बॉम्बे शेविंग कंपनी के फाउंडर ने क्‍यों कहा भारतीयों के लिए नौकरी है मजबूरी Read it later

Bombay Shaving Company के फाउंडर और सीईओ शांतनु देशपांडे (CEO Shantanu Deshpande) ने हाल ही में LinkedIn पर भारतीय वर्क कल्चर पर खुलकर बात की है। उन्होंने लिखा कि भारत में अधिकांश लोग अपनी नौकरी से संतुष्ट नहीं हैं और अगर उन्हें वित्तीय सुरक्षा मिल जाए, तो वे अगली सुबह काम पर लौटने की जरूरत महसूस नहीं करेंगे।

शांतनु के इस पोस्ट ने कार्यक्षेत्र और देश के आर्थिक ढांचे पर कई अहम सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने बताया कि चाहे वह ब्लू कॉलर वर्कर्स हों, सरकारी कर्मचारी, गिग वर्कर्स, या फिर फैक्ट्रियों के श्रमिक – सभी में काम करने का तरीका लगभग एक जैसा है।

भारत में वर्क कल्चर: क्या है असली स्थिति?

शांतनु ने लिखा कि “भारत में वर्क कल्चर” का आदर्श पिछले 250 सालों से ऐसा ही चला आ रहा है। यहां लोग सुबह से शाम तक केवल एक सैलरी के वादे पर काम करते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि कई बार लोग अपनी जिंदगी में संतुष्टि का अनुभव नहीं कर पाते क्योंकि उनका काम उनके दिलचस्पी का नहीं होता।

देश की संपत्ति पर 2000 परिवारों का नियंत्रण

शांतनु ने भारत में संपत्ति के असमान वितरण पर भी बात की। उन्होंने बताया कि देश की अधिकांश संपत्ति केवल 2000 परिवारों के नियंत्रण में है। हालांकि उन्होंने सटीक आंकड़े नहीं बताए, लेकिन कहा कि ये परिवार कुल टैक्स का 1.8% से भी कम योगदान करते हैं।

कर्मचारियों के लिए क्या बदलाव जरूरी?

शांतनु ने यह भी कहा कि भारत के कई बड़े ब्रांड्स और स्टार्टअप्स जैसे Bombay Shaving Company, जो कर्मचारी-अनुकूल माने जाते हैं, वहां भी स्थिति बहुत अलग नहीं है। उन्होंने सवाल उठाया कि क्यों भारत में नौकरी केवल “भरण-पोषण” का माध्यम बनकर रह गई है, जबकि यह व्यक्तिगत और पेशेवर विकास का जरिया होनी चाहिए।

भारतीय वर्क कल्चर में सुधार के सुझाव

शांतनु ने अप्रत्यक्ष रूप से इस ओर इशारा किया कि कंपनियों और नियोक्ताओं को वर्कप्लेस को अधिक संतोषजनक और कर्मचारियों के अनुकूल बनाने की दिशा में काम करना चाहिए। वर्कप्लेस का उद्देश्य केवल प्रॉफिट जनरेशन न होकर, कर्मचारियों के व्यक्तिगत विकास को भी बढ़ावा देना होना चाहिए।

वर्क कल्चर से जुड़ी बड़ी चुनौतियां

  1. कर्मचारियों में असंतोष।
  2. लंबे वर्किंग ऑवर्स।
  3. वित्तीय असमानता।
  4. सैलरी पर अत्यधिक निर्भरता।
  5. कार्यक्षेत्र में मानसिक स्वास्थ्य पर असर।

खबर के प्रमुख अंश

वर्क कल्चर पर विचार: शांतनु ने कहा कि देश में ब्लू कॉलर वर्कर्स से लेकर सरकारी कर्मचारी तक, सभी की कहानी एक जैसी है।

संपत्ति का असमान वितरण: केवल 2000 परिवारों के पास है देश की अधिकांश संपत्ति।

सुधार की जरूरत: वर्क कल्चर को केवल भरण-पोषण तक सीमित नहीं करना चाहिए।

स्टार्टअप्स की स्थिति: कर्मचारी-अनुकूल स्टार्टअप्स में भी बदलाव की गुंजाइश है।

“250 सालों से ऐसा ही हो रहा है”: शांतनु देशपांडे ((CEO Shantanu Deshpande))

