LGBTQIA+ : देश को जल्द ही अपना पहला गे जज मिल सकता है। (Guide To LGBTQIA) सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने वरिष्ठ अधिवक्ता सौरभ कृपाल (49) को दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश की है। वे LGBTQIA+ समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। (LGBTQ+ meaning) इस समुदाय के लोगों की पहचान उनके पहनावे या रूप-रंग से नहीं, बल्कि उनकी यौन वरीयताओं से होती है।
यानी वे किस लिंग की ओर यौन संबंध के लिए आकर्षित होते हैं और खुद को शरीर से अलग मर्दाना (पुरुष) या स्त्रीलिंग (स्त्रीलिंग) मानते हैं। (LGBTQ meaning in English) आज हम आपको बताते हैं कि इस LGBTQIA+ कम्यूनिटी में कौन आते हैं और इस प्लस (+) चिह्न का मतलब क्या होता है।
जब हम बचपन से बड़े होने की ओर बढ़ रहे होते हैं तो आमतौर पर हमें बताया जाता है कि सिर्फ दो तरह के लोग ही होते हैं – या तो पुरुष या महिला। यदि आपका महिलाओं वाला शरीर (स्तन और योनि) है तो इसका मतलब ये है कि आप एक महिला हैं, और यदि आपका पुरुष वाला शरीर (लिंग) है तो इसका मतलब है कि आप एक पुरुष हैं।
लेकिन ध्यान देने वाली बात ये है कि हर किसी के पास वैसा शरीर नहीं होता है जो निर्धारित तरीकों से जन्म के दौरान ऐलान किये गए जेंडर के साथ फिट बैठे। और हर कोई सिसजेंडर (cisgender) भी नहीं होता– मतलब ये है कि जिस शरीर (महिला/पुरुष) के साथ वो पैदा होते हैं,
जरूरी नहीं उनका जेंडर भी वैसा हो। जेंडर की पहचान अब कई मायनों में की जाती है, न कि केवल जैविक/बायोलॉजिकल नज़रिये से। जेंडर पर और नज़रिए यहां देखें।
इंटरसेक्स: एक व्यक्ति जो कुछ मर्द वाली और कुछ औरत वाली जैविक रूप की विशेषताओं (Biological Characteristics) के साथ जन्म लेता है। उसकी ये विशेषताएँ जननांग (Genitilia) तक ही सीमित नहीं रहती हैं। यह क्रोमोसोम्स या जनन–ग्रंथि (Gonads) की विभिन्नता या कई दूसरे पहलुओं पर भी आधारित हो सकती हैं।
ट्रांसजेंडर: ऐसे लोग जो पैदा होने के समय मिलने वाले जेंडर से खुद की पहचान नहीं करते हैं। (LGBTQIA) ट्रांस–पुरुष और ट्रांस–महिलाएं अपने जननांग और शारीरिक बनावट को बदलने के लिए सर्जरी और हार्मोन थैरेपी करवा सकते हैं, लेकिन हर ट्रांसजेंडर ऐसा नहीं करते।
