Sanjay Gandhi : आपातकाल के दौरान उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव ने टेलीग्राफ से अपने अधीन कर्मचारियों को संदेश भेजा कि मासिक लक्ष्य पूरा नहीं होने पर न केवल वेतन रुकेगा बल्कि निलंबन और गंभीर जुर्माना भी लग सकता है। सारी प्रशासनिक मशीनरी को इस काम में लगा दें और प्रतिदिन मुझे और मुख्यमंत्री के सचिव को वायरलेस के माध्यम से प्रोग्रेस रिपोर्ट भेजें।
उपरोक्त टेलीग्राफ में जिस लक्ष्य की बात की गई वो नसबंदी को लेकर अभियान का जिक्र था। इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि तात्कालीन नौकरशाही में कितना खौफ और दबाव होगा।
गांवों को घेरने और पुरुषों की जबरदस्ती नसबंदी करने की घटनाएं हुईं
आपातकाल के दौरान, संजय गांधी (Sanjay Gandhi) ने सख्ती से नसबंदी अभियान चलाया। इस पर इतना जोर था कि कई जगहों पर पुलिस द्वारा गांवों को घेरने और फिर पुरुषों को जबरन नसबंदी करने की खबरें आईं।
जानकारों के मुताबिक संजय गांधी के इस अभियान में करीब 62 लाख लोगों की नसबंदी की गई. कहा जाता है कि इस दौरान करीब दो हजार लोगों की गलत ऑपरेशन के कारण मौत भी हुई।
हिटलर ने 1933 में 4 लाख लोगों की जबरन नसबंदी कराई, लेकिन संजय गांधी के अभियान में भारत के 62 लाख लोगों के साथ ऐसा हुआ
इस तरह का अभियान 1933 में जर्मनी में चलाया गया था। इसके लिए एक कानून बनाया गया था जिसके तहत किसी आनुवंशिक रोग से पीड़ित व्यक्ति की नसबंदी का प्रावधान था।
तब तक जर्मनी नाजी पार्टी के नियंत्रण में आ चुका था। इस कानून के पीछे हिटलर की सोच थी कि अगर अनुवांशिक रोग अगली पीढ़ी तक नहीं पहुंचे तो जर्मनी सबसे अच्छी मानव जाति वाला देश बन जाएगा,
जो बीमारियों से मुक्त होगा। बताया जाता है कि इस अभियान में करीब चार लाख लोगों की नसबंदी की गई थी।
- लेकिन संजय गांधी के भीतर लोगों की नसबंदी कराने का इतना फितूर कैसे सवार हो गया कि वे इस मामले में हिटलर से कई गुना आगे निकल गए?
ये परिस्थितियां रहीं जिससे नसबंदी अभियान इतिहास में विवादास्पद बन गया
असल में एक ही समय में कई परिस्थितियां थीं जिससे संजय गांधी (Sanjay Gandhi) इतिहास में विवादास्पद बन गए।
पहला था खुद को कम से कम समय में एक प्रभावी नेता साबित करने की संजय (Sanjay Gandhi) की महत्वाकांक्षा।
दूसरा, परिवार नियोजन को अधिक प्रभावी बनाने के लिए भारत पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का बढ़ता दबाव।
तीसरा, जनसंख्या नियंत्रण के अन्य तरीकों की बड़ी विफलता और चौथा, आपातकाल के दौरान प्राप्त निरंकुश सत्ता।
Photo- Indian Express Archive |
कम समय में प्रभावी नेता बनने के लिए संजय गांधी ने तलाशा मुद्दा
25 जून 1975 को आपातकाल लागू होने के बाद ही राजनीति में आए संजय गांधी के बारे में यह स्पष्ट था कि वे गांधी-नेहरू परिवार की विरासत को संभालेंगे।
संजय एक ऐसे मुद्दे की भी तलाश में थे जो उन्हें कम से कम समय में एक सक्षम और प्रभावी नेता के रूप में स्थापित कर सके।
उस समय वृक्षारोपण, दहेज उन्मूलन और शिक्षा जैसे मुद्दों पर जोर दिया जाता था, लेकिन संजय को लगा कि उन्हें किसी एक करिश्मे की नींव नहीं बनाया जा सकता।
जब आबादी का जिक्र दुनिया में अभिशाप बना
संयोग से यह वह दौर भी था जब दुनिया में भारत की आबादी का जिक्र उसके अभिशाप की तरह होता जा रहा था। अमेरिका समेत कई पश्चिमी देशों का मानना था कि हरित क्रांति के कारण खाद्यान्न का उत्पादन कितना भी बढ़ जाए, लेकिन महासागर की तरह फैलती आबादी के लिए नाकाफी होगा।
पश्चिमी देशों का मानना था कि भारत को खाद्यान्न के रूप में मदद भेजना समुद्र में तिनका फेंकने जैसा है, जो किसी काम का नहीं है। यह न केवल अनाज के बारे में माना जाता था, बल्कि अन्य संसाधनों के बारे में भी माना जाता था।
परिवार नियोजन संजय गांधी (Sanjay Gandhi) का जरूरी लक्ष्य बन गया
पत्रकार विनोद मेहता अपनी किताब द संजय स्टोरी में लिखते हैं, ”अगर संजय इस जनसंख्या वृद्धि पर थोड़ा भी अंकुश लगा पाते तो यह एक असाधारण उपलब्धि होती।
