शिवसेना के कद्दावर नेता एकनाथ शिंदे का नाम आज मंगलवार से ही भारतीय राजनीति चर्चा में बन गया है। Photo | Twitter |
Maharashtra Politics Eknath Shinde: महाराष्ट्र सरकार में मंत्री और शिवसेना के कद्दावर नेता एकनाथ शिंदे का नाम आज मंगलवार से ही भारतीय राजनीति चर्चा में बन गया है। आज से ये उतना ही चर्चाओं में रहेगा जितना बीते दिनों नुपुर शर्मा का रहा। हालांकि उनका नाम किसी और कारण से था और शिंदे (Eknath Shinde) किसी अन्य कारण से।
शिंदे वहीं नाम है जिसके कारण महाराष्ट्र राज्य की महा विकास अघाड़ी (Maha Vikas Aghadi) सरकार शायद गिरने की कगार पर है। जानकारी के अनुसार शिंदे 10 से 15 विधायकों के साथ अज्ञातवास पर बताए जा रहे हैं। बताया जा रहा है कि वे इस समय गुजरात के सूरत शहर में डेरा जमाए हुए हैं।
सीएम उद्धव ठाकरे (uddhav thackeray) ने स्थिति को भांपते हुए विधायकों की आपात बैठक बुलाई तो वहीं सहयोगी एनसीपी प्रमुख शरद पवार (Sharad pawar) ने भी सभी विधायकों को हाजिर होने को कहा है। वहीं तीसरी बड़ी सहयोगी पार्टी कांग्रेस ने अपने विधायकों को दिल्ली तलब कर दिया है। आई ए आपको बताते हैं कि आखिर महाराष्ट्र की राजनीति में भूचाल लाने वाले एकनाथ शिंदे (Who is Eknath Shinde) कौन हैं।
राजस्थान में सचिन पायलट की तरह नाराज: जिस बात से सचिन पायलट ने नाराज होकर मानेसर डेरा डाला था, उसी तरह शिंदे भी CM से नाराज‚ उद्धव शिंदे के निर्णयों पर रोक लगा देते थे
बताया जा रहा है कि मंत्री के तौर पर एकनाथ शिंदे के लिए फैसलों पर सीएम उद्धव ठाकरे रोक लगा दिया करते थे। बता दें कि जब राजस्थान में उप मुख्यमंत्री रहते हुए सचिन पायलट ने भी इसी तरह की नाराजगी जताई थी कि उनके फैसलों पर अमल नहीं किया जाता है। सीएम उस पर रोक लगा देते हैं। (सचिन पायलट का इंटरव्यू यहां देखें पायलट ने उस दौरान इंडिया टुडे ग्रुप को इंटरव्यू में अपने मतभेदों के बार में खुल कर बताया था।)
वहीं महाराष्ट्र में शिंदे की नाराजगी सरकार को भारी पढ़ रही है। बताया जा रहा है कि प्रमुख सचिवों के मार्फत शिंदे के विभागों की फाइलें भी रुकवा दी जाती थीं। इसके अलावा शिवसेना का हिंदुत्व के मुद्दे से दूर होते जाना भी शिंदे को रास नहीं आ रहा था। इसलिए महाराष्ट्र में ऑपरेशन लोटस के शुरू होते ही शिंदे ने उद्धव सरकार के कान खड़े कर दिए हैं।
ठाकरे परिवार के बाहर सबसे ताकवर और कद्दावर शिवसैनिक
महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे का कद किसी से छिपा नहीं है। वे ठाकरे परिवार के बाहर सबसे विश्वसनीय और ताकतवर शिवसैनिक के तौर पर जाने जाते रहे हैं। कहा जाता है कि 2019 में यदि उद्धव ठाकरे सीएम बनने के लिए नहीं मानते तो एकनाथ ही वो शख्स थे जिन्हें उद्धव सीएम की कुर्सी पर काबिज करते।
शिंदे ठाणे की कोपरी-पांचपखाड़ी सीट से 4 बार विधायक चुने गए। Photo | Twitter |
59 साल के शिंदे महाराष्ट्र सरकार में फिलहाल नगर विकास मंत्री हैं। साल 1980 में वे शिवसेना से जुड़े थे। शिंदे ठाणे की कोपरी-पांचपखाड़ी सीट से 4 बार विधायक चुने गए। वे पार्टी के लिए जेल भी गए। उनकी छवि एक कट्टर और विश्वसनीय शिव सैनिक की मानी जाती रही है। लेकिन क्या करें राजनीति क्या क्या करवा देती है..।
