OYO रूम्स: हरियाणा महिला आयोग की चेयरपर्सन (haryana women’s commission chairperson) रेणु भाटिया ने भाारतकी खुले विचारों की लड़कियों को लेकर विवादित बयान दे डाला है। दरअसल महिलाओं के साथ शारीरिक शोषण के बढ़ते मामलों पर रेणु भाटिया ने इसके लिए लड़कियों को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि OYO रूम्स में क्यों जाती हैं? (Renu Bhatia on OYO Rooms ) जाहिर है लड़कियां हनुमान जी की आरती करने तो नहीं जाती होंगी… ऐसी जगहों पर जाने से पहले ध्यान रखें कि वहां आपके साथ कुछ गलत हो सकता है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, कैथल के आरकेएसडी कॉलेज में कानूनी और साइबर अपराध जागरूकता कार्यक्रम में हिस्सा लेने आई हरियाणा महिला आयोग की अध्यक्ष रेणु भाटिया ने इस मामले को लेकर बेबाकी से अपनी बात रखी।
इस दौरान रेणु भाटिया का कहना है कि लिव इन रिलेशनशिप (ive-in relationship) एक्ट में बदलाव होना ही चाहिए, क्योंकि लिव इन रिलेशनशिप एक्ट में सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई गाइडलाइन के कारण उन्हें महिलाओं से जुड़े मामलों को सुलझाने में काफी दिक्कतोंं का सामना करना पड़ता है। भाटिया ने कहा कि इस कानून से अपराध के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि अब तक हमारे संज्ञान में आए लड़कियों के ज्यादातर मामले लिव-इन-रिलेशनशिप से जुड़े हुए हैं। हम इन मामलों में दोष नहीं देते बल्कि उन्हें सुलझाने की कोशिश करते हैं। उन्होंने कहा कि लड़कियों को ऐसे मामलों में समझना चाहिए। क्योंकि अगर वह ओयो में जाती हैं तो वह हनुमान की आरती करने नहीं जाएंगी।
लिव इन रिलेशनशिप को लेकर क्या कहता है हमारा कानून?
बिना शादी किए लंबे समय तक एक साथ घर में रहना लिव-इन रिलेशनशिप कहलाता है। लिव-इन रिलेशनशिप की वैसे तो किसी तरह की कोई कानूनी परिभाषा कहीं भी अलग से नहीं परिभाषित नहीं की गई है। सरल भाषा में इसे दो वयस्क (Who is eligible for a live-in relationship?) अपनी मर्जी से शादी किए बिना एक ही छत के नीचे एक साथ रहना कह सकते हैं, फिर चाहे उनके बच्चे ही क्यों न हो जाएं, बहरहाल कानून तो बन गया लेकिन भारतीय समाज आज भी इस तरह के रिलेशन को समाज से अलग-थलग ही मानता है।
कई जोड़े लिव-इन रिलेशनशिप में रहते हैं ताकि वे तय कर सकें कि वे शादी करने के लिए पर्याप्त रूप से अनुकूल हैं या नहीं। कुछ इसलिए रहते हैं क्योंकि उन्हें ट्रे्डिशनल मैरिज सिस्टम में किसी तरह की दिचस्पी नहीं रह गई है।
LiveLaw की एक रिपोर्ट के अनुसार करीब चार दशक पहले 1978 में सुप्रीम कोर्ट ने बद्री प्रसाद बनाम कंसोलिडेशन निदेशक के मामले में पहली बार लिव-इन रिलेशनशिप को मान्यता दी थी। उस दौरान यह माना गया कि विवाह योग्य आयु के लोगों के बीच लिव-इन यानि शादी के बिना पति पत्नी जैसे संबंध किसी भी भारतीय कानून का उल्लंघन नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार यदि कोई कपल या बैगर साथी वाला जोड़ा यदि लंबे समय से एक ही घर में साथ रह रहा है तो उस रिश्ते को शादी की तरह ही मान लिया जाएगा। इस तरह कोर्ट ने करीब 50 साल के लिव इन रिलेशनशिप को वैध करार दे दिया थाा।
न्यायपालिका से जुड़ी खबरें बताने वाली संस्था लाइव लॉ के अनुसार लिव-इन रिलेशनशिप का पूरा सार कानूनी तौर पर संविधान के अनुच्छेद 21 में है। इस अनुच्छेद के तहत अपनी पसंद से शादी करने या किसी के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहने की आजादी और अधिकार को अनुच्छेद 21 से दूर नहीं किया जा सकता है।
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