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प्रवर्तन निदेशालय (ED) की टीम ने करीब 8 घंटे की कड़ी पूछताछ के बाद महाराष्ट्र सरकार में मंत्री रहे नवाब मलिक (Nawab Malik) को बुधवार को ही गिरफ्तार कर लिया गया है। वे दाऊद इब्राइम यानी D कंपनी से संबंध को लेकर ED के रडार पर हैं। बुधवार सुबह 7.45 बजे से उससे पूछताछ की जा रही थी।
नवाब मलिक के पास उद्धव ठाकरे सरकार में अल्पसंख्यक, उद्यम और कौशल विकास का कैबिनेट विभाग हैं। वह राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के मुख्य राष्ट्रीय प्रवक्ता और पार्टी के मुंबई शहर के अध्यक्ष भी हैं। मलिक ने अपने कॅरियर की शुरुआत कबाड़खाने के तौर में की थी और वह कुछ साल पहले तक भी इस धंधे से जुड़े रहे।
मलिक का ताल्लुक यूपी के बलरामपुर से
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के बलरामपुर जिले के रहने वाले नवाब मलिक (Nawab Malik) का परिवार कृषि से जुड़ा था। परिवार के कुछ सदस्य धंधे से जुड़े थे, इसलिए पूरा परिवार आर्थिक रूप से संपन्न था। नवाब का जन्म 20 जून 1959 को उत्तर प्रदेश के बलरामपुर के उतरौला तालुका के एक गाँव में हुआ था।
मलिक परिवार के पास मुंबई में एक होटल था, वहीं परिवार के अन्य सदस्य कबाड़ के कारोबार में शामिल थे। मलिक ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में ये माना भी था कि वे कबाड़ कारोबारी हैं और उनके पिता मुंबई में कपड़े और कबाड़ का कारोबार करते थे। (Journey Of Nawab Malik) विधायक बनने तक मलिक ने कबाड़ का कारोबार किया। मलिका ने कहा था कि मेरा परिवार अब भी यही काम करता है और मुझे इस पर गर्व है।
25 की उम्र में 1984 में लड़ा था पहला लोकसभा चुनाव
नवाब मलिक (Nawab Malik) ने अपना पहला लोकसभा चुनाव 1984 में कांग्रेस के गुरुदास कामत और भाजपा के प्रमोद महाजन के विरुद्ध लड़ा था। उस समय मलिक की उम्र महज 25 साल ही थी। कामत को 2 लाख 73 हजार वोट मिले और उन्होंने प्रमोद महाजन को 95 हजार वोटों से हराया था। उस चुनाव में मलिक को सिर्फ 2620 वोट मिले थे। मलिक ने संजय विचार मंच से चुनाव लड़ा था। चूंकि उनके पास कोई राजनीतिक दल का दर्जा नहीं था इसलिए मलिक को उस चुनाव में एक निर्दलीय उम्मीदवार ही माना गया था।
21 की उम्र में की शादी, दो बेटियां और दो बेटे
नवाब ने 21 साल की उम्र में 1980 में महजबीन से शादी की। उनके दो बेटे और दो बेटियां हैं। बेटों के नाम फराज और आमिर हैं, जबकि बेटियों के नाम नीलोफर और सना हैं। मलिक का कारोबार उनके बेटे और बेटियां संभाल रहे हैं।
रिश्तेदारों के विरोध के कारण इंग्लिश स्कूल छोड़ उर्दू से स्कूलिंग की
मुंबई आने के बाद, नवाब को प्रारंभिक शिक्षा के लिए सेंट जोसेफ इंग्लिश स्कूल में भर्ती कराया गया था, लेकिन अपने पिता मोहम्मद इस्लाम के रिश्तेदारों और दोस्तों के विरोध के कारण, उन्होंने इंग्लिश स्कूल में दाखिला नहीं लिया। बाद में नवाब का दाखिला एनएमसी के नूरबाग उर्दू स्कूल में कराया गया। यहां चौथी कक्षा तक पढ़ाई की।
इसके बाद डोंगरी के जीआर नंबर 2 स्कूल में सातवीं कक्षा तक और सीएसटी क्षेत्र के अंजुमन इस्लाम स्कूल में 11वीं तक पढ़ाई की। मैट्रिक के बाद नवाब ने 12वीं की पढ़ाई बुरहानी कॉलेज से की। उन्होंने उसी कॉलेज में बीए में प्रवेश भी लिया, लेकिन निजी वजहों के चलते उन्होंने बीए फाइनल ईयर की परीक्षा नहीं दी।
छात्र आंदोलन से किया राजनीति में प्रवेश
नवाब जब कॉलेज में पढ़ रहे थे तो मुंबई यूनिवर्सिटी ने कॉलेज की फीस बढ़ा दी गई थी। उसके खिलाफ शहर में आंदोलन चल रहा था। उस आंदोलन में नवाब मलिक ने एक आम छात्र की भांति भाग लिया। आंदोलन में पुलिस की पिटाई से नवाब घायल हुए। अगले दिन छात्रों ने पुलिस आयुक्त मुख्यालय तक मार्च भी निकाला। नवाब मलिक की इसी दौरान राजनीति में रुचि हो गई। उन्होंने 1991 में नगर निगम चुनाव के लिए कांग्रेस से टिकट मांगा, लेकिन कांग्रेस ने उन्हें टिकट नहीं दिया, मगर नवाब मलिक राजनीतिक रूप से अपनी जमीन बनाना शुरू कर दिया।
