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सोनाली फोगट मर्डर केस (Sonali Phogat Murder Case) में जैसे-जैसे जांच आग बढ़ रहीं है‚ इस हत्या की परतें खुलती जा रही हैं। ताजा जानकारी के अनुसार अब गोवा पुलिस का कहना है कि आरोपी सुधीर सांगवान ने सोनाली को जो ड्रग दी थी वो मेथैमफैटामाइन थी। जांच में यह भी बात सामने आई है कि ये ड्रग दत्ताप्रसाद गाओंकर के शख्स ने सप्लाई की थी, जो अंजुना के होटल ग्रांड लिनॉय रिज़ॉर्ट का ही रूम बॉय है। सुधीर और सोनाली इसी रिज़ॉर्ट में ठहरे थे। आखिर क्या ये सिंथेटिक ड्रग्स मेथैमफैटामाइन(methamphetamine)।
बता दें कि पहले पंजाब में हेरोइन ही चिट्टा के नाम से मशहूर थी‚ लेकिन अब इस चिट्टे की डेफिनेशन का दायरा बढ़ चुका है। हेरोइन अफीम से तैयार वाली ड्रग है लेकिन अब कई सिंथेटिक ड्रग्स होने लगे हैं जो दिखने में हरोइन की तरह सफेद ही होते हैं और इसलिए इन्हें भी चिट्टा कहा जाने लगा है। ये सिंथेटिक ड्रग्स हैं- MDMA , जिसे ecstasy भी कहते हैं‚ LSD (lysergic acid diethylamide) और मेथैमफैटामाइन (methamphetamine) जो सुधीर ने सोनाली को जबरदस्ती दिया।
सुधीर-सुखविंदर ने सोनाली को जबरन ड्रग्स देने की बात कबूल की
गोवा के DGP जसपाल सिंह के मुताबिक सुधीर और सुखविंदर ने ये मान लिया है कि उन्होंने 22 अगस्त की रात सोनाली को जबररन सिंथेटिक ड्रग लिक्विड में मिक्स करके पिलाई थी। इस दौरान ड्रग की ओवरडोज के चलते सोनाली की तबीयत बिगड़ने लगी तो दोनों उन्हें वॉशरूम में लेकर पहुंचे। जिसका CCTV फुटेज भी सामने आया था। दोनों सोनाली के साथ दो घंटे तक वॉशरूम में ही रहे।
बहरहाल अब आपको बता दें कि अब चिट्टा कोई एक ड्रग का नाम नहीं है‚ बल्कि ये हेरोइन, मेथैमफैटामाइन, MDMA‚ LSD भी हो सकता है। ऐसे मे किसी को चिट्टा यानी इस ड्रग्स के साथ पकड़नें पर ड्रग्स वाइट कलर का हो तो यह लैब टेस्ट में ही पता चलेगा कि ये कौन सा सिंथेटिक ड्रग है‚ लेकिन कॉमन और लोकल भाषा में इसे चिट्टा ही कह दिया जाता है।
वहीं मीडिया न्यूज पेपर भी वैसे ही प्रकाशित कर दिया जाता है। हालांकि मौजूदा दौर की ज्यादातर मीडिया खबरों में जिस चिट्टे की बात होती है उनमें मेथैमफैटामाइन ही प्रमुख है। यहां हम आपको बताने जा रहे है कि ये ड्रग कितना जानलेवा है।
आखिर क्या है मेथैमफैटामाइन
Methamphetamine (मेथैमफैटामाइन) को मेथ (Meth) के नाम से भी पुकारा जाता है और इसके क्रिस्टल की शक्ल को Crystal Meth कहा जाता है। असल में ये इंसान के सेंट्रल नर्वस सिस्टम को उत्तेजित करने का काम करता है। असान भाषा में समझें तो ये दिमाग और रीढ़ की हड्डी के बीच के उस सबसे अहम हिस्से की एक्टिविटीज को बढा देता है‚ जिसका मुख्य कार्य शरीर के विभिन्न हिस्सों से सिग्नल लेना और कोई एक्शन लेने के लिए के लिए दिमाग को मैसेज भेजना होता है।
