Manmohan Singh legacy: भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का 92 साल की उम्र में गुरुवार रात दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में निधन हो गया। उन्हें रात 8:06 बजे AIIMS लाया गया था। घर पर बेहोश होने के बाद उन्हें इमरजेंसी वार्ड में भर्ती कराया गया, जहां रात 9:51 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली।
डॉ. सिंह लंबे समय से बीमार चल रहे थे। उनकी मृत्यु के बाद केंद्र सरकार ने 7 दिन के राष्ट्रीय शोक की घोषणा की है। शुक्रवार को होने वाले सभी सरकारी कार्यक्रम रद्द कर दिए गए हैं। उनका अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा।
देश के 14वें प्रधानमंत्री और आर्थिक सुधारों के नायक
डॉ. मनमोहन सिंह 2004 में देश के 14वें प्रधानमंत्री बने। वे लगातार दो टर्म तक इस पद पर रहे और 2014 तक देश का नेतृत्व किया। वे भारत के पहले सिख प्रधानमंत्री और चौथे सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री पद पर रहने वाले नेता थे।
डॉ. सिंह को भारत की अर्थव्यवस्था में 1991 में उदारीकरण, निजीकरण, और वैश्वीकरण की शुरुआत करने का श्रेय दिया जाता है। पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में वित्त मंत्री के तौर पर उनके योगदान ने भारत की आर्थिक स्थिति को सुधारने में अहम भूमिका निभाई।
मनमोहन सिंह RBI के गवर्नर थे, फिर 10 साल देश के पीएम रहे
डॉ. मनमोहन सिंह का जन्म अविभाजित भारत के पंजाब में हुआ।
विभाजन के बाद परिवार भारत आ गया। पढ़ाई पंजाब यूनिवर्सिटी और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में हुई।
1982 से 1985 तक RBI के गवर्नर रहे।
1991 से 1996 तक वित्त मंत्री।
2004-2014 तक प्रधानमंत्री रहे।
उनके परिवार में पत्नी गुरशरण कौर और तीन बेटियां हैं।
राहुल गांधी और कांग्रेस नेताओं का शोक
डॉ. सिंह के निधन के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी और पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने उनके घर जाकर शोक व्यक्त किया। राहुल गांधी ने कहा, “मैंने अपना मार्गदर्शक और गुरु खो दिया है।”
कांग्रेस वर्किंग कमेटी (CWC) की कर्नाटक के बेलगावी में चल रही बैठक को भी रद्द कर दिया गया है।
डॉ. सिंह का जीवन: विभाजन से लेकर प्रधानमंत्री तक का सफर
डॉ. मनमोहन सिंह का जन्म अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत के गाह गांव में हुआ था। विभाजन के बाद उनका परिवार भारत आ गया। पढ़ाई में अव्वल रहने वाले डॉ. सिंह ने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के गवर्नर और योजना आयोग के उपाध्यक्ष के रूप में भी सेवा दी।
डॉ. मनमोहन सिंह के 6 ऐतिहासिक काम
जून 1991: वैश्वीकरण और उदारीकरण।
जून 2005: सूचना का अधिकार।
सितंबर 2005: रोजगार गारंटी योजना।
मार्च 2006: अमेरिका से न्यूक्लियर डील।
जनवरी 2009: पहचान के लिए आधार कार्ड।
अप्रैल 2010: शिक्षा का अधिकार।
1991 का ऐतिहासिक बजट: भारत की नई आर्थिक दिशा
1991 में, जब देश आर्थिक संकट से जूझ रहा था, डॉ. मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री बनाया गया। उनके बजट में उदारीकरण (Liberalization), निजीकरण (Privatization), और वैश्वीकरण (Globalization) पर जोर दिया गया। इसने भारत की अर्थव्यवस्था को नई दिशा दी।
डॉ. सिंह के प्रयासों से औद्योगिक लाइसेंसिंग, बैंकिंग सुधार, और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के नियम बदले गए। इसके परिणामस्वरूप देश में व्यापार और निवेश के नए अवसर पैदा हुए।
मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री कैसे चुना गया?
