Mothers Day 2024: मां के पास होते हैं ये 5 कानूनी अधिकार Read it later

1 गर्भपात का अधिकार

Mothers Day 2024: 1971 का मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) अधिनियम, (legal rights of mother) एक महिला के गर्भपात के अधिकार को नियंत्रित करता है। इस अधिनियम ने कुछ स्थितियों में गर्भपात को कानूनी बना दिया। (single mother benefits in india) यदि गर्भावस्था से गर्भवती महिला के मानसिक-शारीरिक स्वास्थ्य को खतरा हो या भू्रण के गंभीर मानसिक रूप से पीडि़त होने की आशंका हो या शारीरिक असमान्यताएं हों तो महिला को बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता, लेकिन यह अधिनियम भ्रूण के अधिकारों से आंखें नहीं मूंदता।

2 कस्टडी का अधिकार

भारतीय संस्कृति में आमतौर पर मांओं को प्राइमरी गार्जियन के रूप में देखा जाता है, खासकर छोटे बच्चों के लिए। हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 26 मुख्य रूप से वैवाहिक विवादों के दौरान और बाद में बच्चे की कस्टडी और फाइनेंशियल हैल्‍प से संबंधित है। बच्चे की उम्र 5 साल से कम है तब कस्टडी मां को दी जाएगी। बेटी के मामले में कस्टडी अक्‍सर मां को मिलती है। कुछ केस में लडक़ी की कस्टडी उसके पिता को भी मिल सकती है।

 

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3 बच्चें से भरण-पोषण पाने का अधिकार

बच्चे पर अपनी मां को आर्थिक रूप से समर्थन देने का कानूनी दायित्व है। 1973 की आपराधिक प्रक्रिया संहिता में धारा 125 को शामिल करने के लिए संशोधन किया गया था, जो उपेक्षित माता-पिता को भरण-पोषण का अनुरोध करने का कानूनी अधिकार देता है। माता-पिता को बच्चों से भरण-पोषण दिलवाने के लिए ही माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम 2007 बना। इसके तहत ऐसे माता-पिता जो अपनी कमाई से अपना भरण-पोषण करने में सक्षम नहीं हैं वे बच्चों से भरण पोषण की मांग कर सकते हैं।

4 भरण-पोषण का अधिकार

बच्चे के भरण-पोषण का अधिकार तब सामने आता है जब माता-पिता हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 के अनुसार कानूनी तलाक चाहते हैं। इससे यह सवाल उठता है कि विवाह से पैदा हुए बच्चों की कस्टडी किसके पास होगी और उनका भरण-पोषण कैसे किया जाएगा। दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 125 कहती है कि ऐसे मामलों में जहां मां के पास फिजिकल कस्टडी है, पिता को बच्चों के लिए एक निश्चित राशि की वित्‍तीय सहायता प्रदान करना आवश्यक है।

5 विरासत का अधिकार

हिंदू उत्‍तराधिकार कानूनों के तहत एक मां कुछ परिस्थितियों में अपने बच्चों की संपत्ति की विरासत पाने की हकदार है। 1956 का हिंदू उत्‍तराधिकार अधिनियम, वर्ग 1 के उत्‍तराधिकारियों के लिए उत्‍तराधिकार के क्रम को निर्दिष्ट करता है, जहां बेटे और बेटियों, दोनों को समान माना जाता है। यदि किसी बेटे या बेटी की बिना वसीयत छोड़े मृत्यु हो जाती है तो उनकी संपत्ति उनके प्रथम श्रेणी के उत्‍तराधिकारियों को विरासत में मिलती है।

Image credit: freepik

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