Islamic Revolution: ईरान की सड़कों पर एक बार फिर महिलाओं का गुस्सा उफान पर है। हिजाब को हवा में उछालना और धार्मिक पुलिस के खिलाफ नारेबाजी यहां लगातार बुलंद होती जा रही है। बात कहां से शुरू हुई। दरअसल वजह है पुलिस की पिटाई से 22 साल की महसा अमिनी की मौत। महसा की एकमात्र ग़लती यही थी कि उसने ठीक से हिजाब नहीं पहन रखा था।
आपको बता दें कि ईरानी महिलाओं को हिजाब पहनना 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद से ही जरूरी हुआ। इससे पहले, शाह पहलवी के शासन में ईरानी महिलाएं कपड़ों के मामले में काफी स्वतंत्र थीं।
इधर भारत में मामला उलट हैं‚ यहां कोर्ट और सरकार हिजाब से आजाद करना चाह रही लेकिन कुछ महिलाएं हिजाब में ही रहने की मांग पर अड़ी हैं। सुप्रीम कोर्ट भारत में मुस्लिम लड़कियों के हिजाब पहनने की याचिका पर सुनवाई कर रहा है।
1979 की इस्लामी क्रांति से पूर्व और बाद के ईरान में महिला व लड़कियों की जिंदगी में आए बदलाव को आप भी तस्वीरों में देखें
दरअसल 13 सितंबर 2022 को महसा अमीनी अपने भाई के साथ ईरान की राजधानी तेहरान पहुंची थीं। यहां मोरैलिटी पुलिस ने सही तरीके से हिजाब न पहनने का आरोप लगाकर उसे हिरासत में ले लिया और उसकी पिटाई कर दी। इससे महसा की मौत हो गई।
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महसा अमिनी के पिता अमजद अमिनी ने BBC को बताया कि पुलिस और सरकार सिर्फ झूठ बोल रही है। मैं बेटी की जान बख्शने के लिए मैं उनके सामने गिड़गिड़ाता रहा। जब मैंने उसका शव देखा तो वो पूरी तरह कवर था। सिर्फ चेहरा और पैर नजर आए। उसके पैरों पर भी चोटाें के निशान थे।
The act of police because of protesting against the Islamic republic. Wh should we call and ask for help when this is the police.
BE OUR VOICE #MahsaAmini #OpIran #مهسا_امینی pic.twitter.com/lZJfgFMzXk— noah (@sherkspubs) September 22, 2022
पहलवी शाह ने हिजाब पर लगाया था प्रतिबंध
1925 में के काल में ईरान में पहलवी राजवंश सत्ता में था। पहला शासक रजा शाह अमेरिका और ब्रिटेन की लाइफस्टाइल और आजादी से इम्प्रेस था। 1941 में उनके बेटे मोहम्मद रजा शाह ने भी वेस्टर्न कंट्रीज के तौर-तरीकों और महिलाओं के समान अधिकारों को ईरान में भी फॉलो किया। इन दोनों शासकों ने महिलाओं की स्थिति सुधारने और उन्हें समाज की मुख्याधारा में लाने के लिए कई अहम निर्णय लिए थे।
8 जनवरी 1936 को रजा शाह ने कशफ-ए-हिजाब नियम लागू किया। इसका मतलब ये कि यदि कोई महिला हिजाब पहने दिखती तो पुलिस उसे गिरफ्तार कर लेती थी।
- 1941 में, शाह रज़ा के बेटे मोहम्मद रज़ा की सत्ता संभालने और कशफ़-ए-हिजाब पर प्रतिबंध लगा दिया। उन्होंने महिलाओं पसंदीदा वस्त्र पहनने की आजादी दे दी।
- 1963 में मोहम्मद रजा शाह ने ही महिलाओं को वोट का अधिकार दिया। इस दौरान महिलाएं संसद के लिए भी चुनी गईं।
- 1967 में ईरान के पर्सनल लॉ में भी सुधार किए गए‚ इसमें महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार मिले।
- लड़कियों की शादी की उम्र 13 बढ़ाकर 18 साल की गई। वहीं गर्भपात को कानूनी अधिकार बनाया गया।
लड़कियों को शिक्षित बनाने पर भी जोर दिया गया। इसके लिए सन् 1970 के दशक तक, ईरान के विश्वविद्यालयों में लड़कियों की हिस्सेदारी 30% थी।
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तेहरान की सड़कों पर पिकनिक का लुत्फ लेती टीनएज लड़कियां। पुराने दशकों में ईरान में वेस्टर्न ड्रेस पहने लड़कियां अक्सर नजर आया करती थीं। (Nevit Dilmen) |
ये फोटो 1971 की है। जिसमें वेस्टर्न ड्रेस में एक युवती शाह मोहम्मद रजा पहलवी के करीब जाने का प्रयास कर रही है और गार्ड उन्हें दूर कर रहा है। (Nevit Dilmen) |
- शिया धर्मगुरु अयातुल्ला रुहोल्ला खोमैनी ने शाह की इन नीतियों का विरोध किया। 1978 में उनके नेतृत्व में शाह के विरोध में 20 लाख लोग शहीद चौक पर जमा हुए। इसे ही इस्लामिक क्रांति के नाम से जाना जाता है। इसमें महिलाएं भी शामिल हुईं। मतलब ये कि इसमें महिलाओं ने ही खुद पर पाबंदिया लगवाने वाले आंदोलन का समर्थन किया।
