अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में विदेश मंत्री रहे जसवंत सिंह (82) का रविवार की सुबह 6.55 बजे निधन हो गया। दिल्ली स्थित आर्मी के अस्पताल में उन्होंने जीवन की अंतिम सांस ली। 25 जून 2020 को ही उन्हें दिल्ली स्थित आर्मी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उनका मल्टी ऑर्गन डिस्फंक्शन सिंड्रोम का ट्रीटमेंट चल रहा था, उनके अंगों ने ठीक से काम करना बंद कर दिया था। राजनीति में दाखिल होने से पहले जसवंत सिंह सेना में थे। वे मेजर के पद से उस दौरान रिटायर हुए थे।
सरकार में तीन अहम विभाग (वित्त, रक्षा, विदेश) संभालने वाले जसवंत को खामियाजा भी भुगतना पड़ा। एक बार उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया गया। साल 2014 आम चुनाव में टिकट न दिए जाने से नाराज होकर मेजर जसवंत सिंह ने खुद ही पार्टी छोड़ दी थी। तब पार्टी के महासचिव रहे अमित शाह वर्तमान के गृह मंत्री ने कहा था कि सभी फैसले हानि—लाभ का हिसाब लगाकर ही लिए गए। 2018 में जसवंतंसिंह के बेटे मानवेंद्रसिंह ने बताया था कि नरेंद्रमोदी ने मुझे खुद फोन किया था। उन्होंने मेरे पिता जसवंतसिंह को टिकट न दिए जाने के पीछे जयपुर के एक व दिल्ली के दो राजनीतिक लोगों की साजिश किया जाना बताई थी।’
प्रधानमंत्री ने 2 ट्वीट किए
प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट किया, ‘जसवंत सिंहजी ने हमारे देश की पूरी तरह से व लगन से सेवा की। पहले सैनिक के रूप में सेवा दी फिर बाद में राजनीति से उनका लंबा और गहरा जुड़ाव रहा। अटलजी वाजपेयी की केंद्रसरकार में उन्होंने बेहद ही अहम तरह के पोर्टफोलियो संभाले। वित्त, रक्षा और विदेशमंत्री के पद पर रहते हुए उन्होंने एक मजबूत छाप छोड़ी है। उनके निधन से मैं अत्यंत दुखी हूं।’
‘वे राजनीति और समाज को लेकर अपने अलग तरह के नजरिए को लेकर हमेशा के लिए याद आते रहेंगे। बीजेपी दल को मजबूत करने में भी उनकी अहम भूमिका रही। मैं उनके साथ हुई चर्चाओं को हमेशा याद में रखूंगा। उनके परिजन व समर्थकों के प्रति मैं तहेदिल से संवेदनाएं व्यक्त करता हूं।’
हवाईजहाज हाईजैक होने के बाद आतंकवादियों को लेकर कंधार गए
24 दिसंबर 1999 के समय इंडियन एयरलाइंस की हवाई जहाज संख्या IC-814 को हाईजैक कर कंधार ले जाया गया था, यात्रियों को बचाने के एवज में सरकार को तीन आतंकी छोड़ने पड़े। जिन खूंखार आतंकियों को छोड़ा गया था, उनमें मुश्ताक अहमद, उमर सईद और मसूद अजहर था। इन आतंकियों को मेजर जसवंत सिंहजी ही कंधार लेकर पहुंचे थे। फिर 1998 में परमाणु टेस्ट के बाद अमेरिका ने भारत पर कड़े प्रतिबंध नियम लगाए थे। तब जसवंतसिंह ने ही यूएसए से बात कर स्थिति को संभाला था। फिर 1999 में करगिल युद्ध के दौरान भी उनकी भूमिका अत्यंत विशेष रही थी।
2009 में पार्टी ने निकाल दिया था
जसवंतसिंह पाकिस्तान के मोहम्मदअली जिन्ना पर अपनी लिखी किताब की वजह से विवादों में आ गए, ऐसे में 2009 में भाजपा से वे निकाल दिए गए। ‘जिन्ना: इंडिया-पार्टीशन, इंडिपेंडेंस’ किताब में जसवंत ने जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष बताया था। वहीं सरदार बल्लभभाई पटेल और पंडित जवाहरलाल नेहरू को भारत-पाकिस्तान विभाजन का दोषी बताया था।, बहरहाल ऐसा कहा गया था, इसमें कितनी सच्चाई है ये आप उनकी किताब पढ़कर ही निर्णय ले सकते हैं।
2014 में भाजपा छोड़ दी
2010 में भाजपा में मेजर जसवंतसिंह की वापसी हुई। 2012 में बीजेपी ने जसवंत को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया था, लेकिन, यूपीए के हामिद अंसारी के हाथों उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। 2014 में भाजपा ने उनका लोकसभा चुनाव का टिकट काट दिया और चुनाव में नहीं उतारा, उनकी बजाय बाड़मेर सीट से भाजपा ने कर्नल सोनाराम चौधरी को उतारा। इसके बाद जसवंत ने नाराज होकर भाजपा छोड़ दी। वहीं निर्दलीय चुनाव लड़े, लेकिन हार गए। इसी साल उन्हें सिर में चोट लगी। इसके बाद से जसवंत कोमा में ही थे।
सेना से राजनीति तक का सफर
मेजर जसवंतसिंह 1957 सेलेकर 1966 तक सेना में रहे और उन्होंने 1965 की जंग में हिस्सा लिया। सेना से रिटायर्ड होने के थोड़े ही समय के बाद वे जोधपुर राजघराने के महाराज गज सिंह के वे सलाहकार बन गए। जसवंत ने 1977 में तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत के कहने पर ही राजनीति में एंट्री ली और उनके गाइडेंस में आगे बढ़ते गए। 1980 में भाजपा दल के गठन के समय तक मेजर जसवंतसिंह प्रमुख भूमिका में आ चुके थे।
भैरोंसिंह शेखावत के कहने पर ही अटलबिहारी वाजपेयी ने जसवंत सिंह को राज्यसभा में भेजा था। 1989 में जसवंतसिंह ने जोधपुर जिले से लोकसभा चुनाव लड़ा और मौजूदा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को शिकस्त दी। जसवंत सिंह और ग्वालियर की राजमाता विजयाराजे सिंधिया के सचिव के पद पर रहे सरदारआंग्रे की पत्नियां आपस में चचेरी बहने थी।
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