लिंग द्रव/Gender fluid – (या जेंडरक्वीयर या नॉन–बाइनरी): ऐसा शब्द जो उनके लिए इस्तेमाल होता है जिनकी जेंडर पहचान कुछ ऐसी है कि वो न तो पूरी तरह से खुद को मर्द मानते हैं और ना पूरी तरह खुद को औरत। जैसा कि शब्द ‘द्रव‘/ तरल से समझ आता है, जेंडर से इनकी कोई पक्की पहचान नहीं होती है। कुछ एक ही समय में एक से ज्यादा जेंडर के होने का एहसास महसूस करते हैं, कुछ मानते हैं कि उनका कोई जेंडर ही नहीं है और कुछ ऐसे होते हैं जिन्हें अलग–अलग समय पर अलग–अलग जेंडर्स में होने का एहसास होता है।
Sexual Orientation (यौन झुकाव)
सोसायटी और कानूनी तौर पर विषमलैंगिक मोनोगैमी (heterosexual monogamy – अपोजिट जेंडर के प्रति आकर्षित होना और एक ही शादी/कामुक रिश्ते में यकीन रखना) को आदर्श करार दिया जाता है। हालांकि, यह भी सच है कि आजकल ये सोच बदलने लगी है। जैसे जेंडर को अब अलग–अलग नजरिए से देखा जा रहा है, वैसा ही नजरिया अब इस चीज़ के लिए भी बनता जा रहा है कि कौन सा व्यक्ति किस व्यक्ति के प्रति अट्रैक्ट हो सकता है। (LGBTQIA) चलिए, कुछ तरह के यौन झुकाव के बारे में आपको बताते हैं:
समलैंगिक (Homosexual): एक पुरुष का दूसरे पुरुष के लिए यौन आकर्षण (ऐसी सिचुएशन में उन्हें गे/gay कहा जाता है) या एक औरत का दूसरी औरत के तरफ खिंचाव (ऐसी सिचुएशन में उन्हें लेस्बियन/lesbian कहा जाता है)।
उभयलिंगी (Bisexual/Bi): दोनों जेंडर की तरह यौन आकर्षण।
पैनसेक्सयूएल (Pansexual): सभी जेंडर और सेक्स के लिए होने वाला यौन आकर्षण।
असेक्सयूएल (Asexual): आइडेंटिटी के ऐसे परिवेश जिसमें लोगों को यौन इच्छाएं होती ही नहीं हैं। इसमें वे लोग शामिल हो सकते हैं जो किसी दूसरे व्यक्ति के साथ एक रोमांटिक संबंध तो चाहते हैं, लेकिन यौन संबंध नहीं। या ऐसे लोग जो पार्टनर के साथ सिर्फ कभी–कभी यौन संबंध बनाते हैं। या कि ऐसे लोग जिनमें रोमांटिक या यौन संबंध बनाने की कोई इच्छा ही नहीं होती है, चाहे उनका यौन झुकाव किसी भी तरफ हो।
जानिए LGBTQIA+ के हर अक्षर का मतलब क्या होता है
L – ‘लेस्बियन’: यानी (lesbian) एक ही लिंग के लिए एक महिला या लड़की का आकर्षण। इसमें दोनों पार्टनर महिलाएं हैं। कभी-कभी, किसी एक साथी का रूप, व्यक्तित्व पुरुष जैसा हो भी सकता है और नहीं भी।

G – ‘गे’ : जब कोई पुरुष किसी दूसरे पुरुष की ओर आकर्षित होता है तो उसे ‘गे’ कहा जाता है। ‘समलैंगिक’ शब्द का प्रयोग कभी-कभी पूरे समलैंगिक समुदाय को बताने के लिए भी किया जाता है, जिसमें ‘लेस्बियन’, ‘गे’, ‘बायसेक्शुअल’ सभी शामिल हैं।

B – ‘उभयलिंगी’ यानि ‘बायसेक्शुअल’: (Bisexual/Bi) जब कोई पुरुष या महिला दोनों पुरुषों और महिलाओं के प्रति आकर्षित होते हैं और यौन संबंध भी बनाते हैं, तो उन्हें ‘उभयलिंगी’ कहा जाता है। पुरुष और महिला दोनों ‘बायसेक्शुअल’ हो सकते हैं। दरअसल इंसान की शारीरिक इच्छा ही तय करती है कि वह एल, जी या बी है।

