Shiva Puran: इस सृष्टि के सबसे हाशिये पर रहने वाले प्राणी भी शिव के गणों की सेना में आश्रय पाते हैं। शिवजी के गणों में एक काले श्वान यानि कुत्ते का भी उल्लेख मिलता है, जिसकी शिवजी के चरणों में भक्ति ने एक तुच्छ प्राणी को भी निर्वाण का अधिकारी बना दिया और उसने भी शिवगणों में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर लिया। वह भगवान महादेव के भैरव स्वरूप की सेवा में तैनात है। इस काले श्वान का उल्लेख कई धार्मिक ग्रंथों में कई स्थानों पर मिलता है। भैरव वाहन के रूप में काले श्वान की पूजा की जाती है, मूर्ति स्थापित की जाती है। काले कुत्तों को कंगन -इमरती का पकवान खिलाया जाता है।
यह काला श्वान(कुत्ता) उसी धर्म का प्रतीक है, जिसने युधिष्ठिर को स्वर्ग की राह दिखाई थी। यह धर्म रूपी श्वान महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित पांचवे वेद कहे जाने वाले महाभारत के अंत में युधिष्ठिर के साथ स्वर्ग में प्रवेश करने वाला एकमात्र जीव था। क्योंकि स्वर्ग मार्ग पर युधिष्ठिर का सबसे पहले द्रौपदी से साथ छूटा, भीम, नकुल, सहदेव का साथ भी छूट गया। यहां तक कि भगवान के कमल मुख से गीता का ज्ञान सुनने वाले नर स्वरुप अर्जुन भी भूलुंठित हो साथ छोड़ गए, लेकिन काले श्वान ने धर्मराज युधिष्ठिर का साथ नहीं छोड़ा और इसी कारण युधिष्ठिर ने अपने साथ श्वान को भी स्वर्ग में प्रवेश करााया।
हिंदू धर्म में काले श्वान का क्या महत्व है?
आप जानकर चौंकेंगे कि युधिष्ठिर को स्वर्ग की सीढ़ियों तक ले जाना इस काले श्वान (कुत्ते) का एक छोटा सा काम है। बल्कि ये वो श्वान है जिसके लिए प्रलय का खतरा पैदा हो गया था। शिव की कृपा से प्रेरित होकर इस श्वान ने दक्ष प्रजापति के अभिमान को चोट पहुंचाई। उनके साथ बड़ा और खूनी टकराव हुआ। जिसमें संस्कृतियों के नष्ट होने का खतरा उत्पन्न हो गया। अनेक गहन वैचारिक परिवर्तन हुए। ये है इस काले श्वान की महिमा।
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यह सृष्टि के आरंभिक दिनों की बात है। स्वयंभू मनु के मनवंतर की घटना है। जिनकी पुत्री का विवाह दक्ष प्रजापति से हुआ था। जिससे प्रजापति को कई पुत्रियों की प्राप्ति हुई। इनमें से सबसे छोटी और सबकी प्रिय सती का विवाह स्वयं सदाशिव (Shiva Puran) से हुआ था।
दरअसल यह संस्कृतियों का मिलन था। सदाशिव मानव जगत के कल्याण के लिए यज्ञ आधारित कृषि व्यवस्था को प्रचलित करने के पक्षधर थे। परंतु इसमें व्याप्त अत्यधिक कर्मकांड और इसे समाज के विशेष वर्गों के हाथ में रखे जाने के विरोधी भी थे।
शैव परंपरा में गणों की परंपरा है। जिसे शिवगण कहा जाता है। ये गण गणतंत्र का ही एक रूप कहे गए हैं। इन गणों का वास्तविक स्वरूप शिव विवाह के समय सामने आता है। इसमें सप्तऋषियों से लेकर अघोरियों और अप्सराओं से लेकर पिशाचों तक को स्थान दिया गया है।
इसी क्रम में महादेव शिव (Shiva Puran) के शिव तत्व के प्रवर्तन के समय एक श्वान (कुत्ते) ने भगवान से ही अपनी मूक भाषा में निवेदन किया। उसने कहा कि क्या केवल मनुष्य को ही परमात्मा को पाने का अधिकार है?
