हिंदी लेखिका गीतांजलि श्री (Geetanjali Shree) की किताब ‘टॉम्ब ऑफ सैंड’ (‘Tomb of Sand’) को इंटरनेशनल बुकर प्राइज (International Booker prize) के लिए नामित किया गया है। बता दें कि ये (1st Hindi novel in Booker prize) बुकर प्राइज के लिए चुना जाने वाला पहला हिंदी उपन्यास है। गीतांजलि श्री की ये नॉवेल ओरिजनली हिंदी में ‘रेत समाधि’ (Ret Samadhi) के नाम से पब्लिश हुई थी। इसका अंग्रेजी में अनुवाद ‘टॉम्ब ऑफ सैंड’ डेजी रॉकवेल (Daisy Rockwell) ने किया है। इंटरनेशनल बुकर प्राइज समारोह 26 मई को लंदन में आयोजित होने जा रहा है।
नॉवेल ‘रेत समाधि’ (Ret Samadhi) का जिक्र करें तो उत्तर भारत की एक 80 साल की महिला की कहानी बया करती है जो अपने पति की मौत के बाद तनाव में रहती है और एक नया जीवन शुरू करना चाहती है।
यही असली सपोर्ट है जब दूर बैठे अनजान लोग आपकी रचना से आकर्षित होते हैं: गीतांजलि श्री
जूरी के सदस्यों ने गीतांजलि श्री की नॉवेल को शानदार बताया है। कॉम्पिटिशन में पांच और नॉवेल भी हैं। बुकर प्राइज जीतने वाले ऑथर को 50,000 पाउंड (करीब 49.57 लाख रुपए) दिए जाएंगे। पुरस्कार की राशि ऑथर और ट्रांसलेटर के बीच बंटेगी। गीतांजलि श्री (64) ने अपनी प्रतिक्रिया देत हुए कहा- यह एक बहुत ही विशेष तरह की मान्यता है… जब कोई रचना या आपका काम दूर बैठे अनजान लोगों को प्रभावित करता है, तो उसमें मानवीयता को छूने की क्षमता होती है। उन्होंने कहा- यही असली सपोर्ट है। आपका काम अच्छा होना चाहिए… अनुवाद बेहतरीन होना चाहिए! डेजी और मेरे लिए यह बहुत खास मोमेंट है।
ये नॉवले भी बुकर की दौड़ में शामिल
लंदन बुक फेयर में घोषित अन्य (International Booker prize) पांच शॉर्टलिस्ट की गई बुक्स में कोरियाई में बोरा चुंग की ‘कर्स्ड बनी’ शामिल हैं, जिसका अनुवाद एंटोन हूर ने किया है। इसके अलावा जॉन फॉसे का ए न्यू नेम: सेप्टोलॉजी VI-VII भी दौड़ में हैं।
इसे नॉर्वेई भाषा से डेमियन सियर्स ने ट्रांसलेट किया है। इस रेस में मिको कावाकामी की किताब हेवन भी है, जिसका जापानी से अनुवाद सैमुअल बेट और डेविड बॉयड ने किया है। क्लाउडिया पिनेरो की ‘एलेना नोज’ का स्पेनिश से फ्रांसिस रिडल द्वारा अनुवाद किया गया है और ओल्गा टोकार्जुक की ‘द बुक्स ऑफ जैकब’ का अनुवाद पोलिश से जेनिफर क्रॉफ्ट द्वारा किया गया है।
12 देशों की 11 अलग-अलग भाषाओं की 13 किताबों ने बुकर की लंबी सूची में जगह बनाई है। पुरस्कार के लिए इन किताबों को यूके या आयरलैंड में उनके अंग्रेजी अनुवादों में प्रकाशित किया जाना जरूरी था।
श्री की हिंदी किताब के बुकर में चयन के बाद भारत में अन्य पब्लिशिंग इंडस्ट्री को भी सोचने को मजबूर किया है कि भारत जैसे बहुभाषी देश में ट्रांसलेशन पर ध्यान देना कितना महत्व रखता है। बता दें कि भारत के इंग्लिश ओरिएंटेड टॉप पब्लिशिंग हाउसेज ने बीते कुछ सालों में क्षेत्रीय स्तर के उम्दा लेखन को गंभीरता से मुख्यधारा की रीडरशिप में लाने का काम किया है।
Geetanjali Shree. Credit: Jayanti Pandey |
कौन हैं गीतांजलि श्री ( Who Is Geetanjali Shree) ?
