Allahabad High Court के फैसले पर सुप्रीम संज्ञान, जज ने कहा था ब्रेस्‍ट दबाना और सलवार का नाड़ा खींचना बलात्‍कार नहीं Read it later

Allahabad High Court Rape Verdict Controversy: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक बेहद विवादास्पद निर्णय पर स्वतः संज्ञान लिया, जिसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 14 साल की नाबालिग बच्ची के साथ हुई घटना को रेप या रेप की कोशिश मानने से इनकार कर दिया था। कोर्ट की यह टिप्पणी देशभर में आलोचना का केंद्र बन गई।

अब जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच इस मामले पर बुधवार को सुनवाई करेगी।

क्या था इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला?

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में कहा था कि किसी नाबालिग लड़की के प्राइवेट पार्ट को छूना, उसके पायजामे का नाड़ा खींचना और उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश करना रेप या “Attempt to Rape” की परिभाषा में नहीं आता। कोर्ट ने आरोपियों पर लगे गंभीर धाराओं को हटा दिया और सिर्फ छेड़छाड़ से संबंधित धाराएं लगाईं।

तीन साल पुराना है मामला, मां ने दर्ज कराई थी शिकायत

यह मामला उत्तर प्रदेश के कासगंज का है, जहां एक महिला ने जनवरी 2022 में एफआईआर दर्ज कराई थी। शिकायत में बताया गया था कि नवंबर 2021 में जब वह अपनी बेटी के साथ लौट रही थी, तब गांव के तीन युवकों—पवन, आकाश और अशोक—ने उन्हें रास्ते में रोका।

पवन ने भरोसे में लेकर लड़की को बाइक पर बैठाया, लेकिन कुछ दूरी पर जाकर आकाश और पवन ने लड़की के प्राइवेट पार्ट छूए और उसका पायजामा फाड़ने की कोशिश की। इसके साथ ही आकाश ने उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश की।

लड़की की चीख-पुकार सुनकर आसपास से गुजर रहे लोग मौके पर पहुंचे, तब आरोपी भाग निकले।

पहले खारिज हुई थी याचिका, अब कोर्ट ने लिया स्वतः संज्ञान

इस विवादित जजमेंट के खिलाफ एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में पहले दायर की गई थी, लेकिन उस पर सुनवाई से इनकार कर दिया गया था। मगर लगातार बढ़ते विरोध और संवेदनशील मुद्दे को देखते हुए कोर्ट ने अब खुद से इस पर सुनवाई करने का फैसला किया है।

जनता, नेताओं और विशेषज्ञों में आक्रोश

हाईकोर्ट के इस फैसले पर कानूनी विशेषज्ञ, सामाजिक कार्यकर्ता और कई राजनेताओं ने नाराजगी जताई है। इस फैसले को महिला अधिकारों के खिलाफ बताया गया है और इसे भारत की न्यायिक संवेदनशीलता पर सवाल खड़े करने वाला करार दिया गया है।

FIR के बाद भी नहीं हुई कार्रवाई, कोर्ट के दखल से दर्ज हुआ केस

उत्तर प्रदेश के कासगंज में 14 साल की नाबालिग से जुड़ी POCSO Act केस की शुरुआत उस वक्त हुई जब पीड़ित की मां शिकायत लेकर पहले आरोपी के घर और फिर थाने पहुंची, लेकिन पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की।

जब महिला आरोपी Pawan के घर शिकायत करने गई, तो उसके पिता अशोक ने न सिर्फ अभद्र भाषा का प्रयोग किया, बल्कि जान से मारने की धमकी भी दी। अगले दिन जब वह थाने में FIR दर्ज कराने गई, तो वहां भी मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।

इसके बाद महिला ने कोर्ट का रुख किया। 21 मार्च 2022 को कोर्ट ने आवेदन को विधिवत शिकायत मानते हुए कार्रवाई शुरू की।

इन धाराओं में हुआ केस दर्ज:

  • पवन और आकाश पर: IPC की धारा 376, 354, 354B और POCSO Act Section 18

  • अशोक पर: IPC की धारा 504 और 506 के तहत मामला दर्ज किया गया

हालांकि आरोपियों ने कोर्ट के समन को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में क्रिमिनल रिवीजन पिटीशन दाखिल की। जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा की सिंगल बेंच ने यह पुनरीक्षण स्वीकार भी कर लिया।

Supreme Court ने पहले भी पलटा था ऐसा विवादित फैसला

19 नवंबर 2021 को Supreme Court ने Bombay High Court की नागपुर बेंच के एक विवादास्पद फैसले को खारिज किया था।

उसमें कहा गया था कि किसी नाबालिग के यौन अंग को कपड़े के ऊपर से छूना “स्किन-टू-स्किन” कॉन्टैक्ट नहीं माना जाएगा और इस वजह से उसे POCSO Section 7 के तहत यौन हमला नहीं माना गया था।

SC ने कहा: इस कानून की आत्मा “इरादा” है, न कि त्वचा से संपर्क। किसी भी तरह का Sexual Intent से किया गया शारीरिक स्पर्श अपराध माना जाएगा, चाहे वह कपड़े के ऊपर से ही क्यों न हो।

इससे स्पष्ट है कि भारतीय कानून अब केवल तकनीकी पहलुओं पर नहीं, बल्कि न्याय और सुरक्षा की भावना पर आधारित फैसले की ओर बढ़ रहा है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह फैसला केवल एक केस नहीं, बल्कि महिला सुरक्षा और न्याय की गंभीरता का बड़ा मुद्दा बन गया है। सुप्रीम कोर्ट की इस पर सख्ती और स्वतः संज्ञान एक सकारात्मक संकेत है कि संवेदनशील मामलों में न्याय व्यवस्था अब और सतर्क होती जा रही है।

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