नीरज ने अपने पहले ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया। वह इंडिविजुअल में स्वर्ण पदक जीतने वाले देश के दूसरे खिलाड़ी हैं। नीरज से पहले अभिनव बिंद्रा ने 2008 बीजिंग ओलंपिक में निशानेबाजी में स्वर्ण पदक जीता था।
नीरज को यूं ही सोना नहीं मिला है। इसके लिए उन्होंने काफी कुर्बानी दी है। तैयारी पर ही फोकस रहता था इसलिए पिछले एक साल से वह मोबाइल स्विच ऑफ रखते थे। इतना ही नहीं वह सोशल मीडिया से भी दूर रहे।
जीत के बाद नीरज के चाचा ने बताया कि नीरज का सपना देश के लिए गोल्ड मेडल जीतना था। 2016 में वह रियो नहीं जा सके थे। हालांकि उस साल उनका प्रदर्शन काफी अच्छा रहा था।
उन्होंने जूनियर वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता और क्वालिफिकेशन मार्क्स को भी पीछे छोड़ दिया, लेकिन उनका रिकॉर्ड 23 जुलाई के बाद ही था।
जबकि रियो के लिए क्वालीफाई करने की आखिरी तारीख 23 जुलाई थी। ऐसे में नीरज को ओलंपिक में हिस्सा नहीं लेने का दुख था।
तभी से वह अगले ओलंपिक की तैयारी में लगे हुए थे। उनका सपना देश के लिए गोल्ड जीतना था और वह इसमें कोई चांस नहीं लेना चाहते थे। इसलिए वे पिछले एक साल से मोबाइल स्विच ऑफ रखते थे।
जब भी मां सरोज और परिवार के अन्य सदस्यों से बात करने की जरूरत पड़ती तो वह खुद वीडियो कॉलिंग करते थे। हम चाहते हुए भी उनसे संपर्क नहीं कर सकते थे।
टोक्यो ओलंपिक में देरी नीरजा के लिए फायदेमंद रहीं
चाचा ने बताया कि टोक्यो ओलंपिक का एक साल की देरी से होना नीरज के लिए फायदेमंद रहा। नीरज को मई 2019 में कोहनी का ऑपरेशन कराना पड़ा था।
ऐसे में हमें डर था कि वह ओलंपिक से पहले ठीक हो पाएंगे या नहीं, लेकिन भगवान का शुक्र है कि कोरोना के कारण टोक्यो ओलंपिक को एक साल के लिए टाल दिया गया और नीरज रिकवरी का समय मिला।
साथ ही उन्हें अपने फॉर्म में वापसी के लिए पर्याप्त समय भी मिला।
प्रतियोगिता देखने के लिए एलईडी स्क्रीन लगाई गई
नीरज चोपड़ा का मैच देखने के लिए पानीपत के खंडरा गांव में उनके घर में बड़ा पर्दा लगा दिया गया था. पूरा परिवार, रिश्तेदार, ग्रामीण और एथलेटिक्स महासंघ के अधिकारी घर में जमा हो गए, जिन्होंने एक साथ बैठकर लाइव मैच देखा. पंडाल लगाकर कुर्सियों की स्थापना की गई। नीरज के घर सुबह से ही गांव के बुजुर्ग, बच्चे और महिलाएं जुटने लगे।
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