03 साल से राज्यों में कमजोर हो रही भाजपा को बिहार परिणाम से मिली ताकत, अब वेस्ट बंगाल पर नजर Read it later

 

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बिहार और मध्यप्रदेश में चुनावों के नतीजे भाजपा के लिए इम्यूनिटी बूस्टर के तौर पर सामने आए हैं। 2018 से ही राज्यों की विधानसभाओं में भाजपा कमजोर हो रही थी। कहीं बीजेपी ने कुछ सीटें गंवाई तो कहीं पहले से कम सीट हासिल कर जोड़—तोड़ के साथ सरकार बनाई। कर्नाटक और मध्यप्रदेश ऐसे ही उदाहरण हैं, जहां तख्ता पलट कर के बीजेपी ने अपनी सरकार फिर बना डाली है। 

पहली बार किसी स्टेट में बीजेपी की सीटें बढ़ीं हैं

बिहार में 50 प्रतिशत वोटों की गिनती के बाद बीजेपी को साल 2015 के मुकाबले 25 सीटों का फायदा होता नजर आ रहा है। ये स्थिति 2018 के बाद पहली बार बनी है, जब बीजेपी ने किसी विधानसभा चुनाव में अपनी सीटें बढ़ाई हैं।

2018 में 03 राज्य छूटे; नया कुछ न मिल पाया

लोकसभा चुनाव से ठीक पहले नवंबर-2018 में एमपी, छत्तीसगढ़ व राजस्थान बीजेपी ने अपनें हाथों से गंवा दिए। एमपी व छत्तीसगढ़ में तो बीजेपी ने 15 साल के लंबे अंतराल के बाद अपनी सत्ता गंवा दी। मध्यप्रदेश में दो साल के भीतर ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक नेताओं के साथ आने पर भाजपा ने 2020 के पहले क्वार्टर में फिर से राज्य में सरकार बना ली। वहीं अब उपचुनावों के नतीजों के बाद शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री सीट पर अपनी पकड़ को और मजबूत कर लिया है। लेकिन, छत्तीसगढ़ में नतीजे ऐसे थे कि भाजपा को वापसी करने में वक्त लग सकता है। उधर तेलंगाना में भी भाजपा को कुछ खास लाभ नहीं मिला।

लोकसभा में जीते, राज्यों में हारे

इसके बाद साल 2019 के लोकसभा चुनावों में देश ने एक बार फिर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा पर भरोसा किया। इससे जाहिर है कि लोगों ने दिल्ली की कुर्सी पर तो मोदी को बिठा दिया, लेकिन राज्यों में  जनता ने बीजेपी पर भरोसा नहीं किया। लोकसभा के साथ हुए ओडिशा और आंध्र प्रदेश चुनावों में भाजपा कोई चमत्कार नहीं कर सकी।

महाराष्ट्र में सरकार गंवाई, हरियाणा में बहुमत गंवाया

साल 2019 में ही महाराष्ट्र और हरियाणा में भाजपा को सीटों का नुकसान हुआ। 2014 में महाराष्ट्र में बीजेपी ने शिवसेना से अलग होकर चुनाव लड़ा व महाराष्ट्र में सबसे बड़ी पार्टी बनकर सत्ता में पहुंच गई थी। वहीं साल 2019 में भाजपा और शिवसेना की पार्टी ने साथ में मिलकर चुनाव लड़ा, इस बार भाजपा 104 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी जरूर थी लेकिन उसकी सीटों की संख्या 40  के करीब कम हो गई। चुनावों के बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी की चाहत में शिवसेना ने कांग्रेस-एनसीपी से हाथ मिला लिया। हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर ने भाजपा की सरकार बनाई जरूर लेकिन अपने दम पर मिला बहुमत गंवा दिया। वहां उन्हें दुष्यंत चौटाला की पार्टी जननायक जनता पार्टी (JJP) से हाथ मिलाना पड़ा।