T- ‘ट्रांसजेंडर‘: एक व्यक्ति जिसका शरीर जन्म के समय अलग था और वह बड़ा हुआ और बिल्कुल विपरीत महसूस कर रहा था। जैसे कि जन्म के समय बच्चे के गुप्तांग पुरुषों के थे और उसका नाम एक लड़के का था, लेकिन कुछ समय बाद उसने खुद को पाया कि वह दिल से एक लड़की की तरह महसूस करता है।
कुछ लोग इस पर जेंडर चेंज भी करते हैं। लड़कों को लड़कियों के हार्मोन मिलते हैं, जिससे स्तन उभर आते हैं। ये लोग हैं ‘ट्रांसजेंडर’। इसी तरह अगर कोई महिला पुरुष की तरह महसूस करती है तो वह पुरुष की तरह महसूस करने के लिए थेरेपी का सहारा लेती है। वह ‘ट्रांसजेंडर‘ भी हैं।

Q – ‘क्वीर’: (Queer meaning) ऐसा व्यक्ति जो न तो अपनी पहचान तय कर पाया है और न ही शारीरिक इच्छा। मतलब ये लोग खुद को ‘क्वीर’ कहकर न तो पुरुष, न महिला या ‘ट्रांसजेंडर’ और न ही ‘लेस्बियन’, ‘गे’ या ‘बाइसेक्सुअल’ मानते हैं। ‘क्वीर’ के ‘क्यू’ को ‘सवाल करना’ भी समझा जाता है यानी वे जिनके मन में अभी भी अपनी पहचान और शारीरिक इच्छा को लेकर कई सवाल हैं।

I- ‘इंटरसेक्स’: (Intersex) उत्तरी अमेरिका की इंटरसेक्स सोसायटी के अनुसार, यह शब्द उन लोगों को परिभाषित करता है जो किसी महिला या पुरुष के सामान्य प्रजनन अंगों के साथ पैदा नहीं होते हैं। जो लोग बाहर से नर या मादा दिखाई देते हैं, लेकिन उनके प्रजनन अंग उस लिंग से मेल नहीं खाते।
A- ‘एसेक्शुअल’ या ‘एलाई’: (Asexual) इस अक्षर के दो अर्थ हो सकते हैं। पहला अलैंगिक है – यह शब्द उन लोगों के लिए प्रयोग किया जाता है जो किसी भी लिंग के प्रति यौन आकर्षण महसूस नहीं करते हैं। ये लोग किसी के साथ रोमांटिक रिश्ते में आ सकते हैं, लेकिन यौन संबंध नहीं बना पाते हैं। यह किसी मानसिकता या डर के कारण नहीं है, बस उनमें यौन भावनाएं नहीं होती हैं।
दूसरा शब्द एलाई है – इस शब्द का प्रयोग ऐसे लोगों के लिए किया जाता है जो एलजीबीटीक्यूआई लोगों के साथी या मित्र के रूप में अपने अधिकारों के लिए बोलते हैं, भले ही वे स्वयं इस समुदाय से संबंधित न हों।

प्लस (+): इसके अलावा LGBTQIA के सामने एक प्लस (+) का निशान भी लगाया गया है। इसमें पैनसेक्सुअल (Pansexual), पॉलीमोरस, डेमिसेक्सुअल समेत कई अन्य ग्रुप रखे जाते हैं। इसे और समूहों के लिए खुला रखा गया है, जिनकी पहचान की जानी बाकी है।
रिलेशनशिप (LGBTQIA) के स्टाइल और इमोशनल नज़रिए से देखने का तरीका
