NASA Moon Mission Artemis- I: नासा मून मिशन की आर्टेमिस-1 लॉन्च का दूसरा प्रयास भी विफल‚ 50 साल बाद चांद पर उतरने की पूरी तैयारी समझिए Read it later

NASA's Artemis-1 Moon Mission

NASA’s Artemis-1 Moon Mission Rocket Launch Failed: फ्लोरिडा स्थित कैनेडी स्पेस सेंटर (Kennedy Space Center) में ग्राउंड टीमों ने शुक्रवार को नासा (NASA) के बिग नेक्स्ट जेनरेशन के मून रॉकेट को सैकंड टाइम चंद्रमा (Moon) पर पहली टेस्टिंग उड़ान पर भेजने की तैयारी पूरी कर ही ली थी कि अब इसके तकनीकी खराबी की बात सामने आई है। 

ज्ञात हो कि पांच दिन पहले भी टेक्नीकल एरर के चलते इस रॉकेट को मून पर भेजने की पहली कोशिश नाकाम रही रही थी। हालांकि शनिवार भी नासा का आर्टेमिस-1 मून मिशन रॉकेट में सेकंड लॉन्च की कोशश से पहले फ्यूल लीकेज की समस्या आ गई है।  

नासा के अथॉरिटी के अनुसार इस मिशन मैनेजर की शनिवार की दोपहर में  322 मीटर ऊंचे इस 32-मंजिल के स्पेस लॉन्च सिस्टम- एसएलएस (Space Launch System- SLS) रॉकेट में ओरियन स्पेस कैप्सूल (Orion Space Capsule) की उड़ान को स्टार्ट करने के लिए शुरू करने के लिए मौजूद थे। 

वहीं NASA का चंद्रमा से मंगल आर्टेमिस (Artemis Program) प्रोग्राम भी शुरू हो रहा है। गौरतलब है कि 50 साल पहले अपोलो लूनर मिशन (Apollo Lunar Missions) प्रोग्राम में चंद्रमा पर अंतरिक्ष यान (Space Craft) पहुंचाया गया था‚ जोकि संयुक्त राज्य का थर्ड मानव अंतरिक्ष यान (Human Spaceflight) प्रोग्राम के तौर पर पहचाना गया। 

इसे प्रोजेक्ट अपोलो भी कहा जाता है। नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन के तहत बनाए किए गए इस प्रोग्राम में 1968 से लेकर 1972 तक मून के सर्फेस  पर इंसान को भेजने की तैयारी की गई थी और ये प्रोग्राम सफल भी रहा। 

ज्ञात हो कि इसी प्रोग्राम क तहत इंसान ने पहली बार  चंद्रमा की जमीन पर पहला कदम रखा था। ये पहली दफा इंसानों को तैयार करने और उतारने में सफल भी रहा था।  हम सभी जानते हैं कि 21 जुलाई 1969 को नील आर्मस्ट्रॉन्ग ने चांद पर  कदम रख इतिहास रच दिया था। 

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इधर आर्टेमिस-1 मून मिशन का मिशन की पहली कोशिश इसलिए रही नाकाम  

आर्टेमिस मिशन के डिप्टी  मैनेजेर (Mike Sarafin) ने शुक्रवार को कहा था कि गुरुवार रात हुए टेस्ट से सामने आया है कि  टेक्नीशियंस ने फ्यूल लीकेज हो रही एक लाइन को दुरुस्त किया है।  इस कारण नासा का इसे 5 दिन पहले सोमवार को चांद पर लॉन्च प्रोग्राम का पहला ऑपरेशन सक्सेस नहीं हो पाया था। 

असल में मंडे 29 अगस्त को नासा ने फ्लोरिडा के तट पर सिथ  कैनेडी स्पेस सेंटर से इसे लॉन्च करने की  तैयारी पूरी कर ली थी‚ लेकिन इलेवंथ ऑवर में रॉकेट के इंजन में टेम्प्रेचर सेंसर में खराबी को नोटिस किया गया। 

