली कमाई थी।

संगीत अकादमी में हुए पारंगत

पंकज के दोनों भाई मनहर और निर्जल उधास म्यूजिक इंडस्ट्री के जाने-माने नाम थे। स्कूल में पंकज के बेहतरीन प्रदर्शन के बाद उनके माता-पिता को लगा कि पंकज भी अपने भाइयों की तरह संगीत के क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं। इसके बाद उन्हें राजकोट की संगीत अकादमी में दाखिला मिल गया।

काम नहीं मिला तो विदेश में बसने का तय कर चुके थे

पढ़ाई के बाद पंकज उधास कई बड़े स्टेज शो में परफॉर्म करते रहते थे। दरअसल वे बॉलीवुड में अपनी जगह तलाश रहे थे। उन्होंने 4 साल तक संघर्ष किया, लेकिन कोई बड़ा काम नहीं मिला। उन्होंने फिल्म कामना में अपने एक गाने को आवाज दी, वह फिल्म भी फ्लॉप हो गई। इसके बाद उन्होंने विदेश में बसने का फैसला कर लिया था।

मुस्लिम लड़की से प्रेम विवाह :Pankaj Udhas Memory

पंकज उधास ने 11 फरवरी 1982 को फरीदा से शादी की। उस समय वह ग्रेजुएशन कर रहे थे और फरीदा एक एयर होस्टेस थीं। दोनों की मुलाकात एक कॉमन फ्रेंड की शादी में हुई थी। पंकज को फ़रीदा पहली नज़र में ही पसंद आ गई थी। दोनों के बीच पहले दोस्ती हुई, फिर प्यार।

Pankaj Udhas Memory
दिवंगत पंकज उधास पत्‍नी फरीदा के साथ

पंकज का परिवार इस रिश्ते के लिए तैयार था, लेकिन फरीदा के परिवार को यह रिश्ता मंजूर नहीं था। वे लड़की की शादी दूसरे धर्म में नहीं करना चाहते थे। फ़रीदा के कहने पर ही पंकज उधास उनके घर पहुंचे और फरीदा पिता से बड़ी साफगोई से अपने रिश्ते के बारे में बात कह डाली। फ़रीदा के पिता एक सेवानिवृत्त पुलिस के अधिकारी थे, इसलिए पंकज बहुत डरे हुए थे। लेकिन पंकज ने अपनी बातों से पिता का दिल जीत लिया। इसके बाद फरीदा के पिता उनकी शादी के लिए राजी हो गए।

 

उधास की सुरीली आवाज़, ग़ज़ल कविता की उनकी सूक्ष्म समझ के साथ, श्रोताओं के बीच गहराई से गूंजती रही। वह ग़ज़लों को मुख्यधारा में लाने में अग्रणी बन गए, जिससे वे शैली के पारखी लोगों से परे व्यापक दर्शकों के लिए सुलभ हो गईं। फिल्म “नाम” (1986) के “चिठ्ठी आई है” और “आ गले लग जा” जैसे गीतों ने उन्हें एक घरेलू नाम के रूप में स्थापित किया, जिससे भारत के प्रमुख गजल गायकों में से एक के रूप में उनकी स्थिति मजबूत हुई।

अपनी कला के प्रति उधास के समर्पण को कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से मान्यता मिली है, जिनमें सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार, ग़ज़ल गायन के लिए संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और भारत का चौथा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान पद्म श्री शामिल हैं।

अपनी संगीत प्रतिभा के अलावा, उधास अपने विनम्र और व्यावहारिक व्यक्तित्व के लिए जाने जाते थे। पंकज उधास की आवाज़ हर जगह ग़ज़ल प्रेमियों के दिलों में हमेशा के लिए बस गई है।

 

पंकज उधास के बारे में रोचक तथ्य – Pankaj Udhas Memory

  • प्रारंभिक संगीत प्रभाव: पंकज उधास ऐसे घर में पले-बढ़े जहां संगीत जीवन का नियमित हिस्सा था। उनके बड़े भाई मनहर उधास भी एक पार्श्व गायक हैं और उनके प्रभाव से ही पंकज को गायन के प्रति प्रेम पैदा हुआ।
  • प्रोफेशनल डेब्यू: हालाँकि पंकज उधास को छोटी उम्र से ही ग़ज़लों का शौक था, लेकिन उनका प्रोफेशनल डेब्यू 1980 में एल्बम “आहट” से हुआ, जिसने उन्हें ग़ज़ल गायन की दुनिया में एक उल्लेखनीय आवाज़ के रूप में स्थापित किया।
  • ‘चांदी जैसा रंग’ से सफलता: उनकी 1981 की रिलीज़, “चांदी जैसा रंग है तेरा” तुरंत हिट हो गई और उनके सबसे पसंदीदा ट्रैक में से एक बनी रही, जिसने उन्हें स्टारडम तक पहुंचाया।
  • सामाजिक कार्यों में योगदान: संगीत से परे, पंकज उधास अपने परोपकारी प्रयासों के लिए जाने जाते हैं। वह अपने फाउंडेशन, ‘पेरेंट्स एसोसिएशन थैलेसीमिक यूनिट ट्रस्ट’ (PATUT) के माध्यम से कैंसर देखभाल और बाल कल्याण सहित विभिन्न सामाजिक कारणों का समर्थन करने में सक्रिय रूप से शामिल रहे हैं।
  • वैश्विक पहचान: उधास ने न केवल भारत में अपनी छाप छोड़ी है, बल्कि दुनिया भर के कई देशों में प्रदर्शन करके अंतरराष्ट्रीय ख्याति भी हासिल की है, जिससे ग़ज़ल का सार दूर-दूर तक फैल गया है।
  • बॉलीवुड प्लेबैक सिंगिंग: गजलों के अलावा पंकज उधास ने कई बॉलीवुड फिल्मों में अपनी आवाज दी है। फिल्म “मोहरा” का उनका गाना “ना कजरे की धार” उनके सबसे लोकप्रिय बॉलीवुड नंबरों में से एक है।
  • पद्म श्री पुरस्कार: भारतीय संगीत और सामाजिक सेवाओं में उनके योगदान के सम्मान में, पंकज उधास को 2006 में भारत सरकार द्वारा भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में से एक, पद्म श्री से सम्मानित किया गया था।
  • विविध डिस्कोग्राफी: इन वर्षों में, उधास ने अपनी संगीत प्रतिभा की बहुमुखी प्रतिभा और गहराई को प्रदर्शित करते हुए कई एल्बम जारी किए हैं। उनकी डिस्कोग्राफी कई दशकों तक फैली हुई है और इसमें 50 से अधिक एल्बम शामिल हैं।
  • नई पीढ़ी के प्रभावशाली व्यक्ति: उधास ने ग़ज़ल गायन के पारंपरिक सार को बनाए रखते हुए अपनी शैली को अपनाते हुए, ग़ज़ल शैली को युवा दर्शकों तक लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • सहयोग और फ़्यूज़न: उन्होंने विभिन्न शैलियों के विभिन्न कलाकारों के साथ सहयोग किया है, फ़्यूज़न संगीत के साथ प्रयोग किया है जो ग़ज़ल को समकालीन ध्वनियों के साथ मिश्रित करता है, इस प्रकार शैली को आधुनिक श्रोताओं के लिए जीवित और प्रासंगिक बनाए रखता है।

 

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