Parental Consent for Kids Social Media: सरकार बच्चों के सोशल मीडिया अकाउंट्स खोलने और उनका डेटा इस्तेमाल करने के लिए माता-पिता की मंजूरी अनिवार्य करने जा रही है। यह कदम डिजिटल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट, 2023 के तहत नए ड्राफ्ट नियमों में प्रस्तावित किया गया है।
क्या है नए नियम का मकसद?
इस ड्राफ्ट का उद्देश्य बच्चों के ऑनलाइन डेटा को सुरक्षित रखना है। इसके तहत, कोई भी कंपनी 18 साल से कम उम्र के बच्चों का डेटा तभी इस्तेमाल कर सकती है जब उनके माता-पिता से साफ-साफ मंजूरी ले ली जाए।
- मंजूरी ऑनलाइन या लिखित रूप में ली जा सकती है।
- मंजूरी के बिना कंपनियां बच्चों का डेटा स्टोर या इस्तेमाल नहीं कर सकतीं।
- यह नियम बच्चों की ऑनलाइन प्राइवेसी को सुरक्षित करने के लिए बनाया गया है।
डिजिटल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट 2023 के प्रावधान
इस एक्ट में लोगों की मंजूरी, डेटा इस्तेमाल करने वाली कंपनियों और अधिकारियों के काम करने के तरीके पर नियम तय किए गए हैं।
- डेटा के गलत इस्तेमाल पर कंपनियों पर 250 करोड़ रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
- हालांकि, नियम तोड़ने पर दी जाने वाली सजा का स्पष्ट विवरण नहीं दिया गया है।
Draft of rules proposed to be made by the central government in exercise of the powers conferred by sub-sections (1) and (2) of section 40 of the Digital Personal Data Protection Act, 2023 (22 of 2023), on or after the date of coming into force of the Act, are hereby published… pic.twitter.com/InpNJtA3Rs
— ANI (@ANI) January 3, 2025
सरकार ने मांगे सुझाव
ड्राफ्ट के नियमों पर सुझाव देने के लिए 18 फरवरी, 2025 की अंतिम तिथि तय की गई है। लोग MyGov वेबसाइट पर अपने सुझाव और आपत्तियां भेज सकते हैं।
- ड्राफ्ट को अंतिम रूप देने से पहले सरकार जनता के विचारों पर विचार करेगी।
- यह पहल बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।
बच्चों के ऑनलाइन डेटा की सुरक्षा क्यों है जरूरी?
आजकल बच्चे सोशल मीडिया पर बेहद एक्टिव हो गए हैं। उनकी व्यक्तिगत जानकारी का गलत इस्तेमाल होने का खतरा रहता है।
आंकड़े बताते हैं कि:
- सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर बच्चों के अकाउंट्स तेजी से बढ़ रहे हैं।
- डेटा का गलत इस्तेमाल साइबर क्राइम का खतरा बढ़ाता है।
नए नियमों के प्रभाव:
- बच्चों की सुरक्षा में सुधार: कंपनियों को पैरेंट्स की मंजूरी लेने से बच्चों का डेटा अधिक सुरक्षित रहेगा।
- डेटा का दुरुपयोग रुकेगा: माता-पिता की मंजूरी के बिना बच्चों की जानकारी तक पहुंचना मुश्किल होगा।
- ऑनलाइन प्राइवेसी का संरक्षण: यह कदम बच्चों के डिजिटल अधिकारों की रक्षा करेगा।
डेटा सुरक्षा को लेकर माता-पिता की भूमिका:
- माता-पिता को बच्चों की ऑनलाइन गतिविधियों पर नजर रखनी होगी।
- बच्चों को डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के सुरक्षित उपयोग के बारे में जागरूक करना होगा।
- किसी भी अनधिकृत गतिविधि पर तत्काल कार्रवाई करनी होगी।
ड्राफ्ट में पैरेंट्स की सहमति और डेटा उपयोग के नियमों का विस्तार
डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन (DPDP) एक्ट, 2023 के तहत जारी किए गए ड्राफ्ट नियमों में बच्चों के डेटा सुरक्षा के लिए माता-पिता की सहमति को अनिवार्य किया गया है। सरकार ने इस ड्राफ्ट को धारा 40 की उपधारा 1 और 2 के तहत प्रस्तावित किया है, जो केंद्र सरकार को ऐसे नियम बनाने की शक्ति प्रदान करती है। इन नियमों में डेटा फिड्युशरी कंपनियों के लिए सख्त दिशानिर्देश तय किए गए हैं।
कैसे ली जाएगी माता-पिता की सहमति?