उत्तर प्रदेश के शहर मैनपुरी में जन्म लेने वाली गीतांजलि एक जानी-मानी उपन्यासकार हैं। हिस्ट्री की स्टूडेंट रहीं श्री ने अपनी स्नातक की डिग्री लेडी श्रीराम कॉलेज, नई दिल्ली से पूरी की, और जेएनयू से मास्टर डिग्री हासिल की। यहीं से उनका रुझान हिंदी साहित्य की ओर होने लगा।
वे अपने लेखन में बाहरी और आंतरिक दुनिया को एक साथ प्रस्तुत करने में माहिर हैं। यदि आपको बाहरी चीख और आंतरिक शांति के बीच की लेयर्स की पहचान करना व बदलाव और ठहराव को बेहतर तरीके से समझना है तो शायद गीतांजलि श्री का लेखन आपकी मदद कर सकता है।
श्री के ही शब्दों में “मैंने अपनी पीएचडी के दौरान हिस्ट्री और हिंदी के बीच एकेडेमिक ब्रिज महसूस किया, जोकि प्रेमचंद पर था, उनके साहित्यिक व्यक्तित्व के रूप में नहीं, बल्कि स्वतंत्रता आंदोलन में राष्ट्रवादी बुद्धिजीवियों के हिस्से के रूप में।”
गीतांजलि श्री के पिछले नॉवेल्स को भी मिली सराहना
गीतांजलि श्री (Geetanjali Shree) का पहला नॉवेल ‘माई’ (Mai) था। इसके बाद उनका अगला नॉवेल ‘हमारा शहर उस बरस’ (Hamara Shahar Us Baras) नब्बे के दशक में प्रकाशित हुआ था, इसे सांप्रदायिकता पर केंद्रित सबसे संजीदा उपन्यास में से एक माना जाता है। इसके कुछ साल बाद गीतांजलि श्री का अगला नॉवेल ‘तिरोहित’ (Tirohit) आया। यह स्त्री समलैंगिकता विषय पर आधारित है। वहीं गीतांजलि के नॉवेल ‘खाली जगह’ को भी खूब सराहा गया और अब ‘रेत समाधि’ प्रकाशित हुआ है।
बुकर प्राइज किसे दिया जाता है?
बुकर पुरस्कार साहित्य (Literature) के क्षेत्र में बेहतरीन कार्य करने वालों को दिया जाता है। यह नोबेल पुरस्कार के बाद सबसे बड़ा पुरस्कार माना जाता है। बुकर पुरस्कार की स्थापना सन् 1969 में इंगलैंड की बुकर मैकोनल कंपनी की ओर से की गई थी।
मैन बुकर पुरस्कार फ़ॉर फ़िक्शन (Man Booker Prize for Fiction) जिसे संक्षिप्त रूप में मैन बुकर पुरस्कार या बुकर पुरस्कार भी कहा जाता है। यह हर साल मूल रूप से अंग्रेजी उपन्यास के लिए दिया जाता है। इसकी पुरस्कार राशि 65000 अमेरिकी डॉलर होती है। बुकर पुरस्कार की राशि लेखक और अनुवादक के बीच बंटती है।
आपको बता दें कि पहला बुकर पुरस्कार अलबानिया के उपन्यासकार इस्माइल कादरे को दिया गया था और अबतक कुल 5 बार यह पुरस्कार भारतीय मूल के लेखकों को दिया जा चुका है।
अब तक इन भारतीय मूल की शख्सियतों को मिला पुरस्कार
सलमान रश्दी: विवादास्पद लेखक सलमान रश्दी न केवल चार बार बुकर के लिए चुने गए हैं बल्कि उन्होंने बुकर ऑफ बुकर्स और द बेस्ट ऑफ द बुकर भी जीता है। पहली बार 1981 में उन्हें उनके उपन्यास मिड नाईट चिल्ड्रेन पर बुकर पुरस्कार मिला। इसमें सलीम सिनाय नामक एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जो आधी रात के वक्त भारत की आजादी के समय पैदा होता है और उसके जीवन पर देश की घटनाओं का गहरा असर पड़ता है।
यह उपन्यास औपनिवेशिक शासन के बाद एक राष्ट्रीय व्यवस्था के विकसित होने की प्रकिया की गाथा है। रश्दी की 1988 में लिखी गई किताब द सैटेनिक वर्सेस काफी विवादास्पद रही थी। इसे लेकर उनके खिलाफ फतवा भी जारी किया गया। इसे 1993 में बुकर की 25 वीं सालगिरह पर विशेष पुरस्कार के लिए चुना गया था।
