Lata Mangeshkar Life journey: लताजी क्यों प्रिंसेस ऑफ डूंगरपुर नहीं बन सकीं, जानिए मीठू के जीवन की अनटोल्ड स्टोरी Read it later

Lata Mangeshkar Life journey

 Lata Mangeshkar life: स्वर कोकिला लता मंगेशकर ने भारत में लेजेंड की तरह जिंदगी गुजारी। उनके जीवन से जुड़े कई पहलू लोगों के बीच रहस्य की तरह रहे। उनकी निजी जिंदगी, पंडित नेहरू से लता की मुलाकात, गीत ‘ऐ मेरे वतन के लोगों का’ देशभक्ति गाने का पर्याय बन जाने की कहानी, ऐसे कई पहलू हैं जिसके बारे में लोगों का आकर्षण रहा है।

लता मंगेशकर (Lata mangeshkar) नहीं रहीं. रविवार को मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में उनका निधन हो गया. लता मंगेशकर भारत में किवदंतियों की तरह रहीं। ‘स्वर कोकिला’ लता मंगेशकर। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने बड़ी आत्मीयता से ये उपाधि लता मंगेशकर को दी थी। 

लेकिन लता को जिस टाइटल की सबसे ज्यादा चाहत थी वो थी ‘प्रिंसेज ऑफ डूंगरपुर’। वही डूंगरपुर जो राजस्थान की एक रियासत थी। प्रसिद्ध क्रिकेटर और भारतीय क्रिकेट टीम के मैनेजर रहे राज सिंह डूंगरपुर (raj singh dungarpur) के साथ लता के विशेष रिश्तों की खबरें सोशल और म्यूजिक की दुनिया में बड़े ही सलीके के साथ की जाती है। 

दोनों की मुलाकात क्रिकेट के बड़े फैन लता के भाई हृदयनाथ मंगेशकर के जरिए हुई
Photo | Amar Ujala

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दोनों की मुलाकात क्रिकेट के बड़े फैन लता के भाई हृदयनाथ मंगेशकर के जरिए हुई

बीकानेर की राजकुमारी राज्यश्री, जो डूंगरपुर की बहन की बेटी हैं, अपनी आत्मकथा ‘पैलेस ऑफ क्लाउड्स- ए मेमॉयर’ (ब्लूम्सबरी इंडिया 2018) में लिखती हैं कि दोनों की मुलाकात क्रिकेट के बड़े फैन लता के भाई हृदयनाथ मंगेशकर के माध्यम से हुई थी। 

हृदयनाथ मंगेशकर और डूंगरपुर में गहरी दोस्ती हुआ करती थी, इसी दोस्ती के कारण लता और राज सिंह डूंगरपुर की मुलाकात हुई। इस रिश्ते पर न सिर्फ डूंगरपुर के शाही घराने की नजर टेढ़ी थी बल्कि डूंगरपुर खानदान से जुड़े दूसरे राज परिवार भी इस रिश्ते को वो मुकाम नहीं दे पाए, जिसका ये हकदार था।

डूंगरपुर घराने की कहानी बताएं तो राज सिंह डूंगरपुर इस रियासत के महाराजा के तीसरे पुत्र थे। उनकी तीनों बहनों की शादी शाही परिवारों में हुई थी और उम्मीद की जा रही थी कि राज सिंह भी इस परंपरा का निर्वाह करेंगे और अपनी शादी किसी शाही खानदान में ही करेंगे।

 

राज सिंह की बहनें लता को पसंद नहीं करती थी

राज्यश्री के अनुसार उनकी मां सुशीला सिंह और मौसी इस रिश्ते के एकदम खिलाफ थीं। राज्यश्री की मां सुशीला सिंह की शादी बीकानेर के अंतिम महाराजा डॉ करणी सिंह से हुई थी जो लोकसभा के निर्दलीय सांसद भी रहे थे। जबकि राज्यश्री की मौसी दांता की महारानी थीं। दांता गुजरात की एक रियासत थी। 

