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कुत्तों में पाया जाने वाला कोरोनावायरस इंसानों में पाया गया है। मलेशिया के एक अस्पताल में भर्ती निमोनिया के 8 मरीजों में यह वायरस मिला है। वैज्ञानिक भाषा में इसे कैनाइन वायरस कहा जा रहा है। इसकी खोज अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों के एक समूह ने की है।
यह महामारी फैलाने वाले वायरस से अलग
वैज्ञानिकों का कहना है कि कैनाइन वायरस सार्स कोव-2 से अलग है। कोरोना को चार भागों में बांटा गया है- अल्फा, बीटा, गामा और डेल्टा। दुनिया भर में संक्रमण फैलाने वाला एजेंट कोरोना बीटा कोरोनावायरस समूह से संबंधित है। वहीं, कैनाइन वायरस का कनेक्शन अल्फा कोरोनावायरस ग्रुप से है। कैनाइन वायरस के बारे में वैज्ञानिकों को लगभग 50 साल से जानकारी है।
ऐसे सामने आया कैनाइन वायरस
रिपोर्ट के मुताबिक, हाल ही में वैज्ञानिक सभी तरह के कोरोनावायरस का पता लगाने के लिए एक खास तरह का टेस्ट विकसित कर रहे थे। इस परीक्षण को पैन-कोव टेस्ट नाम दिया गया है। इसी प्रयोग के दौरान 92 सैंपलों की जांच में 10 सैंपल पॉजिटिव पाए गए। इनमें से चार नमूनों में कैनाइन वायरस पाया गया। शोध के दौरान अस्पताल में कैनाइन वायरस के 4 और मामले मिले।
इसानों के लिए कैनाइन वायरस कितना खतरनाक है?
वैज्ञानिकों का कहना है कि निमोनिया के जिन 8 रोगियों को कैनाइन वायरस मिला है, उनमें से 7 अन्य प्रकार के वायरस से भी संक्रमित थे। इनमें एडेनोवायरस, इन्फ्लूएंजा और पैरेन्फ्लुएंजा वायरस शामिल हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि ये सभी वायरस निमोनिया का कारण होते हैं, इसलिए कैनाइन वायरस को बीमारी का कारण कहना गलत है।
वैज्ञानिकों को डर है कि कहीं यह मरीजों से दूसरे इंसानों में न फैले, लेकिन 2017 और 2018 में सामने आए मामलों से पता चलता है कि इससे संक्रमण फैलने और नई महामारी बनने का खतरा कम है।
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