पीवी नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्हें भारत की खराब आर्थिक स्थिति को संभालने के लिए एक सक्षम वित्त मंत्री की जरूरत थी। रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर और अर्थशास्त्र के विशेषज्ञ डॉ. मनमोहन सिंह को यह जिम्मेदारी सौंपी गई।
डॉ. सिंह को इस भूमिका के लिए उनके अंतरराष्ट्रीय अनुभव और भारतीय अर्थव्यवस्था की गहरी समझ के कारण चुना गया। उनकी नीतियों ने भारत को आर्थिक संकट से बाहर निकाला और वैश्विक स्तर पर भारत की स्थिति को मजबूत किया।
नरसिम्हा ने मनमोहन के पहले बजट को खारिज कर दिया था
1991 के बजट से दो हफ्ते पहले जब मनमोहन सिंह बजट का मसौदा लेकर नरसिम्हा राव के पास पहुंचे तो पीएम ने उसे सिर से खारिज कर दिया। नरसिम्हा ने कहा, “अगर मुझे यही चाहिए था तो मैंने आपको क्यों चुना?” पहले बजट में मनमोहन ने विंस्टन चर्चिल की एक लाइन लिखी थी – “दुनिया की कोई ताकत उस विचार को नहीं रोक सकती, जिसका समय आ गया हो।”
2004 में कैसे मनमोहन सिंह बने प्रधानमंत्री: सोनिया गांधी और राहुल का अहम फैसला
2004 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने UPA गठबंधन बनाकर सरकार बनाई। हालांकि, प्रधानमंत्री के नाम को लेकर असमंजस था। नटवर सिंह की किताब ‘वन लाइफ इज नॉट एनफ’ में इस समय के घटनाक्रम का जिक्र है।
वे लिखते हैं कि राहुल गांधी नहीं चाहते थे कि सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बनें। राहुल को डर था कि यदि उनकी मां इस पद को स्वीकार करती हैं, तो उन्हें भी अपने पिता और दादी की तरह जान का खतरा हो सकता है। इस मुद्दे पर सोनिया और राहुल के बीच तीखी बहस हुई।
राहुल ने सोनिया गांधी से स्पष्ट कहा कि वे उन्हें 24 घंटे का समय दे रहे हैं फैसला करने के लिए। भावुक सोनिया गांधी अपने बेटे की बात को नजरअंदाज नहीं कर सकीं। इसके बाद सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री बनने का प्रस्ताव ठुकरा दिया, और मनमोहन सिंह के नाम पर सहमति बनी।
यह फैसला न केवल उस समय का सबसे चर्चित राजनीतिक घटनाक्रम बना, बल्कि मनमोहन सिंह को देश का प्रधानमंत्री बनाकर भारतीय राजनीति का एक नया अध्याय भी लिखा।
कैसे सोनिया गांधी के फैसले से मनमोहन सिंह बने प्रधानमंत्री
18 मई 2004 की सुबह सोनिया गांधी अपने बच्चों, राहुल और प्रियंका के साथ राजीव गांधी की समाधि पर पहुंचीं। कुछ समय समाधि के पास बिताने के बाद, उन्होंने अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनने का फैसला किया।
उसी दिन शाम 7 बजे, कांग्रेस संसदीय दल की बैठक संसद के सेंट्रल हॉल में हुई। सोनिया गांधी ने भावुक होकर कहा, “मेरा लक्ष्य कभी भी प्रधानमंत्री बनना नहीं रहा है।” उनके इस फैसले के बाद कांग्रेस सांसदों ने उन्हें प्रधानमंत्री बनने के लिए मनाने की कोशिश की, लेकिन वे अपने निर्णय पर अडिग रहीं।
सोनिया ने मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद के लिए चुना, जिन्हें वे एक “तुरुप का पत्ता” मानती थीं। बाद में, राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने भी अपनी किताब ‘टर्निंग पॉइंट्स: ए जर्नी थ्रू चैलेंजेज’ में लिखा कि सोनिया गांधी के इस अप्रत्याशित निर्णय ने उन्हें हैरान कर दिया था।
22 मई 2004 को डॉ. मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली और 2014 तक इस पद पर देश की सेवा की। उनका चयन भारतीय राजनीति में त्याग और नेतृत्व का अनूठा उदाहरण बना।
डॉ. मनमोहन सिंह RBI के गवर्नर थे, फिर 10 साल देश के पीएम रहे
डॉ. मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितंबर 1932 को अविभाजित भारत के पंजाब के गाह (अब पाकिस्तान) में हुआ।
उनके पिता का नाम गुरमुख सिंह और मां का नाम अमृत कौर था।
विभाजन के बाद उनका परिवार भारत आ गया। यहां पंजाब विश्वविद्यालय से उन्होंने ग्रेजुएशन और पीजी पूरा किया। केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से PhD और ऑक्सफोर्ड से डी.फिल की।
डॉ. मनमोहन सिंह पंजाब विश्वविद्यालय और दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में प्रोफेसर रहे।
1966-1969 के दौरान संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के लिए आर्थिक मामलों के अधिकारी के रूप में नियुक्त हुए।