पहली मुलाकात में ही दिल दे बैठे थे

राज 1959 में लॉ करने मुंबई गए थे। क्रिकेट खेलने के भी शौकीन थे। 1955 से ही राजस्थान रणजी टीम के सदस्य थे। मुंबई के क्रिकेट मैदान में लता के भाई हृदयनाथ मंगेशकर से मुलाकात हुई। उनके भाई अक्सर राज को अपने साथ घर लेकर जाते थे। राज सिंह पहली मुलाकात में ही लता को दिल दे बैठे थे। धीरे-धीरे बात शुरू हुई। लता रिकॉर्डिंग में बिजी रहती थीं। बिजी शेड‌्यूल के कारण ज्यादा मिल नहीं पाती थीं। कहते हैं, राज उनके गाने सुनकर उनकी कमी को पूरा करते थे। फुरसत मिलते ही दोनों मिलते थे।

राज्यश्री अपनी जीवनी में लिखती हैं,”लता मंगेशकर को मुंबई के पुराने बीकानेर हाउस में इन्वाइट किया गया था और मुझे पूरा शक है (लेकिन पुष्टि नहीं की जा  सकती) कि लता को कह दिया गया था कि वो इन महारानियों के भाई को अकेला छोड़ दें, ताकि वे अपने लिए एक योग्य रानी की तलाश कर सकें। (पेज-293)

क्या लता और राज सिंह डूंगरपुर ने गुप्त विवाह कर लिया था?
(getty images)

क्या लता और राज सिंह डूंगरपुर ने गुप्त विवाह कर लिया था?

लता और राज सिंह डूंगरपुर के बीच यकीनन बहुत प्रेम थ। एक-दूसरे के प्रति उनकी वफा ऐसी थी कि दोनों 2009 तक एक दूसरे के प्रति समर्पित और अविवाहित रहे। आखिर 2009 में मुंबई में राज सिंह डूंगरपुर की मृत्यु के साथ इस अफसाने का सिलसिला टूटा। 

राज्यश्री इस अफवाह को खारिज करती हैं कि दोनों ने गुप्त रूप से विवाह किया था। लेकिन वो इतना जरूर लिखती हैं कि रॉयल परिवारों की रुखाई के बावजूद उनके मामा को अपने युवा भतीजे और भतीजियों का पूरा समर्थन मिलता था। 

निजी तौर पर लता को मीठू नाम से बुलाते थे राज सिंह डूंगरपुर

लंदन में रहने के दौरान राज्यश्री स्वयं लता और मंगेशकर परिवार के अन्य लोगों से मिलती रही हैं। राज्यश्री लता को बेहद विनम्र, जमीन से जुड़ीं, स्नेही और विचारशील शख्सियत के रूप में पेश करती हैं। कहा जाता है कि राज सिंह निजी पलों में लता को ‘मीठू’ कहकर बुलाते थे। इन दोनों ने कई चैरिटेबल मिशनों में एक दूसरे की मदद भी की थी। 

लता का वो लाइव शे जहां की कहानी इतिहास में त​​ब्दील हो गई 

लता का वो लाइव शे जहां की कहानी इतिहास में त​​ब्दील हो गई

लता मंगेशकर न 27 जनवरी, 1963 को नई दिल्ली के रामलीला मैदान में नेहरू की उपस्थिति में गीत गाया था। (Image credit: @Prashant4INC/Twitter)

27 जनवरी, 1963 को, दिल्ली में गणतंत्र दिवस समारोह से जुड़े कार्यक्रम में गायिका लता मंगेशकर का वो शो हुआ, जहां की कहानियां इतिहास बन गईं। कैसे  महबूब साहब ने लता का परिचय नेहरू से कराया? ऐ मेरे वतन के लोगों…सुन कैसे पंडित जी (नेहरू) रोये? 

तत्कालीन राष्ट्रपति एस. राधाकृष्णन, पीएम जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, दिलीप कुमार जैसी बड़ी शख्सियतों के बीच लता कैसा महसूस कर रही थीं? इस कार्यक्रम की शुरुआत लता मंगेशकर ने अभिनेता दिलीप कुमार की फरमाइश पर ‘अल्लाह तेरो नाम’ गीत से की। इसके बाद लता ने ‘ऐ मेरे वतन के लोगों गाया’। इसी के साथ ये वाकया इतिहास में दर्ज हो गया। 

‘चलिए पंडित नेहरू ने बुलाया है…

कहा जाता है कि इसके बाद में लताजी ने पत्रकार सुभाष के झा के साथ बातचीत में ये माना था कि “इन गीतों को गाने के बाद मुझे काफी सुकून मिला। इन दो गीतों के बाद मैं एक कप कॉफी लेकर रिलैक्स करने के लिए स्टेज के पीछे चली गई। 

मैं इस बात से अनजान थी कि इस गीत ने कितना गहरा असर डाला है।” अचानक लता ने सुना कि महबूब खान उन्हें बुला रहे हैं। वो मेरे पास आए और मेरा हाथ पकड़ कर बोले, ‘चलो पंडित जी ने बुला रहे हैं, मुझे हैरानी हुई कि वो मुझसे क्यों मिलना चाह रहे हैं? 

