महिलाओं द्वारा अपने अधिकारों की मांग के विरोध के बीच अफगानिस्तान में तालिबान शासन फिर से हाथ और पैर काटने की ‘अपराधियों’ को सजा देने जा रहा है। तालिबान ने कहा है कि अफगानिस्तान में फिर से फांसी और शरीर के अंगों को काटने की सजा लागू की जाएगी।
समाचार एजेंसी एसोसिएटेड प्रेस (एपी) की एक रिपोर्ट के अनुसार, तालिबान के फाउंडर्स में से एक, मुल्ला नूरउद्दीन तुराबी ने कहा, ‘सभी ने स्टेडियम में सजा देने के हमारे फैसले को क्रिटिसाइज किया, लेकिन हम उनके कानूनों और सजा के बारे में कभी कुछ नहीं जानते थे। कहा।
दुनिया को यह नहीं बताना चाहिए कि हमारा कानून कैसा होना चाहिए। हम इस्लाम का पालन करेंगे और शरीयत के अनुसार अपने कानून बनाएंगे।
उदार का वादा सिर्फ दुनिया को दिखाने के लिए
जैसे-जैसे अफगानिस्तान में तालिबान का प्रभुत्व बढ़ता गया, तालिबान ने दुनिया को आश्वस्त करने की कोशिश की कि वह अब महिलाओं के साथ उदार होगा। लेकिन 15 अगस्त को काबुल पर कब्जा करने के साथ ही उसकी खौफनाक मंसूबों का पर्दाफाश होने लगा।
अफगान महिलाएं फांसी और अंग काटने जैसी बर्बर सजा को फिर से लागू करने के फैसले से खौफ में जी रही हैं। उन्हें लगता है कि तालिबान फिर से महिलाओं के प्रति क्रूरता के तरीके अपनाएगा। आइए आपको बताते हैं कि तालिबान का 1996 के दौरान का शासन कैसे महिलाओं पर कहर बनकर टूटा था।
तालिबान का बेहद डरावना था पिछला पांच साल का शासन
तालिबान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 1996 से 2001 तक अफगानिस्तान में महिलाओं के खिलाफ अपनी साइको स्तर की कुप्रथाओं और हिंसा के लिए बदनाम था। तालिबान का तर्क है कि अपनी “कठोर” सजा के माध्यम से, वह एक ऐसा वातावरण बनाना चाहता है जिसमें महिलाएं सुरक्षित हों, उनकी गरिमा बनी रहे।
पश्तूनों की मान्यता है कि महिलाओं को घूंघट यानी बुर्का में ही रहना चाहिए। अब जब तालिबान ने अफगानिस्तान पर नियंत्रण हासिल कर लिया है, तो अफगान महिलाएं डर के साए में फिर से जी रही हैं।
महिलाओं के लिए तालिबान ने पहले शासन में कई क्रूर नियम बनाए थे
- तालिबान ने कहा कि अफगानिस्तान में महिलाओं को हमेशा सार्वजनिक स्थानों पर बुर्का पहनना चाहिए, तालिबान का मानना है कि पुरुष के लिए एक महिला का चेहरा भ्रष्टाचार की जड़ है।
- महिलाओं को आठ साल की उम्र के बाद काम करने, पढ़ने की अनुमति नहीं थी। जो महिलाएं पढ़ना चाहती थीं, उन्हें अंडरग्राउंड पढ़ाई करनी पड़ती थी। पकड़े जाने पर शिक्षक के फाँसी की आशंका हमेशा बनी रहती थी।
- पुरुष डॉक्टरों को बिना पुरुष अभिभावक के महिलाओं का इलाज करने की अनुमति नहीं थी। अगर डॉक्टर ने नियमों का उल्लंघन किया होता तो उसे कोड़े से मारकर फांसी पर लटका दिया जाता था।
- तालिबान नाबालिग लड़कियों की शादी को सही मानता था। एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट के अुनसार 80% महिलाओं की जबरन शादी कर दी गई थी।
- आठ साल की लड़कियों को किसी करीबी “रक्त संबंधी”, पति या ससुराल वालों के अलावा अन्य पुरुषों के साथ सीधे बात करने की अनुमति नहीं थी।
- महिलाओं को बिना किसी रिश्तेदार या बुर्का पहने सड़कों पर चलने की अनुमति बिल्कुल नहीं थी।
- महिलाओं को ऊँची एड़ी के जूते पहनने की अनुमति नहीं थी, ऐसा इसलिए क्योंकि पुरुष महिलाओं के कदम की आवाज न सुन सकें। तालिबान मानते हैं कि महिलाओं के चलने की आवाज से पुरुष आकर्षित हो जाते हैं।
- महिलाओं को ऊँची आवाज में बोलने की इजाजत नहीं थी। यह नियम था कि किसी अनजाने को किसी महिला की आवाज नहीं सुननी चाहिए।
- महिलाओं को दिखाई देने से रोकने के लिए भूतल और पहली मंजिल की खिड़कियों को पेंट किया गया था।
- अखबारों, किताबों, दुकानों या घर में महिलाओं की तस्वीरें लेना, फिल्माना और प्रदर्शित करना प्रतिबंधित था।
- जिस जगह का नाम स्त्री के नाम पर रखा जाता तो उसे बदल दिया जाता था। उदाहरण के लिए, “महिला मुसाफिरखाना ” का नाम बदलकर “कौम मुसाफिरखाना ” कर दिया जाता था।
- महिलाओं को अपने फ्लैट, अपार्टमेंट या घरों की बालकनी पर आने की अनुमति नहीं होती थी।
- रेडियो, टेलीविजन या किसी भी प्रकार के सार्वजनिक समारोहों में महिलाओं की भागीदारी पर प्रतिबंध था।
नेल पॉलिश लगाने पर काट डाला था अंगूठा, महिला को सार्वजनिक रूप से गोली मार दी गई
- अक्टूबर 1996 में, एक महिला का अंगूठा इसलिए काट दिया गया क्योंकि उसने नेल पॉलिश लगाई थी।
- दिसंबर 1996 में, काबुल की 225 महिलाओं को शरिया नियमों का उल्लंघन करने के लिए कोड़े मारे गए थे।
- 1999 में काबुल के गाजी स्पोर्ट्स स्टेडियम में पति की हत्या को लेकर सात बच्चों की मां को 30,000 लोगों के सामने गोली मार दी गई थी. गोली मारने से पहले उन्हें तीन साल तक कैद और प्रताड़ित किया गया था।