अरुंधति रॉय: इन्हें अपने पहले ही उपन्यास द गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स के लिए 1997 में बुकर पुरस्कार मिला। यह उपन्यास जुड़वां भाई-बहनों के जरिए समाज और राजनीति के विभिन्न पहलुओं की पड़ताल करता है। शिलौंग में 24 नवंबर 1961 को जन्मी अरुंधति राय ने अपने जीवन के शुरुआती दिन केरल में गुजारे थे।
उसके बाद उन्होंने आर्किटेक्ट की पढ़ाई दिल्ली से पूरी की। मैसी साहब फिल्म में उन्होंने अभिनय भी किया। उन्होंने कई फिल्मों के लिए स्क्रीन प्ले भी लिखे। वे अपनी तीखी राजनीतिक टिप्पणियों के लिए हमेशा विवादों में रही हैं। नर्मदा आंदोलन से वे सीधे तौर पर जुड़ीं रहीं।
माओवादियों के समर्थन को लेकर अपने कमेंट से भी वे विवादों में रहीं। आपको बता दें कि बुकर प्राइज हासिल करने वाली अरुंधति रॉय पहली भारतीय महिला हैं।
किरण देसाई: किरण देसाई ने अपने दूसरे उपन्यास द इन्हेरिटेंस ऑफ लॉस के लिए 2006 में बुकर पुरस्कार जीता था। इस उपन्यास में ग्लोबलाइजेशन को लेकर निराशा और भारतीय ग्रामीण जीवन में मौजूद आत्मीयता की कहानी है।
इसे पुरस्कृत करते हुए जजों ने इसे मानवीय संवेदना और सोच को उजागर करने वाली अहम किताब बताया था। उन्होंने राजनीतिक बारीकियों पर गौर करने की इसकी खासियत की भी चर्चा की। जबकि समीक्षकों ने किरण की इस किताब को शानदार और पारिवारिक कहानी बताया था। किरण देसाई भारतीय मूल की प्रसिद्ध लेखिका अनीता देसाई की पुत्री हैं।
अरविंद अडिगा: चेन्नै के रहने वाले अरविंद अडिगा को उनके पहले उपन्यास द व्हाइट टाइगर के लिए वर्ष 2008 में यह पुरस्कार मिला। इस उपन्यास में ग्लोब्लाइज वर्ल्ड में भारत के विभिन्न वर्गों के आत्मसंघर्ष को रोचक रूप में बया किया है। इस उपन्यास ने अडिगा को बुकर पुरस्कार प्राप्त करने वाला दूसरा सबसे छोटा लेखक बनाया।
वे चौथे ऐसे लेखक थे जिन्हें अपने पहले उपन्यास के लिए ही बुकर पुरस्कार मिला। इसमें एक ऐसे व्यक्ति को दिखाया गया है जो शीर्ष पर जाने के लिए किसी भी रास्ते को गलत नहीं मानता है।
उपन्यास की कहानी उसके मुख्य पात्र बलराम हलवाई के आसपास घूमती है जो गरीबी से छुटकारा पाने का सपना देखता है और यह सपना उसे दिल्ली और बेंगलुरु की यात्रा करा देता है।
झूंपा लाहिड़ी : पुलित्जर पुरस्कार विजेता भारतीय मूल की लेखिका झूंपा लाहिड़ी को 2013 में उनके उपन्यास द लोलैंड के लिए मैन बुकर पुरस्कार दिया गया। लंदन में जन्मी 46 वर्षीय लाहिड़ी न्यूयॉर्क के ब्रुकलिन में रहती हैं और उनका ताल्लुक पश्चिम बंगाल से है। उन्होंने इससे पहले तीन पुस्तकें लिखी हैं।
उनकी पहली पुस्तक इंटरप्रेटर ऑफ मालादीज को पुलित्जर पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। उनके उपन्यास द नेमसेक को भी काफी चर्चा मिली इसपर मीरा नायर ने अभिनेता स्वर्गीय इरफान की मुख्य भूमिका में एक फिल्म भी बनाई थी।
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