जब महादेव ने श्वान को वरदान दिया
दयालु शिव (Shiva Puran) ने तुरंत श्वान पर दया की और उसे वरदान दिया, हे श्वान यदि तुम तत्वज्ञान में रुचि रखते हो तो मैं तुम्हें वाणी देता हूं तुम यज्ञ स्थल पर जाकर वेदों की पवित्र ऋचाएं सुनो। इससे तुम्हारी आत्मा शुद्ध हो होगी। उस समय दक्ष प्रजापति का यज्ञ चल रहा था। काले श्वान (कुत्ते) ने अपने लिए एक कोने का स्थान चुना और वेद मंत्र सुनने लगा।
हिंदू धर्म की मान्यता और शास्त्रों के अनुसार वास्तव में वेद परमतत्त्व परमात्मा के मुख से निकले हैं। इसकी ध्वनि ऊर्जा चक्रों के द्वार खोल देती है, यह काला श्वान अपने अंतर्ज्ञान और शिव के आदेश से उसी प्रक्रिया में था। तभी प्रजापति दक्ष ने उसे ताड़ित (पिटाई) किया और उसे यज्ञ स्थल से भागने के लिए मजबूर कर दिया।
श्वान ने मनुष्य की आवाज में दक्ष से प्रार्थना की। अपनी जिज्ञासा बताई और सदाशिव से आदेश भी मांगना बताया। लेकिन दक्ष ने काले श्वान की एक न सुनी और उसे भगा दिया और कहा कि वह स्वयं शिव से ही तत्वज्ञान क्यों नहीं ले लेता। काले श्वान को मिली ताड़ना के कुछ ही क्षणों में संपूर्ण यज्ञस्थल भूत-प्रेतों से भर गया। सभी ने सिर उठाकर देखा तो यज्ञपुरुष के रूप में स्वयं सदाशिव उपस्थित थे और यज्ञभाग का आनंद ले रहे थे।
सदाशिव (Shiva Puran) ने दक्ष को समरसता का ज्ञान दिया और कहा कि आपको ब्रह्मा ने प्रजापति बनाया है। आप केवल कुछ लोगों के प्रजापति नहीं हैं, बल्कि आपका धर्म संपूर्ण ब्रह्मांड का पालन करना है। चाहे वो श्वान हो या पिशाच। यदि वह ज्ञानपिपासु है तो आप उसे बलपूर्वक नहीं रोक सकते।
दक्ष और महादेव के मध्य कटुता
इस प्रश्न पर दक्ष और महादेव (Shiva Puran) के बीच कटुता हो गई। हालांकि, सर्वोच्च भगवान का अनादर करना दक्ष के नियंत्रण से परे था। लेकिन उनके मन में अपने अपमान की कुंठा रह गई। दक्ष एक काले श्वान लिए अपना अपमान नहीं भूल सके। इसके बाद महादेव ने इस श्वान को परम ज्ञान देकर अपने गणों में शामिल कर लिया। अपने बनाये नियमों की इस प्रकार उपेक्षा से दक्ष बहुत क्रोधित हुए।
इसके बाद एक और घटना घटी, जब दक्ष के आगमन पर ब्रह्मा और सदाशिव (Shiva Puran) को छोड़कर सभी खड़े हो गये। तब भी दक्ष ने सबके सामने अपना गुस्सा जाहिर करते हुए कहा था कि आप रिश्ते में मेरे जामाता लगते है, इसलिए मैं आपका सम्मान पाने का हकदार हूं।
यहां ऋषि-मुनियों ने हस्तक्षेप किया और सभी को भगवान शिव का वास्तविक स्वरूप बताकर विवाद शांत कराया। इसके बाद दक्ष ने एक ऐसा यज्ञ करने का निर्णय लिया, जिसमें सदाशिव महादेव को उन्होंने शामिल होने का निमंत्रण नहीं दिया। इसमें बिन बुलाए पहुंचने पर अपमानित सती ने योगाग्नि में खुद को जलाकर भस्म कर लिया। जिसके बाद शिव (Shiva Puran) की जटा से जन्मे वीरभद्र ने दंड स्वरूप दक्ष का सिर धड़ से अलग कर दिया।
लेकिन इस पूरे घटनाक्रम के मूल में यह ज्ञान है कि जो लोग खुद को शिव के चरणों में समर्पित कर देते हैं, देवादी देव महादेव (Shiva Puran) उनका साथ कभी नहीं छोड़ते।
काला श्वान इसका जीता जागता उदाहरण माना जा सकता है। आज भी कई स्थानों पर श्वान की प्रतिमाएं देखी जाती हैं। हिंदू धर्म में श्वान को भैरव का वाहन माना गया है। भैरव की पूजा के साथ श्वान की भी सेवा की जाती है। ज्योतिष शस्त्र में बताया गया है कि शनिवार, रविवार या सोमवार या तीनों दिन काले श्वान को कंगन या इमरती का भोग लगाने से ग्रहों की दशा शांत होती है।
Disclaimer: खबर में दी गई जानकारी मान्यताओं पर आधारित है। थम्सअप भारत किसी भी तरह की मान्यता की जानकारी की पुष्टि नहीं करता है। पाठकों को सलाह दी जाती है कि किसी भी धार्मिक कर्मकांड को करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से परामर्श जरूर लें।
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