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रक्षाबंधन जन्माष्टमी (Janmashtami date and time) पर्व को लेकर भी ज्योतिषियों में असमंजस की स्थिति बनी हुई है। पंचांग के अनुसार, भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 18 अगस्त की रात 09:21 से आरंभ होकर 19 अगस्त की रात 10.59 तक रहेगी। कुछ ज्योतिष विशेषज्ञों का मानना है कि भगवान श्रीकृष्ण अष्टमी तिथि की रात्रि 12 बजे जन्मे थे ऐसे में जन्माष्टमी का योग 18 अगस्त को बन रहा है।
वहीं कुछ ज्योतिषियों के दूसरे धड़े का मानना है कि 19 अगस्त के दिन पूरे दिवस ही अष्टमी तिथि का योग रहगा और इसी तिथि में सूर्य देवता भी उदय होगा, ऐसे में जन्माष्टमी पर्व 19 अगस्त को मनाना ही श्रेष्ठ रहेगा। बता दें कि कुछ स्थानों पर जन्माष्टमी 18 अगस्त को ही मानाई जाने वाली है। हम आपको यहा बता रहे हैं जन्माष्टमी के शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, और अन्य विशेष योग के बारे में।
दोनों दिन नहीं रोहिणी नक्षत्र नहीं (Janmashtami 2023 Rohini Time And Date)
हिंदू पौराणिक मान्यता के अनुसार जिस पहर में भगवान श्रीकृष्ण यानी लड्डू गोपालजी का जन्म हुआ था, उस समय रोहिणी नक्षत्र का योग था। ऐसे में जन्माष्टमी पर्व मनाते समय रोहिणी नक्षत्र को विशेष ध्यान में रखा जाता है, लेकिन ज्योतिषियों के अनुसार इस बार 18 और 19 दोनों ही दिवस को रोहिणी नक्षत्र का संयोग नहीं बन रहा है।
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ऐसा बहुत कम होता है कि जब जन्माष्टमी के सुअवसर पर रोहिणी नक्षत्र का संयोग न बनता हो। पंचांग पर ध्यान दें तो 19 अगस्त के दिन कृत्तिका नक्षत्र रात करीब 01.53 बजे पर होगा। इसके बाद ही रोहिणी नक्षत्र प्रारंभ होगा। यानी इस साल जन्माष्टमी पर रोहिणी नक्षत्र का संयोग नहीं बन रहा है।
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देश के मुख्य कृष्ण मंदिरों में 19 अगस्त को ही मनाया जाएगा जन्माष्टमी उत्सव (Vrindavan, Mathura Janmashtami Time and Date)
मथुरा के श्रीकृष्ण मंदिर की प्रबंधन समिति के अनुसार 19 अगस्त की रात को ही श्रीकृष्ण जन्माेत्सव मनाया जाएगा। इसी तरह द्वारिकाधीश मंदिर और बांके बिहारी मंदिर में भी श्रीकृष्ण जन्मोत्सव 19 अगस्त के दिन ही मनाने की बात कही गई है। वहीं बांके बिहारी मंदिर में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर आयोजित होने वाली मंगला आरती 19-20 अगस्त की रात 2 बजे आयोजित की जाएगी।
जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण जन्मोत्सव का शुभ योग और मुहूर्त (Janmashtami 2023 Time And Date)
उज्जैन के ज्योतिाचार्य पं. प्रवीण द्विवेदी के मुताबिक 19 अगस्त को कृत्तिका नक्षत्र होने के कारण छत्र नाम का शुभम योग दिन भर रहेगा। इसी तरह ध्रुव नामक अन्य शुभ योग भी इस दिवस ही रहेगा। ऐसे में ये तिथि अत्यंत शुभ हो गई है। 19 अगस्त, शुक्रवार को दाेपहर में पूजन के लिए 12 बजकर 05 मिनट से 12 बजकर 56 मिनट तक का मुहूर्त है। वहीं रात्रि के पूजन के लिए रात 12 बजकर 20 मिनट से 01 बजकर 05 मिनट तक का समय श्रेष्ठ रहेगा।
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इस विधि से आप कर सकते हैं जन्माष्टमी व्रत व पूजा (Janmashtami 2023 Puja Vidhi)
- जन्माष्टमी के दिन सवेरे जल्दी उठकर स्नान आदि के पश्चात व्रत-पूजा का संकल्प लें। इसके बाद माता देवकी और भगवान श्रीकृष्ण का चित्र या कोई छोटी प्रतिमा पालने में स्थापित करें। भगवान लड्डू गोपाल को नए वस्त्र पहनाएं और पालने को भी पुष्प से सजाएं।
- कुंकुम से तिलक कर भगवान श्रीकृष्ण यानी लड्डू गोपाल को अक्षत (चावल) लगाएं। इसके पश्चाात शुद्ध घी का दीपक लड्डू गाेपाल के सामने जलाएं। फिर एक-एक करके पूजन सामग्री भगवान को अर्पित करें जैसे- अबीर, गुलाल, इत्र, पुष्प, फल आदि। इसके बाद लड्डू गोपालजी से घर में सुख‚ समृद्धि‚ एश्वर्य और शांति के लिए प्रार्थना करें।
- पूजा के समय माता देवकी, पिता वासुदेव, भ्राता बलदेव के साथ ही नंदबाबा, यशोदा मैया के नामों का भी उच्चारण कर आशीर्वाद लें। अंत में माता देवकी को अर्घ्य देकर भोग अर्पित करें। भोग में तुलसी के पत्ते जरूर रखें। इसके बाद आरती करें।
- रात में 12 बजे पश्चात एक बार फिर से भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करें। पालने को झूला झुलाएं। पंचामृत में तुलसी के पत्ते रख कर व माखन मिश्री का भोग लगाएं। फिर आरती करें। इसके बाद रात में पूजा स्थल पर बैठकर ही कृष्ण भजन करें।
- श्रद्धानुसार अगले दिवस ब्राह्मण को भोजन कराएं। इसके बाद स्वयं व्रत पारणा करें। इस तरह से जन्माष्टमी व्रत-पूजन करने से भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से घर-परिवार में सुख-समृद्धि का वास रहता है।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 2023 तिथि व शुभ मुहूर्त
- जन्माष्टमी तिथि- 18 अगस्त 2022, गुरुवार
- अष्टमी तिथि आरंभ- गुरुवार 18 अगस्त रात्रि 09: 21 से
- अष्टमी तिथि समाप्त- शुक्रवार 19 अगस्त रात्रि 10:59 तक
जन्माष्टमी 2023 विशेष मुहूर्त और राहुकाल
- अभिजीत मुहूर्त- 12:05 -12:56 तक
- वृद्धि योग- बुधवार 17 अगस्त दोपहर 08:56 – गुरुवार 18 अगस्त रात्रि 0841 तक
- राहुकाल- गुरुवार 18 अगस्त दोपहर 02:06 -03:42 तक
भगवान श्रीकृष्ण की आरती (Janmashtami Aarti)
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला ।
श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला ।
गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली ।
लतन में ठाढ़े बनमाली;
भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक;
ललित छवि श्यामा प्यारी की ॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की…
कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं ।
गगन सों सुमन रासि बरसै;
बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग, ग्वालिन संग;
अतुल रति गोप कुमारी की ॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की…
जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा ।
स्मरन ते होत मोह भंगा;
बसी सिव सीस, जटा के बीच, हरै अघ कीच;
चरन छवि श्रीबनवारी की ॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की…
चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू ।
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू;
हंसत मृदु मंद,चांदनी चंद, कटत भव फंद;
टेर सुन दीन भिखारी की ॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की…
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