Shankaracharya Swami Swaroopanand Saraswati Samadhi: ज्योतिर्मठ बद्रीनाथ और शारदा पीठ द्वारका के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का 98 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्होंने रविवार दोपहर 3.30 बजे झोटेश्वर, नरसिंहपुर में परमहंसी गंगा आश्रम में अंतिम सांस ली। 9 साल की उम्र में घर छोड़ चुके स्वरूपानंद सरस्वती को 1981 में शंकराचार्य (Shankaracharya) की उपाधि से नवाजा गया था।
मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के झोटेश्वर में परमहंसी गंगा आश्रम में माइनर दिल का दौरा पड़ने के बाद दोपहर 3.50 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। गौरतलब है कि स्वरूपानंद सरस्वती को हिंदुओं का सबसे बड़ा धार्मिक नेता माना जाता था।
Shankaracharya Swami Swaroopanand Maharaj on a palanquin from Manideep Ashram to Ganga Kund site, where all the devotees would take his last look.#swaroopanandsaraswati #ShankaracharyaSwaroopanandSaraswati #Shankaracharya pic.twitter.com/NKKdEyl5ez
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शंकराचार्य (Shankaracharya) लंबे समय से बीमार चल रहे थे। उनका बेंगलुरु में इलाज चल रहा था। हाल ही में वे आश्रम लौट आए थे। शंकराचार्य के शिष्य ब्रह्म विद्यानंद ने बताया- स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को सोमवार शाम पांच बजे परमहंसी गंगा आश्रम में समाधि दी जाएगी। आजादी के लिए हुए स्वतंत्रता संग्राम में स्वामी शंकराचार्य भी जेल गए थे। वहीं उन्होंने राम मंदिर निर्माण के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी थी।
Dwarka Shankaracharya Swami Swaroopanand Saraswati passes away at the age of 99, in Madhya Pradesh’s Narsinghpur
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साईं बाबा को बताया था अमंगलकारी‚ कहा था गलत लोगों की पूजा से महाराष्ट्र में सूखा व अकाल पड़ा
शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद (Shankaracharya) ने 23 जून 2014 को आयोजित धर्म संसद में साईं बाबा पर एक विवादित बयान दिया था। उन्होंने साईं की पूजा को हिंदू विरोधी करार देते हुए कहा था कि साईं के भक्तों को भगवान राम की पूजा करने, गंगा में स्नान करने और जप करने का कोई अधिकार नहीं है। हर हर महादेव…।
इसके बाद धर्म संसद में सर्वसम्मति से साईं बाबा की पूजा का बहिष्कार करने की घोषणा की गई थी। इसके बाद उन्होंने 2016 में स्वरूपानंद ने कहा था कि महाराष्ट्र में सूखे का कारण साईं की पूजा ही है। उन्हाेंने कहा था कि जब भी गलत इंसानों की पूजा की जाती है, तो सूखा, अकाल और मृत्यु जैसी स्थितियां उत्पन्न होती हैं। उन्होंने साईं को बदकिस्मत बता दिया था।
स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने 9 साल की आयु में घर छोड़कर धर्म यात्रा शुरू कर दी थी। वे बनारस पहुंचे और यहां ब्रह्मलीन स्वामी करपात्री महाराज से वेद-वेदांग और शास्त्रों की शिक्षा ली। |
पीएम नरेंद्र मोदी पर सवाल पूछने पर पत्रकार को जड़ दिया था थप्पड़
23 जनवरी 2014 को शंकराचार्य (Shankaracharya) स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने एक पत्रकार को थप्पड़ मारा था। जबलपुर के सिविक सेंटर स्थित बगलामुखी देवी मंदिर में एक टीवी मीडिया पत्रकार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जुड़ा सवाल पूछा था। इस पर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती आगबबूला हो गए और उन्हें थप्पड़ मारने की कोशिश की। विवाद बढ़ने पर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने बयान जारी कर कहा कि उन्होंने किसी को थप्पड़ नहीं मारा। वे सभी इंसानों से प्यार करते हैं।
शनि शिंगणापुर मंदिर में महिलाओं के दर्शन के लिए प्रवेश पर बोले थे इससे प्रवेश पर कहा था इसे महिलाओं का अनिष्ट हो सकता है
जब महिलाओं को महाराष्ट्र के शनि शिंगणापुर मंदिर में प्रवेश की अनुमति दी गई थी, तब शंकराचार्य (Shankaracharya) स्वरूपानंद सरस्वती ने कहा था कि महिलाओं को शनि के दर्शन कतई नहीं करने चाहिए। शनि की पूजा करने से उन्हें नुकसान हो सकता है। उन्होंने कहा था कि शनि दर्शन से महिलाओं को कोई फायदा नहीं होने वाला। बल्कि इससे उनके साथ रेप जैसी अप्रिय घटनाएं बढ़ने की संभावना बढ़ेंगी।
नरसिंहपुर के झोतेश्वर परमहंसी गंगा आश्रम में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने शरीर त्यागा। आश्रम में उनके कमरे को ही अस्पताल में तब्दील किया हुआ था। |
केंद्र पर राम मंदिर के नाम पर लोगों को भ्रमित करने का भी लगाया था आरोप
स्वामी स्वरूपानंद ने 2019 में पश्चिम बंगाल में ‘जय श्री राम’ के नारों पर तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी की गुस्से वाली प्रतिक्रिया का बचाव करते हुए कहा था कि वे भाजपा का विरोध कर रही थीं, राम का नहीं। इस दौरान उन्होंने केंद्र सरकार पर अयोध्या में राम मंदिर के नाम पर जनता को बेवकूफ बनाने का आरोप लगा दिया था। उन्होंने कहा था कि अब हमने किसी और जगह मंदिर बनाने का फैसला किया है। इस बयान के बाद स्वामी स्वरूपानंद विवादों में आ गए थे।
