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Vishwakarma Jayanti : शनिवार 17 सितंबर को भगवान विश्वकर्मा की जयंती मनाई जा रही है। विश्वकर्मा जयंती (Vishwakarma Jayanti ) वर्ष में दो बार, फरवरी और सितंबर में मनाई जाती है। ऐसा भगवान विश्वकर्मा की जन्म तिथि को लेकर मतभेद के कारण है। विश्वकर्मा जयंती उत्तर भारत में फरवरी में और दक्षिण भारत में सितंबर में मनाई जाती है।
काशी के ज्याेतिषाचार्य पं. पुरुषोत्तम शर्मा ने बताया कि भगवान विश्वकर्मा देवताओं के शिल्पकार हैं। शिल्पकार का अर्थ यानी इंजीनियर। विश्वकर्मा देवताओं के भवनों, महलों, रथों और हथियारों का निर्माण करते हैं।
वाल्मीकि रामायण में विश्वकर्मा का उल्लेख मिलता है
वाल्मीकि रामायण में विश्वकर्मा को बताया गया है। उन्होंने सोने की लंका का निर्माण किया था। उस समय माल्यवन, सुमाली और माली नाम के तीन राक्षस हुआ करते थे। उन्होंने विश्वकर्मा को अपने लिए भी एक भवन बनाने को कहा।
तीनों राक्षसों की बात सुनकर विश्वकर्मा ने उनसे कहा कि समुद्र के दक्षिण की ओर त्रिकूट नामक पर्वत पर मैंने सोने की लंका का निर्माण किया है। आप लोग वहीं रह सकते हैं। इस प्रकार राक्षसों ने लंका पर अधिकार कर लिया।
हालांकि लंका से जुड़ी और भी कई कहानियां हैं। कुछ पौराणिक कथाओं के अनुसार रावण ने कुबेर से लंका छीन ली थी।
जब श्री राम को समुद्र पार कर लंका पहुंचना था तो उस समय नल और नील की सहायता से समुद्र के ऊपर एक पुल बनाया गया था। नल को विश्वकर्मा का पुत्र माना जाता है।
विश्वकर्मा ने द्वापर युग में द्वारका का निर्माण कराया था
द्वापर युग में जरासंध श्रीकृष्ण को मारने के लिए बार-बार मथुरा पर आक्रमण कर रहा था। श्रीकृष्ण उसे हर बार हराते थे, लेकिन मथुरा की सुरक्षा के लिए श्रीकृष्ण ने सोचा कि वह यहां से कहीं दूर अपना नगर बसा लें, ताकि मथुरा के लोग सुरक्षित रह सकें। फिर उन्होंने द्वारका नगरी बसाने की योजना बनाई। कहा जाता है कि द्वारका नगरी बनाने का जिम्मा श्रीकृष्ण ने विश्वकर्मा को सौंपा था।
निर्माण कार्य से जुड़े लोगों के लिए विश्वकर्मा जयंती महात्योहार (Vishwakarma Puja)
जो लोग निर्माण कार्य से जुड़े हैं उनके लिए यह एक बड़ा त्योहार होता है। निर्माण कार्य जैसे मकान बनाना, फर्नीचर बनाना, कारखाने, शिल्पकार आदि। ये लोग विश्वकर्मा की जयंती बड़े पैमाने पर मनाते हैं। इस दिन भगवान की मूर्ति को पंचामृत का भोग लगाने का विधान है।
इस दिन भगवान विश्वकर्मा का पुष्प हार से श्रृंगार कर मौसमी फलों और मिठाइयों का भोग लगाया जाता है। इस दिन धूप और दीप जलाकर व्यापारियों को आरती करनी चाहिए व पूजन के बाद क्षमा मांगनी चाहिए।
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