वहीं इस दौरान इन्सुलेशन फोम में आई कुछ क्रेक्स,  हाइड्रोजन लीकेज और खराब मौसम जैसे कई कारण सामने आने के बाद इस लॉन्चिंग को टाल दिया गया था। ऐसे उसी दौरान लॉन्चिं काउंट डाउन  रोक दिया गया।  

आपको बता यहां अपडेट कर दें कि इस रॉकेट के माध्यम से नासा चंद्रमा पर बगैर चालक दल के ऑरियन स्पेसक्राफ्ट को रवाना करेगा। वहीं लॉन्च सफल रहा तो ये स्पेसक्रॉफ्ट एक माह से ज्यादा वक्त के लिए चंद्रमा पर ही रहेगा।

Space Launch System- SLS
Space Launch System- SLS | Image Credit Getty Images

70 फीसदी परिस्थितियां थी अनुकूल

केप कैनावेरल (Cape Canaveral) में यूएस स्पेस फोर्स के लॉन्च वेदर ऑफिसर मेलोडी लोविन (Melody Lovin) के अनुसार दूसरे प्रयास में इसकी उड़ान के लिए दो घंटे का लॉन्च विंडो टाइम रखा गया था। यानीकि दो घंटे के भीतर इसे स्पेस के लिए रवाना होना था। 

केप ने बताया कि लॉन्च के लिए पहले ही इसका पूर्वानुमान लगा लिया गया था और इसके लिए 70 फीसदी सिचुएशन अनुकूल थी‚ शनिवार दोपहर 2.17 मिनट पर ये लॉन्च होना था। लेकिन फिर इसमें परेशानी नोटिस की गई। इससे पहले लोविन ने बताया था कि शनिवार को लॉन्च के सेकंड ट्राय के लिए मौसम भी अनुकूल था। उनके अनुसार उम्मीद नहीं थी कि लॉन्च विंडो के लिए मौसम किसी भी वक्स  शो-स्टॉपर बन  इसमें रुकावट लाएगा। 

जानिए क्या है आर्टेमिस-1

मिशन आर्टेमिस- I ( Artemis- I)  युनाइटेड सटेट्स की स्पेस एजेंसी नासा की लीडरिश्प में एक रोबोट व ह्यूमन मून इन्वेस्टिगेशन प्रोग्राम है। यूएस के इस प्रोग्राम में नासा के साथ ही  यूरोपीय स्पेस एजेंसी, जापान की एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी और कनाडा की अंतरिक्ष एजेंसी भी शामिल हैं। 

बता दें कि मिशन आर्टेमिस- I एसएलएस रॉकेट और ओरियन कैप्सूल दोनों के लिए ये पहली जर्नी होगी। इसे बोइंग कंपनी (Boeing Co-BA.N) और लॉकहीड मार्टिन कॉर्प (Lockheed Martin Corp -LMT.N) ने नासा के साथ हुए करार के तहत निर्मित किया है। 

वहीं चंद्रमा के चारों ओर एसएलएस (Space Launch System- SLS) रॉकेट ने ओरियन कैप्सूल को तो लॉन्च कर दिया है और ये  करीब 37 दिन के बाद इस सफर से धरती पर लौट आएगा। इसमें ओरियन (Orion) एक डिस्कवर ट्रैवल व्हीकल के तौर पर काम करेगा। ये चालक दल को अंतरिक्ष तक लेकर जाएगा। 

वही इमरजेंसी पर वह सुरक्षित एग्जटि मुहैय कराएगा।  इसके साथ ही ये स्पेस जर्नी के दौरान चालक दल को प्रोटेक्ट करेगा और गहरे अंतरिक्ष के वेग से दोबारा सुरक्षित वापसी करेगा। यह नासा के नए हैवी वेट रॉकेट, स्पेस लॉन्च सिस्टम पर लॉन्च हुआ है।

