India Alliance : पटना में सीपीआई की रैली में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कांग्रेस को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस को इंडिया गठबंधन (India Alliance) की चिंता नहीं है। वह 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव में व्यस्त हैं. उनकी वजह से इंडिया अलायंस का कामकाज प्रभावित हुआ है। अब हम चुनाव के बाद ही बैठेंगे और आगे की बातें तय करेंगे।’
नाराजगी की अटकलें फिर शुरू
दरअसल, बीजेपी से नाता तोड़ने के बाद नीतीश कुमार विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश में लग गए थे. उन्होंने अलग-अलग राज्यों में जाकर विपक्षी दलों के नेताओं से मुलाकात की। 2024 के लोकसभा चुनाव में नीतीश बीजेपी के खिलाफ विपक्षी दलों को एक साथ लाने में भी सफल रहे। इसके बाद जून में नीतीश ने पटना में विपक्षी दलों की बैठक बुलाई थी। इस बैठक में कांग्रेस, टीएमसी, शिवसेना, आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी, डीएमके, लेफ्ट समेत 15 पार्टियों के नेता शामिल हुए।
गुरुवार को मिलर स्कूल में हो रही इस रैली में मुख्यमंत्री ने आगे कहा कि सीपीआई से हमारा पुराना रिश्ता है. कम्युनिस्ट पार्टी दो हिस्सों में बंट गई है। एक बनने के बारे में जरूर सोचना चाहिए।
नीतीश ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि आज देश में जो सरकार है, उसे देश की आजादी से कोई लेना-देना नहीं है। भाजपा हिंदू-मुसलमानों के बीच अशांति पैदा करना चाहती है। हम 2007 से नियंत्रण कर रहे हैं।
बिहार में हम 95 फीसदी एकजुट हैं। बिहार में हो रहे काम कहां प्रकाशित हो रहे हैं? उन्होंने कहा कि भले ही हमने इतना सारा जीर्णोद्धार किया है, लेकिन अभी भी बहुत कम प्रकाशित हुआ है।
5 साल बाद CPI की बड़ी रैली हो रही
यह रैली पटना के गांधी मैदान में होनी थी, लेकिन नीतीश कुमार के नियुक्ति पत्र वितरण कार्यक्रम के कारण रैली स्थल बदलकर मिलर स्कूल कर दिया गया। आपको बता दें कि सीपीआई पांच साल बाद पटना में बड़ी रैली कर रही है. इससे पहले पार्टी ने 25 अक्टूबर 2018 को गांधी मैदान में रैली की थी। उस वक्त कांग्रेस के कई बड़े नेता भी मंच पर थे। वहीं विपक्षी एकता की नींव पड़ी. हालांकि, उस दौरान सीएम नीतीश एनडीए का हिस्सा थे।
1996 के बाद कोई भी लोकसभा चुनाव नहीं जीत सका है
बिहार में सीपीईआई की राजनीतिक ताकत पर नजर डालें तो पार्टी के पास एक भी सांसद नहीं है। हालांकि, दो विधायक हैं, बखरी से सूर्यकांत पासवान और तेघड़ा से रामजतन सिंह 1996 में सीपीआई ने बिहार में 4 सीटें जीती थीं। उस साल लोकसभा चुनाव में मधुबनी से चतुरानन मिश्र, बेगुसराय से शत्रुघ्न प्रसाद सिंह, बक्सर से तेज नारायण सिंह यादव और जहानाबाद से रामाश्रय सिंह यादव ने जीत हासिल की थी. तब से आज तक सीपीआई का कोई भी नेता बिहार में नहीं जीता है।
2019 में जब सीपीआई ने कन्हैया कुमार को बेगुसराय से लोकसभा उम्मीदवार बनाया तो पार्टी सुर्खियों में आ गई. हालांकि, बीजेपी के गिरिराज सिंह ने उन्हें हरा दिया और भारी बहुमत से जीत हासिल की।
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ज्यादातर लोगों का मानना है कि कन्हैया कुमार की हार का कारण यह था कि राजद ने वहां से तनवीर हसन को मैदान में उतारा था। इससे बीजेपी विरोधी वोट बिखर गये। कन्हैया कुमार ने सीपीआई छोड़ कांग्रेस नेता राहुल गांधी का दामन थाम लिया है। भारत जोड़ो यात्रा में उन्हें राहुल गांधी के साथ देखा गया था। कांग्रेस ने उन्हें एनएसयूआई का प्रभारी बनाया है।
2019 में ही प्रभाकर कुमार ने सीपीआई के टिकट पर पूर्वी चंपारण से चुनाव लड़ा था। वे भी हार गए. इससे पहले 2014 में बांका से संजय कुमार यादव और बेगुसराय से राजेंद्र प्रसाद सिंह सीपीआई से चुनाव लड़े थे। वह भी नहीं जीत सके।
कमजोर पड़ सकता है गठबंधन
पटना, बेंगलुरू और मुंबई में हुई बैठकों के बाद इंडिया गठबंधन (India Alliance) का गठन हुआ था हालाकि, सीटों का बंटवारा कैसे होगा , इसका संयोजक कौन होगा, बीजेपी से मुकाबले के लिए गठबंधन की रणनीति क्या होगी…यह अब तक तय नहीं हुआ है। हाल ही में जब कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से सीट बंटवारे के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा था कि 5 राज्यों में चुनाव के बाद इस पर मंथन करेंगे, लेकिन अभी से ही इसके सदस्य गठबंधन की अन्य पार्टियों के खिलाफ बयानबाजी कर रहे हैं। ऐस में राजनीतिक विशेषज्ञोंं का मानना है कि आने वाले दिनों यह गठबंधन कमजारे पड़ सकता है।
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