| पल्लवी पटेल और केशव प्रसाद मौर्य (फाइल फोटो) |
सिराथू में यूपी के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की दो तरफा लड़ाई है। एक- विपक्ष को मात देना और दूसरा- उम्मीदों पर खरा उतरना। पिछले सात वर्षों में उनके राजनीतिक कद के बढ़ने के साथ-साथ क्षेत्र के लोगों और साथ चलने वालों की उम्मीदें भी बढ़ी हैं। ये उम्मीदें चुनाव के समय जोरों पर हैं। सपा गठबंधन की उम्मीदवार पल्लवी पटेल भी इसे अपने खिलाफ मुद्दा बना रही हैं।
इलाहबाद यानि अभी के प्रयागराज शहर से करीब 60 किमी दूर सैनी कस्बे में सपा के कुछ युवक मोटरसाइकिल से जुलूस निकाल रहे थे। जुलूस के वहां से गुजरने के बाद कुछ स्थानीय लोग आपस में बतियाने लगे। चर्चा विधान सभा चुनाव को लेकर हो रही थी।
राम नारायण नाम के एक चाय की टपरी वाले ने कहा कि, “टक्कर तगड़ी दइ रही हैं पल्लवी पटेल, मुला जीतिहैं तो केशव मौर्या ही।” बगल में खड़े मुन्नू ने इसका जबर्दस्त खंडन किया, “देख लियो, केशव चुनाव न हारेन त। ग्यारह हजार वोल्ट की लाइन का तार हमारी दुकानों के ऊपर से जा रहा है। कितनी बार कहा गया कि इसे हटवा दिया जाए, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। नाली बजबजा रही है, बरसात में नरक हो जाता है लेकिन इसका कोई हल नहीं निकला आज तक।”
सैनी कस्बा उसी सिराथू विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है जहां से यूपी के मौजूदा उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य चुनाव लड़ रहे हैं। उनका मुकाबला समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार पल्लवी पटेल से है। पल्लवी पटेल बीजेपी की सहयोगी पार्टी अपना दल एस की अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल की बड़ी बहन हैं। इसके अलावा कांग्रेस पार्टी ने यहां से सीमा देवी और बीएसपी ने मुंसब उस्मानी को उम्मीदवार बनाया है।
बहुजन समाज पार्टी ने इससे पहले संतोष त्रिपाठी को उम्मीदवार बनाया था लेकिन बाद में अचानक उनका टिकट काटकर मंसूब उस्मानी को टिकट दे दिया। स्थानीय हलकों में इस बात की भी चर्चा है कि बहुजन समाज पार्टी ने ऐसा केशव प्रसाद मौर्य की राह आसान करने के लिए दिया है ताकि मुस्लिम वोट बीएसपी की ओर चले जाएं और समाजवादी पार्टी को नुकसान हो।
मौजूदा विधायक शीतला प्रसाद पटेल का टिकट काटकर केशव प्रसाद मौर्य को दिया
सिराथू सीट यूं तो बीजेपी के लिए एक मुश्किल सीट ही रही लेकिन 2012 में केशव प्रसाद मौर्य ने यहां कमल खिलाया था। 2014 में फूलपुर से लोकसभा चुनाव जीतने के बाद उन्होंने विधानसभा से इस्तीफा दे दिया और उसके बाद हुए उपचुनाव में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा। 2017 में बीजेपी ने फिर से इस सीट पर कब्जा किया लेकिन मौजूदा विधायक शीतला प्रसाद पटेल का टिकट काटकर केशव प्रसाद मौर्य को दे दिया।
OBC में कुर्मी यानी पटेल समाज के मतदाता यहां निर्णायक भूमिका निभाते हैं
जातीय समीकरण की बात करें तो सिराथू में 3 लाख 80 हजार 839 मतदाता हैं जिनमें 33 फीसद दलित, 13 फीसद मुस्लिम, 34 फीसद अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाता हैं। ओबीसी में कुर्मी यानी पटेल समाज के मतदाता यहां निर्णायक भूमिका निभाते हैं। सपा उम्मीदवार पल्लवी पटेल इसी वर्ग से आती हैं और अन्य जातीय समीकरण भी समाजवादी पार्टी के पक्ष में दिख रहे हैं, जिसकी वजह से उनका पलड़ा भारी बताया जा रहा है। हालांकि केशव प्रसाद मौर्य का स्थानीय होना, बीजेपी और सरकार में उनकी बड़ी हैसियत और आमजन के प्रति उनका व्यवहार, उनके पक्ष में जा रहा है लेकिन यही बातें उनका नुकसान भी कर रही हैं।
योजनाओं और घोषणाओं की जुगलबंदी के बीच मतदाताओं के मन में जाति समीकरण का ब्लूप्रिंट साफ तौर पर दिख रहा है। सिराथू में एक लाख से अधिक दलित मतदाता हैं। इसमें 60 फीसदी से ज्यादा पासी हैं, जिनका समर्थन बीजेपी को मिलता आ रहा है। वहीं करीब 80 हजार मुस्लिम-यादवों का तबका है। तों वही 25% से अधिक गैर यादव ओबीसी निवास करते हैं।
केशव प्रसाद मौर्य के परिजनों की वजह से स्थानीय लोगों में काफी नाराजगी