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इसके इनटेक के कई तरीके‚ गूदा या योनि में रखकर इस्मेाल करना भी अजीब
इस ड्रग के कई तरह से सेवन का चलन है। सीधे मुंह से निगलना, नाक से सूंघना, धुएं के जरिए, नस में इंजेक्शन लेना, मांसपेशियों में इंजेक्शन लगाना या फिर स्किन के बाहरी भाग में इसे इंजेक्ट कर लेना। इसके अलावा इसे कई लोग गूदा या योनि में रखकर भी इसे इस्तेमाल करते हैं।
1893 में इजाद किए गए इस ड्रग का असर कुछ ऐसा होता है कि इसका कम मात्रा में सेवन किया जाए तो ये आनंद की अनुभूति देता है‚ कॉन्सेन्ट्रेशन बढ़ा देता है। इंसान इससे ज्यादा अलर्ट हो जाता है। कोई थक गया हो तो उसकी एनर्जी बढ़ जाती है। इससे भूख कम लगती है जिससे कहा जाता है कि इसे वजन कम करने में भी मदद मिलती है।
लेकिन इसकी ये बातें जानकर आप ये कतई सोचने की भूल न करें कि ये तो लाभकारी है। ये जितनी फायदेमंद दिखती है इससे कहीं ज्यादा इसके नुकसान हैं। नुकसान भी ऐसा कि ये सिंथेटि ड्रग इंसानी शरीर को ऐसा बना देती है कि वो इसके बिना न जी सकता और न मर सकता है। ऐसे में इसका सेवन करने वाले काे मौत भी तड़प-तड़प कर आती है।
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कई दिनों तक सेक्स के जुनून में रहने को मजबूर कर देता है ये मेथ
इसकी जरा सी भी अधिक डोज हिल्यूसिनेशन यानि मतिभ्रम, मिर्गी के फिट्स पड़ने और दिमाग में ब्लड के रिसाव होने जैसे हालात पैदा कर देते हैं। आदमी अपने मूड पर नियंत्रण नहीं रख पाता और अजीब तरह का व्यवहार करने लगता है। वहीं ऐसी रिसर्च भी आई है कि इसके सेवन से इंसान की तीव्र यौन इच्छाएं बढ़ जाती है और सेवन करने वाला कई दिनों तक सेक्स के जुनून के आगोश में रहने को मजबूर हो जाता है और फिर भी वो संतुष्ट नहीं हो पाता।
अमेरिका में बेहद गंभीर केस में मेंटल डिस ऑर्डर के ट्रीटमेंट के तौर पर इलाज
मेथ ड्रग का इस्तेमाल बेहद कम तौर पर दवा के तौर पर किया जाता है‚ लेकिन गैरकानूनी तौर पर नशे के लिए इसका व्यापक इस्तेमाल होता है। दुनिया के किसी अन्य देशों में इसके चिकित्स्कीय उदाहरण नहीं मिलते‚ लेकिन अमेरिका में अन्य देशों में, इसके चिकित्सा उपयोग के कोई उदाहरण नहीं हैं,
लेकिन अमेरिका में, Methamphetamine (मेथैमफैटामाइन) ADHD नामक मानिसक विकार के ट्रीटमेंट के लिए लिए रिकमंड किया गया है। इस तरह के मेंटल डिसऑर्डर में मरीज को अपने आस-पास की चीजों को समझने में दिक्कतें होती है। मरीज कॉन्सट्रेट नहीं कर पाता और मरीज अपनी उम्र के अनुसार बिहेवियर नहीं कर पाता है।
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अमेरिका में ओबेसिटी के लिए दुर्लभ यूज‚ लेकिन पार्टी एंड प्ले में इसके सेवन से कई दिनों तक सेक्स में डूबे रहते हैं लोग
