former Archer Limba Ram: राजस्थान के ‘अर्जुन’ लिम्बाराम का दिल्ली में दिमागी बीमारी न्यूरोसिस्टसरकोसिस का इलाज, जानिए इस गोल्ड मेडलिस्ट तीर अंदाज की पूरी कहानी Read it later

 

राजस्थान के 'अर्जुन' लिम्बाराम का दिल्ली में दिमागी बीमारी न्यूरोसिस्टसरकोसिस का इलाज

ओलंपियन तीरंदाज पद्मश्री और तीरंदाजी टीम के कोच लिम्बाराम (former Archer Limba Ram) की तबीयत खराब हो गई है। वह लंबे समय से न्यूरोसिस्टीसरकोसिस नामक मानसिक बीमारी से ग्रसित हैं। लिंबाराम का इलाज दिल्ली के एक अस्पताल में चल रहा है। 

राजस्थान सरकार ने उनके इलाज में मदद के लिए मुख्यमंत्री राहत कोष से 10 लाख रुपये की आर्थिक सहायता देने की घोषणा की है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ट्वीट कर यह जानकारी दी। गहलोत ने कहा है कि लिम्बाराम के बीमार होने की खबर मिली। 

उनका दिल्ली में इलाज चल रहा है। इलाज में मदद के लिए मुख्यमंत्री राहत कोष से 10 लाख रुपये की आर्थिक मदद दी जाएगी। दिल्ली में राजस्थान सरकार के प्रधान रेजिडेंट कमिश्नर को हर संभव मदद के लिए लिंबरम के संपर्क में रहने का निर्देश दिया गया है। गहलोत ने कहा- मैं लिम्बाराम के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करता हूं।

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फ़ाइल फोटो: राष्ट्रपति प्रतिभा देवीसिंह पाटिल 04 अप्रैल को राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली में एक अलंकरण समारोह- II में श्री लिंबा राम अहारी को पद्म श्री पुरस्कार प्रदान करते हुए।

राजस्थान के ‘अर्जुन’ लिम्बाराम निवासी उदयपुर के सरादित गांव के रहने वाले हैं

जानकारी के मुताबिक लिम्बाराम को एटेक्सिया नामक मस्तिष्क की कोशिकाओं के सिकुड़ने का रोग भी है। करीब डेढ़ साल पहले लिंबारम का इलाज जयपुर के एसएमएस अस्पताल में भी हुआ था। उनकी न्यूरोडीजेनेरेटिव स्थिति और उनकी लगातार बीमारी ने खेल प्रशंसकों, उनके शिष्यों और प्रशंसकों की चिंता बढ़ा दी है। 

भारत के पहले तीरंदाज जिसने विश्व में पहली बार तीरंदाजी में सफलता हासिल की

हाल ही में लिंबाराम भी कोविड की चपेट में आए थे। राजस्थान के ‘अर्जुन’ लिंबाराम उदयपुर के सरदित गांव के रहने वाले हैं। वह भारत के पहले तीरंदाज हैं, जिन्होंने विश्व स्तर पर तीरंदाजी के क्षेत्र में सफलता हासिल की है। 

1991 में, उन्हें अर्जुन पुरस्कार और 2012 में पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया

लिंबारम ने तीन ओलंपिक खेलों सहित कई अंतरराष्ट्रीय चैंपियनशिप में भारत का प्रतिनिधित्व किया है और पदक जीते हैं। 1992 में उन्होंने बीजिंग में आयोजित एशियाई तीरंदाजी चैंपियनशिप में विश्व रिकॉर्ड बनाकर स्वर्ण पदक जीता। 1992 के बार्सिलोना ओलंपिक में, लिंबाराम सिर्फ 1 अंक से पदक से चूक गए। 1991 में, उन्हें अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया। लिंबाराम को 2012 में पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

लिंबरम तीरंदाजी टीम के कोच भी थे। वह राजस्थान टीम के मुख्य कोच थे। हाल ही में पूर्व सांसद रघुवीर सिंह मीणा ने केंद्रीय खेल मंत्री को पत्र लिखकर लिंबरम को चिकित्सा सुविधा मुहैया कराने की मांग की थी। 

 जब उनका शिष्य ही पद्मश्री और 5 लाख ठगकर चला गया

कहा जाता है कि एक आदिवासी परिवार में पैदा हुआ लिंबरम इतने सीधे चरित्र के इंसान आदमी है कि साल 2014 में उनका एक शिष्य पद्मश्री प्रमाणपत्र और 5 लाख रुपये ठगकर फरार हो गया था। जिसके बाद उनमें पैसों का लालच आ गया।

विश्व चैंपियनशिप से ओलिंपिक तक में था लिंबा राम का परचम

1989 में लिंबा वर्ल्ड आर्चरी चैंपियनशिप में क्वार्टरफाइनल में पहुंच गए थे। उसी वर्ष वे एशिया कप में सिंगल्स क्लास में दूसरे नंबर पर रहे। वहीं उन्हीं की वजह से टीम इवेंट में देश को गोल्ड मेडल मिल सका। इसके बाद अगले वर्ष साल एशियन खेल में वे मेडल के मौका चूके से चूक गए। 1991 में उन्हें अर्जुन अवॉर्ड से नवाजा गया। अपने कॅरियर में उन्होंने कई बड़ी उपलब्धियां देखी लेकिन 1992 के ओलिंपिक खेलों में मिली हार ने उन्हें ऐसी चोट दी जिससे वह कभी उबर नहीं पाए। 

बार्सिलोना ओलिंपिक के दौरान 70 मीटर के इवेंट के कास्य पदक मैच में लिंबा राम और ब्रिटेन के प्लेयर सायमन टेरी का स्कोर बराबर रहा था। दोनों के स्कोर टाई होने के बाद पदक टेरी को दिया थमा दिया गया था। उस वक्त इसका कारण बताते हुए कहा गया था कि टेरी ने लिंबा के मुकाबले एक ज्यादा परफेक्ट तरीके से स्कोर (10) किया है। लिंबा इससे एग्री नहीं थे। वे अपने लिए मेडल की उम्मीद कर रहे थे, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया।

हार के दुख से टूट गए‚ असर दिमाग पर हुआ

लिंबा की पत्नी जेनी कहती हैं, ‘लिंबा आज भी खुद को विनर मानते हैं। उन्हें महसूस है कि उस समय उन्हें किसी के साथ की जरूरत थी, मगर कोई भी ऐसा वहां कोई भी मौजूद नहीं था जो उनके पक्ष को मजबूती से रख सके। इसका असर उनके दिमाग पर पड़ा। 

इलाज के समय डॉक्टर्स ने बताया था कि लिंबा का मस्तिष्क उस समय एक सदमे से गुजरा था, और तब उस समय जो कुछ हुआ वो अभी भी आज उनकी इस अस्वस्थता का जिम्मेदार है। 

लिंबा  मौजूदा सिथति में भी उस सदमे से उबर नहीं सके। ’ उस हार के सदमें ने उन्हें गंभीर बीमारी का हिस्सा बना दिया। वह लंबे समय से न्यूरोडिजेनेरेटिव और सिज्रोफिनिया नामक बीमारी से जूझ रहे हैं। 

आज लिंबा राम बिस्तर पर हैं और अपने कार्यों के लिए दूसरों पर डिपेंड हैं लेकिन फिर भी हर समय अपने शिष्यों के बारे में सोचते रहते हैं जिन्हें उन्होंने खुद से ट्रेन किया था। वह चाहते हैं कि देश में इस खेल को और ज्यादा पहचान मिले।

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