1971 में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार बने। 1972 में वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार बने।
1982-85 तक रिजर्व बैंक के गवर्नर, प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के अध्यक्ष भी रहे।
1991-96 तक नरसिम्हा राव सरकार में वित्त मंत्री रहे। 2004-2014 तक देश के प्रधानमंत्री रहे।
33 वर्षों तक राज्यसभा सदस्य रहे।
2009 में राहुल गांधी के बयान से मनमोहन सिंह का दोबारा प्रधानमंत्री बनना संभव हुआ
2009 के लोकसभा चुनाव में यूपीए को 262 सीटें मिलीं, जिसके बाद प्रधानमंत्री पद को लेकर अटकलें तेज हो गईं। सियासी चर्चाओं में राहुल गांधी का नाम उछला, लेकिन राहुल ने साफ कर दिया कि उनकी प्रधानमंत्री बनने की कोई इच्छा नहीं है।
वीर सांघवी अपनी किताब ‘ए रूड लाइफ: द मेमॉयर’ में लिखते हैं कि मनमोहन सिंह दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने को लेकर हिचकिचा रहे थे। उन्होंने सोनिया गांधी से स्पष्ट किया था कि वे तभी यह जिम्मेदारी संभालेंगे, जब उन्हें पूरा कार्यकाल बतौर प्रधानमंत्री काम करने का भरोसा मिलेगा।
राहुल गांधी ने मनमोहन सिंह को विश्वास दिलाया कि वे प्रधानमंत्री पद के दावेदार नहीं हैं। इस आश्वासन के बाद मनमोहन सिंह ने 22 मई 2009 को दूसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली और 26 मई 2014 तक देश का नेतृत्व किया।
यह घटना भारतीय राजनीति में राहुल गांधी के त्याग और मनमोहन सिंह के नेतृत्व की प्रतिबद्धता का प्रतीक बनी।
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मनमोहन सिंह के यादगार जवाब: जब खामोशी और शायरी से दिया विपक्ष को करारा जवाब
तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को उनकी शांत स्वभाव और कम बोलने की आदत के लिए जाना जाता था, लेकिन जब वे बोले, तो उनके शब्दों ने विपक्ष को चुप करा दिया।
वोट के बदले नोट पर बहस का जवाब:
लोकसभा में “वोट के बदले नोट” पर चर्चा के दौरान, नेता विपक्ष सुषमा स्वराज ने कटाक्ष करते हुए कहा:
“तू इधर उधर की न बात कर, ये बता के कारवां क्यों लुटा; मुझे रहजनों से गिला नहीं, तेरी रहबरी का सवाल है।”इसके जवाब में मनमोहन सिंह ने शायरी के अंदाज में कहा:
“माना के तेरी दीद के काबिल नहीं हूं मैं, तू मेरा शौक तो देख, मेरा इंतजार तो देख।”
उनके इस जवाब पर सत्ता पक्ष ने मेज थपथपाई, जबकि विपक्ष खामोश रह गया।कोयला घोटाले पर बयान:
कोयला ब्लॉक आवंटन में भ्रष्टाचार के आरोपों पर मनमोहन सिंह ने लोकसभा में कहा कि कैग की रिपोर्ट में लगाए गए आरोप “तथ्यों पर आधारित नहीं और पूरी तरह बेबुनियाद” हैं।इसके बाद, संसद भवन के बाहर उन्होंने मीडिया से कहा:
“हजारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी, न जाने कितने सवालों की आबरू रखी।”
उनकी इस शायरी ने न केवल उनके आलोचकों को शांत किया, बल्कि उनके व्यक्तित्व की गहराई को भी उजागर किया।डॉ. मनमोहन सिंह की खामोशी कई बार उनके सबसे मजबूत जवाब के रूप में काम करती थी, और उनके ये वाकिए भारतीय राजनीति में एक अमिट छाप छोड़ गए।
- मनमोहन का दूसरा कार्यकाल घोटालों-विवादों से भरा रहा
- मनमोहन सरकार 2.0 में 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला सुर्खियों में रहा। CAG की रिपोर्ट के अनुसार, स्पेक्ट्रम आवंटन में 1 लाख 76 हजार करोड़ रुपये के घपले का मामला सामने आया।
- 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले को आजाद भारत का सबसे बड़ा वित्तीय घोटाला माना गया। इसमें तत्कालीन संचार मंत्री ए राजा को मंत्री पद छोड़ना पड़ा और जेल भी जाना पड़ा।
- कोयला आवंटन के नाम पर करीब 26 लाख करोड़ रुपये के घोटाले का मामला सामने आया। 2010 में दिल्ली में राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन हुआ। इस खेलों से जुड़े घोटालों में भारी अनियमितताओं और घपलों का खुलासा हुआ।
- मनमोहन लॉबी में एक मीडिया कंपनी एंडरटेनमेंट और विदेशी निवेश मंजूरी में अनियमितताओं का मामला भी सामने आया।
- इसके अलावा मुंबई में आदर्श हाउसिंग सोसाइटी घोटाला और अगस्ता वेस्टलैंड हेलिकॉप्टर खरीद में रिश्वत के मामले उजागर हुए।