इस पर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा होती।’ यही कारण है कि आपातकाल के दौरान परिवार नियोजन कार्यक्रम को प्रभावी ढंग से लागू करना संजय गांधी का एक महत्वपूर्ण लक्ष्य बन गया।
इस दौरान उन्होंने देश की मरम्मत के अपने अभियान के तहत सौंदर्यीकरण सहित कई अन्य काम भी किए, लेकिन उन्होंने इस मुद्दे पर अपनी राजनीति का सबसे बड़ा दांव खेला।
उन्हें उम्मीद थी कि जिसमें दूसरे असफल रहे उसमें वे खुद कमाल कर जाएंगे।
इंदिरा गांधी पर 1975 से पहले भी जनसंख्या नियंत्रण को लेकर दबाव बढ़ा था
25 जून, 1975 से पहले भी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर इस बात का दबाव बढ़ रहा था कि भारत नसबंदी कार्यक्रम में तेजी लाए।
वहीं विकसित देश, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक और एड इंडिया कंसोर्टियम जैसी संस्थाओं के माध्यम से संदेश फैला रहे थे कि भारत 1947 से इस मोर्चे पर बहुत कीमती समय बर्बाद कर चुका है और इसलिए उसे बढ़ती आबादी पर अंकुश लगान के लिए युद्धस्तर पर कार्य शुरू करने की जरूरत है।
अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते भारत में लंबे समय से कई जनसंख्या नियंत्रण अभ्यास कार्यक्रम चल रहे थे। गर्भनिरोधक गोलियों सहित कई तरीके अपनाए जा रहे थे, लेकिन इससे ज्यादा सफलता मिलती नहीं दिखी।
इंदिरा गांधी ने नसबंदी कार्यक्रम को लागू करने की जिम्मेदारी संजय गांधी को सौंपी, जैसे मानो संजय इसी के इंतजार में थे
आपातकाल शुरू होने के बाद, पश्चिमी देशों के एक समूह ने नसबंदी कार्यक्रमों को और भी अधिक सख्ती से लागू करने की वकालत शुरू कर दी। इंदिरा गांधी ने इस बात को स्वीकार किया।
जानकारों के मुताबिक, यह उनकी भी मजबूरी थी क्योंकि वह खुद कुछ ऐसा करने की कोशिश कर रही थीं ताकि लोगों का ध्यान कोर्ट केस से हट सके जो उनकी बदनामी का कारण बना और परिणामस्वरूप आपातकाल देश को झेलना पड़ा।
इंदिरा गांधी ने नसबंदी कार्यक्रम को लागू करने की जिम्मेदारी संजय गांधी (Sanjay Gandhi) को सौंपी, जैसे मानो संजय इसी तरह के मुद्दे या किसी योजना का इंजार ही कर रहे थे।
मुस्लिम समुदाय में अफवाह फेल गई कि यह उनकी कौम की संख्या कम करने की साजिश थी। संजय गांधी का मानना था कि अगर वे मुस्लिम समुदाय के बीच नसबंदी कार्यक्रम को सफल बना देंगे तो देशभर में एक कड़ा संदेश जाएगा
इसके बाद कुछ महीनों तक इतने बड़े कार्यक्रम के लिए सामान्य व्यवस्था तैयार की गई। संजय गांधी (Sanjay Gandhi) ने फैसला किया कि यह काम देश की राजधानी दिल्ली से शुरू होना चाहिए और वो भी पुरानी दिल्ली से जहां मुस्लिम आबादी ज्यादा है।
उन दिनों भी नसबंदी को लेकर कई भ्रामक बातें अमजन में फैली थीं। मुस्लिम समुदाय में अफवाह फेल गई कि यह उनकी कौम की संख्या कम करने की साजिश थी।
संजय गांधी (Sanjay Gandhi) का मानना था कि अगर वे मुस्लिम समुदाय के बीच नसबंदी कार्यक्रम को सफल बना देंगे तो देशभर में एक कड़ा संदेश जाएगा।
यही कारण है कि उन्होंने आपातकाल के दौरान मिली निरंकुश सत्ता का इस्तेमाल करते हुए इस अभियान की शुरुआत की। अधिकारियों को माहवार लक्ष्य दिए गए और उनकी प्रतिदिन समीक्षा की जाने लगी।
नसबंदी अभियान को निरंकुश अभियान के बजाय जनता जागरूकता अभियान के तौर चलाया जाता तो परिणाम क्रांतिकारी हो सकते थे
होना ये चाहिए था कि इतना बड़ा अभियान शुरू होने से पहले लोगों में इसके बारे में जागरूकता अभियान चलाया जाता।
जानकारों का मानना है कि अगर इसे युद्धस्तर के बजाय धीरे-धीरे और जागरूकता के साथ आगे बढ़ाया जाता तो देश के लिए इसके परिणाम क्रांतिकारी सिद्ध हो सकते थे।
लेकिन जल्द से जल्द परिणाम चाहने वाले संजय गांधी (Sanjay Gandhi) के नेतृत्व में चला अभियान इस तरह से चला कि देशभर के लोग कांग्रेस से और भी ज्यादा नाराज हो गए।
कहा जाता है कि संजय गांधी के नसबंदी कार्यक्रम पर नाराजगी ने 1977 में इंदिरा गांधी को सत्ता से बेदखल करने में प्रमुख भूमिका निभाई थी।
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