ये है हमारी लता हैं... इनका गाना कैसा लगा आपको

महबूब खान साहब ने कहा, ‘ये है हमारी लता, आपको कैसा लगा इनका गाना?’ इस पर पंडितजी ने कहा, ‘बहुत अच्छा…मेरी आंखों में पानी आ गया!’



ये है हमारी लता हैं… इनका गाना कैसा लगा आपको 

लता ने पत्रकार को कहा था कि ‘जब मैं वहां पहुंची तो पंडितजी यानी कि प्रधानमंत्री नेहरू, राधाकृष्णनजी, इंदिरा जी सहित सभी मेरा अभिवादन करने के लिए खड़े हो गए थे’। वहां ले जाकर महबूब खान साहब ने कहा, ‘ये है हमारी लता, आपको कैसा लगा इनका गाना?’ इस पर पंडितजी ने कहा, ‘बहुत अच्छा…मेरी आंखों में पानी आ गया!’

उधार की कलम से सिगरेट के पैकेट पर लिखा गया जरा याद करो कुर्बानी…

लता द्वारा गाए गए इस भावुक गीत के शब्द कवि प्रदीप के कलम के भावपूर्ण उद्गार थे। इस गीत में संगीतकार सी रामचंद्र की मर्मस्पर्शी धुन ने इसे और भी बेहतरीन और करुण रूपी बना दिया था। पूर्व आयकर कमिश्नर और कोलमन्सिट अजय मनकोटिया के अनुसार इस गीत की रचना से भी कई इतेफाक जुड़े हैं। कवि प्रदीप तब मुंबई माहिम बीच के किनारे टहल रहे थे। 

तभी उनके मन में कुछ पंक्तियां आई, कुछ शब्द उभरे। वो लिखना चाह रहे थे, लेकिन उनके पास न कलम थी और न ही कागज। उन्होंने पास ही टहल रहे एक शख्स से कलम मांगी। सिगरेट के पैकेट को फाड़ा और उस पर उलटकर लिखा, “कोई सिख…कोई जाट मराठा, कोई गोरखा मद्रासी…सरहद पर मरनेवाला हर वीर था भारतवासी। जो खून गिरा पर्वत पर, वो खून था हिन्दुस्तानी, जो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो कुर्बानी…।”

 

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Bennett Coleman & co. ltd

पंडित नेहरू जी के घर में मैं कोने में खड़ी थी, संकोच हो रहा था

27 जनवरी के इस प्रोग्राम के बाद में प्रधानमंत्री नेहरू ने लता मंगेशकर को अपने निवास पर दिल्ली स्थित तीन मूर्ति भवन में चाय के लिए आमंत्रित किया।  इस वाकये को याद कर लता ने कहा था, “बाकी लोग पंडितजी से बड़ी तल्लीनता से बातें कर रहे थे, मैं एक अकेले एक कोने में खड़ी थी, अपनी उपस्थिति  का एहसास कराने में मुझे झिझक महसूस हो रही थी। 

तभी अचानक मैंने पंडितजी को कहते हुए सुना कि लता कहां हैं? मैं जहां खड़ी थी वहीं रही। तभी  इंदिरा गांधी मेरे करीब आईं और उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और कहा कि मैं चाहती हूं कि आप अपने दो नन्हें फैंस से मिलें। उन्होंने मेरी भेंट छोटे-छोटे बच्चों राजीव और संजय गांधी से कराई। उन्होंने मुझे नमस्ते किया और भाग गए।”