ठाणे में शिंदे का खासा दबदबा और महाराष्ट्र में शिवसेना के कद्दावर नेता
एकनाथ शिंदे के निजी जीवन की बात करें तो वे महाराष्ट्र के सतारा जिले के पहाड़ी जवाली तालुका के रहने वाले हैं। ठाणे शहर में आने के बाद उन्होंने 11वीं तक मंगला हाई स्कूल और जूनियर कॉलेज, ठाणे से पढ़ाई पूरी की। ठाणे में शिंदे के दबदबे का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यदि लोकसभा चुनाव हो या निकाय चुनाव हमेशा शिंदे के उम्मीदवार की जीत तय मानी जाती है।
शिवसेना के कद्दावर नेता दिवंगत आनंद दीघे शिंदे के राजनीतिक गुरू थे। फोटो ः ट्वीटर। |
शुरुआत में शिंदे ठाणे में ऑटो चलाते थे। शिवसेना के कद्दावर नेता आनंद दीघे से प्रभावित होकर उन्होंने शिवसेना ज्वॉइन कर ली। दीघे ही शिंदे के राजनीतिक गुरू थे। शिंदे पहले शिवसेना के शाखा प्रमुख और फिर ठाणे म्युनिसिपल के कार्पोरेटर चुने गए। बेटा-बेटी की मौत के बाद जब शिंदे ने राजनीति छोड़ने का फैसला किया, तो दीघे ही उन्हें वापस लाए थे।
26 अगस्त साल 2001 को अचानक एक दादसे में दिघे की मृत्यु हो गई। उनकी मौत को आज भी कई लोग हत्या ही बताते आए हैं। हाल ही में दिघे की मौत पर मराठी में धर्मवीर नाम की एक फिल्म भी बनाई गई है। दिघे को धर्मवीर के नाम से भी जाना जाता था।
दिघे की मृत्यु के बाद, शिवसेना को ठाणे में अपना राजनीतिक वर्चस्व कायम रखने के लिए एक चेहरे की जरूरत थी। ठाकरे परिवार ठाणे को लापरवाही पर नहीं छोड़ना चाहता था। कारण यह है कि ठाणे महाराष्ट्र का एक बड़ा जिला है। चूंकि शिंदे शुरू से ही दिघे से जुड़े थे, इसलिए शिंदे को उनकी राजनीतिक विरासत मिल गई। शिंदे ने विरासत को भी शिद्दत और मेहनत से सींचा।
अक्टूबर से दिसंबर 2014 तक महाराष्ट्र विधानसभा में वे विपक्ष के नेता रहे। Photo | Twitter |
इधर एकनाथ के बेटे श्रीकांत शिंदे भी शिवसेना पार्टी की कल्याण सीट से सांसद हैं। अक्टूबर से दिसंबर 2014 तक महाराष्ट्र विधानसभा में वे विपक्ष के नेता रहे। 2014 में ही महाराष्ट्र राज्य सरकार में PWD कैबिनेट मंत्री के तौर काम किया। 2019 में महाराष्ट्र सरकार में कैबिनेट मंत्री सार्वजनिक स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री (महाराष्ट्र सरकार) का पद मिला।
महाराष्ट्र के सीएम की कुर्सी आते आते रह गई थी
साल 2019 में जब शिवसेना ने बीजेपी से गठबंधन तोड़ा तो तय हुआ कि वो एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाएगी और सीएम शिवसेना का ही होगा। लेकिन सीएम कौन बनेगा, यह तय नहीं हो पा रहा था। चुनाव नतीजों के बाद उद्धव ने एकनाथ शिंदे को विधानसभा में विधायक दल का नेता बनाया।
पहले जब देवेंद्र फडणवीस सीएम थे तो उस समय भी एकनाथ शिंदे की शिवसेना आलाकमान से नाराजगी की बात चर्चा में थी। Photo | Twitter |
इस दौरान सबको लगा था कि शिंदे को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। लेकिन शरद पवार और सोनिया गांधी उद्धव को ही सीएम बनाना चाहते थे। उद्धव पर उनके परिवार से भी सीएम पद स्वीकार करने का दबाव था। ऐसे में शिंदे मुख्यमंत्री बनते बनते रह गए थे।
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अब शिंदे की नाजराजगी का कारण क्या है?