शादी और मोनोगैमी (एक ही शादी में यकीन रखने वाले) को विषमलैंगिक संबंधों का मानले वाला माना जाता है। लेकिन इसके इतर ऐसी कम्यूनिटी भी है जो मानती है कि रिश्ते बनाने के और भी कई तरीके हैं, इनमें ना शादी के बंधन से जुड़ना ज़रूरी होता है और ना कपल बनकर रहना।
आईए आपको ऐसे रिश्तों से परिचय कराते हैं:
पोलीऐमोरस (polyamorous– एक से ज्यादा लोगों से यौन सम्बन्ध होते हैं) के संबंध और ओपन रिश्ते: वो रिलेशन जिसमें सभी पार्टनर्स की सहमति से एक व्यक्ति के एक से ज्यादा प्रेमी होते हैं।
क्वीयरप्लाटोनिक (queerplatonic) रिश्ते: एक ही जेंडर के दो लोगों के मध्य का ऐसा गहरा संबंध जिसे हम आमतौर पर फ्रैंडशिप का रिश्ता समझते हैं, लेकिन यह रिश्ता उस से कहीं ज़्यादा ऊपर होता है। हालांकि यह रोमैंटिक या यौन संबंध नहीं होता है।
किन्क (kink): ये उन यौन इच्छाओं, क्रियाओं और फैंटेसी (fantasy) को दर्शाता है जो काफी गैर–पारंपरिक (non- tradional) हो सकती हैं या कहें कि मॉडर्न और टैबू होती हैं। उदाहरण के लिए, इसमें बॉनडेज (bondage– जहां एक पार्टनर दूसरे पार्टनर को बांध देता है),
डोमिनेशन/सबमिशन (domination/submission– जहां एक पार्टनर मालिक बनकर आर्डर देता है और दूसरा पार्टनर उसके दास या दासी की तरह झुककर सारे आर्डर मानता है) इसमें ग्रुप सेक्स (जहां एक साथ कई लोग सेक्स की प्रक्रिया में संलग्न होते हैं) शामिल हो सकता है।
स्विंगिंग (swinging): अपने पार्टनर के लिए समर्पित/कमिटेड होने के बावजूद, म्यूचली यानि एक दूसरे की सहमति से और भी लोगों के साथ सेक्स संबंध बनाना।
रिलेशनशिप अनार्की (Relationship anarchy): जहाँ सारे रोमैंटिक और सेक्सुअल रिलेशंस (LGBTQIA) में आज़ादी और सहजता होती है। इस रिश्ते में किसी भी पार्टनर या नॉन–पार्टनर को बड़ा–छोटा नहीं माना जाता है।
इमोशनल फिडेलिटी (emotional fidelity): जहां दो लोग अपनी इमोशनल फीलिंग्स या भावनाएं और नज़दीकियां सिर्फ एक दूसरे तक ही सीमित रखते हैं, लेकिन फिजिकल रिलेशंस उन रिश्तों के बाहर किसी और से भी बनाते हैं।
क्या विषमलिंगी/स्ट्रैट लोग भी क्वीयर (queer) होते हैं?
इस बात पर ज्यादातर मामलों में बहस होती रहती है। कई लोगों का मानना है कि हाँ, विषमलिंगी भी क्वीयर हो सकते हैं यदि वे रिलेशन के नोर्मेटिव/सामान्य स्टाइल्स, इमोशनल नज़रियों और जेंडर के कॉमन सिस्टम में यकीन नहीं रखते हैं, तो… कुछ लोगों को ये भी लगता है कि विषमलिंगी लोगों को क्वीयर मानना एल.जी.बी.टी (LGBTQIA) की पहचान को एक तरह से फीका साबित कर देता है….