ड्राफ्ट में माता-पिता की सहमति लेने के सिस्टम का उल्लेख किया गया है। इसके अनुसार:
- डेटा फिड्युशरी कंपनियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि बच्चों का डेटा प्रोसेस करने से पहले उनके माता-पिता की सहमति ली जाए।
- कंपनियों को तकनीकी और संगठनात्मक उपायों के माध्यम से यह जांचना होगा कि सहमति देने वाला व्यक्ति बच्चे का वास्तविक अभिभावक है और वह खुद वयस्क है।
- सहमति को साफ और प्रमाणिक तरीके से रिकॉर्ड करना अनिवार्य होगा।
डेटा स्टोरेज और प्रोसेसिंग पर दिशा-निर्देश
ड्राफ्ट के नियमों के तहत डेटा फिड्युशरी कंपनियों को यह निर्देश दिया गया है:
- बच्चों का डेटा केवल उतने समय तक ही रखा जाएगा, जब तक उसके उपयोग के लिए सहमति दी गई है।
- सहमति समाप्त होने के बाद, डेटा को पूरी तरह से डिलीट करना अनिवार्य होगा।
- डेटा स्टोरेज, कलेक्शन और प्रोसेसिंग के लिए कंपनियों को पारदर्शिता रखनी होगी।
कंपनियों की श्रेणी:
ड्राफ्ट के अनुसार, ई-कॉमर्स, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और गेमिंग साइट्स जैसी कंपनियां, जो बच्चों के डेटा को प्रोसेस करती हैं, डेटा फिड्युशरी की श्रेणी में आएंगी।
डेटा सुरक्षा में DPDP एक्ट की भूमिका
डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन (DPDP) एक्ट को अक्टूबर 2023 में संसद से मंजूरी मिली थी। इस एक्ट का मुख्य उद्देश्य लोगों के डेटा पर उनके अधिकार को सशक्त करना और कंपनियों को डेटा उपयोग में पारदर्शिता और जिम्मेदारी के लिए बाध्य करना है।
एक्ट के मुख्य बिंदु:
- कंपनियों को यह स्पष्ट करना होगा कि वे कौन सा डेटा ले रही हैं और इसका उपयोग कैसे कर रही हैं।
- नागरिकों को यह अधिकार मिला है कि वे अपने डेटा कलेक्शन, स्टोरेज और प्रोसेसिंग के विवरण की मांग कर सकें।
- कानून का उल्लंघन करने वाली कंपनियों पर 250 करोड़ रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। पहले यह सीमा 500 करोड़ रुपए तक थी।
बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा के लिए विशेष प्रावधान
आज के डिजिटल युग में, बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है। सोशल मीडिया, गेमिंग प्लेटफॉर्म और ई-कॉमर्स साइट्स पर बच्चों का डेटा अक्सर गलत हाथों में पहुंचने का खतरा रहता है।
नए प्रावधान क्या सुनिश्चित करते हैं?
