राष्ट्रीय युवा दिवस: जानिए स्वामी विवेकानंद ने जिस अंदाज में हिंदू धर्म का परिचय दुनिया से कराया उससे कैसे विश्व में प्रसिद्ध हो गए Read it later

राष्ट्रीय युवा दिवस: जानिए स्वामी विवेकानंद
स्वामी विवेकानंद अमेरिकी संसद में। (source wikipedia)

महान संत और दार्शनिक स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekanand) का जन्म 12 जनवरी 1863 को हुआ था। (National Youth Day) स्वामी विवेकानंद की जयंती के उपलक्ष्य में देश हर साल 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाता है। विवेकानंद संत रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे।

25 वर्ष की आयु में उन्होंने सांसारिक मोह त्याग कर सन्यास ले लिया था। स्वामी विवेकानंद का असली नाम नरेंद्रनाथ दत्त था।   उसके बाद नरेंद्र नाथ का नाम विवेकानंद रखा गया। विवेकानंद की मां एक धार्मिक महिला थीं, जिनका विवेकानंद पर गहरा प्रभाव था। 

उनका हिंदू धर्म और अध्यात्म से लगाव इसी का प्रतीक है। वह वेदांत के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। छोटी उम्र से ही उन्हें अध्यात्म में रुचि हो गई थी। कम उम्र में ही ईश्वर की खोज में निकले रामकृष्ण परमहंस से जब विवेकानंद मिले तो उन्हें ईश्वर का ज्ञान हो गया। विवेकानंद एक प्रसिद्ध और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु बन गए।

वे वेदांत और योग पर पश्चिमी दुनिया को भारतीय दर्शन से परिचित कराने में एक प्रमुख व्यक्ति थे। उन्हें 19वीं शताब्दी के अंत में हिंदू धर्म को दुनिया के प्रमुख धर्मों में से एक के रूप में रखने का श्रेय दिया जाता है। उन्होंने अपने गुरु की याद में रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन की स्थापना की।

शिकागो में दिया भाषण हो गया प्रसिद्ध
(source Wikipedia)

शिकागो में दिया भाषण हो गया प्रसिद्ध

विवेकानंद को 1893 में अमेरिका के शिकागो में आयोजित विश्व धर्मों की संसद में दिए उनके भाषण के कारण उन्हें सबसे ज्यादा याद किया जाता है। दुनियाभर के धार्मिक नेताओं की मौजूदगी में जब विवेकानंद ने, ”अमेरिकी बहनों और भाइयों” के साथ जो उनका संबोधन शुरू किया तो आर्ट इंस्टीट्यूट ऑफ शिकागो के सभागार में कई मिनट तक तालियां गूंजती रहीं। इस धर्म संसद में उन्होंने जिस अंदाज और विस्तार से हिंदू धर्म का परिचय दुनिया से कराया, उससे वे पूरे विश्व में प्रसिद्ध हो गए।

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रामकृष्ण परमहंस थे विवेकानंद के गुरु

रामकृष्ण परमहंस थे विवेकानंद के गुरु
(source wikipedia)


स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता (अब कोलकाता) में हुआ था। स्वामी विवेकानंद का बचपन का नाम नरेंद्र नाथ दत्त था। बचपन से ही उनका झुकाव आध्यात्म की ओर था। 1881 में विवेकानंद की मुलाकात रामकृष्ण परमहंस से हुई और वही उनके गुरु बन गए। अपने गुरु रामकृष्ण से प्रभावित होकर उन्होंने 25 साल की उम्र में संन्यास ले लिया। संन्यास लेने के बाद उनका नाम स्वामी विवेकानंद पड़ा। 1886 में रामकृष्ण परमहंस का निधन हो गया था।

स्वामी विवेकानंद अक्सर लोगों से एक सवाल किया करते थे कि क्या आपने भगवान को देखा है? इसका सही जवाब किसी के पास नहीं मिला। एक बार उन्हें रामकृष्ण परमहंस से भी यही सवाल किया था, जिस पर रामकृष्ण परमहंस जी ने जवाब दिया था, हां मुझे भगवान उतने ही स्पष्ट दिख रहे हैं, जितना की तुम दिख रहे हो, लेकिन मैं उन्हें तुमसे ज्यादा गहराई से महसूस कर पा रहा हूं।

चित्र पर थूकने के उदाहरण से बताई भगवान के प्रतीक की महत्ता


चित्र पर थूकने के उदाहरण से बताई भगवान के प्रतीक की महत्ता


अलवर के दीवान राजा मंगल सिंह ने 1891 में विवेकानंद को उनसे मिलने के लिए आमंत्रित किया। मंगल सिंह ने विवेकानंद से कहा कि “स्वामीजी, ये सभी लोग मूर्तियों की पूजा करते हैं। 

