राजधानी दिल्ली की ओर बढ़ रहे हजारों ट्रैक्टर, प्रदर्शनकारियों ने लाल किले पर झंडा फहराया और दिल्ली की सीमा पर तारों और स्पाइकों की ओर इशारा किया। यह भारत की तस्वीर है जिसे अब दुनिया देख रही है। अमेरिकी पॉप सनसनी रिहाना ने सोशल मीडिया पर लिखा, ‘हम भारत में किसानों के प्रदर्शन के बारे में बात क्यों नहीं कर रहे हैं?’
इस पोस्ट ने भारत में किसानों के प्रदर्शन पर दुनिया भर के किसानों का ध्यान आकर्षित किया है। पहले से ही, वैश्विक मीडिया में इन प्रदर्शनों के बारे में बहुत कुछ लिखा जा रहा है। सबसे ज्यादा चर्चा इंटरनेट के बंद होने और दिल्ली की सीमाओं पर कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की है।
सीएनएन, इंटरनेट की स्वतंत्रता के मुद्दे को उठाने वाली संस्था एक्सेस नाउ का हवाला देते हुए लिखता है, ‘भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, लेकिन इंटरनेट प्रतिबंध के मामले में भी भारत को 2019 में नंबर एक स्थान दिया गया है। सीएनएन ने स्वतंत्र पत्रकार मनदीप पूनिया की गिरफ्तारी का भी उल्लेख किया है।
सरकार की शक्ति को चुनौती
टाइम पत्रिका ने भारत में किसान आंदोलन से जुड़े ट्विटर खातों पर प्रतिबंध लगाने और फिर घंटों के भीतर प्रतिबंध हटाने पर एक लेख में रिपोर्ट प्रकाशित की। टाइम ने लिखा, ‘प्रतिबंधित ट्विटर खातों में एक बात आम थी, सभी ने सत्तारूढ़ भाजपा की आलोचना की। जिसने सरकार की शक्ति को चुनौती दी।
न्यूयॉर्क टाइम्स ने 26 जनवरी की घटना का जिक्र करते हुए एक रिपोर्ट में कहा कि किसानों की रैली में हिंसा के बाद पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच तनाव
अलजज़ीरा ने लिखा है कि भारत में चल रहे किसान आंदोलन की गूंज अमेरिका में सुनाई देती है और अमेरिकी किसान इससे जुड़ाव महसूस कर रहे हैं। अमेरिका में, 70 और 80 के दशक में हजारों किसान ट्रैक्टरों के साथ राजधानी वाशिंगटन पहुंचे। दिल्ली में गणतंत्र दिवस पर किसान ट्रैक्टर मार्च अमेरिका में किसानों के प्रदर्शन की याद दिलाता है, जब ट्रैक्टर राष्ट्रीय मॉल में प्रवेश किया था। 1980 के दशक में अमेरिका में, बड़ी संख्या में किसानों को अपनी जमीनें बेचनी पड़ीं। शोधकर्ताओं का कहना है कि अगर भारत में इन कानूनों को वापस नहीं लिया गया तो यहां भी ऐसा ही हो सकता है। न्यूयॉर्क टाइम्स ने 26 जनवरी की घटना का जिक्र करते हुए एक रिपोर्ट में कहा कि किसानों की रैली में हिंसा के बाद पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच तनाव था।
‘मोदी सरकार इंटरनेट बंद करने और मीडिया पर नियंत्रण की कोशिश कर रही’
अख़बार लिखता है कि ये कृषि क़ानून प्रधानमंत्री मोदी की अपनी आदतें दर्शाते हैं, बजाय निर्णय लेने और ऊपर से सीधे सहमति देने के। उनकी सरकार किसानों की मांग के सामने झुकना नहीं चाहती है, लेकिन कई महीनों से खींचे जा रहे इस मुद्दे को हल करने में विफल रहने के लिए सरकार पर दबाव बढ़ रहा है।
भारतीय पत्रकार राणा अयूब ने वाशिंगटन पोस्ट में लिखा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारतीय किसानों की बात नहीं सुनेंगे। लेख में कहा गया कि मोदी ने यह नहीं सोचा था कि कृषि कानूनों का इतना विरोध होगा, लेकिन देश के किसानों ने फिर से विरोध की आवाज उठाई है।
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