सियासी उतार-चढ़ाव: डॉ. मनमोहन सिंह की चार घटनाएं जो उन्हें व्यथित कर गईं
1. 2जी और कोयला घोटाले से घिरी सरकार:
UPA सरकार के दौरान 2जी स्पेक्ट्रम, कोयला ब्लॉक आवंटन और टेलीकॉम जैसे बड़े घोटाले सामने आए। इन घोटालों के चलते डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार को विपक्ष की तीखी आलोचना का सामना करना पड़ा। 2014 के आम चुनाव में कांग्रेस को इन विवादों के कारण हार झेलनी पड़ी।2. राहुल गांधी का अध्यादेश पर कड़ा विरोध:
2013 में, राजनीति में अपराधियों की एंट्री रोकने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए सरकार अध्यादेश लाने वाली थी। राहुल गांधी ने इसे “बकवास” बताते हुए सार्वजनिक रूप से फाड़कर फेंकने की बात कही। इस घटना ने डॉ. सिंह के नेतृत्व को चुनौतीपूर्ण स्थिति में डाल दिया।3. ‘एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ का तमगा:
डॉ. मनमोहन सिंह को कई बार “एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर” कहा गया। 2018 में अपनी पुस्तक ‘चेंजिंग इंडिया’ के लॉन्च पर उन्होंने कहा, “मुझे एक्सीडेंटल प्रधानमंत्री कहा जाता है, लेकिन मैं एक्सीडेंटल वित्त मंत्री भी था।” इस पर उनके पूर्व मीडिया सलाहकार संजय बारू की किताब ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ पर 2019 में एक फिल्म भी बनाई गई।4. सिख दंगों पर संसद में माफी:
12 अगस्त 2005 को लोकसभा में डॉ. सिंह ने 1984 के सिख विरोधी दंगों के लिए माफी मांगी। उन्होंने कहा, “देश में उस समय जो कुछ हुआ, उसके लिए शर्म से अपना सिर झुकाता हूं।”इन घटनाओं ने डॉ. मनमोहन सिंह के शांत और दृढ़ नेतृत्व को चुनौती दी, लेकिन उन्होंने हर बार गरिमा और सादगी के साथ इनका सामना किया।
मनमोहन सिंह: व्हीलचेयर पर संसद में पहुंचकर लोकतंत्र की ताकत का दिया संदेश
7 अगस्त 2023 और 19 सितंबर 2023 को पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने व्हीलचेयर पर संसद की कार्यवाही में हिस्सा लिया। उनके इस कदम ने उनके कर्तव्यनिष्ठा और लोकतंत्र के प्रति गहरी प्रतिबद्धता को उजागर किया।
8 फरवरी 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्यसभा में मनमोहन सिंह की इस भूमिका की सराहना करते हुए कहा:
“कुछ दिनों पहले वोटिंग का अवसर था। अंतर भी बहुत था, फिर भी मनमोहन सिंह जी व्हीलचेयर पर आए और वोट किया। यह दिखाता है कि एक सांसद अपने दायित्वों के प्रति कितना सजग है।”पीएम मोदी ने इसे लोकतंत्र की ताकत का प्रतीक बताते हुए कहा:
“वे वोट देने आए, यह सवाल नहीं है कि उन्होंने किसे समर्थन दिया। उनका यह कदम लोकतंत्र को ताकत देने का एक प्रेरणादायक उदाहरण है।”डॉ. मनमोहन सिंह का यह कृत्य न केवल उनके दृढ़ निश्चय को दर्शाता है, बल्कि यह साबित करता है कि लोकतंत्र की मजबूती के लिए हर छोटा प्रयास भी महत्वपूर्ण होता है।
मनमोहन सिंह: आम आदमी से लेकर वैश्विक नेता तक की पहचान
भारत के 14वें प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह कम बोलने वाले राजनेता के रूप में जाने जाते थे, लेकिन उनके कार्यकाल में आधार, मनरेगा, RTI, और राइट टू एजुकेशन जैसी ऐतिहासिक योजनाएं शुरू हुईं, जो आज भी देश की रीढ़ मानी जाती हैं।
मनमोहन सिंह की पहचान एक राजनेता से ज्यादा एक कुशल अर्थशास्त्री के रूप में थी। भारत की अर्थव्यवस्था को संकट के दौर से निकालने का श्रेय भी उन्हें दिया जाता है।
प्रधानमंत्री आवास में रहने के बावजूद, डॉ. सिंह खुद को “आम आदमी” कहते थे। सरकारी BMW कार की बजाय उन्हें अपनी पुरानी मारुति 800 ज्यादा पसंद थी।
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपनी किताब में लिखा:
“जब मनमोहन बोलते हैं, तो पूरी दुनिया सुनती है।”
यह बयान डॉ. सिंह के नेतृत्व और वैश्विक प्रभाव को दर्शाता है, जो उन्हें एक असाधारण नेता बनाता है।
मनमोहन सिंह के तीन अनसुने किस्से: शर्म, टकराव और इस्तीफे का विचार
1. शर्मीले स्वभाव के कारण ठंडे पानी से नहाने की आदत:
डॉ. मनमोहन सिंह बचपन से ही बेहद शर्मीले थे। एक इंटरव्यू में उन्होंने साझा किया कि कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में वे अकेले सिख छात्र थे। अपने लंबे बालों की वजह से वे नहाने में शर्म महसूस करते थे। इसलिए वे तब तक इंतजार करते थे, जब तक बाकी छात्र नहा न लें। लेकिन तब तक गर्म पानी खत्म हो जाता और उन्हें ठंडे पानी से नहाना पड़ता था।2. मंत्री ललित नारायण मिश्र से टकराव:
विदेश व्यापार विभाग में सलाहकार रहते हुए डॉ. मनमोहन सिंह का मंत्री ललित नारायण मिश्र से मतभेद हो गया। मनमोहन ने स्पष्ट कहा कि अगर उन पर ज्यादा दबाव डाला गया, तो वे अपनी दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स की प्रोफेसर की नौकरी पर लौट जाएंगे। उनका यह दो-टूक रवैया उनके आत्मसम्मान को दर्शाता है।मनमोहन सिंह: प्रोफेसर से मुख्य आर्थिक सलाहकार बनने तक का सफर
दरअसल डॉ. मनमोहन सिंह ने 1966 से 1969 तक संयुक्त राष्ट्र के लिए काम किया। इसके बाद दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स का ऑफर मिलने पर वे भारत लौटे और प्रोफेसर के रूप में पढ़ाने लगे।
उनका ब्यूरोक्रेटिक करियर तब शुरू हुआ जब ललित नारायण मिश्रा ने उन्हें कॉमर्स मिनिस्ट्री में आर्थिक सलाहकार नियुक्त किया। मनमोहन सिंह उस समय विदेशी व्यापार के विशेषज्ञ माने जाते थे और खुद भी यह कहते थे कि इस विषय पर उनसे अधिक भारत में कोई नहीं जानता।
हालांकि, एक बार उनके और मंत्री ललित नारायण मिश्रा के बीच असहमति हो गई। इस पर मनमोहन सिंह ने कहा कि वे दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में अपनी पुरानी नौकरी पर लौट जाएंगे।
जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सचिव पीएन हक्सर को इस बात का पता चला, तो उन्होंने डॉ. सिंह को वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार का पद ऑफर किया। इस तरह, एक विवाद उनके लिए करियर में एक बड़ा प्रमोशन लेकर आया।
डॉ. मनमोहन सिंह की यह कहानी उनके ज्ञान, आत्मसम्मान, और पेशेवर सफलता को दर्शाती है।
3. इस्तीफे की सोच और अटल बिहारी वाजपेयी का सहयोग:
1991 में बतौर वित्त मंत्री पेश किए गए डॉ. मनमोहन सिंह के बजट की विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने कड़ी आलोचना की। उनकी बातों से आहत होकर डॉ. सिंह ने इस्तीफा देने का मन बना लिया। हालांकि, वाजपेयी ने उनसे मुलाकात कर समझाया और उन्हें पद पर बने रहने के लिए प्रेरित किया।डॉ. मनमोहन सिंह के ये किस्से न केवल उनके व्यक्तिगत और पेशेवर संघर्षों को दिखाते हैं, बल्कि उनकी सादगी, दृढ़ता, और नेतृत्व की झलक भी देते हैं।
मनमोहन सिंह ने सोनिया गांधी के खिलाफ जाकर साइन की थी न्यूक्लियर डील
डॉ. मनमोहन सिंह के कार्यकाल की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक थी अमेरिका के साथ न्यूक्लियर डील। जनवरी 2014 में अपनी आखिरी प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने इसे अपने कार्यकाल की सबसे बड़ी उपलब्धि करार दिया।
2006 में वॉशिंगटन में अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के साथ यह ऐतिहासिक समझौता हुआ। इस डील ने भारत के 30 साल पुराने परमाणु व्यापार पर लगे प्रतिबंध को खत्म किया, जो 1974 में भारत के परमाणु परीक्षण के बाद लगाए गए थे।
हालांकि, इस डील का कड़ा विरोध हुआ। लेफ्ट पार्टियों ने UPA सरकार से समर्थन वापस ले लिया। उनके पास करीब 60 सांसदों का समर्थन था। इस विवाद के दौरान सोनिया गांधी ने डील वापस लेने की बात कही, जबकि शुरुआत में वे इसके समर्थन में थीं।
सरकार को सदन में विश्वास मत का सामना करना पड़ा। मनमोहन सिंह ने इसे पार कराने के लिए विपक्ष के नेताओं से समर्थन मांगा। उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी को “राजनीति का भीष्म” बताते हुए अंतरात्मा की आवाज पर समर्थन की अपील की।
आखिरकार, सपा नेता अमर सिंह की मदद से मनमोहन सिंह की सरकार ने 19 वोटों के अंतर से विश्वास मत जीत लिया। यह डील न केवल भारत के लिए एक कूटनीतिक जीत थी, बल्कि परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में भारत के लिए नए द्वार खोलने वाली भी साबित हुई।
मनमोहन सरकार में सोनिया गांधी का प्रभाव: संजय बारू की किताब से खुलासे
डॉ. मनमोहन सिंह के कार्यकाल में प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) में एमके नारायणन जैसे सीनियर अधिकारियों की नियुक्ति की गई, जिनकी वफादारी सोनिया गांधी के प्रति अधिक मानी जाती थी।