शांतनु ने अपने पोस्ट में बताया कि अधिकांश भारतीयों के लिए काम का शुरुआती प्वाइंट जीरो पर होता है। उन्होंने कहा,

“काम करना लोगों के लिए एक मजबूरी है, क्योंकि वे अपने जीवनसाथी, बच्चों, बुजुर्ग माता-पिता और आश्रित भाई-बहनों के लिए जिम्मेदार हैं। सुबह से रात तक, और कभी-कभी कई हफ्तों तक लोग सिर्फ सैलरी के लिए काम करते हैं। और हम इसे सामान्य मान लेते हैं क्योंकि पिछले 250 वर्षों से यही होता आ रहा है।”

उन्होंने यह भी कहा कि देश का निर्माण इसी वर्क कल्चर पर आधारित है और लोग इसे स्वाभाविक मानकर स्वीकार कर लेते हैं।

“कोई और रास्ता नहीं पता”: विकल्प की कमी पर सवाल

शांतनु ने भारतीय समाज में आर्थिक असमानता को लेकर भी चिंता जाहिर की। उन्होंने बताया कि 2000 परिवारों के पास देश की राष्ट्रीय संपत्ति का 18% हिस्सा है।

उनका कहना है,

“यह आंकड़ा पागलपन जैसा है। हालांकि सटीक संख्या को लेकर मैं पूरी तरह आश्वस्त नहीं हूं, लेकिन यह तय है कि ये परिवार कुल टैक्स का 1.8% भी अदा नहीं करते।”

उन्होंने यह भी कहा कि ये परिवार और अन्य ‘इक्विटी बिल्डर्स’, जैसे कि वह खुद, ‘कड़ी मेहनत करो और ऊपर चढ़ो’ वाली सोच को बढ़ावा देते हैं। हालांकि, उनके अनुसार, यह सोच कहीं न कहीं स्वार्थपूर्ण है, क्योंकि यह विकल्प की कमी को दर्शाती है।

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भारतीय वर्क कल्चर: मजबूरी या आदत?

शांतनु ने इस बात पर जोर दिया कि भारत में काम करने की संस्कृति अक्सर लोगों की मजबूरी के इर्द-गिर्द घूमती है।

  • लोग सैलरी के वादे पर सुबह से रात तक काम करते हैं।
  • काम और निजी जीवन के बीच संतुलन कहीं खो जाता है।
  • “कड़ी मेहनत और सफलता” का विचार हर पीढ़ी के लिए एक आदर्श बन गया है।
क्या है बदलाव की जरूरत?

शांतनु के अनुसार, भारतीय वर्क कल्चर में बदलाव के लिए गहरी सोच और रणनीति की जरूरत है।

  1. समान अवसर: देश की संपत्ति और संसाधनों का समान वितरण होना चाहिए।
  2. सशक्त वर्कफोर्स: काम का उद्देश्य केवल पैसे कमाना नहीं, बल्कि आत्मसंतोष और व्यक्तिगत विकास भी होना चाहिए।
  3. आर्थिक सुधार: उच्च वर्ग के लिए टैक्स स्ट्रक्चर को सख्त बनाना होगा।
“250 साल पुरानी सोच को बदलने की जरूरत”

शांतनु के अनुसार, भारतीय समाज की आर्थिक और सांस्कृतिक संरचना में बदलाव की प्रक्रिया मुश्किल हो सकती है, लेकिन इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
उन्होंने यह भी कहा कि अगर लोगों को वित्तीय स्वतंत्रता मिल जाए, तो शायद ज्यादातर लोग काम पर लौटने की जरूरत ही महसूस नहीं करेंगे।

वर्क कल्चर पर उठते सवाल

शांतनु के विचारों ने कई सवाल खड़े किए:

  1. क्या काम केवल पैसे कमाने का माध्यम होना चाहिए?
  2. आर्थिक असमानता को कम करने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं?
  3. क्या वर्क कल्चर में सुधार के लिए नई नीतियां बनानी चाहिए?

शांतनु देशपांडे का यह पोस्ट भारतीय वर्क कल्चर और समाज में आर्थिक असमानता पर एक गहन दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हमारी काम करने की संस्कृति सही दिशा में है, और इसे बेहतर बनाने के लिए हमें क्या कदम उठाने चाहिए।

 

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