क्या दुनिया के ताकतवर लोगों का चेंज द वर्ल्ड शब्द का इस्तेमाल करना पीड़ितों और लाचारों को उम्मीद देने का स्वांग रचना है? Read it later

Change the world: दुनिया के लोगों ने चेंज द वल्र्ड शब्द प्रसिद्ध लोगों से कई बार सुना है,  हकिकत तो यह है कि यह पीडितों और लाचारों को उम्मीद देने का स्वांग रचना है। असल में यह शब्द रईस या  शक्तिशाली लोगों की ओर से खुद के धन में बढोतरी करने का जरिया बनकर रह गया है। 

 
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पिछले कुछ सालों में दुनिया की प्रसिद्ध ​शख्सियतों ने दुनिया बदलने की बातें कही है, चाहे वे किसी भी देश से ताल्लुक रखते हों। ऐसा इसलिए क्योंकि दुनिया के लोगों ने चेंज द वल्र्ड शब्द प्रसिद्ध लोगों से कई बार सुना है, यह पीडितों और लाचारों को उम्मीद देने का स्वांग रचना है। असल में यह शब्द रईस या  शक्तिशाली लोगों की ओर से खुद के धन में बढोतरी करने का जरिया बनकर रह गया है।
या यूं कहें कि बीते कुछ सालों में दुनिया को बदलने का कथित ठेका दुनिया के बिजनेस टाइकून्स ने ले लिया है। असल बात तो यह है कि यह अमीर वर्ग दुनिया बदलने की बात कह कर असंख्य लोगों के माध्यम से ही अपनी संपत्ति बढा रहा है।

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हो भी क्यों न यह अर्थव्यवस्था के खिलाड़ी जो होते है। हम भारत के संदर्भ में ही बात करें तो हमारे देश की जनसंख्या एक सौ पैंतीस करोड पहुंच चुकी है। लेकिन हमारे देश का 80 प्रतिश पैसा हमारे ही देश के मात्र एक प्रतिशत रईस लोगों के पास है, यह धन पिछले कुछ सालों में जनता को दुनिया बदलने की बात कह कर ही कमाया गया है, उदाहरण के तौर पर हमारे देश की जनसंख्या में 50 प्रतिशत युवा है, ऐसे युवा जिनकी आयु 18 से 26 वर्ष् के मध्य है। यानी हम यंग इंडिया है, लेकिन इस हिसाब से युवाओं के लिए नौकरियां नहीं हैं, वहीं प्रतिस्पर्धा भी बेतहाशा है। बस यहीं से ऐसे युवाओं को रईस वर्ग चैंज द वल्र्ड की बात कह कर कथित बदलाव की उम्मीद देकर उनको सपने दिखाए जा रहे हैं,
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जबकि बदलाव ऐसा होना चाहिए कि तरक्की सभी के लिए सम्मान हो, हालया माहौल पर नजर डालें तो ऐसा लगता है कि तरक्की पर सिर्फ अमीरों का ही अधिकार है, बडी आसानी से उन्हें तरक्की के लिए संसाधन उपल्ब्ध हो जाते हैं। दुनिया को बदलने के असल मायने यह हो सकते हैं कि आय का संतुलन कायम हों, शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाएं सभी की पहुंच में हों। ऐसा होगा तभी सही बदलाव हो सकेगा।

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हम लोग ही ऐसे मूलाधार तैयार करें कि हम व्यवस्थित तौर पर जी सकें, लोग ही नई व्यवस्था तय करें। यह भी सुनिश्चित किया जाएग कि नेता सिर्फ अपने दानदाताओं का ही खयाल न रखे बल्कि जनता की जरूरतों का भी ध्यान रखे।

इसी तरह नितियां सख्त हों तो कर्मचारियों को संरक्षण प्रदान किया जाए। ऐसी व्यवस्था हो कि कर्मचारियों को उपर्युक्त वेतन मिले ताकि वे द्रढता से परिवार का पालन पोषण कर सकें।

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