संजय बारू, जो मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार थे, अपनी किताब ‘द एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ में लिखते हैं कि डॉ. सिंह ने खुद स्वीकार किया था कि सत्ता का केंद्र कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के पास है और उनकी सरकार पार्टी के प्रति जवाबदेह है।
बारू के अनुसार, सोनिया गांधी का प्रधानमंत्री न बनना एक सोची-समझी राजनीतिक रणनीति थी। उन्होंने मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया, लेकिन वास्तविक सत्ता अपने पास रखी। UPA-1 के सामाजिक विकास कार्यक्रमों का श्रेय लेने के लिए राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (NAC) और प्रधानमंत्री कार्यालय के बीच अक्सर खींचतान रहती थी।
बारू यह भी लिखते हैं कि 2009 में UPA-2 की सत्ता में वापसी के बाद, सोनिया गांधी ने डॉ. सिंह से परामर्श किए बिना प्रणब मुखर्जी को वित्त मंत्री बनाया। मनमोहन सिंह सीवी रंगराजन को इस पद पर लाना चाहते थे। इसी तरह, ए राजा और टीआर बालू जैसे नेताओं को भी मनमोहन सिंह की मर्जी के खिलाफ मंत्रिमंडल में शामिल किया गया। इन पर बाद में भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे।
यह घटनाएं मनमोहन सिंह की सरकार में सोनिया गांधी के प्रभाव और राजनीतिक निर्णयों में उनके हस्तक्षेप को उजागर करती हैं।
‘मुझे क्रेडिट नहीं चाहिए, मैं बस अपनी ड्यूटी करना चाहता हूं’: मनमोहन सिंह
26 सितंबर 2007 को, राहुल गांधी कांग्रेस महासचिव बनने के बाद कांग्रेस महासचिवों के प्रतिनिधिमंडल के साथ डॉ. मनमोहन सिंह को जन्मदिन की बधाई देने पहुंचे। राहुल ने प्रधानमंत्री को मनरेगा का दायरा 500 और गांवों तक बढ़ाने का ज्ञापन सौंपा।
अगले दिन मीडिया में खबर छपी कि राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री को मनरेगा का विस्तार करने के लिए कहा।
संजय बारू अपनी किताब ‘द एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ में लिखते हैं, “मैंने मजाक में एक पत्रकार मित्र को SMS किया कि यह घोषणा प्रधानमंत्री की तरफ से जन्मदिन का तोहफा है।”
हालांकि, यह संदेश कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व तक पहुंच गया, जिससे मामला गंभीर हो गया। यह घटना मनमोहन सिंह की उस छवि को भी दिखाती है, जहां उन्होंने हमेशा कहा, “मुझे श्रेय नहीं चाहिए, मैं बस अपना काम करना चाहता हूं।”
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मनमोहन सिंह: लालटेन की रोशनी से ऑक्सफोर्ड तक का सफर
डॉ. मनमोहन सिंह का जीवन संघर्ष और उपलब्धियों से भरा रहा है। पाकिस्तान से विस्थापित होकर हल्द्वानी आए डॉ. सिंह का बचपन कठिन परिस्थितियों में बीता। मां के निधन के बाद उनके दादा-दादी ने उन्हें पाला। गांव में लालटेन की रोशनी में पढ़ाई करते हुए उन्होंने मैट्रिक तक की शिक्षा पूरी की।
प्री-मेडिकल से अर्थशास्त्र तक का सफर:
पिता उन्हें डॉक्टर बनाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने प्री-मेडिकल कोर्स में दाखिला लिया। लेकिन कुछ महीनों बाद उन्होंने यह कोर्स छोड़कर अर्थशास्त्र में करियर बनाने का फैसला किया।उर्दू और गुरुमुखी में लिखते थे भाषण:
डॉ. मनमोहन सिंह की शुरुआती शिक्षा उर्दू में हुई। प्रधानमंत्री बनने के बाद भी वे अपने भाषणों की स्क्रिप्ट उर्दू या कई बार गुरुमुखी में लिखवाते थे।ऑक्सफोर्ड से लेकर योजना आयोग तक:
1948 में मैट्रिक पास करने के बाद उन्होंने कैंब्रिज और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र की पढ़ाई की। करियर की शुरुआत पंजाब विश्वविद्यालय और दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में शिक्षक के रूप में की।
प्रमुख प्रशासनिक भूमिकाएं:
- 1971 में वाणिज्य मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार बने।
- 1972 में वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार की भूमिका निभाई।
- 1982 से 1985 तक रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे।
- 1985 से 1987 तक योजना आयोग के प्रमुख रहे।
- 1991 में पीवी नरसिम्हा राव ने उन्हें भारत का वित्त मंत्री नियुक्त किया।