वहीं यूएस में इसका यूज बच्चों और बड़ों में ओबेसिटी यानी मोटापे के इलाज होता है‚ लेकिन बेहद कम मामलों में और वो सुपरविजन के साथ। वजह ये कि Methamphetamine (मेथैमफैटामाइन) के मिसयूज की संभावना ज्यादा रहती है। दरअसल अमरीका में ‘पार्टी एंड प्ले’ में इसका भर-भर के इस्तेमाल होता है।
पार्टी और खेल में वहां कई लोग डेटिंग साइट्स के माध्यम से जुड़कर इस दवा का सेवन करते हैं और फिर सेक्स करते हैं। इस मेथ (मेथैमफैटामाइन) का ऐसा असर इसका सेवन करने वाले लोगों पर होता है कि वे कई दिनों तक सेक्स में डूबे रहते हैं।
तिल- तिल कर बर्बाद होता है इंसान का शरीर
कुछ देर का मजा देने वाला ये मेथ (Methamphetamine) एक इंसान को किस तरह तिल-तिल कर बर्बाद करता है। इसकी बानगी भी जान लीजिए। मेथ के सेवन से लोगों के दांत समय से पहले बुरी तरह खराब होकर टूटने लगते हैं। इस सिचुएशन को मेथ माउथ कहा जाता है। ये उन लोगों में ज्यादा होता है जो इंजेक्शन के जरिए मेथ का सेवन करते हैं।
भूख में कमी आना‚ हाईली एक्टिव रहना‚ ज्यादा पसीना आना‚ हर दम मुह में सूखापन रहना और कभी हाई और कभी लो ब्लड प्रेशर जैसे दुष्प्रभाव इसके सेवन में आम है। वहीं इसी के साथ हर दम ड्राय स्किन‚ आंखों की रोशनी धुंधली हो जाना‚ कभी कब्ज तो कभी लूज मोशन होना जैसे दुष्प्रभाव लंबे समय तक बने रहने से बॉडी का पूरा सिस्टिम बिगाड़ देता है‚ और इंसान अन्य कई बीमारियों से घिर जाता है।
मेथ के सेवन के बाद यौन इच्छा तीव्र हो जाती है कि सेवन करने वाला ये तक नहीं सोचता कि वो कहां और किस हालत में सेक्स कर रह है
चूंकि इसका सेवन करने वाला शख्स मेथ के नशे में सेक्स के लिए इतना मजबूर हो जाता है, कि वो ये भी नहीं सोचता कि वो कहां और किस हालत में सेक्स कर रहा है। इससे यौन से जुड़ी बीमारी फैलने की आशंका भी कई गुना बढ़ जाती है।
इस तरह का नशा करने वालों में देखा गया है कि ये ग्रुप में रहते हैं और उनके बीच इनसिक्योर फिजिकल रिलेशन बनते हैं जिसे इनमें यौन संबंधी बीमारी फैलने की संभावना कहीं अधिक ज्यादा रहती है। वहीं ये लोग नशा करने के लिए एक ही सिरीजं का इस्तेमाल करते हैं जिससे हेपेटाइटिस और एड्स की संभावना रहती है।
दूसरा ये कि इसके सेवन करने वाले लोगों के दिमाग को हद से ज्यादा नुकसान होता है। ये ड्रग मन में बेचैनी‚ डिप्रेशन, सुसाइड की इच्छा करना‚ अजीब तरह की कल्पनाएं करते रहना इस ड्रग के असर से होता है। इसके नशे से न्यूरोटॉक्सिसिटी हो जाता है और पूरी बॉडी का सिस्टम बुरी तरह से गड़बड़ा जाता है। जो लोग नशे के आदी होते हैं उन्हें यह नहीं पता होता है कि ड्रग किस क्वांटिटी में उनके लिए कितनी घातक हो सकती है।
उन्हें गुणवत्ता और मात्रा का होश तक नहीं रहता और जरा सी ओवरडोज उनका गेम ओवर कर देती है। दिल की धड़कने कभी तेज कभी धीमी हो जाती है, युरीन करने में दर्द होता है, तो कई बार युरीन आता नहीं है। दिमाग में हमेशा कंफ्यूजन की स्थिति बनी रहती है इसका नशा करने वाला हमेशा घबराहट में जीता है।
