Jaisalmer bus fire: चलती बस में लगी आग, 20 जिंदा जले, जानें आखिर क्‍यों होते हैं स्‍लीपर बसों में हादसे Read it later

Jaisalmer bus fire: राजस्थान के Jaisalmer-Jodhpur हाईवे पर मंगलवार दोपहर 3:30 बजे एक AC स्लीपर बस में अचानक आग लग गई। तेज़ रफ्तार से चल रही बस में जब धुआं उठा, तो यात्रियों को समझ नहीं आया कि क्या हो रहा है।
जैसे ही लपटें बढ़ीं, यात्री जान बचाने के लिए बस से कूद पड़े। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

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 हादसे में 20 यात्रियों की दर्दनाक मौत, 15 झुलसे

इस दिल दहला देने वाले हादसे में 20 लोगों की जान चली गई, जबकि 15 से ज्यादा लोग झुलस गए
Most passengers suffered 70% burns, जिन्हें गंभीर हालत में जोधपुर रेफर किया गया है।
ये हादसा साफ दिखाता है कि स्लीपर बसों में सुरक्षा के बुनियादी इंतजाम अब भी बेहद लापरवाह हैं।

स्लीपर बसों का ट्रैक रिकॉर्ड बेहद खतरनाक

यह कोई पहला मामला नहीं है जब Sleeper Bus Fire ने इतनी जानें ली हों। इससे पहले भी देश के अलग-अलग हिस्सों में स्लीपर बसों में आग लगने की कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं। चीन ने 13 साल पहले इस खतरे को भांपते हुए स्लीपर बसों पर बैन लगा दिया था।

भारत में अब भी दौड़ रही हैं चलती-फिरती मौतें

हालांकि भारत में लंबे समय से स्लीपर बसों पर Ban की मांग की जा रही है, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
नतीजा ये है कि यात्रियों की जान खतरे में डालते हुए ये बसें आज भी देश की सड़कों पर बेधड़क दौड़ रही हैं।
हर हादसे के बाद कुछ दिन चर्चा होती है, फिर सब कुछ वैसा का वैसा हो जाता है।

अब सवाल ये है – कब जागेगा सिस्टम?

क्या बार-बार की गई मौतें भी पर्याप्त नहीं हैं कि इन स्लीपर बसों की जांच हो?
सरकार को अब सख्त नियम बनाकर इन वाहनों की सुरक्षा मानकों की समीक्षा करनी चाहिए।
Road safety, Fire control system और emergency exits पर ध्यान दिए बिना सस्ती यात्रा केवल जानलेवा बनकर रह जाती है।

Jaisalmer bus fire में कौन-कौन मरे और कितने घायल हुए

इस भयावह घटना में 19 मृतकों की पहचान जैसलमेर निवासी बताई गई है। इसके अलावा 79 वर्षीय हुसैन खां को जोधपुर ले जाते समय मृत घोषित किया गया। झुलसे यात्रियों में 2 बच्चे और 4 महिलाएं शामिल हैं। अधिकतर घायल इस कदर झुलसे हैं कि उनकी हालत नाजुक बनी हुई है। मृतकों की पहचान DNA परीक्षण से की जाएगी।

 राहत एवं इलाज की बदहाली

घायलों को तुरंत जवाहर अस्पताल, जैसलमेर ले जाया गया। गंभीर मामलों को जोधपुर रिफर किया गया है।
जिला कलेक्टर प्रताप सिंह ने मृतकों के परिवारों से संपर्क करने का आग्रह किया है।

दुर्घटना कैसे हुई — बस में आग का कारण

बस जैसे ही थईयात गांव के पास पहुँची, पीछे से धुएं की एक लपट उठी। देखते ही देखते पूरा पिछला भाग आग में जल उठा। यात्री डर के मारे बस से कूदने लगे।
पोकरण विधायक प्रतापपुरी ने कहा कि शायद यह short circuit की वजह से हुआ।

ग्रामीणों ने की मदद और शुरुआती बचाव

स्थानीय लोगों और राहगीरों ने तुरंत राहत कार्य शुरु किया। उन्होंने पहले से ही दमकल और पुलिस को सूचना दी।
आग की लपटें आसमान तक उठ रही थीं, और हादसे का मंजर भयावह था।

मुआवजा और सरकार की घोषणा

केंद्र सरकार ने मृतकों के आश्रितों को ₹2-2 लाख और झुलस गए घायलों को ₹50-50 हजार मुआवजा देने की घोषणा की है।

 स्लीपर बसों से जुड़े बड़े हादसों की लंबी लिस्ट

भारत में Sleeper Bus Fire Accidents की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। बीते कुछ वर्षों में कई दर्दनाक हादसों ने इस बात को साबित किया है कि स्लीपर बसें यात्रियों के लिए सुरक्षित विकल्प नहीं हैं। नीचे कुछ बड़े हादसों की लिस्ट दी गई है:

  • अक्टूबर 2022: यवतमाल से मुंबई जा रही बस ट्रेलर से टकराई, आग लगने से 12 यात्रियों की मौत हो गई।

  • 1 जुलाई 2023: समृद्धि हाईवे, महाराष्ट्र पर डिवाइडर से टकराने के बाद आग लगी, जिसमें 25 लोगों की जान चली गई

  • नवंबर 2023: जयपुर से दिल्ली जा रही स्लीपर बस में गुरुग्राम के पास आग लगी। हादसे में 2 की मौत, जबकि एक दर्जन से अधिक यात्री झुलसे।

इन घटनाओं ने साफ कर दिया है कि Fire safety in buses को लेकर भारत में गंभीर खामियां हैं।

क्यों बन चुकी हैं स्लीपर बसें चलती-फिरती मौत?