जब राजीव गांधी ने मनमोहन सिंह को ‘जोकर’ कहा, लेकिन उन्होंने संयम दिखाया
1985 से 1990 की पंचवर्षीय योजना को लेकर हुई एक मीटिंग में डॉ. मनमोहन सिंह, जो उस समय योजना आयोग के उपाध्यक्ष थे, ने एक प्रेजेंटेशन दिया। उनका ध्यान गांवों और गरीबों पर केंद्रित था। वहीं, तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी शहरी विकास पर जोर दे रहे थे, जिसमें हाईवे, मॉल और आधुनिक अस्पताल शामिल थे।
प्रेजेंटेशन के बाद राजीव गांधी भड़क गए और सबके सामने मनमोहन सिंह को डांट दिया। अगले दिन जब पत्रकारों ने योजना आयोग पर सवाल किया, तो राजीव गांधी ने इसे “जोकरों का समूह” कह दिया।
पूर्व केंद्रीय गृह सचिव सी.जी. सोमैया, जो उस समय योजना आयोग के सदस्य थे, अपनी आत्मकथा ‘द ऑनेस्ट ऑलवेज स्टैंड अलोन’ में लिखते हैं:
“मैं मनमोहन सिंह के साथ ही बैठा था। इस अपमान के बाद उन्होंने इस्तीफा देने का मन बना लिया था। मैंने उन्हें समझाया कि यह देश के हित में नहीं होगा।”अपमान का घूंट पीकर भी डॉ. मनमोहन सिंह ने संयम दिखाया और अपने पद पर बने रहे। उनका यह व्यवहार उनकी दृढ़ता और कर्तव्यनिष्ठा का परिचायक है।
मनमोहन सिंह की नीली पगड़ी का खास कारण
डॉ. मनमोहन सिंह अक्सर नीली पगड़ी में नजर आते थे, और इसके पीछे की वजह उन्होंने 11 अक्टूबर 2006 को कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में बताई थी।
उन्हें उस दिन ड्यूक ऑफ एडिनबर्ग, प्रिंस फिलिप ने डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया। अपने भाषण में प्रिंस फिलिप ने कहा, “आप उनकी पगड़ी के रंग पर ध्यान दे सकते हैं।”
इसके जवाब में मनमोहन सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा, “हल्का नीला रंग मेरे अल्मा मेटर कैम्ब्रिज का प्रतीक है। यहां बिताए दिनों की यादें मेरी जिंदगी का अहम हिस्सा हैं, और यही वजह है कि यह रंग मेरी पगड़ी पर अक्सर दिखाई देता है।”
![मनमोहन सिंह: सिख प्रधानमंत्री और आर्थिक क्रांति के सूत्रधार नहीं रहे, जानिए वो सबकुछ जो आपको पता होना चाहिए Manmohan Singh legacy](https://thumbsupbharat.com/wp-content/uploads/2024/12/manmohan-singh-with-family.webp)
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मनमोहन सिंह: भारत में आर्थिक सुधारों के शिल्पकार
डॉ. मनमोहन सिंह का नाम भारत में आर्थिक सुधारों के शिल्पकार के रूप में जाना जाता है। 1991 में जब देश की माली हालत बेहद खराब थी, तब पीवी नरसिम्हा राव सरकार ने उन्हें वित्त मंत्री नियुक्त किया। उस समय भारत का विदेशी मुद्रा भंडार सिर्फ 1 अरब डॉलर रह गया था, और चंद्रशेखर सरकार को 46.91 टन सोना बैंक ऑफ इंग्लैंड और बैंक ऑफ जापान में गिरवी रखना पड़ा था।
डॉ. मनमोहन सिंह ने 24 जुलाई 1991 को बजट पेश किया, जिसे भारत की “आर्थिक आजादी का दिन” कहा जाता है। इस ऐतिहासिक बजट में:
- लाइसेंस राज को खत्म किया गया।
- कंपनियों को कई तरह के प्रतिबंधों से मुक्त किया गया।
- आयात-निर्यात नीति में सुधार किए गए।
- विदेशी निवेश के रास्ते खोले गए।
- सॉफ्टवेयर निर्यात को बढ़ावा देने के लिए आयकर अधिनियम की धारा 80 Hhc के तहत टैक्स छूट की घोषणा की।
इन नीतियों का असर यह हुआ कि 1993 तक देश का विदेशी मुद्रा भंडार 1 अरब डॉलर से बढ़कर 10 अरब डॉलर हो गया। 1998 तक यह 290 अरब डॉलर तक पहुंच गया।
डॉ. मनमोहन सिंह द्वारा लागू किए गए ये आर्थिक सुधार आधुनिक भारत की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक माने जाते हैं और देश को एक नई आर्थिक दिशा देने में सहायक बने।
2018 में कांग्रेस से राज्यसभा पहुंचे। उनका कार्यकाल अप्रैल 2024 में समाप्त हुआ। डॉ. मनमोहन सिंह का जीवन एक प्रेरणा है, जिसने कठिन परिस्थितियों को पार कर असाधारण उपलब्धियां हासिल कीं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
डॉ. मनमोहन सिंह का सबसे बड़ा योगदान क्या है?
डॉ. मनमोहन सिंह का सबसे बड़ा योगदान 1991 के आर्थिक सुधार हैं, जिनसे भारत की अर्थव्यवस्था को नई दिशा मिली।
डॉ. सिंह कितने समय तक प्रधानमंत्री रहे?
डॉ. मनमोहन सिंह 10 वर्षों (2004-2014) तक देश के प्रधानमंत्री रहे।
डॉ. सिंह के निधन पर राहुल गांधी ने क्या कहा?