इधर बहन की शादी थी और मैं पंडितजी के घर थी
अपने परिवार के साथ लताजी

इधर बहन की शादी थी और मैं पंडितजी के घर थी

लताजी आगे कही हैं, उस दौरान पंडित जी ने फिर से मेरे लिए पूछा। महबूब खान साहब आए और मुझे पंडितजी के पास लेकर गए। पंडितजी ने पूछा-“क्या तुम मुंबई जाकर फिर से ऐ मेरे वतन के लोगों गीत गा रही हो…” मैंने कहा नहीं, “नहीं, ये तो एक ही बार की बात थी।” वे मेरे साथ में एक तस्वीर खिंचवाना चाह रहे थे।

फिर हमने मैमोरी के ​लिए एक फोटो खिंचवाई। इसके बाद में चुपचाप वहां से चली गई। लताजी बताती हैं कि मुझे वहां से जल्दी में निकलना चाहती थी क्योंकि उसी दिन कोल्हापुर में मेरी बहन मीना का विवाह था।  अगले दिन जब मैं अपनी फैंड नलिनी के साथ मुंबई लौटी तो मुझे पता नहीं था कि ये गीत (ऐ मेरे वतन के लोगों…) धूम मचा चुका था। जब हम मुंबई पहुंचे, तो पूरे शहर और मीडिया में, इस गीत ने दिल्ली में जो छाप छोड़ी थी, कैसे पंडितजी की आंखें भर आई थी, इन्हीं की चर्चा चल रही थी। 

लताजी 1962 की जंग में हौसला अफजाई के लिए सैनिकों के बीच पहुंची थी

जब देश पर युद्ध के दौर में था तो सिर्फ ऐ मेरे वतन की गायकी होने का ही अवसर लताजी के पास नहीं था, ​बल्कि बाद में भी लता मंगेशकर ने देशभकित के जज्बे को बेहद करीबी अंदाज में जीया था। 1962 में जब भारत और चीन युद्ध के मैदान में एक दूसरे के आमने-सामने थे तो उन्होंने सुनील दत्त और नरगिस के साथ जवानों का हौसला अफजाई के लिए युद्ध के इलाकों का दौरा किया था। 

जवानों के साथ समय बिताने का विचार सुनील दत्त के दिमाग में तब आया था जब वे तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू को 1 लाख रुपये का चेक नेशनल डिफेंस फंड के लिए दान देने गए थे। तभी नेहरू ने बातचीत के दौरान कहा था कि हमारे कई सैनिक युद्ध क्षेत्र में विपरीत परस्थितियों से गुजर रहे हैं। उनके पास बाकी देश से जुड़े रहने का एकमात्र साधन रेडियो भी नसीब नहीं था। 

इसी दौरान सुनील दत्त ने जवानों के मनोबल को बढ़ाने के लिए सैनिकों के पास दौरे का प्रपोजल रखा। नेहरू खुशी-खुशी इस आइडिया से सहमत हो गए। सुनील दत्त ने लता मंगेशकर, किशोर कुमार और वहीदा रहमान जैसे साथी आर्टिस्ट्स से भी सैनिकों के बीच जाने और उनकी हौसला अफजाई करने की गुजारिश की।  

राजनीति के लिए खुद को परिपक्व नहीं मानती थीं लताजी

राजनीति के लिए खुद को परिपक्व नहीं मानती थीं लताजी

लता मंगेशकर 6 साल के लिए राज्यसभा की सदस्य रहीं। लेकिन उनका मानना ​​था कि वह संसद जैसी जगह के लिए परिपक्व नहीं हैं। बता दें कि लता मंगेशकर 22 नवंबर, 1999 से 21 नवंबर, 2005 तक राज्यसभा सदस्य के तौर पर सांसद रहीं, उन्होंने वर्ष 2000-2001 के बीच राज्यसभा की 170 बैठकों में से केवल 6 में हिस्सा लिया था। लताजी को 1999 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने राज्यसभा के लिए नामित किया गया था। 

गायिकी की दुनिया की टॉप सिग्नेचर लताजी ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा था कि “राज्यसभा में मेरे कार्यकाल को कुछ नाम दे सकते हैं, मगर सुखद नहीं। मैं संसद में शामिल होने के लिए अनिच्छुक ही थी, सच कहूं तो मैंने उन लोगों से ऐसा नहीं करने के लिए अनुरोध भी किया जिन्होंने मुझे राज्यसभा में जाने का आग्रह किया था…राजनीति के बारे में मैं कुछ नहीं जानती थी?”

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