इन बसों में आग लगने या हादसे की स्थिति में बचाव बेहद कठिन होता है। इसकी सबसे बड़ी वजह है bus design flaws और इमरजेंसी सिचुएशन में धीमा रेस्पॉन्स।

Jaisalmer bus fire

बनावट में है जानलेवा खामी

भारतीय स्लीपर बसों की बनावट यात्रियों की सुरक्षा के लिहाज़ से बेहद चिंताजनक है:

  • आमतौर पर 2×1 कॉन्फ़िगरेशन वाली स्लीपर बसों में 30 से 36 सीटें होती हैं।

  • मल्टी-एक्सल कोचों में ये संख्या 36 से 40 तक होती है।

  • प्रत्येक बर्थ की लंबाई करीब 6 फीट और चौड़ाई 2.6 फीट होती है।

हालांकि, असली समस्या गैलरी (Gallery) की बेहद सीमित चौड़ाई है। इतनी पतली होती है कि एक वक्त में सिर्फ एक व्यक्ति ही निकल सकता है।

इमरजेंसी में निकलना हो जाता है नामुमकिन

जब बस में आग लगती है या हादसा होता है, तो यात्रियों को तुरंत बाहर निकलना जरूरी होता है। लेकिन संकरी गैलरी के कारण Evacuation in bus accidents बेहद मुश्किल हो जाता है।

  • हादसे के समय गैलरी में अफरा-तफरी मच जाती है।

  • कई बार यात्रियों को सही रास्ता नहीं मिलता और वे बर्थ के अंदर ही फंस जाते हैं।

  • इससे casualties in sleeper buses की संख्या और बढ़ जाती है।

स्लीपर बसों की डिज़ाइन बनती है जानलेवा

एक्सपर्ट्स का कहना है कि स्लीपर बसें यात्रियों को लेटने की सुविधा तो देती हैं, लेकिन आवाजाही के लिए इनमें बेहद कम जगह होती है। यही limited movement space in sleeper buses भविष्य में जानलेवा साबित हो सकती है।

  • यदि हादसे के वक्त बस में आग लग जाए या पलट जाए, तो यात्रियों का बाहर निकल पाना मुश्किल हो जाता है।

  • लोग बर्थ के भीतर ही फंस जाते हैं, जिससे casualties की संख्या बढ़ जाती है।

  • यही नहीं, बस की ऊंचाई (8-9 फीट) भी एक बड़ी बाधा बन जाती है।

राहत कार्य में भी आती है बाधा

सिर्फ अंदर फंसे यात्रियों को ही नहीं, बल्कि बाहर से मदद करने वालों को भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

  • बस की ऊंचाई के कारण rescue teams को यात्रियों तक पहुंचने के लिए पहले 8-9 फीट ऊपर चढ़ना पड़ता है।

  • इससे राहत और बचाव कार्य में देरी होती है, और fatality risk बढ़ जाता है।

Jaisalmer bus fire

ओवरवर्किंग ड्राइवर्स और रिस्पॉन्स टाइम की कमी

अधिकांश स्लीपर बसें रात में 300 से 1000 किलोमीटर तक की दूरी तय करती हैं। लंबे सफर और रात में ड्राइविंग की वजह से driver fatigue एक सामान्य समस्या है।

  • थकावट या नींद की वजह से ड्राइवर का ध्यान भटक सकता है या झपकी आ सकती है।

  • ऐसे में यदि emergency situation आए, तो पैसेंजर्स के पास प्रतिक्रिया देने का समय भी बहुत कम होता है।

ड्राइवर को नींद आने से रोक सकता है ‘ड्राउजीनेस अलर्ट सिस्टम’

एक्सपर्ट्स के मुताबिक, ऐसी स्थिति से बचने के लिए Drowsiness Alert System in buses जैसे टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

  • यह सिस्टम steering sensors, dashboard cameras और eye-movement detection जैसे फीचर्स का इस्तेमाल करता है।

  • ड्राइवर के झपकी लेने के संकेत मिलते ही सिस्टम ऑडियो या वाइब्रेशन अलर्ट भेजता है।

  • इससे दुर्घटनाओं की संभावना को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

25% ड्राइवरों ने स्वीकारा – ड्राइविंग के दौरान सो गए थे

Road safety survey 2018 के अनुसार, सड़क परिवहन मंत्रालय द्वारा 15 राज्यों में किए गए एक अध्ययन में 25% बस ड्राइवरों ने खुद माना कि उन्होंने वाहन चलाते समय नींद ले ली थी।
ग्लोबल स्टडीज़ भी बताती हैं कि highways और ग्रामीण सड़कों पर यात्रा के दौरान ड्राइवरों के सो जाने की संभावना सबसे अधिक होती है।
विशेष रूप से midnight से सुबह 6 बजे तक यह खतरा तेजी से बढ़ जाता है।