झारखंड और दिल्ली में भी कामयाबी नहीं मिली 

झारखंड में भाजपा की रघुवर दास सरकार को एंटी-इंकम्बेंसी का सामना करना पड़ा और हेमंत सोरेन के नेतृत्व में गठबंधन सरकार बनी। 81 सदस्यों वाली विधानसभा में गठबंधन की 46 सीटों में हेमंत की झारखंड मुक्ति मोर्चा  को 30 सीटें हासिल हुई। वहीं, दिल्ली में भी सातों एलएस सीटें जीतने के बाद भी भाजपा को विधानसभा सीटों में बड़ी सफलता नहीं मिल पाई। 70 सीटों वाली विधानसभा में सीटों की संख्या जरूर 3 से बढ़कर 8 हो गई।

कर्नाटक में ऑपरेशन लोटस से सत्ता में

इससे पहले 2017 में कर्नाटक में बीजेपी सिंगल-लार्जेस्ट पार्टी बनने के बाद भी सरकार नहीं बना पाई थी। 

वहीं दूसरी ओर जनता दल (सेक्युलर) और कांग्रेस ने वहरं सरकार बना ली थी, इसमें असंतोष का फायदा उठाकर भाजपा फिर सत्ता में लौट सकी। इसी तरह गोवा में भी पार्टी ने बहुमत खो दिया था और जैसे-तैसे सरकार बनाने में कामयाबी हासिल की थी। मनोहर पर्रिकर को डिफेंस मिनिस्टर का पद छोड़कर राज्य में लौटना पड़ा था। 2017 में ही गुजरात राज्य में भी बीजेपी को 182 सीटों की विधानसभा में 99 सीटों पर संतोष करना पड़ा। वहीं कांग्रेस 1995 के बाद पहली बार 77 सीटें हासिल करने में सफलता हासिल की थी।

राज्यसभा में बहुमत दूर रह गया

विधानसभा चुनावों में कमजोर परफॉर्मेंस का असर यह हुआ कि बीजेपी पार्टी राज्यसभा में बहुमत हासिल नहीं कर सकी। छह साल से केंद्र में बहुमत की सरकार चलाने के बाद भी भाजपा के पास 243 सीटों वाली राज्यसभा में अब भी सिर्फ 92 सीटें हैं। नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (NDA) के सदस्यों की संख्या जरूर 104 तक पहुंच गई है, लेकिन बहुमत का आंकड़ा अब भी दूर है। जरूरत पड़ने पर उसे अन्नाद्रमुक (AIADMK) के नौ, बीजू जनता दल (BJD) के नौ, तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS) के सात और वायएसआर कांग्रेस (YSRC) के छह सदस्यों का साथ लेना पड़ रहा है।

राज्यसभा में गठबंधन पार्टियों की स्थिति

यह बात दूसरी है कि लंबे समय तक राज्यसभा में रहने वाली कांग्रेस पार्टी के मेंबर्स की संख्या 38 रह गई है। यह सदन में कांग्रेस का अब तक का सबसे कम का आंकड़ा है। वहीं, भाजपा के सहयोगी जद (यू) के पास 05, आरपीआई-अठावले, असम गण परिषद, मिजो नेशनल फ्रंट, नेशनल पीपुल्स पार्टी, नगा पीपुल्स फ्रंट, पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) और बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट के एक-एक सदस्य हैं।

बिहार का क्या असर होगा राज्यसभा सीटों पर

बिहार के विधानसभा चुनावों के नतीजों के असर की बात है, राज्यसभा के समीकरण में बहुत बड़ा बदलाव नहीं होने वाला। मार्च में बिहार की पांच राज्यसभा सीटों पर निर्विरोध चुनाव हुए। जनता दल (यूनाइटेड) और राष्ट्रीय जनता दल को दो-दो सीटें मिली, जबकि भाजपा को सिर्फ एक सीट। बिहार की 16 में से दो सीटें अभी खाली हैं। 2022 में जिन चार सीटों पर चुनाव होगा, उनमें तीन सीटें NDA की हैं और एक सीट RJD की है। यानी बहुत बड़ा अंतर पैदा नहीं होने वाला।

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