ये पहली बार नहीं है जब एकनाथ शिंदे शिवसेना हाईकमान से नाराज हुए हों। बताया जा रहा कि वे गठबंधन की तीनों पार्टी यानि अपनी शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी से ही नाराज हैं। इसके पहले जब देवेंद्र फडणवीस सीएम थे तो उस समय भी एकनाथ शिंदे की शिवसेना आलाकमान से नाराजगी की बात चर्चा में थी।
उस दौरान ये भी कहा जा रहा था कि एकनाथ शिंदे अपने तमाम समर्थकों के साथ बीजेपी में जा सकते हैं। लेकिन शिंदे ने इन खबरों को गलत बताते हुए इन खबरों को निराधार बताया था। अब दोबारा नाराजगी की बात जगजाहिर हो गई है।
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शिंदे और उद्धव की वजहें –
शिंदे और फडणवीस की दोस्ती उद्धव को खटक रही थी
शिंदे तब भी मंत्री थे जब महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना गठबंधन की सरकार थी। इस दौरान तत्कालीन सीएम देवेंद्र फडणवीस के ड्रीम प्रोजेक्ट समृद्धि एक्सप्रेस-वे लाया गया। इस दौरान एकनाथ शिंदे और फडणवीस के बीच मजबूत राजनीतिक दोस्ती हो गई, जो आज भी कायम है।
उद्धव को यह दोस्ती पसंद नहीं आई। इसलिए शिंदे के प्रति उनकी नाराजगी बढ़ती ही जा रही थी। शिवसेना के अन्य नेताओं को भी एकनाथ शिंदे के वरिष्ठ भाजपा नेताओं विशेषकर देवेंद्र फडणवीस के साथ अच्छे संबंध पसंद नहीं आए।
उद्धव शिंदे के माध्यम से भाजपा को घेरना चाह रहे थे
मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे फडणवीस के समृद्धि एक्सप्रेस में भ्रष्टाचार का पर्दाफाश कर भाजपा को घेरने के प्रयास कर रहे थे। इसमें शिवसेना एकनाथ शिंदे का इस्तेमाल करना चाहती थी, लेकिन जब फडणवीस फंसे तो शिंदे भी फंसने से डर गए।
क्योंकि जब प्रोजेक्ट शुरू हुआ तो शिंदे अकेले कैबिनेट मंत्री थे। इसके बाद संजय राउत और अनिल परब समेत शिवसेना के कई वरिष्ठ नेता भी शिंदे के खिलाफ मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को शिकायत करने लगे।
शिंदे की पसंद के अधिकारियों की नियुक्ति नहीं होने दी उद्धव ने
देश की आर्थिक राजधानी मुंबई की डीपीआर तैयार करते हुए एकनाथ शिंदे ने शहरी विकास मंत्री के तौर पर कुछ फैसले लिए थे। इन फैसलों पर बाद में मुख्यमंत्री ने संबंधित विभाग के सचिव के माध्यम से रोक लगा दी। शिंदे ठाणे, रायगढ़ और पालघर जिलों के कुछ आईएएस और डिप्टी कलेक्टर नियुक्त करना चाहते थे।
मुख्यमंत्री ने उनकी नियुक्ति की अनुमति नहीं दी। विधान परिषद चुनाव में एकनाथ शिंदे की नंबर एक राजनीतिक स्थिति के बावजूद, युवा शिवसेना के पदाधिकारियों को महत्व दिया गया।
शिवसेना की हिंदुत्व से दूरी भी शिंदे को पसंद नहीं आई
मुख्यमंत्री ठाकरे लगातार एकनाथ शिंदे के विभाग की फाइलों पर रोक लगा रहे थे। जब शिंदे उनसे मिलने आते थे तो ठाकरे उन्हें काफी देर तक इंतजार करवाते थे। दूसरी ओर, एकनाथ शिंदे भी नाराज थे कि शिवसेना हिंदुत्व के मुद्दे से दूर जा रही थी।
शिंदे ठाणे नगर निगम चुनाव अकेले लड़ना चाहते थे, जबकि संजय राउत समेत कुछ नेता उन पर राकांपा के साथ चुनाव लड़ने का दबाव बना रहे थे। इन राजनीतिक मुद्दों से नाराज एकनाथ शिंदे ने विधानसभा चुनाव में महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार के गिरते समर्थन को देखकर विद्रोह कर दिया।
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