- बच्चों के डेटा को प्रोसेस करने से पहले पैरेंट्स की स्पष्ट सहमति लेना।
- डेटा का उपयोग केवल उन्हीं उद्देश्यों के लिए करना, जिनके लिए सहमति दी गई है।
- किसी भी उल्लंघन पर सख्त जुर्माना और कार्रवाई।
डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल से जुड़ी खास बातें…
कंपनियों को यूजर्स के पर्सनल डेटा की सेफ्टी सुनिश्चित करनी होगी, चाहे वह डेटा अपने सर्वर में स्टोर करें या किसी थर्ड पार्टी डेटा प्रोसेसर के पास।
डेटा लीकेज होने पर कंपनियों को डेटा प्रोटेक्शन बोर्ड (DPB) और उससे प्रभावित लोगों को तुरंत जानकारी देनी होगी।
बिल में बच्चों और फिजिकली डिसेबल लोगों के लिए विशेष प्रावधान हैं। बच्चों और फिजिकली डिसेबल लोगों के डेटा प्रोसेस करने से पहले कंपनियों को उनके अभिभावकों से परमिशन लेनी होगी।
कंपनियों को डेटा प्रोटेक्शन ऑफिसर नियुक्त करना होगा और प्राइवेसी पॉलिसी का पालन सुनिश्चित करना होगा।
ड्राफ्ट की बड़ी बातें
एक्ट में पर्सनल डेटा इकट्ठा करने और उसका उपयोग करने वाली कंपनियों को ‘डेटा फिड्युशरी’ कहा है।
डेटा फिड्युशरी कंपनियों को सुनिश्चित करना होगा कि बच्चों के पर्सनल डेटा को प्रोसेस करने से पहले पेरेंट्स की सहमति ली जाए।
इन कंपनियों को यह चेक करना होगा कि जो व्यक्ति खुद को किसी बच्चे का पेरेंट बता रहा है, वह खुद वयस्क हो।
ई-कॉमर्स, सोशल मीडिया और गेमिंग प्लेटफॉर्म डेटा के लिए जिम्मेदार कंपनियां यानी डेटा फिड्युशरी कंपनियों की श्रेणी में आएंगी।
कानून के तहत कंपनियों की जिम्मेदारियां
ड्राफ्ट के अनुसार, कंपनियों को तकनीकी उपायों के साथ अपने सिस्टम को तैयार करना होगा ताकि डेटा सुरक्षा और उपयोग की प्रक्रिया में पारदर्शिता बनी रहे।
- डेटा को स्टोर करने की समय सीमा तय करना।
- बच्चों के डेटा को सुरक्षित रखने के लिए नियमित निगरानी और ऑडिट करना।
- किसी भी डेटा उल्लंघन की स्थिति में इसकी जानकारी तुरंत संबंधित प्राधिकरण को देना।
डेटा सुरक्षा के मौजूदा परिदृश्य में बदलाव
DPDP एक्ट और उसके तहत बनाए गए नियम बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हैं।
- सहभागिता बढ़ेगी: माता-पिता को अपने बच्चों की डिजिटल सुरक्षा में भागीदार बनाया गया है।
- डिजिटल अधिकार सशक्त होंगे: नागरिकों को डेटा से जुड़ी अधिक पारदर्शिता और सुरक्षा मिलेगी।
- डेटा कंपनियों की जवाबदेही: कंपनियों को अपने कार्य में ईमानदारी और सावधानी बरतने के लिए बाध्य किया गया है।
डेटा सुरक्षा के अगले कदम:
ड्राफ्ट नियमों को अंतिम रूप देने से पहले, सरकार ने जनता से 18 फरवरी, 2025 तक सुझाव मांगे हैं।
- सुझाव MyGov वेबसाइट पर जमा किए जा सकते हैं।
- जनता की राय के आधार पर ड्राफ्ट में संशोधन किए जा सकते हैं।
डेटा सुरक्षा के प्रति सरकार का दृष्टिकोण
डेटा सुरक्षा का यह कदम न केवल बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है, बल्कि नागरिकों के डेटा अधिकारों को भी सशक्त बनाता है। डिजिटल युग में इस तरह के सख्त प्रावधान न केवल प्राइवेसी को बढ़ावा देंगे, बल्कि तकनीकी कंपनियों को जिम्मेदारी के साथ काम करने के लिए बाध्य करेंगे।