सिराथू कस्बे के रहने वाले सर्वेश पांडेय कहते हैं, “क्षेत्र का विकास बीजेपी सरकार में जरूर हुआ है लेकिन केशव प्रसाद मौर्य के परिजनों की वजह से स्थानीय लोगों में काफी नाराजगी है। विकास भी उन्हीं क्षेत्रों में हुआ है जहां उनके खास लोग रहते हैं। इसके अलावा, केशव मौर्य यहां से विधायक भले ही रहे लेकिन उसके बाद उन्होंने क्षेत्र पर कोई ध्यान नहीं दिया। डिप्टी सीएम बनने के बाद भी जितना ध्यान उनका इलाहाबाद के विकास पर रहा, उतना सिराथू और कौशांबी के विकास पर नहीं रहा।”
कौशांबी जिले बीजेपी और सपा दोनों तरफ के स्टार प्रचारकों ने झोंकी ताकत
पल्लवी पटेल भी खुद को स्थानीय बताती हैं क्योंकि उनके पति पंकज निरंजन भी कौशांबी जिले के ही रहने वाले हैं। पल्लवी पटेल के पक्ष में समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव और उनकी पत्नी डिंपल यादव से लेकर राज्यसभा सदस्य जया बच्चन तक प्रचार कर चुकी हैं। जबकि केशव मौर्य के क्षेत्र में भी बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा समेत पार्टी के तमाम दिग्गज नेताओं ने रैली की है। यहां तक कि पल्लवी पटेल के खिलाफ उनकी बड़ी बहन अनुप्रिया पटेल भी केशव को जिताने की अपील कर चुकी हैं।
न तो हमें शौचालय मिला और न ही आवास
सैनी कस्बे से करीब दो किमी दूर थुलगुला गांव में राजपती देवी मिलीं जिन्हें हर महीने मिल रहे पांच किलो राशन के बावजूद बीजेपी सरकार से काफी शिकायत है। कहने लगीं, “मेरा घर टूट गया है। मेरे घर में कोई कमाने वाला नहीं है। न तो हमें शौचालय मिला और न ही आवास। प्रधान से बार-बार कहा लेकिन सुनते ही नहीं। राशन तो मिलता है लेकिन उतने राशन में कुछ होता नहीं है। सरकार में उसी की सुनवाई होती है जिसकी पहुंच होती है।”
घर में कुछ लोग बीजेपी को भी वोट देंगे लेकिन हम तो पल्लवी को ही देंगे…
इसी गांव की विमला देवी राजनीतिक मामलों में बातचीत में काफी दिलचस्पी लेती दिखीं लेकिन खुलकर किसी भी पार्टी की तारीफ करने से बच रही थीं। हालांकि उनके घर के ऊपर बीजेपी का झंडा लगा था, लेकिन कहने लगीं कि झंडा उन्होंने नहीं बल्कि घर के दूसरे सदस्यों ने लगाया है। विमला देवी पटेल जाति की हैं। कहने लगीं, “जब सब लोग अपनी बिरादरी में वोट दे रहे हैं तो हम भी वहीं देंगे। घर में कुछ लोग बीजेपी को भी वोट देंगे लेकिन हम तो पल्लवी को ही देंगे।”
सिराथू सीट पर लगातार चार बार बसपा का रहा दबदबा
कौशांबी की सिराथू सीट साल 2012 के चुनाव से पहले अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित थी। बहुजन समाज पार्टी ने इस सीट पर 1993 से लेकर 2007 तक लगातार चार बार जीत दर्ज की थी। बसपा की जीत में उस वक्त के दलित बीएसपी नेता इंद्रजीत सरोज की अहम भूमिका रहती थी।
इंद्रजीत सरोज बीएसपी छोड़कर समाजवादी पार्टी में शामिल हो चुके हैं और उनके साथ बीएसपी के तमाम अन्य नेता भी सपा में आ गए हैं जिसकी वजह से दलित मतदाताओं का भी बड़ी संख्या में रुझान समाजवादी पार्टी की ओर दिख रहा है। हालांकि बीएसपी का दृढ़ मतदाता अब भी अपनी पार्टी को छोड़ने को तैयार नहीं है।
शीतला प्रसाद का टिकट काटा इसलिए पटेल समाज बीजेपी से नाराज
बीजेपी के एक स्थानीय नेता नाम न बताने की शर्त पर कहते हैं कि मौजूदा बीजेपी विधायक शीतला प्रसाद भी पटेल समाज के हैं और पार्टी ने उनका टिकट काट दिया है इसलिए पटेल लोग बीजेपी से नाराज हैं। वहीं दूसरी ओर, समाजवादी पार्टी ने न सिर्फ पल्लवी पटेल को टिकट देकर पटेलों को अपनी ओर करने की कोशिश की है बल्कि दूसरे अन्य पिछड़े वर्ग के लोगों में भी पैठ बनाने की कोशिश में है।
यहां जिस पार्टी को दलित वोट ज्यादा मिलेंगे वहीं जीतेगी
हालांकि स्थानीय लोगों का कहना है कि जीत-हार का दारोमदार दलित और मुस्लिम मतदाताओं पर है। बीएसपी के अलावा, जिस भी पार्टी में दलित वोट ज्यादा गया उसका पलड़ा भारी रहेगा और मुस्लिम मतदाताओं ने यदि मुस्लिम बीएसपी उम्मीदवार की बजाय समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार की ओर रुख किया तो निश्चित तौर पर सपा को उसका लाभ मिलेगा।