9 मार्च साल 1979 को ईरान के केपिटल तेहरान की सड़कों पर 1 लाख से अधिक ईरानी महिलाएं एकत्रित हुईं। वह हिजाब को अनिवार्य करने के नई इस्लामी सरकार के फैसले का विरोध करने पहुंची थी। Photo: Getty Images |
- 1979 में शाह रजा पहलवी को देश छोड़ जाना पड़ा और ईरान एक इस्लामिक गणराज्य बना। खोमैनी को ईरान का सर्वोच्च नेता का पद दिया गया था। यहीं से ईरान दुनिया में शिया इस्लाम का गढ़ बनता चला गया। खोमैनी ने महिलाओं के अधिकारों को बहुत सीमित कर दिया…
- 1981 में, हिजाब अनिवार्य होने के साथ सौंदर्य प्रसाधनों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। धार्मिक पुलिस ने रेजर ब्लेड से महिलाओं की लिपस्टिक हटाना शुरू कर दिया।
- इस्लामिक सरकार ने 1967 के उस परिवार संरक्षण कानून के सुधारों को समाप्त कर दिया, जिसमें महिलाओं को समान अधिकार दिए गए थे।
- लड़कियों की शादी की उम्र 18 साल से घटाकर महज 9 साल कर दी गई।
- हालांकि, खोमैनी की मृत्यु के बाद, ईरान के राष्ट्रपति रफसंजानी ने इन सख्त कानूनों में कुछ छूट दी और महिलाओं की शिक्षा पर ध्यान केंद्रित किया।
ईरान में महिलाओं ने हिजाब को अनिवार्य करने का विरोध जारी रखा है। बता दें कि अप्रैल साल 2018 में भी तहरान में ढीला हिजाब पहने एक महिला को मोरेलिटी पुलिस अधिकारी ने उसे सार्वजनिक रूप से पीटा था। इस घटना ने पूरी दुनिया में चर्चा बटोरी थी। नीचे देखें मारपीट का वीडियो…
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Do you really want to know how Iranian morality police killed Mahsa Amini 22 year old woman? Watch this video and do not allow anyone to normalize compulsory hijab and morality police.
The Handmaid’s Tale by @MargaretAtwood is not a fiction for us Iranian women. It’s a reality. pic.twitter.com/qRcY0KsnDk
— Masih Alinejad 🏳️ (@AlinejadMasih) September 16, 2022
अब हाल ये है कि महसा के हादसे के बाद से शुरू हुआ इस आंदोलन में महिलाओं के साथ-साथ पुरुष भी शामिल चुके हैं। अब ये 15 शहरों में फैल चुका है। पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसक झड़ो भी हो रही है। आंदोलन कर रहे लोगों को रोकने के लिए पुलिस लगातार फायरिंग कर रही है। गुरुवार को हुई फायरिंग में तीन प्रदर्शनकारियों की मौत होने की सूचना है। वहीं 5 दिन में मरने वालों की संख्या 31 हो गई है। इसमें सैकड़ों लोग घायल हुए हैं।
मामला 13 सितंबर को शुरू हुआ था। तब ईरान की मोरल पुलिस ने 22 साल की लड़की मेहसा अमिनी को हिजाब नहीं पहनने के आरोप में गिरफ्तार किया था। 3 दिन बाद 16 सितंबर को उसका शव परिवार को सौंप दिया गया। मामला सोशल मीडिया के जरिए लोगों तक पहुंचा और अब तक इस विवाद पर हुए बवाल से 31 लोगों की जान जा चुकी है।
ऐसी है ईरान की मोरेलिटी पुलिस
ब्छछ से बातचीत में ह्यूमन राइट्स वॉच ऑफिसर कहत हैं – यदि आप ईरान में किसी सामान्य परिवार या महिला से मिलेंगे तो वे आपको मोरेलिटी पुलिस की असलियत बताएंगे। वे लोग आए दिन इसका सामना करते हैं। तारा के मुताबिक- ये अलग तरह की पुलिस है। इसके पास कानूनी शक्ति, हथियार और अपनी जेलें हाेती हैं। हाल ही में इसने ‘पुनः शिक्षा केंद्र’ शुरू किया है।
This is a small part of the horror that we live every day Because of the mandatory hijab
For the sin of being a girl in an Islamic country#Mahsa_Amini #مهسا_امینی pic.twitter.com/latkm9XUMa— حدیثی که میفرماید: (@H_a_d_i_s_h) September 16, 2022
जो लोग हिजाब या अन्य धार्मिक कानूनों का पालन नहीं करते हैं उन्हें नजरबंदी केंद्रों में रखा जाता है। उन्हें इस्लाम और हिजाब के सख्त कानूनों के बारे में सिखाया जाता है। बताया जाता है कि आखिर हिजाब क्यों जरूरी है। इन कैदियों को रिहाई से पहले एक हलफनामा पर हस्ताक्षर करना होता है। इसमें लिखा होता है कि वे हलफनामे की सख्त शर्तों का पालन करेंगे।
ह्यूमन राइट्स वॉच की न्यूयॉर्क स्थित हादी घमिनी कहती हैं- 2019 के बाद से नैतिक पुलिस व्यवस्था बहुत सख्त हो गई है. इसके हजारों एजेंट सादे कपड़ों में भी घूमते हैं। न जाने कितनी महिलाओं को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया, उन्हें प्रताड़ित किया गया।
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