AI in Radio: भारतीयों के लिए रेडियो केवल एक तकनीक से अधिक एक भाव है, जिसने गांवों और शहरों को जोड़ा है। इसने हर खबर तक लोगों की पहुंच संभव की है। 1947 में आकाशवाणी के पास छह रेडियो स्टेशन थे और उसकी पहुंच 11 प्रतिशत लोगों तक ही थी। आज आकाशवाणी के पास 223 रेडियो स्टेशन हैं और इसकी पहुंच 99.1 प्रतिशत भारतीयों तक है। डिजिटल युग ने रेडियो को हर आयु वर्ग के बीच लोकप्रिय बनाया। अब एआइ के आ जाने के बाद इसमें और भी कई नवाचारों की संभावना बढ़ गई है। हो सकता है आने वाले समय में आप रेडियो से बातचीत कर पाएं या अपनी पसंद का गाना सुनने के लिए बोलकर कमांड भी दे पाएं।
पर्सनलाइजेशन – एआइ एल्गोरिदम के माध्यम से श्रोताओं की पसंद और प्राथमिकताओं का पता लगाया जा सकता है, जिससे उन्हें रेडियो पर अधिक व्यक्तिगत अनुभव मिल सकें।
सामग्री निर्माण – रेडियो आने वाले समय में एआइ का उपयोग नई रेडियो सामग्री जैसे संगीत, समाचार और खेल अपडेट देने के लिए कर सकता है, जिससे रेडियो स्टेशनों के लिए सामग्री का उत्पादन और वितरण करना आसान व अधिक लागत प्रभावी हो जाएगा।
वॉइस रिकॉग्निशन एवं कंट्रोल यह लोगों को रेडियो के सबसे बेहतर अनुभव के विकल्प के रूप में मिल सकता है, जिसमें श्रोता अपने रेडियो के साथ बात कर सकेंगे और वॉयस कमांड का उपयोग करके अपने रेडियो को नियंत्रित कर पाएंगे।
एआइ से रेडियो में सिग्नल डिटेक्शन, वर्गीकरण और जैमिंग डिटेक्शन में सुधार आएगा।
जाने रेडियो का अबत का सफर
23 जुलाई 1927 को मुंबई स्टेशन से रेडियो का प्रसारण प्रारम्भ हुआ।
1927 में मुंबई और कोलकाता में रेडियो क्लब बने।
1930 मेें भारतीय प्रसारण सेवा की शुरुआत हुई।
1936 में नाम परिवर्तित कर ऑल इंडिया रेडियो रखा गया।
1957 में ऑल इंडिया रेडियो को आकाशवाणी नाम मिला।
1967 के दौरान भारत में वाणिज्यिक रेडियो सेवाएं शुरू हुईं ।
1995 रेडियो का सरकारी एकाधिकार समाप्त हुआ।
2002 में शिक्षण संस्थानों को कैंपस रेडियो स्टेशन खोलने की अनुमति।
2006 में स्वयंसेवी संस्थाओं को रेडियो स्टेशन चलाने की अनुमति मिली।
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