क्योंकि यह विषमलिंगी लोगों को एल.जी.बी.टी की पहचान के कुछ ‘कूल/cool’ माने जाने वाली चीजों में तो भागीदार बना देता है…. लेकिन उनका अपमान और उत्पीड़न होने पर उनका हिस्सा नहीं बनाता है।
विवादास्पद शब्द “क्वीयर विषमलैंगिक” (LGBTQIA) का इस्तेमाल उन लोगों के लिए किया जाता है जो रियल में तो विषमलिंगी होते हैं, लेकिन अपना नजरिया क्वीयर रखते हैं। एम्स्टर्डम में सेक्सुअलिटी पर हुए 1997 के एक सम्मेलन में, डांसर क्लाइड स्मिथ, जिन्होंने खुद का इट्रोडक्शन देते समय क्वीयर शब्द का इस्तेमाल किया था, उन्होंने कहा था:
“मैं ये सीख रहा था कि चीजें दअरसल वैसी नहीं हैं जैसी दिखती हैं… इंसान की सेक्सुअल प्रक्रियाएं कई प्रकार से जटिल हैं…. वो समलैंगिक/गे और स्ट्रेट जैसे लेबलों से परे हैं…और मैंने ये भी जाना कि अधिकतर लोगों में सेक्सुअल प्रयोग करने की एक दबी हुई क्षमता है… मैं खुद को विषमलैंगिक क्वीयर मानता हूँ…. क्योंकि मैं अपनी इच्छओं को अनगिनत संभावनाओं के साथ आगे ले जाना चाहता हूँ…. मैं बस क्वीयर होने के टशन का फायदा उठाकर आगे नहीं बढ़ना चाहता….।
कुछ स्ट्रेट आर्टिस्ट इस शब्द को अपनाते तो नहीं हैं… लेकिन फिर भी वो अपनी क्वीयर कलाओं के लिये फेमस हैं… उदाहरण के लिए, मैडोना को लें… लेखक मैट कैन, गायक और कलाकार मैडोना के प्रदर्शन के बारे में लिखते हैं और बताते हैं कि उनके लिए उसके क्या मायने थे:
“लोग समलैंगिक संस्कृति को समाज के सामने लाने में मैडोना की भूमिका को भूल जाते हैं…. वह खुद समलैंगिक (LGBTQIA) नहीं थीं… लेकिन शुरुआत से ही उन्होंने उन समलैंगिक लोगों के बारे में बात की जो उनके जीवन का हिस्सा थे…. जैसे कि उनके समलैंगिक गुरु… उनके डांस टीचर… क्रिस्टोफर फ्लिन।
कीथ हैरिंग और हर्ब रिट्स जैसे कलाकार और फ़ोटोग्राफ़र जिनके साथ वो घुमा फिरा करतीं थीं। समलैंगिक डांसर्स जिनके साथ उन्होंने फिल्म ‘इन बेड विथ मैडोना/In bed with Madonna’ में गर्व के साथ परेड किया था…. आप सोच भी नहीं सकते हैं कि उसे ऐसा करते देखकर कितना अच्छा लगता था… खासकर मेरे जैसे लोगों को जिन्हें उनकी सेक्सुअलिटी के लिए स्कूल में बेरहमी से प्रताड़ित किया गया हो।
कई लोगों का मानना है कि किसी की पहचान की बजाय उनके जीवन जीने के तरीकों से उन्हें क्वीयर बुलाया जाना चाहिए।
समलैंगिक (LGBTQIA) आइडेटिफिकेशन में AI का इस्तेमाल कितना सही
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के एक शोध में पता चला है कि, “एक कंप्यूटर एल्गोरिदम समलैंगिक और सीधे पुरुषों के बीच 81% समय और महिलाओं के लिए 74% समय में सही ढंग से अंतर कर सकता है।” इससे यूज की नैतिकता और इस तरह के सॉफ़्टवेयर द्वारा लोगों की गोपनीयता का उल्लंघन करने या एलजीबीटी (LGBTQIA) विरोधी उद्देश्यों के लिए दुरुपयोग किए जाने की संभावना पर सवाल खड़े हो गए हैं।
शोध में पाया गया है कि समलैंगिक पुरुषों और महिलाओं में (LGBTQIA) “लिंग-असामान्य” विशेषताएँ, अभिव्यक्तियाँ और “श्रृंगार शैली” होती हैं, जिसका अनिवार्य रूप से अर्थ यह है कि समलैंगिक पुरुष अधिक स्त्रैण दिखाई देते हैं और महिलाओं में पुरुष लक्षण होते हैं। डेटा ने कुछ रुझानों की भी पहचान की, जिसमें समलैंगिक पुरुषों के सीधे पुरुषों की तुलना में संकीर्ण जबड़े, लंबी नाक और बड़े माथे होते हैं, और समलैंगिक (LGBTQIA) महिलाओं के सीधे महिलाओं की तुलना में बड़े जबड़े और छोटे माथे होते हैं।