जागे हुए और सोए हुए यात्रियों के रिस्पॉन्स में बड़ा फर्क

Road safety experts के मुताबिक, किसी दुर्घटना के वक्त जागे हुए यात्री और सोए हुए यात्री की प्रतिक्रिया में काफी अंतर होता है।
कई मामलों में शुरुआती 2 मिनट की प्रतिक्रिया ही किसी की life and death का फैसला कर देती है।
बैठे हुए यात्री, भले ही ऊंघ रहे हों, लेटे हुए यात्रियों से बेहतर रिस्पॉन्ड कर सकते हैं।
अगर कोई ऊपर की sleeper berth पर सो रहा हो, तो उसके बचकर निकलने की संभावना और भी कम हो जाती है।

ऑपरेटरों द्वारा मॉडिफाइड बसें बन रहीं हैं मौत का कारण

कई बार AC sleeper buses को ऑपरेटर खुद मॉडिफाई कराते हैं और इस प्रक्रिया में सेफ्टी मानकों की पूरी तरह अनदेखी होती है।

  • बसों में उचित ventilation की कमी होती है।

  • यात्रियों को अक्सर suffocation महसूस होती है।

  • आग लगने की स्थिति में यह समस्या और भी गंभीर हो जाती है।
    कई बार बसों में लगे air conditioning units भी आग लगने का प्रमुख कारण बन जाते हैं।

 चीन ने 11 साल पहले स्लीपर बसों पर लगाया बैन

स्लीपर बसों की शुरुआत पश्चिमी देशों में हुई थी, जहां इन्हें शुरुआती तौर पर entertainment groups इस्तेमाल करते थे। बाद में कई देशों में इन्हें आम यात्रियों के लिए भी चलाया जाने लगा।

हालांकि, लगातार होते हादसों और बढ़ते safety risks के कारण कई देशों ने इन्हें बंद कर दिया।
China में 2009 के बाद स्लीपर बसों से जुड़े 13 बड़े हादसे हुए, जिनमें 252 लोगों की मौत हुई।
2011 में Henan province में आग लगने से 41 यात्रियों की मौत हुई थी। इसके बाद जुलाई 2011 में चीन के Transport Ministry और Public Security Ministry ने नए दिशा-निर्देश जारी किए।

इनमें कहा गया कि स्लीपर बस चलाने वाले ड्राइवरों को रात 2 बजे से सुबह 5 बजे तक अनिवार्य रूप से आराम देना चाहिए, क्योंकि अधिकतर दुर्घटनाएं ड्राइवर की fatigue से जुड़ी होती हैं।

चीन में एक हादसे ने बदल दी स्लीपर बसों की किस्मत

28 अगस्त 2012 को China’s Shaanxi province में देर रात 2:40 बजे एक Sleeper bus accident हुआ, जिसने पूरी व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए।
मेथनॉल ले जा रहे एक टैंकर से स्लीपर बस की टक्कर हो गई, जिससे भीषण आग लग गई और 36 यात्रियों की मौत हो गई। यह हादसा एक expressway पर हुआ था।

2012 में ही चीन में हुई थीं तीन बड़ी घटनाएं

उसी साल, यानी 2012, में चीन में स्लीपर बसों से जुड़ी तीन बड़ी दुर्घटनाएं हुईं।
इन घटनाओं में 62 लोगों की जान गई और 67 घायल हुए। ये सभी हादसे रात के समय हुए, जो एक पैटर्न की ओर इशारा करते हैं — यानी कि nighttime sleeper bus risk

हादसों के बाद चीन में स्लीपर बसों पर लगा बैन

2012 के शानक्सी हादसे के बाद China government ने new sleeper bus registrations पर तत्काल बैन लगा दिया।
हालांकि, पहले से चल रही old sleeper buses को कुछ समय तक सड़कों पर दौड़ने की अनुमति दी गई।
बैन से पहले चीन की सड़कों पर करीब 37,000 sleeper buses दौड़ रही थीं, और 10 लाख से ज्यादा लोग रोज़ाना इनसे यात्रा करते थे।

भारत और पाकिस्तान में सबसे ज्यादा Sleeper Buses

आज की तारीख में, India और Pakistan ही दो ऐसे देश हैं जहां सबसे ज्यादा sleeper buses चल रही हैं।
इन बसों की design flaws और safety risks को देखते हुए कई road safety experts ने Ministry of Road Transport and Highways (India) को पत्र लिखकर इन पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है।

डिजाइन की खामियों ने बढ़ाया खतरा

स्लीपर बसों की design structure यात्रियों की सुरक्षा के लिहाज से असुरक्षित मानी जाती है।

  • संकरी गलियां

  • कम वेंटिलेशन

  • ऊंची ऊंचाई (height)

  • और रात के समय संचालन — ये सभी फैक्टर इन्हें moving death traps बना देते हैं।

 

 

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