अगर टीकाकरण से जल्द ही कोरोना पर काबू नहीं पाया गया तो यह कई सालों तक कहर ढा सकता है। ये दावा है साइंस जर्नल ‘करंट बायोलॉजी’ में प्रकाशित शोध का। इस रिसर्च के मुताबिक करीब 20 हजार साल पहले भी पूर्वी एशिया में कोरोना कहर बरपा चुका है।
शोध से पता चलता है कि तब प्राचीन कोरोना वायरस ने इस पूरे क्षेत्र को कई वर्षों तक त्रस्त किया था। “यह हमें चिंतित करना चाहिए। अब जो चल रहा है वह पीढ़ियों तक चल सकता है,” एरिज़ोना विश्वविद्यालय के एक विकासवादी जीवविज्ञानी डेविड एनार्ड कहते हैं, जिन्होंने शोध का नेतृत्व किया।
प्रकोप इतना गहरा था कि जीन्स पर भी असर छोड़ा
यह प्रकोप इतना गहरा था कि आज भी इससे जुड़े अवशेष चीन, जापान, वियतनाम और पूर्वी एशिया और उनके आसपास के इलाकों में रहने वाले लोगों के डीएनए में नजर आए हैं।
इन क्षेत्रों में मौजूदा आबादी के 42 जीन्स में कोरोना वायरस से बचने के साक्ष्य मिले हैं। वैज्ञानिक भाषा में इसे अनुवांशिक अनुकूलन कहा जाता है।
कोविड से दुनिया को अब तक अरबों डॉलर का नुकसान, 18 करोड़ बीमार और 39 लाख लोगों की जान गईं।
कोरोना वायरस (SARS-COV-2) अब तक दुनिया में 180 मिलियन से अधिक लोगों को बीमार कर चुका है और 39 लाख से अधिक लोगों की जान ले चुका है। दुनिया को अब तक अरबों डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ है। लाखों लोग फिर से गरीबी के दलदल में फंस गए हैं।
शोधकर्ताओं का कहना है कि अगर तेजी से टीकाकरण से कोरोना वायरस को नहीं रोका गया तो यह महामारी कई सालों तक बनी रहेगी और स्थिति और खराब हो जाएगी।
वायरस भी पीढ़ियों से मानव जीनोम में भारी बदलाव कर रहे
जिस प्रकार स्वयं को जीवित रखने के लिए वायरस बदलाव करते हैं, उसी प्रकार मनुष्य के जीन भी म्यूटेट होते रहते हैं। इसका मतलब है कि वायरस भी पीढ़ियों से मानव जीनोम में भारी बदलाव कर रहे हैं।
एक वायरस के खिलाफ जीन में म्यूटेशन जीवन और मृत्यु के बीच अंतर कर सकता है। यह परिवर्तन आने वाली पीढ़ियों को भी हस्तांतरित हो जाता है।
इस तरह का म्यूटेशन मानव प्रतिरक्षा प्रणाली की क्षमता को एक वायरस के प्रोटीन को इससे अलग करने की क्षमता बना सकता है, यानी इसे मार सकता है।
दूसरी ओर, वायरस भी खुद को बदलते हैं। वे अपने मेजबान शरीर के रक्षा तंत्र से बचने के लिए अपने प्रोटीन का आकार बदलते हैं। इसके जवाब में, मेजबान अपने जीन में म्यूटेशन भी कर सकता है।
डॉ डेविड एनार्ड और उनके सहयोगी पिछले कुछ वर्षों में मानव जीनोम में परिवर्तन के इन पैटर्न को reconstruct कर के देखा है।
26 विभिन्न आबादी के 2500 डीएनए की तुलना
जब कोरोना फैला तो उसने सोचा कि क्या किसी पुराने कोरोना वायरस ने मानव जीनोम पर असर छोड़ा है? इस सवाल का जवाब जानने के लिए उन्होंने अपने साथियों के साथ दुनियाभर की 26 अलग-अलग आबादी के 2500 से ज्यादा लोगों के डीएनए की तुलना की।
इस दौरान कोरोना वायरस से निपटने के लिए पांच जगहों की आबादी में 42 जीन में बदलाव के सबूत मिले। इसे अनुकूलन कहा जाता है। जीन में यह अनुकूलन केवल पूर्वी एशिया की आबादी में पाया गया था। दुनिया की बाकी आबादी में ऐसा कोई संकेत नहीं मिला।
शोधकर्ताओं का मानना है कि इन जीनों में वायरस के खिलाफ यह उत्परिवर्तन 20 हजार से 25 हजार साल पहले हुआ होगा।
फेफड़ों के विशिष्ट प्रोटीन से जुड़े जीन में परिवर्तन किए गए
वायरस एक जैविक संरचना है जो अन्य जीवों की तरह प्रजनन करने के बजाय अन्य जीवों की कोशिकाओं पर हमला करता है और अपनी आनुवंशिक सामग्री का उपयोग करके स्वयं की अधिक से अधिक प्रतियां बनाता है।
वायरस मेजबान सेल द्वारा उत्पादित विशिष्ट प्रोटीन के साथ बातचीत करता है और बांधता है, जिसे हम वायरल इंटरेक्टिंग प्रोटीन (वीआईपी) कहते हैं।
ताजा शोध में जिन 42 जीनों को कोरोना वायरस से बचाव के लिए बदलाव के अंश मिले, वे सभी फेफड़ों में पाए जाने वाले वायरल इंटरेक्टिंग प्रोटीन (वीआईपी) से संबंधित हैं। यानी मानव जीन ने इन प्रोटीनों को संशोधित किया ताकि वे कोरोना वायरस से बच सकें।
शोधकर्ता अभी तक नहीं जान पाए कोरोना का प्राचीन इतिहास
शोधकर्ता अभी तक कोरोना वायरस परिवार के इतिहास को नहीं जान पाए थे। जबकि अकेले पिछले 20 वर्षों में, तीन कोरोनावायरस में बड़े बदलाव (अनुकूलन) हुए हैं जो मनुष्यों को संक्रमित करते हैं और उनमें सांस की गंभीर बीमारी का कारण बनते हैं। ये वायरस हैं कोविड-19 (कोविड-19), सार्स (सार्स) और मर्स (एमईआरएस)।
20वीं सदी में तीन वायरस ने बरपाया कहर
ऑस्ट्रेलिया में एडिलेड विश्वविद्यालय में पोस्टडॉक्टरल शोधकर्ता यासिने सौइल्मी, रे टॉबलर और इस शोध के सह-लेखकों का कहना है कि वायरस का इतिहास मानव सभ्यता से भी पुराना है।
अकेले 20वीं सदी में, तीन प्रकार के इन्फ्लूएंजा वायरस – स्पेनिश फ्लू (1918–20), एशियाई फ्लू (1957–58) और हांगकांग फ्लू (1968–69) ने लाखों लोगों की जान ले ली है। इन महामारियों के अनुसार शरीर के ढलने के बाद भी कई आनुवंशिक निशान रह जाते हैं।
कोरोना वायरस की दवा खोजने में भी मदद मिलेगी
यासिने सौइल्मी का कहना है कि मौजूदा कोरोना वायरस के लिए दवा तलाश रहे वैज्ञानिक इन 42 जीनों का अध्ययन कर सकेंगे। इनसे पता चलेगा कि मौजूदा कोरोना वायरस के खिलाफ कैसे रजिस्टेंस पावर को तैयार किया जा सकता है।
History of corona virus | Corona Can Wreak Havoc For Many Years | Evidence Found In The DNA Of People In East Asia
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