भारत में LGBTQIA+ आंदोलन की टाइमलाइन
- 1860 में ब्रिटिश शासन के दौरान, समलैंगिक यौन संबंध को अप्राकृतिक माना जाता था और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के अध्याय 16, धारा 377 के तहत इसे आपराधिक कृत्य घोषित किया गया था।
- आज़ादी के बाद 26 नवंबर 1949 को अनुच्छेद 14 के तहत समानता का अधिकार लागू कर दिया गया लेकिन समलैंगिकता अभी भी एक आपराधिक कृत्य बना हुआ है।
- दशकों के बाद, 11 अगस्त 1992 को समलैंगिक अधिकारों के लिए पहला विरोध प्रदर्शन हुआ।
- 1999 में, कोलकाता ने भारत की पहली समलैंगिक गौरव परेड की मेजबानी की। इसमें केवल 15 लोग मौजूद थे, इन लोगों के साथ परेड का नाम कलकत्ता रेनबो प्राइड रखा गया।
- 2009 में, नाज़ फाउंडेशन बनाम दिल्ली सरकार मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया कि वयस्कों के बीच सहमति से बने समलैंगिक संबंधों को (LGBTQIA) अपराध घोषित करना भारत के संविधान द्वारा संरक्षित मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
- 2013 में, सुरेश कुमार कौशल और अन्य बनाम नाज़ फाउंडेशन और अन्य में, सुप्रीम कोर्ट ने नाज़ फाउंडेशन बनाम दिल्ली सरकार में दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को पलट दिया और भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को बहाल कर दिया।
- 2015 के अंत में, सांसद शशि थरूर ने समलैंगिकता (LGBTQIA) को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के लिए एक विधेयक पेश किया, लेकिन इसे लोकसभा ने खारिज कर दिया।
अगस्त 2017 में, सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक पुट्टुस्वामी फैसले में निजता के अधिकार को संविधान के तहत मौलिक अधिकार के रूप में बरकरार रखा। इससे एलजीबीटी कार्यकर्ताओं को नई उम्मीद मिली। - 6 सितंबर, 2018 को, सुप्रीम कोर्ट ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया कि धारा 377 असंवैधानिक थी “जहां तक यह समान लिंग के वयस्कों के बीच सहमति से यौन आचरण को अपराध मानती है”।
- धारा 377 के खिलाफ लड़ाई खत्म हो गई है लेकिन एलजीबीटी समुदाय (LGBTQIA) के लिए समान अधिकारों की बड़ी लड़ाई अभी भी जारी है।
इंडियन सिनेमा में LGBTQIA+ को लेकर साल दर साल बदला नजरिया
जहां एक ओर ‘कल हो ना हो’, ‘बोल बच्चन’ और ‘पार्टनर’ जैसी फिल्मों में LGBTQIA + समुदाय को कॉमिक रिलीफ के रूप में इस्तेमाल किया गया तो वहीं अब ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ जैसी फिल्मों में इसे गंभीरता से लिया जा रहा है। अब फिल्मों में अब यह दिखा रहा है कि एक आदमी के लिए दूसरे आदमी से प्यार करने में कुछ भी गलत नहीं है, भारतीय इस नजरिए से सिनेमा बहुत आगे बढ़ चुका है। 2000 के दशक में, बॉलीवुड के लोगों को असामान्य या नकली के रूप में चित्रित करता था, उनका मजाक करने वाले दृश्य बनाता था, हालांकि, दशकों बाद अब बॉलीवुड भी इस कम्युनिटी को सीरियसली ले रहा है।
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