(Rajasthan Political Crisis) राजस्थान कांग्रेस में चल रहे सियासी आरोप प्रत्यारोप के बीच पूर्व डिप्टी CM सचिन पायलट 6 दिन दिल्ली में रहने के बाद बुधवार को हाईकमान से बिना मिले ही जयपुर लौट आए।
राजस्थान की राजनीति में चल रहे इस पूरे बवाल के बाद अब पॉलिटिकल गलियारे से कई तरह की बातें निकल रही हैं, ये कि अब पायलट को कांग्रेस में नहीं रहना चाहिए…. या गहलोत खुद भी चाहते हैं कि पायलट कांग्रेस में नहीं रहें…
या कम से कम प्रदेश कांग्रेस की राजीनीति से तो बाहर निकल ही जाएं। कहीं न कहीं इस बात की भी सुगबुगाहट है कि गहलोत राजस्थान में अपनी सत्ता कायम रखने के लिए पायलट को अप्रत्यक्ष तौर पर बेदखल करने की बिसात बिछा रहे हैं।
क्योंकि गहलोत और पायलट के अब तक हुए टकराव में हर बार मुख्यमंत्री गहलोत की ही जीत होती नजर आई है। ऐसे में पायलट के बेहद करीबी लोगों का तो ये भी कहना है कि अब पायलट को तीसरे मोर्चे का बिगुल बजा ही देना चाहिए,
(Rajasthan Political Crisis) राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो पायलट को पिछले साल ही कांग्रेस छोड़ देनी चाहिए थी। वहीं कुछ विश्लेषकों का कहना है कि राजनीति की वर्तमान स्थिति को देखें तो अब गहलोत के बाद अगले सीएम पायलट ही होंगे।
क्योंकि फिलहाल गहलोत के बाद राजस्थान की राजनीति में कांग्रेस के पास ऐसा कोई विकल्प नहीं है जो प्रदेश के मुख्यमंत्री के पद पर काबिज हो सके। यही कारण है कि सचिन पायलट अभी भी कांग्रेस में बने हुए हैं।
बहरहाल वर्तमान की बात करें तो आज सचिन के प्रियंका गांधी से मिलने की चर्चा थी, लेकिन उनसे मुलाकात नहीं हो सकी। पायलट शुक्रवार शाम को दिल्ली पहुंचे थे, तब से ही उनके समर्थक विधायकों और CM अशोक गहलोत खेमे के बीच तीखी बयानबाजी का दौर जारी है।
नंबर गेम की स्थिति मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पास
सचिन पायलट को 6 दिन दिल्ली में रहने के बावजूद हाईकमान से बिना मिले लौटने के लेकर कई तरह की सियासी चर्चाएं हैं।
कांग्रेस के जानकारों के मुताबिक फिलहाल नंबर गेम की स्थिति मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पास होने के कारण सचिन के पाले की मांगों को तरजीह नहीं दी जा रही है।
यहां ये कहावत सच होती दिख रही है कि जिस की लाठी उसकी भैंस। यानि आलाकमान खुद भी भलीभांती समझता है कि बीते कुछ सालों में कई राज्यों से सत्ता गवां चुकी कांग्रेस पार्टी की साख को बनाए रखने के लिए राजस्थान में गहलोत से बैर नहीं लिया जा सकता।
ऐस में बीते छह दिन जब सचिन दिल्ली में थे तो आलाकमान ने यही शर्त रखी की आप राष्ट्रीय महासचिव का पद संभालें और देश के अन्य राज्यों में पार्टी को मजबूती दें।
मुख्यमंत्री गहलोत और सचिन पायलट ने कुछ नहीं बोला
पूरे सियासी विवाद के बीच अब तक मुख्यमंत्री गहलोत और सचिन पायलट ने कुछ नहीं बोला है। केवल समर्थक विधायकों के बयान आ रहे हैं।
सचिन पायलट के जयपुर लौटने के साथ ही अब सियासी हलचल फिर दिल्ली से जयपुर शिफ्ट हो गई है। बीते शुक्रवार को सचिन पायलट दिल्ली गए थे, तब से दिल्ली पर सबकी नजरें टिकी हुई थीं।
सचिन पायलट खेमें को अब तक प्रियंका गांधी या गांधी परिवार के किसी नेता से कोई पॉजिटिव संकेत नहीं मिला है। बीच में अजय माकन ने सब कुछ ठीक होने का बयान जरूर दिया था।
पायलट-गहलोत खेमों में तनाव बढ़ना तय माना जा रहा
सचिन पायलट की दिल्ली यात्रा को लेकर कयास थे कि पायलट खेमे की मांगों को पंजाब की तर्ज पर सुना जाएगा, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हो पाया। अब सचिन पायलट और गहलोत खेमे के बीच खींचतान और बढ़ने के आसार बन रहे हैं। गहलोत कैंप की रणनीति पायलट कैंप को छकाने की है। बताया जा रहा है कि पायलट की दिल्ली यात्रा में उन्हें कोई आश्वासन नहीं मिलने से अब आगे विवाद लंबा खिंचने के आसार तय हैं।
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