Space Launch System- SLS
Space Launch System- SLS | Image Credit Getty Images

ये स्पेसक्रॉफ्ट की स्पेस में बगैर ड्राइवर की उड़ान होगी। बता दें कि इस उड़ान के बाद साल 2024 के मिशन में इसमें अंतरिक्ष (Astronauts) यात्री जा सकेंगे। अभी इसे उसी के अनुरूप तैयार किया गया है और इसी लिए इसमें फिलहाल तीन पुतले (Mannequins) भेजे जा रहे हैं‚ ये पूरी तरह से  इंसान जैसे बनाए तैयार किए गए हैं। इन पुतलों में दो को फिमेल और एक को मेल के रूप में डिजाइन किया गया है।  

यदि ये दो पहले आर्टेमिस मिशन सफल रहते हैं तो नासा का अगला टार्गेट अंतरिक्ष यात्रियों को चांद की सतह पर (Lunar Surface) पर फिर से भेजना संभव हो पाएगा। इसमें साल 2025 की शुरुआत में चंद्रमा की सतह पर पैर रखने वाली पहली महिला भी शामिल होगी। 

हालांकि कई साइंटिस्ट्स और एक्सपर्टस ये भी कह रहे हैं कि इस मिशन की समय सीमा कुछ साल के लिए आगे भी बढ़ सकती है। नासा ने चंद्रमा करीब पहुंचने से पहले उसकी सतह पर 60 मील की दूर पर ऊपर की ओर ओरियन सेटेलाइट टेस्टिंग की प्लानिंग भी की है।  

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अभी तक 12 इंसानी अंतरिक्ष यात्री रख चुके चंद्रमा की सतह पर कदम 

साल 1969 से 1972 तक 6 अपोलो लूनार मिशंस में अब तक 12 अंतरिक्ष यात्री चंद्रमा का सफर कर पृथ्वी पर लौट चुके हैं। गौरतलब है कि ये चंद्रमा की जमीन पर इंसानी पैर रखने को सक्षम बनाने वाला एकमात्र अंतरिक्ष यान था। हालांकि अमेरिका और सोवियत यूनियन के कोल्ड वॉर ने अपोलो स्पेस की दौड़ पर ब्रेक लगा दिया। 

अभी नासा के नए चंद्र मिशन का फोकस साइंस पर ज्यादा है। इसमें नासा इंटरनेशनल पार्टनरशिप के तहत यूरोप, जापान और कनाडा की अंतरिक्ष एजेंसियों को साथ ले जाने वाला है। स्पेसएक्स (Spacex) जैसे कमर्शियल रॉकेट एंटरप्राइज इसी का एक नमूना है। 

नासा का मून मिशन असल में भविष्य में मार्स पर पहुंचने की तैयारी

अपोलो मिशन से पूरी तरह से अलग नासा का मून के लिए इन नई उड़ानों का लक्ष्स चांद की सतह और उसकी कक्षा में लंबा, स्थायी बेस तैयार करना है। यही बेस भविष्य में मंगल (Mars) पर मानव अभियानों को साकार कर सकेगा। ऐसे में माना जा सकता है कि ये मून मिशन असल में मंगल की ही तैयारी है। इस दिशा में नासा का फर्स्ट स्टेप स्पेस लॉन्च सिस्टम है।  

ये अपोलो युग (Apollo Era) के शनि वी रॉकेट (Saturn V Rocket ) के बाद का अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा का अब तक का सबसे बड़ा वर्टिकल लॉन्च सिस्टम-वीएलसी (Vertical Launch System-VLS)  है। वीएलएस समुद्री सतह पर ऑपरेट के लिए डिज़ाइन किए गए सैन्य पोत‍ों या शिप्स और पनडुब्बियों जैसे चलायमान नौसैनिक प्लेटफार्मों से मिसाइलों को रखने और दागने का एक एडवांस सिस्टम है। 

यदि किसी कारणवश आर्टेमिस- I मिशन को अंतरिक्ष में भेजने की कोशिशे असफल भी होती हैं तो नासा सोमवार या मंगलवार को फिर से ट्राय कर सकता है और नासा की ये दूसरी कोशिश भी नाकाम हो चुकी है। 