राहुल गांधी ने कहा, “मैंने अपना मार्गदर्शक और गुरु खो दिया है।”
1991 का बजट क्यों ऐतिहासिक माना जाता है?
1991 के बजट ने भारत में आर्थिक उदारीकरण, निजीकरण, और वैश्वीकरण की नींव रखी, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था को नई रफ्तार मिली।
डॉ. मनमोहन सिंह को भारत में आर्थिक सुधारों का शिल्पकार क्यों कहा जाता है?
डॉ. मनमोहन सिंह ने 1991 में वित्त मंत्री रहते हुए भारत में उदारीकरण, निजीकरण, और वैश्वीकरण की नीतियों की शुरुआत की, जिससे देश की अर्थव्यवस्था को नई दिशा मिली।
1991 में भारत की आर्थिक स्थिति कैसी थी?
1991 में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार केवल 1 अरब डॉलर रह गया था, और तेल व उर्वरक आयात के लिए देश को सोना गिरवी रखना पड़ा था।
24 जुलाई 1991 का दिन क्यों खास है?
24 जुलाई 1991 को डॉ. मनमोहन सिंह ने ऐतिहासिक बजट पेश किया, जिसने भारत में आर्थिक सुधारों की नींव रखी और इसे “आर्थिक आजादी का दिन” कहा गया।
1991 के बजट में कौन-कौन से बड़े बदलाव किए गए?
लाइसेंस राज खत्म किया गया, विदेशी निवेश के रास्ते खोले गए, आयात-निर्यात नीति बदली गई, और कंपनियों को कई प्रतिबंधों से मुक्त किया गया।
डॉ. मनमोहन सिंह की पृष्ठभूमि क्या है?
डॉ. मनमोहन सिंह का जन्म अविभाजित भारत के पंजाब में हुआ। उन्होंने ऑक्सफोर्ड और कैंब्रिज से अर्थशास्त्र की पढ़ाई की और भारत के रिजर्व बैंक गवर्नर, योजना आयोग प्रमुख, और वित्त मंत्री के रूप में सेवा दी।
डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री कब बने?
डॉ. मनमोहन सिंह 2004 में भारत के 14वें प्रधानमंत्री बने और 2014 तक दो कार्यकाल तक इस पद पर रहे।
मनमोहन सिंह अक्सर नीली पगड़ी क्यों पहनते थे?
डॉ. मनमोहन सिंह ने 2006 में बताया कि नीला रंग उनके अल्मा मेटर, कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी, का प्रतीक है और यह उनका पसंदीदा रंग भी है।
1991 के आर्थिक सुधारों का भारत पर क्या प्रभाव पड़ा?
इन सुधारों के चलते 1993 तक विदेशी मुद्रा भंडार 10 अरब डॉलर और 1998 तक 290 अरब डॉलर तक पहुंच गया। भारतीय अर्थव्यवस्था में तेजी आई और वैश्विक निवेश के रास्ते खुले।
डॉ. मनमोहन सिंह का सबसे यादगार भाषण कौन सा था?
उनका 1991 का बजट भाषण और संसद में “हजारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी…” जैसी शायरी से विपक्ष को दिए जवाब आज भी याद किए जाते हैं।
क्या डॉ. मनमोहन सिंह ने कभी खुद को आम आदमी कहा?
हां, प्रधानमंत्री आवास में रहने और सरकारी BMW उपलब्ध होने के बावजूद, डॉ. मनमोहन सिंह ने खुद को आम आदमी कहा और अपनी पुरानी मारुति 800 कार को प्राथमिकता दी।
डॉ. मनमोहन सिंह की शिक्षा कहां से हुई?
उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से स्नातक और स्नातकोत्तर की पढ़ाई की। इसके बाद कैंब्रिज और ऑक्सफोर्ड से अर्थशास्त्र में डिग्री हासिल की।
डॉ. मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्री के रूप में क्या चुनौतियां झेलीं?
उन्होंने एक संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था संभाली, विदेशी मुद्रा भंडार की कमी का सामना किया, और वैश्विक दबाव के बीच आर्थिक सुधार लागू किए।
डॉ. मनमोहन सिंह को कौन-कौन से अंतरराष्ट्रीय सम्मान मिले हैं?
उन्हें ड्यूक ऑफ एडिनबर्ग, प्रिंस फिलिप द्वारा कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया।
डॉ. मनमोहन सिंह का लोकसभा चुनाव से जुड़ा कोई किस्सा?
1999 में वे दक्षिण दिल्ली से लोकसभा चुनाव लड़े लेकिन हार गए। इसके बावजूद वे राज्यसभा के माध्यम से संसद पहुंचे।
क्या डॉ. मनमोहन सिंह का नाम अर्थशास्त्र में किसी बड़े योगदान से जुड़ा है?
हां, उनकी नीतियों ने भारत को आर्थिक संकट से उबारा और देश को उदारीकरण, निजीकरण, और वैश्वीकरण की दिशा में आगे बढ़ाया।
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