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वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद में शिवलिंग मिलने के दावे पर बहस जारी है। (water fountain history) कोई इसे शिवलिंग कह रहा है तो कोई फव्वारा (how fountain works)। अब ये भी कहा गया कि ये फव्वारा नहीं हो सकता क्योंकि पहले बिजली नहीं होती थी। एक सत्य ये भी है कि फव्वारे बिना बिजली के भी चला करते हैं। दुनिया भर में कई जगहों पर ऐसे प्राकृतिक फाउंटेन हैं जो ग्रेविटेश्नल फोसग् गुरुत्वाकर्षण शक्ति, हवा के दबाव और कैपिलरी एक्शन की वजह से खूबसूरत दिखाई देते हैं. इनमें कोई बिजली वाला पंप तो नहीं लगा है।
प्राचीन रोम में फाउंटेन बनाने वाले डिजाइनर ग्रेविटेशन फोर्स यानि कि गुरुत्वाकर्षण पर विश्वास करते थे, प्रेशर उत्पन्न करने के लिए एक तरह के बंद सिस्टम में ऊंचे रिसॉर्सेज से पानी को चैनलाइज़ किया जाता था। रोम के जलसेतु (aqueducts) पहाड़ों से ऊंचे कुंडों तक पीने और सजाने दोनों कामों के लिए पाइपों के जरिए पानी ले जाते थे। बता दें कि एक फव्वारे के मन माफिक उछाल के लिए बस कुछ फीट की ऊंचाई पर्याप्त पानी का दबाव बना सकती है। रिसर्च से पता चलता है कि आदिम युग और माया सभ्यता में भी ऐसे फव्वारों का आनंद लिया जाता होगा।
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रोम के वर्साय में किंग लुइस सोलहवें के बनाए गए फाउंटेन में 14 ब़े पहियों के एक जटिल और महंगे सिस्टम का इस्तेमाल किया जाता था। प्रत्येक का व्यास 30 फीट से ज्यादा था, जो सीन नदी की एक ब्रांच की धारा से चलते थे। पहिए 200 से ज्यादा पानी के पंप के लिए पिस्टन चलाने में मदद करते थे। पंप द्वारा दो ऊंचे रिज़रवॉयर भी भरे गए थे, जिनमें चमड़े के सीलिंग गास्केट लगे होते थे। वर्साय सिस्टम को मशीन ऑफ मार्ले (Machine of Marly) का नाम दिया गया था। बिना बिजली वाली इस मशीन का एक सदी से भी ज्यादा समय तक इस्तेमाल किया गया।
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साइंस के नजरिए से समझें तो फव्वारे के पीछे केशिका क्रिया यानि कि केपिलरी एक्शन (Capillary Action) की थ्यॉरी वर्क करती है। पहले समझिए कि ये होता क्या है। केपिलरी एक्शन को एक महीन ट्यूब या पोरस सामग्री में लिक्विड के सहज प्रवाह के रूप में परिभाषित किया गया है। इसके होने के लिए ग्रेविटेश्नल फोर्स यानि कि गुरुत्वाकर्षण की जरूरत होती है। असल में ये गुरुत्वाकर्षण के अपॉजिट में काम करता है।
कैपिलरी एक्शन, कोहेसिव फोर्स और एडहेसिव फोर्स के कॉम्बिनेशन के कारण से होता है। कोहेसिव फोर्स मतलब कि वो प्रेशर जो लिक्विड मॉलीक्यूल्स के बीच में लगता है और एडहेसिव प्रेशर जो लिक्विड मॉलीक्यूल्स और ट्यूब मॉलीक्यूल्स के बीच में लगता है। कोहेसिव व एडहेसिव फोर्स इंटरमॉलीक्यूलर प्रेशर कहलाते हैं। ये फोर्स पानी को ट्यूब में खींचने में सहायता करते हैं। इसके लिए कैपिलरी ट्यूब का महीन होना ज़रूरी होता है।
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