TRP में फर्जीवाड़ा: न्यूज चैनलों की वीकली TRP लिस्ट पर अस्थायी रोक लगाई Read it later

BARC

ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल (BARC) ने टेलीविजन रेटिंग पॉइंट (TRP) पर अस्थायी तौर पर रोक लगा दी है। यह रोक अगले आठ से बारह हफ्ते के लिए हो सकती है। काउंसिल की तकनीकी कमेटी TRP जारी करने की पूरी प्रोसेस का रिव्यू करेगी और वेलिडेशन के बाद ही दोबारा इसे शुरू किया जाएगा। दरअसल, पिछले गुरुवार को मुंबई पुलिस ने दावा किया था कि रिपब्लिक जैसे कुछ चैनल पैसे देकर TRP बढ़वाते हैं।

क्या है TRP?

TRP यानी टेलीविजन रेटिंग पॉइंट। यह किसी भी टीवी प्रोग्राम की लोकप्रियता और ऑडियंस का नंबर पता करने का तरीका है। किसी शो को कितने लोगों ने देखा, यह TRP से पता चलता है।

यदि किसी शो की TRP ज्यादा है तो इसका मतलब है कि लोग उस चैनल या उस शो को पसंद कर रहे हैं। एडवर्टाइजर्स को TRP से पता चलता है कि किस शो में एडवर्टाइज करना फायदेमंद रहेगा।

सरल शब्दों में TRP बताता है कि किस सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के कितने लोग कितनी देर किस चैनल को देख रहे हैं। यह एक घंटे में, एक दिन में या एक हफ्ते का कुछ समय हो सकता है।

चैनलों के लिए TRP का क्या महत्व है?

TRP को कैल्कुलेट कैसे करते हैं?

BARC ने करीब 45 हजार घरों में डिवाइस लगाया है, जिसे बार-ओ-मीटर या पीपल मीटर कहते हैं। यह मीटर शो में एम्बेड वाटरमार्क्स को रिकॉर्ड करता है।

BARC रिमोट में हर घर के प्रत्येक सदस्य के लिए अलग बटन होता है। शो देखते समय उन्हें वह बटन दबाना होता है, जिससे BARC को यह पता चलता है कि किस शो को परिवार के किस सदस्य ने कितनी देर देखा।

इसी आधार पर BARC बताता है कि 20 करोड़ टीवी देखने वाले परिवारों में शो या प्रोग्राम देखने का पैटर्न क्या है या 84 करोड़ दर्शक क्या देख रहे हैं और कितनी देर क्या देखना पसंद करते हैं।

इन परिवारों को 2015 में नए कंज्यूमर क्लासिफिकेशन सिस्टम (एनसीसीएस) के तहत 12 कैटेगरी में बांटा गया है। इसमें परिवार का मुख्य कमाने वाले सदस्य की पढ़ाई के स्तर के साथ ही घर में बिजली के कनेक्शन से लेकर कार तक की उपलब्धता को आधार बनाया जाता है।

BARC क्या है?

BARC (ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल) एक इंडस्ट्री बॉडी है, जिसका संयुक्त मालिकाना हक एडवर्टाइजर्स, एड एजेंसियों और ब्रॉडकास्टिंग कंपनियों के पास है। इंडियन सोसायटी ऑफ एडवर्टाइजर्स, इंडियन ब्रॉडकास्टिंग फाउंडेशन और एडवर्टाइजिंग एजेंसी एसोसिएशन ऑफ इंडिया इसके संयुक्त मालिक है।

बार्क के डेटा का इस्तेमाल कैसे होता है?

हर गुरुवार को बार्क अपना डेटा जारी करता है। यह ऑडियंस के डेमोग्राफिक्स- उम्र, शिक्षा, आय आदि में बांटकर बताता है कि किसी शो को कितने लोग कितनी देर देख रहे हैं। इस पर चैनल की एडवर्टाइजमेंट रेवेन्यू निर्भर करती है।

इसका मतलब यह है कि पूरा देश क्या देख रहा है, यह इन 45 हजार परिवारों के टीवी पर लगे डिवाइस बताते हैं। बार्क इन डिवाइस को गोपनीय रखता है, लेकिन छेड़छाड़ के आरोप पहले भी लगते रहे हैं। मुंबई पुलिस कमिश्नर के आरोप इसी कड़ी में नए आरोप हैं।

फिक्की और अर्न्स्ट एंड यंग की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल भारत का टीवी उद्योग 78,700 करोड़ रुपए का रहा। इसमें भी एडवर्टाइजर्स के लिए टीआरपी ही मुख्य क्राइटेरिया रहा एडवर्टाइज करने का।

टीवी चैनल्स टीआरपी को कैसे प्रभावित कर सकते हैं?

टीवी चैनल्स दो तरह से टीआरपी को प्रभावित करते हैं। पहला, यदि उन्हें पता चल जाए कि बार-ओ-मीटर या पीपल मीटर कहां लगे हैं तो वे उन परिवारों को सीधे कैश या गिफ्ट के जरिए अपने चैनल देखने को प्रेरित करते हैं। दूसरा, वे केबल ऑटरेटर्स या मल्टी-सिस्टम ऑपरेटर्स के जरिए यह सुनिश्चित करते हैं कि दर्शकों को उनके चैनल सबसे पहले दिखें।

क्या मामला है?

मुंबई पुलिस ने 8 अक्टूबर को प्रेस कॉन्फ्रेंस करके फॉल्स टीआरपी रैकेट का भंडाफोड़ करने का दावा किया। पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बताया कि रिपब्लिक टीवी समेत तीन चैनल पैसे देकर टीआरपी खरीदते थे और बढ़वाते थे। इस मामले में चार लोगों को गिरफ्तार किया गया। इन चैनलों से जुड़े लोगों को पूछताछ के लिए बुलाया जाएगा। पुलिस ने यह भी कहा था कि रिपब्लिक के प्रमोटर और डायरेक्टर के खिलाफ जांच की जा रही है। हिरासत में लिए गए लोगों ने यह बात कबूल की है कि ये चैनल पैसे देकर टीआरपी बदलवाते थे। उधर, रिपब्लिक मीडिया नेटवर्क ने इन आरोपों को झूठा करार दिया है।

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