Paris Olympics के बीच Mossad के बदले की खूंखार कहानी: 53 साल बाद म्यूनिख ओलिंपिक चर्चा में! ब्लैक सेप्टेंबर गिरोह के लोगों को इजराइल की खुफिया ऐजेंसी ने 20 साल में ऐसे चुन-चुन कर मारा Read it later

Munich Olympics Massacre : “हम ओलंपिक परिवार, उन लोगों को याद करते हैं जिन्हें हमने बहुत दुखद तरीके से खो दिया। हम विशेष रूप से उन लोगों को याद करना चाहते हैं जिन्होंने ओलंपिक खेलों के दौरान अपनी जान गंवाई।

एक समूह जो आज भी हमारी यादों में एक विशेष स्थान रखता है। वह समूह इजरायली खिलाड़ी और कोच हैं जिन्हें हमने 1972 के म्यूनिख ओलंपिक में खो दिया। आइए उनकी याद में खड़े होकर उन्हें श्रद्धांजलि दें।”

पेर‍िस ओलंपिक अपने चरम पर है, इस इंटरनेशनल इवेंट से  बीते टोकियो ओलंपिक की याद को भी ताजा कर दिया जब ओपनिंग सेरेमनी के अगले दिन इजरायली अखबार द टाइम्स ऑफ इजराइल ने लिखा- 53 साल बाद पहली बार हमारे खिलाड़ियों को सम्मानित किया गया था, जिन्हें ‘म्यूनिख मैसकर‘ में बेरहमी से मार दिया गया। मैसकर का मतलब नरसंहार या सामूहिक हत्या से है।

 

मोसाद के बदले की खूंखार कहानी
image | times of israel

 

Table of Contents

म्यूनिख मैसकर आखिर क्या था? और कैसे दुनिया के सबसे बड़े खेल आयोजन में इजरायल के खिलाड़ियों और कोचों की हत्या कर दी गईॽ (Munich Olympics Massacre )

यह शीर्षक 3 प्रश्न उठाता है जिन्हें जानने की आवश्यकता है। सबसे पहले म्यूनिख मैसकर आखिर क्या था? और कैसे दुनिया के सबसे बड़े खेल आयोजन में इजरायल के खिलाड़ियों और कोचों की हत्या कर दी गई।  (Munich Olympics Massacre) दूसरा, ओलंपिक ने उन्हें 49 साल तक श्रद्धांजलि क्यों नहीं दी? तीसरा, 2021 में ऐसा क्या हुआ कि ओलंपिक समिति ने श्रद्धांजलि देने का कदम उठाया।

इस लेख में हम इन तीनों सवालों के जवाबों को आपको एक-एक करके यहां बयां कर रहे हैं। लेकिन आपको यह भी बता दें कि जब भी पूरी दुनिया में अब तक मानव जाति से जुड़ी सबसे डरावनी घटना की बात आएगी तो इस कहानी को टॉप 5 में रखा जाएगा।

 

जब ओलिंपिक विलेज में सुबह चार बजे घुसे आतंकी

5 सितंबर, 1972, दिन मंगलवार का। सुबह के 4 बज रहे थे। जर्मनी के म्यूनिख में ओलंपिक विलेज में इजरायली खिलाड़ी और कर्मचारी गहरी नींद में थे। केवल कुश्ती रेफरी योसेफ गतफ्रायंद हल्की नींद में थे। उन्हें लगा कि कोई दरवाजा खुरच रहा है। उन्होंने अपनी आंखें मलते हुए देखा तो दरवाजे के एक कोने से बंदूक की नाल उनकी ओर नजर आ रही थी।

जब हिब्रू में चिल्लाना शुरू कर दिया - "चेवरे तिस तात्रू - चेवरे तिस तात्रू", जिसका अर्थ था लड़कों बचो...
[GALLO/GETTY]

 जब हिब्रू में चिल्लाना शुरू कर दिया – “चेवरे तिस तात्रू – चेवरे तिस तात्रू”, जिसका अर्थ था लड़कों बचो…

रेफरी, जो 6 फीट 3 इंच ऊंचा और 140 किलो वजनी था, उसने पूरी ता​कत से दरवाजे को दबा लिया और हिब्रू में चिल्लाना शुरू कर दिया – “चेवरे तिस तात्रू – चेवरे तिस तात्रू”, जिसका अर्थ था लड़कों बचो और भागो, लेकिन रेफरी 10 सेकंड से ज्यादा ऐसा नहीं कर सका।

