Babri Masjid Demolition: 28 साल, 2500 पन्नों की चार्जशीट, 351 गवाह, आडवाणी सहित 32 आरोपी, फैसला आज, 17 साल की जांच में लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट शामिल नहीं Read it later

Babri Masjid Demolition: अयोध्या में एक तरफ राम मंदिर का निर्माण शुरू हो चुका है, जबकि विवादित ढांचा ढहाए जाने के मामले में फैसला आना है। 28 साल पहले 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद के ढांचे को ध्वस्त कर दिया था। लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी जैसी हस्तियों सहित 48 लोगों पर ढांचा गिराने का आरोप लगाया गया था। इनमें से 16 की मौत हो चुकी है। सीबीआई की विशेष अदालत आज 32 आरोपियों के भाग्य का फैसला करेगी।

 

6 दिसंबर, 1992 को दो प्राथमिकी हुईं

प्रथम प्राथमिकी कांड संख्या 197/92 में, प्रियवदन नाथ शुक्ला ने 5:15 बजे बाबरी मस्जिद के विध्वंस (Babri Masjid Demolition) के मामले में सभी अज्ञात लोगों के खिलाफ 395, 397, 332, 337, 338, 295, 297 और 153A के खिलाफ मामला दर्ज किया। बजे।

भाजपा के एलके आडवाणी, उमा भारती, डॉ मुरलीमनोहरजोशी, तत्कालीन सांसद और बजरंगदल के प्रमुख विनयकटियार, तत्कालीन वीएचपीमहासचिव सहित आठ नामजद लोगों के खिलाफ दूसरी एफआईआर केस नंबर 198/92 दायर की गई थी। सचिव अशोकसिंघल, साध्वी ऋतंभरा, विष्णुहरिडालमिया और गिरिराज किशोर के खिलाफ धारा 153 ए, 153 बी, 505 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था।

बाद में, जनवरी 1993 में, 47 अन्य मामलेदर्ज किए गए, इनमें पत्रकारों से मारपीट के आरोप शामिल थे।

 

1993 हाईकोर्ट के आदेश पर लखनऊ में बनी स्पेशल कोर्ट

1993 में, इलाहाबाद उच्च न्यायाल के आदेशों पर लखनऊ में एक स्पेशल अदालत स्थापित की गई थी, जिसमें मामले की संख्या 197/92 पर सुनवाई होनी थी। इस मामले में, उच्चन्यायालय की सलाह पर धारा:120बी को जोड़ा गया, जबकि  असल प्राथमिकी में इस धारा को नहीं जोड़ा गया था। अक्टूबर 1993 में, CBI ने अपनी चार्जशीट में 198:/:92 मामलों को जोड़कर एक जॉइंट आरोप पत्र भी दायर किया। क्योंकि दोनों मामले साथ जुड़े थे।

इसी आरोप पत्र में बालठाकरे, नृत्य गोपालदास, कल्याणसिंह, चंपतराय जैसे 48 नामों को जांच में जोड़ा गया था। मामले से जुड़े वकील मजहरुद्दीन का कहना है कि अगर सभी सीबीआईचार्जशीट में शामिल होते तो  दो से ढाई हजार पेज होते।

 

उत्तरप्रदेश सरकारी की गलती व विभिन्न जिलों में सुनवाई

जब अक्टूबर 1993 में सीबीआई ने एक जॉइंट आरोप पत्र दायर किया, अदालत ने माना कि दोनों मामले एक-दूसरे से संबंधित ही थे। इसलिए दोनों मामलों की सुनवाई लखनऊ की विशेष अदालत में ही होगी, लेकिन आडवाणी सहित अन्य आरोपियों ने इसे उच्च न्यायालय में चैलेंज कर दिया।

 

दलील में कहा गया है कि जब लखनऊ में एक विशेष अदालत स्थापित की गई थी, तो मामले संख्या 198/92 को अधिसूचना में नहीं जोड़ा गया था। इसके बाद, उच्चन्यायालय ने CBI को केस संख्या 198/92 में रायबरेली न्यायाल में चार्जशीट दाखिल करने का आॅर्डर दिया।

 

जब कोर्ट ने सभी को बरी कर दिया

2003 में, सीबीआई ने एक आरोप पत्र दायर किया, मगर आपराधिक साजिश की धारा:120बी नहीं जोड़ी गई। चूंकि ये दोनों केस अलग थे, इसलिए रायबरेली कोर्ट ने करीब आठ दोषियों को बरी कर दिया, क्योंकि मामले में सबूत नहीं थे।

इस मामले में, जब दूसरा पक्षकार उच्च न्यायालय में गया, तो इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 2005 में रायबरेली कोर्ट के आदेश को निरस्त कर दिया और सभी आरोपियों के खिलाफ केस जारी रखने की बात कही।

 

परीक्षण 2007 से शुरू हुआ, पहली गवाही

मामले की गहनता से जांच शुरू हुई और 2007 में पहले शख्स की गवाही हुई। केस से जुड़े वकील केके मिश्रा की मानें तो कुल 994 गवाह जोड़े गए, जिनमें से 351 की गवाही हुई। 198/92 केस नंबर में 57 गवाह थे जबकि केस नंबर 197/92 में 294 गवाह पेश किए गए थे। किसी की मृत्यु हो गई, किसी का पता गलत था, और उनके पते पर कोई नहीं मिला।

 

जून 2017 में, सुप्रीम कोर्ट ने मामले की हीयरिंग एक साथ करने का आदेश दिया

2011 में हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सीबीआई सुप्रीम कोर्ट गई। उन्होंने अपनी याचिका में लखनऊ की विशेष अदालत में दोनों मामलों को संयुक्त रूप से चलाने और आपराधिक षड्यंत्र का मामला जोड़ने की बात कही। सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा चलता रहा। जून 2017 में, उच्च न्यायालय ने सीबीआई के पक्ष में फैसला सुनाया।

यही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को दो साल में खत्म करने की समय सीमा भी तय कर दी। जब अप्रैल 2019 में वह समय सीमा समाप्त हो गई, तो नौ महीने की समय सीमा फिर से मिल गई। इसके बाद, कोरोना संकट के मद्देनजर सुनवाई को 31 अगस्त तक पूरा करने और 30 सितंबर को फैसला देने का समय दिया गया है।

 

17 साल के लिए लिब्रहानआयोग की जांच को 48 बार विस्तार मिल पाया 

6 दिसंबर 1992 के 10 दिन बाद, केंद्र सरकार ने लिब्रहान आयोग का गठन किया, जिसे तीन महीने में अपनी रिपोर्ट देनी थी, लेकिन आयोग की जांचपूरी होने में 17 साल का समय लग गया। जानकारी के अनुसार, इस अवधि के दौरान, आयोग को 48बार विस्तार मिला।

मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो आयोग पर जांच बेहतर तरीके से कराने के लिए आठ से दस करोड़ रु. खर्च किए गए। 30 जून 2009 को आयोग ने अपनीरिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी।

 

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