इंसान की हकीकत और कल्पना में अंतर करने की क्षमता खत्म होने लगती है
सबसे बद्दतर सिचुएशन साइकोसिस की हो जाती है। इस सिचुएशन में इंसान ये अंतर नहीं कर पाता है कि वो हकीकत में जी रहा है या सपने में। वो कई अजीब कल्पनाएं करने लगता है। उसका मन उसे अजीब चीजें दिखाने लगता है। कई बार इलाज न मिलने पर 5-15% लोग पूरी तरह से ठीक नहीं हो पाते हैं और उनका दिमाग हमेशा के लिए स्थायी नुकसान पहुंच जाता है और वे ताउम्र इस नुकसान के साथ ही जीते हैं।
खतरनाक है इसकी लत
एक बारे इसकी जिसे लत लग जाए, उसके लिए इसे छोड़ पाना बेहद मुश्किल या कहें नामुमकिन हो जाता है। एक रिसर्च के अनुसार मेथ के आदी 61 लोगों को ट्रीटमेंट के लिए एक साल बाद फिर से इलाज देना पड़ा और उनमें से करीब आधे लोग अगले 10 सालों में फिर से मेथ का सेवन करने लग गए।
प्रॉब्लम ये है कि इसकी हैबिट छुड़ाने के लिए अभी तक कोई असरदार मेडिसिन भी नहीं इजाद हुई है। ऐसे में इससे निजात के लिए अभी तक कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरपी को ही यूज किया जाता है। यानीकि काउंसलिंग के जरिए नशे के आदी शख्स के मूड या व्यवहार को बदलने के प्रयास किए जाते हैं।
जो लोग मेथ का सेवन करते हैं। उन्हें धीरे-धीरे डोज़ बढ़ानी पड़ती है‚ वजह ये कि लगातार सेवन से शरीर मे इसके प्रति सहनशक्ति बढ़ती जाती है। बता दें कि दूसरी ड्रग्स के कंपेयर में ये टॉलरेंस बहुत स्पीड से पैदा होती है। ऐसे में यदि किसी को चिट्टे से दूर रखना हो तो ये बेहद मुश्किल भरा होता है। इसे यूं समझा जा सकता है कि मेथ छुड़ाने से ज्यादा आसान कोकीन छुड़ाना हो सकता है।
आखिर कैसे अस्तित्व में आया ये जानलेवा ड्रग
आपके मन में ये सवाल कौंध रहा होगा कि आखिर ये अस्तित्व में कैसे आया‚ तो बता दें कि मेथ को 1893 में जापानी के केमिस्ट नगाइ नगायोशी की ओर से विकसित किया गया था। दरअसल इसे द्वितीय विश्व युद्ध के समय जर्मनी में एक टैबलेट के तौर में बेचा गया था। जर्मन सैनिकों ने इसका इस्तेमाल परफॉर्मेंस बढ़ाने के लिए किया।
लेकिन वहीं इतिहासकारों का कहना है कि इसका सेवन करने वाले सोल्जर जिंदा लाश की तरह काम करते थे। उसका दिमाग सुन्न हो जाता था। इससे वे दो-तीन दिनों तक नशे में धुत रहते थे। कभी-कभी वे आम नागरिकों को मार डालते थे और तो और कई बार वे अपने अधिकारियों पर ही हमला कर देते थे।
बीच-बीच में इसका यूज औषधि के रूप में भी किया जाता था, लेकिन तब ये सामने आया कि इसके फायदे कम और नुकसान ज्यादा हैं‚ तो इसका इस्तेमाल बंद और सीमित कर दिया गया। लेकिन आज भी ये मेथ गैरकानूनी रूप से रेव पार्टी और क्लबों में धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जा रहा है।
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