क्योंकि दरवाजे के पार फिलिस्तीनी आतंकवादी संगठन ब्लैक सेप्टेंबर के 8 खूंखार आतंकवादी अपनी हद से गुजरने को तैयार थे। (Munich Olympics Massacre) उन्होंने रेफरी को धक्का दिया। उनके नेता ईसा ने जैसे ही अपार्टमेंट के अंदर कदम रखा तो इज़राइली खिलाड़ी मोशे वेनबर्ग ने उसके सिर पर फल काटने वाले चाकू से वार कर दिया। लेकिन उसी दौरान कलाश्निकोव असॉल्ट राइफल लिए पीछे खड़े एक अन्य आतंकवादी ने उसे गोली से उड़ा दिया।

 

आतंकियों के पास गन ऐसी कि लगने पर अपने साथ मांस के लोथड़े लेकर निकलती 

इस राइफल के बारे में कहा जाता है कि यह एक मिनट में 100 गोलियां दागती है और इनकी रफ्तार 1600 मील प्रति घंटे है। ब्लैक सेप्टेंबर के आतंकियों ने जब इस्राइली खिलाड़ी को भुना तो गोली एक तरफ से शरीर में घुसी और दूसरी तरफ से मांस के लोथड़े लेकर बाहर निकली। (Munich Olympics Massacre) मतलब बचने का कोई चांस नहीं था। साथी की यह हालत देखकर दूसरे इस्राइली कांप उठे। ये बातें किसी और ने नहीं बल्कि उन्हीं 8 आतंकियों में से जिंदा बचे जमाल अल-गाशी ने बीबीसी को बताई।

आतंकवादियों ने तोड़ दिया और केहर शोर, लियों अमित्जर शपीरा, आंद्रे स्पिट्जर, याकोव स्प्रिंगर, इलीजेर हाल्‍फिन, मार्क स्लाविन, गाद जोबारी, डेविड मार्क बर्गर, जीव फ्रीडमैन और योसेफ रोमाना को बंधक बना लिया, लेकिन कई खिलाड़ी बच निकले।

 

अतंकियो ने धमकी दी कि उनके 234 साथियों को रिहा करो नहीं तो…

बचे हुए खिलाड़ी नीचे आए और चिल्लाने लगे। एक घंटे के भीतर यह खबर पूरी दुनिया में फैल गई। (Munich Olympics Massacre) जब आतंकवादियों ने टीवी पर देखा कि जर्मन अधिकारी उनके अपार्टमेंट के बाहर आकर खड़े हो गए हैं, तो उन्होंने अपनी मांगों की सूची दरवाजे से बाहर फेंक दी।

 

इसमें अंग्रेजी में लिखा था-  इजरायल और जर्मनी की जेलों में बंद हमारे 234 साथियों को रिहा करें और उन्हें ले जाने के लिए तीन जहाज दें। अगर सुबह 9 बजे तक ऐसा नहीं किया तो नताजा भुगतने के लिए तैयार रहें। – ब्लैक सेप्टेंबर

 

नतीजा भुगतने का मतलब था कि वे बंधकों को एक एक कर भूनने वाले थे। एक यूरोपीय लेखक जॉर्ज जोनास ने इस पर एक किताब लिखी है- ‘वेनजिएंस- अ ट्रू स्टोरी ऑफ इजराइली काउंटर टेरेरिस्ट टीम’। (Munich Olympics Massacre) उनका कहना है कि घटना की खबर मिलते ही जर्मन चांसलर विली ब्रांट ने इजरायल के प्रधानमंत्री गोल्डा मेयर को तुरंत फोन किया, लेकिन इजरायल की पॉलिसी क्लियर थी. इस तरह के किसी भी हमले के डर से वे कभी भी उनकी मांग को स्वीकार नहीं करने वाले थे।

 

आतंकवादी गुस्से मे नाए इसलिए जर्मन सेना उन्हें लजीज व्यंजन परोसती रही 

समय बीतता जा रहा था और समझ नहीं आ रहा था कि आतंकियों को क्या जवाब दिया जाए। इसलिए जर्मन अधिकारी ढेर सारा खाना लेकर अपार्टमेंट के पास पहुंच गए।

योजना यह थी कि भोजन देते समय मौका मिला तो वे अंदर घुसकर बंधकों को छुड़ा लेंगे। जर्मनी एक के बाद एक ऐसी बचकानी प्लानिंग करते रहे।

रात के 9 बज चुके थे और इस्राइल की ओर से कोई जवाब नहीं आया था। (Munich Olympics Massacre) वहीं जर्मन सरकार आतंकवादियों को अपना जहाज देने को तैयार हो गई। आतंकियों ने कहा कि पहले हमारे लिए दो हेलिकॉप्टर भेजो,