मैं मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं रखता। मेरा क्या होगा?” पहले तो स्वामीजी ने कहा कि “सभी को उनका विश्वास मुबारक…” फिर कुछ सोचकर स्वामीजी ने राजा की तस्वीर लाने को कहा। जब राजा की तेल पेंटिंग दीवार से नीचे लाई गई, तो स्वामीजी ने दीवान से तस्वीर पर थूकने के लिए कहा। 

दीवान अजीब निगाहों से उसकी ओर देखने लगा। तब स्वामी जी ने कहा कि यह तो बस एक कागज का टुकड़ा है, फिर भी आप इसमें झिझक महसूस कर रहे हैं क्योंकि आप सभी जानते हैं कि यह आपके राजा का प्रतीक है? स्वामी जी ने राजा से कहा, “आप जानते हो कि यह केवल एक तस्वीर है, फिर भी यदि आपकी इस तस्वीर पर थूका जाएगा तो आप अपमानित महसूस करेंगे। 

यह उन सभी पर लागू होता है जो लकड़ी, मिट्टी और पत्थर से बनी मूर्ति की पूजा करते हैं। वे इन धातुओं की पूजा नहीं करते हैं बल्कि उन्हें भगवान का प्रतीक मानकर पूजते हैं।

स्वामी विवेकानंद ने 1897 में कोलकाता में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी। इसके एक साल बाद उन्होंने गंगा नदी के किनारे बेलूर में रामकृष्ण मठ की स्थापना की।


04 जुलाई 1902 को महज 39 वर्ष की अल्पायु में विवेकानंद का बेलूर मठ में निधन हो गया था।


स्वामी विवेकानंद की जयंती पर नेशनल यूथ डे क्यों मनाया जाता है?

स्वामी विवेकानंद को सर्वगुण संपन्न कहा जाता है। वह धर्म, दर्शन, इतिहास, कला, सामाजिक विज्ञान, साहित्य के ज्ञाता थे। शिक्षा में अच्छे होने के साथ ही वह भारतीय शास्त्रीय संगीत का भी ज्ञान रखते थे। इसके अलावा विवेकानंद जी एक एक अच्छे खिलाड़ी भी थे। 

वह युवाओं के लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं हैं। उन्होंने कई मौकों पर अपने अनमोल विचारों और प्रेरणादायक वचनों से युवाओं को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। इसीलिए स्वामी विवेकानंद जी जयंती को राष्ट्रीय युवा दिवस के तौर पर मनाया जाता है।


स्वामी विवेकानंद की जयंती पर नेशनल यूथ डे क्यों मनाया जाता है?



राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है विवेकानंद का जन्मदिन

1984 में भारत सरकार ने स्वामी विवेकानंद के जन्मदिन (12 जनवरी) को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाने का ऐलान किया था और 1985 से हर वर्ष विवेकानंद की जयंती को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।

विवेकानंद एक सच्चे कर्मयोगी थे और उन्हें इस देश के युवाओं पर पूरा भरोसा था। उनका दृढ़ विश्वास था कि युवा अपनी कड़ी मेहनत, समर्पण और आध्यात्मिक शक्ति के माध्यम से भारत के भाग्य को बदल सकते हैं।

युवाओं के लिए उनका संदेश था, “मैं चाहता हूं कि लोहे की मांसपेशियां और स्टील की नसें हों, जिसके अंदर वैसा ही दिमाग रहता है जिससे वज्र बनता है।” इस तरह के संदेशों के माध्यम से उन्होंने युवाओं में बुनियादी मूल्यों को स्थापित करने की कोशिश की।

 स्वामी विवेकानंद के अनमोल विचार (Swami Vivekananda Quotes)

  • जितना बड़ा संघर्ष होगा, जीत उतनी ही शानदार होगी।


  • पवित्रता, धैर्य और उद्यम- ये तीनों गुण मैं एक साथ चाहता हूं।


  • जब तक जीना, तब तक सीखना, अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है।


  • हम वो हैं जो हमें हमारी सोच ने बनाया है, इसलिए ध्यान रखें कि आप क्या सोचते हैं।


  • यह कभी मत कहों कि ‘मैं नहीं कर सकता’, क्योंकि आप अनंत हैं।


  • जब तक तुम खुद पर भरोसा नहीं कर सकते, तब तक खुदा या भगवान पर भी भरोसा नहीं कर सकते।

  • खुद को या दूसरों को कमजोर समझना दुनिया का एकमात्र पाप है। कभी ये मत समझना कि किसी भी आत्मा के लिए कुछ भी असंभव है।

  • अगर हम ईश्वर को हर इंसान या खुद में नहीं देख सकते हैं तो हम उसे ढूंढने कहां जा सकते हैं?

  • जितना हम दूसरों की मदद करते हैं, उतना ही हमारा दिल निर्मल होता है और ऐसे ही लोगों में ईश्वर होता है।

  • दुनिया एक बहुत बड़ी व्यायामशाला है, जहां हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं।


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Swami Vivekananda Quotes

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