रॉकेट लॉन्च न हो तो  लॉन्च टॉवर पर कितने समय रहेगा इसके भी नियम जानिए

यहां आप ये भी जान लें कि एक और लॉन्चिंग के ट्राय से पहले तक एक रॉकेट अपने लॉन्च टॉवर पर कितनी समय तक रह पाएगा इसके भी नियम तय हैं। ऐसे में यदि लॉन्च नहीं होता है तो  रॉकेट को वापस असेंबली बिल्डिंग (Assembly Building) में शिफ्ट करना होगा। असेंबली बिल्डिंग वही स्थान है जहां रॉकेट के विभिन्न अलग-अलग पार्टस को जोड़ा जाता है।  

अमेरिकन रॉकेट इंजीनियर जैक पार्सन्स (Jack Parsons) का कहना है कि यदि रॉकेट असेंबली बिल्डिंग में शिफ्ट होता है तो इस कदम में कुछ दिनों या एक वीक की तुलना में ज्यादा देरी लग सकती है।

ज्ञात हो कि एसएलएस (SLS) और ओरियन (Orion)  10 साल से अधिक समय से डवलप प्रॉसेस से गुजर रहे हैं। इसमें वर्षों की देरी के कारण बैलूनिंग कॉस्ट में भी (Ballooning Costs) बढ़ोतरी हो गई है। 

बैलूनिंग कॉस्ट से तात्पर्य ये है कि लोन चुकाने की इररेग्यूलर इंस्टाॅल्मेंट के रूप में भुगतान की गई एक बड़ी रकम से है।  पिछले साल के कंपेयर में ये कम से कम 37 बिलियन डॉलर तक पहुंच चुकी है। वहीं  नासा का तर्क है कि इससे आर्टेमिस प्रोग्राम ने एयरोस्पेस इंडस्ट्री के लिए कई हजार जॉब्स और कमर्शियल सेक्टर्स में अरबों डॉलर का जनरेट किए हैं।

Space Launch System- SLS
Space Launch System- SLS | Image Credit Getty Images

इंसान की चंद्रमा यात्रा के रोचक तथ्य भी जान लीजिए 

20 फरवरी 1947 को पहली दफा  जिंदा प्राणी के रूप में फ्रूट पर मंडराने वाली बड़ी मक्खियां अंतरिक्ष में भेजी गईं। वहीं इस पश्चात  चूहे, बंदर से लेकर कुत्ते तक को अंतरिक्ष में भेजा चुका है। पहली दफा स्पेस में  जाने का अवसर लाइका नामक फीमेल डॉग को मिला था‚ लेकिन सोवियत संघ की इस कुतिया की मौत हो गई।  

वहीं NASA के अपोलो 11 मिशन के दौरान चंद्रमा पर भेजा जाने वाला डॉग ने उस दौरान काफी सुर्खियां बटोरी थी। इसके बाद में चार्ल्स एम. स्कूल्ट्ज ने अपनी कॉमेडी सीरीज ‘पीनट्स’ में इसी डाॅग को स्पेस दिया था।  

वहीं करीब 53 साल पहले यानी कि 20 जुलाई 1969 को यूएस स्पेस यात्री नील आर्मस्ट्रॉन्ग चांद पर पैर रखने वाले पहले शख्स थे। वहीं 61 साल पहले यूरी गागरिन   12 अप्रैल, 1961 को अंतरिक्ष में जाने वाले पहले शख्स बने। 

नासा का मिशन आर्टेमिस-1 स्पेसक्राफ्ट ‘ओरियन’ इंसान के स्थान पर बिल्कुल इंसान की तरह डिजाइन किए हुए तीन डमी बॉडी यानी पुतलों को लेकर रवाना हुआ। 