हम ओलिंपिक विलेज से बंधकों को लेकर एयरपोर्ट की ओर जाएंगे. रात 10:30 बजे फर्सटेनफेल्डब्रक एयरपोर्ट पर दो हेलीकॉप्टर उतरे, लेकिन वहां घात लगाकर बैठे जर्मन कमांडो कुछ और प्लानिंग कर बैठे थे।

 

जर्मन कमांडो ऐसे फायरिंग कर रहे थे जैसे वे कबूतरों को निशाना बना रहे हो
image | cnn

 

 

जर्मन कमांडो ऐसे फायरिंग कर रहे थे जैसे वे कबूतरों को निशाना बना रहे हो

बुक में वन डे इन सेप्टेबर के लेखक साइमन रीव ने बीबीसी को बताया कि हवाई अड्डे पर 17 जर्मन कमांडो तैनात थे, (Munich Olympics Massacre) लेकिन जब उन्होंने फ़िलिस्तीनी आतंकवादियों को देखा, तो केवल 5 ही बचे थे। ये पांच कमांडो भी नाम के ही थे। उनके पास न तो बुलेटप्रूफ जैकेट थी और न ही बेहतर हथियार।

यानि जैसी उन्होंने योजना बनाई वैसी एक नौसिखिया टीम भी बचाव योजना नहीं बनाती है। आतंकवादी जैसे ही हेलीकॉप्टर से उतरे, जर्मन निशानेबाजों ने फायरिंग शुरू कर दी, लेकिन उनका ये सब कबूतरों को निशाना बनाने जैसा था।

 

जर्मन ऑपरेशन के सफल होने की झूठी खबर पर इजरायली पीएम ने खुशी में खोल दी शैंपेन की बोतल

उस दौरान किसी ने खबर दी कि जर्मन ऑपरेशन सफल रहा। इजराइल में पीएम गोल्डा मेयर ने सेलिब्रेट करने के लिए शैंपेन की बोतल तक खोल दी. अगली सुबह इजरायली अखबार येरूशलम पोस्ट ने लिखा- सभी बंधकों को बचा लिया गया। बंधकों के परिजन ये खबर पढ़कर खुशी से झूमने लगे।

लेकिन सच्चाई यह थी कि एयरपोर्ट पर बंदूकें गरजती रहीं। (Munich Olympics Massacre) जर्मन सैनिकों की हालत यह थी कि कभी-कभी वे आतंकवादी समझकर अपने ही सैनिकों पर गोलियां चला रहे थे।

साइमन रीव ने अपनी किताब में लिखा है कि रात में जब कई जर्मन वाहन वहां पहुंचने लगे, तो आतंकवादियों ने आंखों पर पट्टी बांधे इजरायली खिलाड़ियों पर अपनी बंदूकें तान दीं।

और वे एक-एक करके कलाश्निकोव राइफल की गोलियां चलाते चले गए। इसमें 11 इस्राइली मारे गए। वहीं पांच आतंकवादी भी इस दौरान मारे गए। इनमें से तीन जिंदा पकड़े गए।

 

मोसाद के मुखिया ने जब इजरायली पीएम को पूरा मंजर बयां किया तो उनके हाथ से फोन छूट गया

तभी खुश इजरायली पीएम गोल्डा मेयर के पास एक फोन आया। फोन इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद के हेड ज्वी जमीर का था। (Munich Olympics Massacre) उन्होंने कहा- मैडम पीएम, हमारा एक भी खिलाड़ी जिंदा नहीं बचा।

पीएम ने उन्हें डांटते हुए कहा होश में आओ… चारों तरफ खबर है कि सभी बच गए। उसने दोहराया- नहीं मैडम। कोई नहीं बचा। मैं उसी एयरपोर्ट की एक बिल्डिंग से अपनी आंखों के सामने सब कुछ होते हुए देख रहा हूं।  यह सुन गोल्डा के हाथ से फोन का रिसीवर छूट गया… तभी घटना की सबसे तेज कवरेज करने वाले जिम मैके की आवाज गूंजी, “अब हम जानते हैं कि कुल 11 बंधक थे।  कल 2 लोग अपने कमरों में मारे गए थे। 9 लोग आज रात हवाई अड्डे पर मारे गए। ….दे आर ऑल गॉन…कोई नहीं बचा सका।”

 

इजराइल के बदले की कहानी इतनी खौफनाक है कि 49 साल तक ओलिंपिक ने खिलाड़ियों को नहीं दी श्रद्धांजलि
image | taiwannews

 

इजराइल के बदले की कहानी इतनी खौफनाक है कि 49 साल तक ओलिंपिक ने खिलाड़ियों को नहीं दी श्रद्धांजलि