लोगों की प्राइवेसी के संरक्षण के लिए डिजिटल डेटा प्रोटेक्शन बिल
डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल का मुख्य उद्देश्य नागरिकों की प्राइवेसी को संरक्षित करना है। इसे पास करते समय राज्यसभा में IT मिनिस्टर अश्विनी वैष्णव ने कहा था, “यह बिल नागरिकों की प्राइवेसी और अधिकारों की रक्षा के लिए लाया गया है। इसका उद्देश्य डिजिटल पर्सनल डेटा की प्रोसेसिंग को रेगुलेट करना है।” उन्होंने आगे बताया कि बिल को इतना कठोर नहीं बनाया गया है कि उसमें वक्त के साथ बदलाव न किए जा सकें। इसके जरिए लोगों की व्यक्तिगत जानकारी को संरक्षित किया जाएगा, साथ ही इसका इस्तेमाल किसी भी प्रकार से गलत तरीके से न हो, इसे सुनिश्चित किया जाएगा।
बिल के समर्थन और विरोध के बीच बहस
जब यह बिल लोकसभा में पेश हुआ, तब विपक्ष ने इसका जोरदार विरोध किया था। उन्होंने इसे संसदीय समिति के पास भेजने की मांग की थी। हालांकि, राज्यसभा से पास होने के बाद IT मिनिस्टर ने कहा कि यह बिल पूरी तरह से प्रो-सिटीजन और प्रो-प्राइवेसी है। यह बिल डिजिटल युग में नागरिकों की प्राइवेसी को सुरक्षित रखने का वादा करता है।
डिजिटल पर्सनल डेटा: क्या है और क्यों है यह महत्वपूर्ण?
डिजिटल पर्सनल डेटा का मतलब वह डेटा है जिसे डिजिटल माध्यमों से इकट्ठा किया जाता है और जिसे किसी व्यक्ति की पहचान के लिए उपयोग किया जा सकता है। इसे एक उदाहरण के जरिए समझा जा सकता है। जब आप किसी कंपनी का ऐप अपने फोन में इंस्टॉल करते हैं, तो वह ऐप आपसे कई प्रकार की परमिशन मांगता है। जैसे-
- कैमरा एक्सेस
- गैलरी
- कॉन्टैक्ट्स
- GPS लोकेशन
इन परमिशन को देने के बाद, ऐप आपका डेटा इकट्ठा करता है और कई बार अपने सर्वर पर अपलोड कर लेता है। चौंकाने वाली बात यह है कि अक्सर यह डेटा अन्य कंपनियों को बेच दिया जाता है। वर्तमान में हमारे पास यह जानने का कोई तरीका नहीं होता कि हमारा कौन सा डेटा लिया गया और उसका इस्तेमाल कैसे किया गया।
डिजिटल डेटा प्रोटेक्शन बिल इसी प्रकार के डेटा के दुरुपयोग को रोकने के लिए लाया गया है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कंपनियां उपयोगकर्ता के डेटा को उनकी सहमति के बिना न तो एक्सेस कर सकें और न ही उसका इस्तेमाल कर सकें।
बिल कैसे करेगा डेटा की सुरक्षा?
इस बिल में उन ऐप्स और कंपनियों को जिम्मेदार ठहराने का प्रावधान है, जो यूजर्स का डेटा कलेक्ट करती हैं। कंपनियों को यूजर्स से यह स्पष्ट करना होगा कि वे कौन सा डेटा ले रही हैं और इसका उपयोग कैसे किया जाएगा। इसके अलावा, कंपनियों को इस बात की जानकारी देनी होगी कि डेटा कितने समय तक उनके पास सुरक्षित रहेगा और कब इसे डिलीट किया जाएगा।
बिल के मुताबिक:
- कंपनियों को डेटा लेने से पहले उपयोगकर्ता की अनुमति लेनी होगी।
- डेटा का इस्तेमाल केवल निर्धारित उद्देश्यों के लिए किया जाएगा।
- डेटा लीक होने की स्थिति में कंपनियों को तुरंत सरकार और प्रभावित यूजर्स को सूचित करना होगा।
बिल का महत्व: क्यों है यह नागरिकों के लिए जरूरी?
आज के समय में ऐप्स और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स हमारे हर कदम पर नजर रखते हैं। यह डेटा न केवल हमारे व्यवहार और आदतों को ट्रैक करता है, बल्कि इसे तीसरी पार्टी को बेच दिया जाता है। इससे हमारी प्राइवेसी को बड़ा खतरा होता है।
डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल के जरिए सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि नागरिकों का डेटा सुरक्षित रहे और उनका गलत इस्तेमाल न हो। यह बिल नागरिकों को यह अधिकार देता है कि वे कंपनियों से पूछ सकें:
- उनका कौन सा डेटा कलेक्ट किया जा रहा है?
- इसे किस उद्देश्य से इस्तेमाल किया जा रहा है?
- कब तक यह डेटा सुरक्षित रहेगा?
सोशल मीडिया के इस्तेमाल ने हर 10 में से 6 युवा का स्लीप पैटर्न बिगाड़ा
सोशल मीडिया में कहां समय बिताते हैं भारतीय टीनजर्स?
- व्हाट्सएप: 81.14%
- यूट्यूब: 70.61%
- फेसबुक: 54.94%
- एक्स (पूर्व में ट्विटर): 10.5%
सोशल मीडिया पर डेली कितना समय बिताते हैं टीनजर्स?
- 4 घंटे से ज्यादा: 10%
- 2 से 4 घंटे: 21%
- 1 से 2 घंटे: 33%
- 30 मिनट से 1 घंटे: 22%
- आधे घंटे से कम: 15%
सोशल मीडिया के इस्तेमाल से क्या इम्पैक्ट?
- 69%: फिजिकल एक्टिविटी पर असर
- 63%: स्लीप पैटर्न पर असर
- 41%: खाने की हैबिट पर असर
Source: www.pediatrics.medresearch.in
डेटा फिड्युशरी का महत्व
बिल में डेटा कलेक्ट करने वाली कंपनियों को ‘डेटा फिड्युशरी’ कहा गया है। यह शब्द उन कंपनियों के लिए इस्तेमाल किया गया है जो यूजर्स का डेटा इकट्ठा, स्टोर और प्रोसेस करती हैं।
- डेटा फिड्युशरी को यह सुनिश्चित करना होगा कि बच्चों का डेटा प्रोसेस करने से पहले उनके माता-पिता या अभिभावकों से अनुमति ली जाए।
- कंपनियों को तकनीकी उपाय करने होंगे ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि डेटा का इस्तेमाल सुरक्षित रूप से किया जा रहा है।
- यदि कोई डेटा का गलत इस्तेमाल करता है, तो उन पर 250 करोड़ रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
डिजिटल डेटा प्रोटेक्शन के लिए सरकार की जिम्मेदारी
IT मिनिस्टर अश्विनी वैष्णव ने कहा था कि सरकार डेटा प्रोटेक्शन के साथ-साथ डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर को भी मजबूत करेगी। इस बिल के जरिए नागरिकों को यह अधिकार मिलेगा कि वे अपनी प्राइवेसी की रक्षा कर सकें।
भविष्य में संभावित बदलाव
डिजिटल डेटा प्रोटेक्शन बिल को लचीला रखा गया है ताकि वक्त के साथ इसमें बदलाव किए जा सकें। इस बिल के लागू होने के बाद कंपनियों को अधिक जवाबदेही के साथ काम करना होगा। यह बिल न केवल नागरिकों की प्राइवेसी को सुरक्षित करेगा, बल्कि डेटा कलेक्शन और प्रोसेसिंग के नियमों को भी पारदर्शी बनाएगा।
निष्कर्ष:
डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल, 2023 एक महत्वपूर्ण कदम है जो नागरिकों की प्राइवेसी की रक्षा करता है। यह बिल डिजिटल युग में डेटा की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक मील का पत्थर साबित हो सकता है। इससे नागरिकों को न केवल डेटा सुरक्षा का अधिकार मिलेगा, बल्कि उनके डेटा के दुरुपयोग को रोकने में भी मदद मिलेगी।
इस पहल से यह भी साफ होता है कि सरकार डेटा सुरक्षा को लेकर गंभीर है और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध है।
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