नरसिंहपुर के झोतेश्वर स्थित परमहंसी गंगा आश्रम में इस दिव्य शिला पर शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने 12 वर्ष तक कठोर तपस्या की। |
तीर्थयात्रियों को केदारनाथ त्रासदी के लिए दोषी ठहराया गया था
अप्रैल 2016 में बैसाखी और अर्धकुंभ मेला स्नान के अवसर पर आयोजित प्रेस वार्ता के वक्त स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने तीर्थयात्रियों पर बयान देकर विवाद को हवा दे दी थी। उन्होंने केदारनाथ और उत्तराखंड में आपदा के कारणों के बारे में बात करते हुए कहा था कि गंगा में बांधों का निरंतर निर्माण, अलकनंदा नदी में बांध बनाकर धारी देवी के मंदिर को जलमग्न करना और तीर्थयात्रियों का पवित्र स्थान पर आना और होटलों में आनंद लेना ये सभी त्रासदी (Shankaracharya) के मुख्य कारण रहे हैं।
साधुओं को ऐसे दी जाती है समधि
भूमि-समाधि शैव, नाथ, दशनामी, अघोर और शाक्त परंपराओं के संतों और संतों को दी जाती है। भू-समाधि में उन्हें पद्मासन या सिद्धि मुद्रा में बैठकर जमीन में गाड़ दिया जाता है। अक्सर यह समाधि संतों को उनके गुरु की समाधि के पास या किसी मठ में दी जाती है। शंकराचार्य (Shankaracharya) स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को भी उनके आश्रम में भू-समाधि दी जाएगी।
शंकराचार्य का काफी वक्त समय से उम्र संबंधी बीमारी के चलते बेंगलुरु में इलाज चल रहा था। हाल ही में उन्हें आश्रम लाया गया था। |
9 साल की उम्र में तीर्थ यात्रा पर निकल गए थे
शंकराचार्य (Shankaracharya) श्री स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के दिघोरी गाँव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके माता-पिता ने बचपन में उनका नाम पोथीराम उपाध्याय रखा था। 9 साल की उम्र में उन्होंने घर छोड़ दिया और धर्म की यात्रा शुरू कर दी। इस दौरान वे काशी पहुंचे और यहां उन्होंने ब्रह्मलीन श्री स्वामी करपात्री महाराज से वेद-वेदांग, शास्त्रों का अध्ययन किया।
9 महीने और मध्य प्रदेश की जेल में 6 महीने की कैद काटी
1942 में जब भारत छोड़ो आंदोलन की घोषणा की गई तो (Shankaracharya) स्वामी स्वरूपानंद भी आंदोलन में शामिल हो गए। 19 वर्ष की आयु में वे एक क्रांतिकारी साधु के रूप में प्रसिद्ध हो गए। उन्हें वाराणसी में 9 महीने और मध्य प्रदेश की जेल में 6 महीने की कैद हुई थी। जगद्गुरु शंकराचार्य का अंतिम जन्मदिन हरितालिका तीज के दिन मनाया गया था।
सरस्वती को राम मंदिर ट्रस्ट में जगह देने से वासुदेवानंद नाराज
श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट में ज्योतिर्मठ पीठ के शंकराचार्य (Shankaracharya) के रूप में वासुदेवानंद सरस्वती को स्थान दिए जाने पर शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने भी आपत्ति जताई थी। उन्होंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने चार फैसलों में वासुदेवानंद सरस्वती को न तो शंकराचार्य (Shankaracharya) माना है और न ही संन्यासी। मैं ज्योतिर्मठ पीठ का शंकराचार्य हूं। ऐसे में प्रधानमंत्री ने ज्योतिर्मठ पीठ के शंकराचार्य के रूप में वासुदेवानंद सरस्वती को ट्रस्ट में जगह देकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना की है।
पीएम मोदी समेत कई नेताओं ने जताया दुख
शंकराचार्य (Shankaracharya) स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए पीएम नरेंद्र मोदी ने उनके अनुयायियों के प्रति संवेदना व्यक्त की। गृह मंत्री अमित शाह ने कहा- सनातन संस्कृति और धर्म के प्रचार के लिए समर्पित उनके कार्यों को हमेशा याद किया जाएगा। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ट्वीट किया- शारदापीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती सनातन धर्म के नारक और संन्यास परंपरा के सूर्य थे।
द्वारका शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी के निधन से अत्यंत दुख हुआ है। शोक के इस समय में उनके अनुयायियों के प्रति मेरी संवेदनाएं। ओम शांति!
— Narendra Modi (@narendramodi) September 11, 2022
द्वारका शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी के निधन का दुःखद समाचार प्राप्त हुआ। सनातन संस्कृति व धर्म के प्रचार-प्रसार को समर्पित उनके कार्य सदैव याद किए जाएँगे। उनके अनुयायियों के प्रति संवेदना व्यक्त करता हूँ। ईश्वर दिवंगत आत्मा को सद्गति प्रदान करें। ॐ शांति pic.twitter.com/uPnv3JEull
— Amit Shah (@AmitShah) September 11, 2022
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के निधन को संत समाज के लिए अपूरणीय क्षति बताया है। कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने कहा- शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने अपना पूरा जीवन धर्म, आध्यात्मिकता और दान के लिए समर्पित कर दिया।
Shankaracharya Swami Swaroopanand Saraswati Samadhi | Swami Swaroopanand Saraswati Samadhi Ashram Detail |