हाइटेक हैं जर्मनी की ओर से तैयार किए गए इंसानी पुतले

इस आर्टेमिस-1 मिशन की सबसे खास बात पर गौर करें तो इस मिशन में महिला इंजीनियर्स की हिस्सेदारी 30 फीसदी है। इन हाईटेक डमी यानी पुतलों में दो पुतले औरतों और एक बिल्कुल आदमी जैसे तैयार गए हैं। जर्मनी के ऐरोस्पेस सेंटर डीएलआर की ओर से तैयार किए गए इन डमी यानी पुतलों के समूह फैंटम्स में हेल्गा, जोहर और मूनिकिन कैंपोस को शामिल किया गया है। 

इसमें कैंपोस मेल है। वहीं होल्गा और जोहर को स्पेस में फीमेल की बॉडी पर पड़ने वाले रेडिएशन के प्रभाव को चेक करने के लिए तैयार किया गया है। जोहर रेडिएशन से बचने की जैकेट एस्ट्रोरेड से लैस है।  

फ्रीज्ड यीस्ट‚ एमेज़ोन वॉयस असिस्टेंस कैलिस्टो‚ इजराइल का डेड सी पत्थर और ग्रीक की देवी आर्टेमिस की रेप्लिका भी भेजी जाएगी

वहीं आर्टेमिस-1 में ओरियन की सीट के ठीक नीचे पहले 3 दिनों में ही फैल जाने वाले ड्राय फ्रिज्ड यीस्ट को रखा जाने वाला है। ताकि धरती पर लौटने के बाद इसका डीएनए का परीक्षण किया जा सके। 

आर्टेमिस-1 में स्पेस क्राफ्ट में ऑडियो-वीडियो मैसेज सेंड करने के लिए एमज़ोन का वॉयस असिस्टेंस कैलिस्टो भी इसमें जाने वाला है।  वहीं इसमें इजराइल की स्पेस एजेंसी का डेड सी से भेजा पत्थर और ग्रीक की देवी आर्टेमिस की 3 डी रेप्लिका भी साथ भेजी जाएगी। 

कॉमेडी सीरीज ‘पीनट्स जिस पेन से तैयार की गई थी उसकी निब, अपोलो 11 मिशन के सुविनियर्स (चांद की सतह से लाए गए छोटे पत्थर) और रॉकेट इंजन का छोटा टुकड़ा भी इस मिशन पर भेजा जाएगा।  

अपोलो-14 मिशन की तरह पेड़ों पर रेडिएशन का इम्पेक्ट का पता करने के लिए आर्टेमिस-1 की यात्रा में कई नस्ल के पेड़ों बीज भी भेजे जाएंगे। ज्ञात हो कि नासा ने अपोलो 14 मिशन के दौरान बीज अंतरिक्ष में भेजे थे। इसके बाद उन्हीं बीजों को धरती पर  लगाकर उन्हें मून ट्री का नाम दिया गया था। 

बच्चों को अंतरिक्ष को लेकर अवेयर करने कलिए पिछले दो साल से लीगो ग्रुप नासा के साथ जुटा है। लीगो के तहत बच्चों के फेवरेट चार लीगो भी मिशन आर्टेमिस-1  की इस यात्रा का पार्ट होंगे। यही नहीं आर्टेमिस-1 में साथ मौजूद सभी देशों के फ्लैग्स, पिन और पैच भी इस सफर में जाने वाले हैं। 37 दिनों के बाद  एयरक्रॉफ्ट के वापस आने पर इन्हें इन देशों को लौटा दिया जाएगा। 

नासा के 2024 के आर्टेमिस-2 मिशन में ह्यूमन स्पेस यात्री चंद्रमा पर कदम रखे बगैर ही  केवल चांद की कक्षा में राउंड लगाकर लौट आएंगे। इसके बाद साल 2025 के नासा के आर्टेमिस-3 ( Artemis-3 ) के मून मिशन में स्पेस यात्रियों को चंद्रमा (Moon) की सतह पर उतारने की प्लानिंग की जा रही है।

NASA’s Artemis-1 Moon Mission Rocket Launch Failed |  NASA Moon Mission Artemis- I | Artemis Program | Lockheed Martin Corp -LMT.N | Kennedy Space Center | 

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