दिसंबर 1992 में बाबरी की घटना के बाद मुंबई में दंगे भड़क उठे। हर तरफ संवेदनशील माहौल था। इसके बाद मलिक ने नीरज कुमार के साथ मुंबई में सांझ समाचार नाम का अखबार शुरू किया, लेकिन कुछ साल बाद आर्थिक कारण से इसे बंद करना पड़ा।
मलिक समाजवादी पार्टी में रहते हुए मंत्री बने
मुंबई और आसपास के इलाकों में बाबरी मस्जिद की घटना के बाद से समाजवादी पार्टी मुस्लिम मतदाताओं के बीच लोकप्रियता हासिल कर रही थी। इस लहर में नवाब मलिक भी समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए। उन्हें 1995 के विधानसभा चुनाव में मुस्लिम बहुल नेहरू नगर निर्वाचन क्षेत्र से पार्टी से टिकट मिला। उस वक्त शिवसेना के सूर्यकांत महादिक 51 हजार 569 वोट पाकर जीते थे।
नवाब मलिक 37,511 मतों के साथ दूसरे स्थान पर रहे। मलिक हार गए, लेकिन अगले ही साल विधानसभा में एंट्री ले ली। धर्म के आधार पर वोट मांगने के लिए विधायक सूर्यकांत महादिक के खिलाफ दायर एक याचिका पर उन्हें दोषी पाया गया और चुनाव आयोग ने ये चुनाव रद्द कर दिया। इसलिए 1996 में नेहरू नगर निर्वाचन क्षेत्र में फिर उपचुनाव हुआ। इस बार नवाब मलिक लगभग साढ़े छह हजार वोटों से जीते।
ऐसे में नवाब मलिक एनसीपी शामिल हुए
1999 के विधानसभा चुनाव में नवाब मलिक फिर से समाजवादी पार्टी से जीते। फिर कांग्रेस और एनसीपी सत्ता में आई। समाजवादी पार्टी से दो विधायक चुने गए। मोर्चे का समर्थन करने के लिए उन्हें भी सत्ता का हिस्सा मिला। इसके बाद नवाब मलिक आवास राज्य मंत्री बने।
राजनीतिक रूप से वह बहुत अच्छा कर रहे थे, लेकिन समय के साथ-साथ समाजवादी पार्टी के नेताओं के साथ मलिक के मतभेद सामने आने लगे, जिसके बाद तंग आकर मलिक ने आखिरकार मंत्री रहते हुए राकांपा में शामिल होने का फैसला किया। इसके बाद वे उच्च और तकनीकी शिक्षा और श्रम मंत्री बने।
अन्ना हजारे के आरोपों पर हुई जांच में मलिक को देना पड़ा इस्तिफा
2005-06 के दौरान मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख की सरकार में मंत्री रहे नवाब मलिक को इस्तीफा देना पड़ा था। मलिक माहिम के जरीवाला चल पुनर्विकास परियोजना में भ्रष्टाचार के कई आरोपों का सामना कर रहे थे। सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने भी यह मुद्दा उठाया। फिर एक जांच शुरू की गई और नवाब मलिक को इस्तीफा देना पड़ा। 12 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने इसी मामले में अपना फैसला सुनाते हुए मलिक को इस मामले में बरी कर दिया।
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मलिक आर्यन मामले को लेकर आए थे लाइमलाइट में
नवाब मलिक लगातार नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) मुंबई के जोनल डायरेक्टर समीर वानखेड़े और उनके परिवार पर आरोप लगाते रहे हैं। आर्यन खान को 2 अक्टूबर 2021 को गिरफ्तार किया गया और 26 दिन बाद 28 अक्टूबर को जमानत मिल गई। इस दौरान मलिक ने इसमें अहम भूमिका निभाई है। उन्होंने समीर वानखेड़े के जन्म से लेकर शादी और यहां तक कि उनके परिवार तक पर कई आरोप लगाए, जिसके चलते समीर वानखेड़े के खिलाफ अब भी जांच चल रही है। उन्हें एनसीबी से भी हटना पड़ा।
आर्यन खान की रिहाई के बाद मलिक के ट्वीट ‘ पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त’ ने सभी का ध्यान खींचा और 1 नवंबर को उन्होंने महाराष्ट्र के पूर्व CM देवेंद्र फड़णवीस की पत्नी की जयदीप राणा के साथ तस्वीर ट्वीटर पर पोस्ट करते हुए लिखा, “चलो आज BJP और ड्रग्स पैडलर के रिश्तों की चर्चा करते हैं।”