गोल्डा मेयर के कहने पर उनकी ख़ुफ़िया एजेंसी मोसाद ने ऑपरेशन  रैथ ऑफ गॉड, यानी भगवान का प्रकोप शुरू किया। इस ऑपरेशन में मोसाद ने फिलिस्तीन गिरोह ब्लैक सेप्टेंबर को हथियार सप्लाय करने वाले को भी ढूंढ कर मार डाला। (Munich Olympics Massacre) मोसाद के एजेंट्स ने 20 साल में दुनिया में घूम कर ढूंड ढूंड कर सभी आतंकियों और उनसे जुड़ी हर कड़ी को मार गिराया। इसके एजेंट बदला लेने के लिए 20 साल तक दुनिया के अलग-अलग देशों में घूमते रहे। उन्होंने इटली, फ्रांस, फिलिस्तीन, लेबनान और यूरोप के कई देशों में प्रवेश किया और फोन बम, बेड बम, कार बम, जहर की सुई लगाई और जब भी किसी को संदिग्ध व्यक्ति को गोली मारने का मौका मिला। तो उसे 11 या 12 को गोली मारी। अपने हरेक खिलाड़ी की ओर से एक गोली।

 

मोसाद अपने टारगेग के परिवार को बदला पूरा होने के बाद एक गुलदस्ता भेजता था। उस पर लिखा होता था- ‘यह याद दिलाने के लिए है कि हम न तो भूलते हैं और न ही माफ करते हैं।

इस दौरान मोसाद ने 8 लोगों को मार डाला, लेकिन इस बदला लेने की आग में इजरायल इतना अंधा हो गया कि उसने संदेह के आधार पर नॉर्वे में एक निर्दोष व्यक्ति की हत्या कर दी। (Munich Olympics Massacre) साल था 1973। पूरी दुनिया में इजराइल की फजीती हुई थी। कुछ समय के लिए पीएम ने अपना ऑपरेशन बंद कर दिया, लेकिन उनके एजेंट दुनिया को दिखाने के लिए अपना काम करते रहे।

यही वजह थी कि ओलंपिक ने 49 साल तक इस्राइली खिलाड़ियों को श्रद्धांजलि नहीं दी। हॉलीवुड निर्देशक स्टीवन स्पीलबर्ग ने 2005 में एक फिल्म बनाई – म्यूनिख। (Munich Olympics Massacre) कभी आपको अवसर मिले तो 2 घंटे 44 मिनट की ये फिल्म आप जरूर देखिएगा. इसमें आपको मोसाद का खूंखार चेहरा खुद नजर आ जाएगा।

 

Munich Olympics Massacre
Israel: AP

 

2021 के ओलंपिक में श्रद्धांजलि देने के क्या मायने?

ओलंपिक ने इस बारे में सीधे तौर पर कुछ नहीं कहा। (Munich Olympics Massacre) कुछ अंतरराष्ट्रीय संबंध विशेषज्ञों और खेल विशेषज्ञों से भी बात की गई लेकिन उन्होंने भी इसका कोई सीधा जवाब नहीं दिया। लेकिन कहा जाता है कि पिछले एक साल में फ़िलिस्तीन और इसराइल के बीच फिर से तनाव इतना बढ़ गया था कि दोनों ने एक-दूसरे पर हज़ारों रॉकेट और गोले दागे।  अमेरिका ने बीच में आकर दोनों को शांत कराया। इस श्रद्धांजलि को एक तरह से शांति के संदेश के रूप में देखा जा सकता है।

 

 

Entered The Olympic Village And Took The Players Hostage | Kept Dealing With The Government All Day | The Police Manipulated And Shot Everyone |  After 49 Years Why Is This Munich Olympics In Discussion | Mossad | 

 

ये भी पढ़ें – सावन की डोकरी की खत्म होती जिंदगी, बारिश के मौसम में ही निकलता है ये कीड़ा

ये भी पढ़ें – जानिए सुपरमून ‚ ब्लडमून के बारे में वो जानकारी जो शायद आप नहीं जानते होंगे

ये भी पढ़ें –  HIT – The First Case: राजकुमार राव की जबरदस्त एक्टिंग के साथ इस सस्पेंस थ्रिलर फिल्म के कई सीन सिर घुमा देंगे

ये भी पढ़ें – President Election 2022: द्रौपदी मुर्मू NDA की राष्ट्रपति उम्मीदवार- जीतने के बाद बनेंगी देश की पहली आदिवासी राष्ट्रपति

 

Like and Follow us on :

Telegram | Facebook | Instagram | Twitter | Pinterest | Linkedin

 

Was This Article Helpful?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *