राजस्थान के जैसलमेर (Jaisalmer) में एक ऐसा स्कूल है (Rajkumari Ratnavati School) जिसकी दुनियाभर में तारीफ की जा रही है…. और तारीफ हो भी क्यों न…. आखिर इस स्कूल का मकसद और स्कूल बिल्डिंग है ही तारीफ के लायक। स्कूल की डिजाइन से लेकर यहां पढ़ने वाली छात्राओं की यूनिफॉर्म तक सब काबिले तारीफ है। स्कूल का नाम राजकुमारी रत्नावती के नाम से है। वही जैसलमेर की राजकुमारी रत्नावती भाटी जिसने अलाउद्दीन खिलजी की सेना का बहादुरी से मुकाबला किया था।
वास्तुशिल्प के अनूठा नमूने इस स्कूल को न्यूयॉर्क की डायना केलॉग ने डिजाइन किया
इसे ज्ञान केंद्र के नाम से भी जाना जाता है। सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर ब्यूटीफुल जयपुर नाम के पेज से इसकी कई तस्वीरें शेयर की गई हैं।
ये स्कूल थार रेगिस्तान के बीच पीले बलुआ पत्थर से बना ये स्कूल वास्तुशिल्प का अनूठा नमूना है। स्कूल को न्यूयॉर्क की डायना केलॉग ने डिजाइन किया है। यह स्कूल बच्चियों के भविष्य को नई उड़ान देने के लिए उमंग भर रहा है।
जैसलमेर के कनोई गांव में स्थित इस स्कूल का निर्माण गरीबी रेखा से नीचे आने वाले परिवारों की बच्चियों को बेहतर एजुकेशन देने के लिए किया गया है। इसमें फिल्हाल 400 से अधिक बच्चियां पढ़ रही हैं।
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गर्मी के मौसम में भी इस स्कूल को किसी तरह के एयर कंडिश्नर की जरूरत नहीं पड़ती। |
स्कूल में एक महिला सहकारी संस्था भी चलाई जाती है। ताकि इन बच्चियों की माताओं को भी आर्थिक रूप से सक्षम बनाया जा सके। दिलचस्प बात यह है कि ये स्कूल स्त्रीत्व का प्रतीक होने के साथ सस्टेनेबिलिटी मॉडल भी है।
50 डिग्री की तपती गर्मी ये स्कूल रहता है ठंडा
इस स्कूल की अंडाकार संरचना वायु प्रवाह को बनाए रख कर स्कूल के भीतर एक कूलिंग पैनल का काम करती है। सोलर पॉवर खाली छत, चूने की परत वाली दीवारें और ट्रेडिशनल खिड़कियों की जालियां इस स्कूल को 50 डिग्री टेम्प्रेचर में भी ठंडा रखती हैं।
ऐसे में गर्मी के मौसम में भी इस स्कूल को किसी तरह के एयर कंडिश्नर की जरूरत नहीं पड़ती है। इसलिए छात्राएं भी मौसम की चिंता किए बगैर खुले स्कूल कैंपस में पढ़ और खेल सकतीं हैं।
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वायु प्रवाह को बनाए रख कर स्कूल के भीतर एक कूलिंग पैनल का काम करती है। |
यहां बारिश के दिनों में 3.5 लाख लीटर पानी इसी आंगन के बेसमेंट में जमा हो जाता है। एसे में निश्चित रूप से पर्यावरण संरक्षण के साथ महिला सशक्तिकरण का अनूठा मॉडल है।
बच्चियों को शिक्षा व महिलाओं को रोजगार कौशल सिखाया जाता है
यह प्रोजेक्ट अमेरिकी कलाकार माइकल ड्यूब के CITTA एनजीओ फाउंडेशन द्वारा शुरू किया गया था, जिसके तहत बच्चियों को शिक्षा दी जाती है, इसी के साथ महिलाओं को रोजगार कौशल भी सिखाया जाता है।
रेगिस्तान के बीच में स्थित यह स्कूल 22 बीघा जमीन में फैला हुआ है, जिसे सूर्याग्रह पैलेस होटल के ओनर मानवेंद्र सिंह शेखावत ने दिया है। वे खुद CITTA Foundation India से जुड़े थे।
जैसलमेर के शाही परिवार के चैतन्य राज सिंह और राजेश्वरी राज्य लक्ष्मी ने भी इस स्कूल (गर्ल्स स्कूल) को तैयार करने में योगदान दिया है। स्कूल को किंडरगार्टन से 10 वीं कक्षा तक शिक्षा प्रदान करने के लिए बनाया गया है।
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स्कूल की छात्राएं जो ड्रेस पहनती हैं उसे मशहूर डिजाइनर सब्यसाची मुखर्जी ने डिजाइन किया है। |
सब्यसाची ने डिजाइन की है यूनिफॉर्म
स्कूल की छात्राएं जो ड्रेस पहनती हैं उसे मशहूर डिजाइनर सब्यसाची मुखर्जी ने डिजाइन किया है। वहीं, इस स्कूल से जुड़ी कई खास बातें इसकी वेबसाइट पर भी जाहिर गई हैं।
जैसलमेर में ही ये स्कूल क्यों बनाया गया, इस सवाल पर बताया गया है कि राजस्थान भारत का तीसरा सबसे बड़ा राज्य है, जहां पुरुषों की साक्षरता दर 79.19% और महिलाओं की 52.66% है। यानी मुख्य उद्देश्य महिला साक्षरता दर को बढ़ाना है।
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प्रोजेक्ट अमेरिकी कलाकार माइकल ड्यूब के CITTA एनजीओ फाउंडेशन द्वारा शुरू किया गया था। |
जैसलमेर में महिलाओं की लिट्रेसी रेट 32 प्रतिशत ही
बता दें कि राजस्थान की 80 प्रतिशत आबादी जैसलमेर जैसे ग्रामीण इलाकों में रहती है। जहां महिलाओं की साक्षरता दर 32 प्रतिशत तक है और वे मुख्य रूप से घर पर रहकर घरेलू कार्य करती हैं।
इसके अलावा प्रदेश में बड़ी संख्या में बाल विवाह होना भी महिला शिक्षा दर के कम होने का कारण है। ऐसे में बहुत कम लड़कियों को पढ़ने का मौका मिल पाता है।
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रेगिस्तान के बीच में स्थित यह स्कूल 22 बीघा जमीन में फैला हुआ है। |
इसलिए चुना गया इस जैसलमेर का ये स्थान
वहीं प्रदेश में कन्या भ्रूण हत्या जैसे अपराधों के कारण लिंगानुपात में बड़ा अंतर देखने को मिला है। इन सब कारणों से विशेषकर महिलाओं को गरीबी में अपना जीवन यापन करने को मजबूर होना पड़ता है।
वहीं महिलाओं को अपने जीवन में सुधार के अवसर कम ही मिल पाते हैं। यही कारण है कि इस स्थान को लड़कियों की शिक्षा के उद्देश्य से एक स्कूल बनाने के लिए चुना गया ।
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