क्या वाकई 5G तकनीक खतरनाक है? जानिए वो सबकुछ जो आप फिफ्थ जेनरेशन, ब्रॉडबैंड सेल्युलर नेटवर्क के बारे में जानना चाहते हैं Read it later

  

क्या वाकई 5G तकनीक खतरनाक है
image: Pixabay

5G तकनीक के बारे में कहा जा रहा है कि (disadvantages of 5g technology) इसकी इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगें त्वचा में घुसकर डीएनए को बदल कर रख सकती हैं। इससे कैंसर और मस्तिष्क संबंधी बीमारियां हो सकती हैं। जानिए इसमें कितनी सच्चाई है। कोरोना पैनडेमिक के बीच अब 5G तकनीक पर एक नए मुद्दे पर बहस​ छिड़ रही है। 

 पूरी दुनिया में चर्चा में रहे इस मामले (what is 5g technology and how it works) ने भारत में उस वक्त जोर ​पकड़ा जब सिने आदाकारा जूही चावला ने 5जी तकनीक के खिलाफ याचिका दायर की। ये बात अलग है कि जूही की याचिका को खारिज ​कर दिया गया। बात दें कि अगले साल के आखिर तक 5G भारत में लॉन्च होगा।

लेकिन अब 5G तकनीक से होने वाली हानि को लेकर इंडिया में भी कई सामजिक संगठन अब सोचने लगे हैं।

 कई विशेषज्ञ यह दावा कर रहे हैं कि इससे पर्यावरण सहित इंसानों को इसका घातक परिणाम भुगतना पड़ सकता है। जबकि कुछ का विशेषज्ञों का मानना है कि ये चिंता म​हज एक मिथ है। बहरहाल ये शोध का विषय है। 

लेकिन हम यहां आपको बता रहे हें कि आखिर इसे लेकर इतना माहौल क्यों बन रहा है क्या वाकई यह तकनीक घातक है। जानिए। 

5G को लेकर बवाल क्यों
Image credit | Social Media


5G को लेकर बवाल क्यों

कोर्ट ने एक्ट्रेस जूही चावला को फटकार लगाते हुए कहा था उन्होंने बिना कोई रिसर्च किए सिर्फ पब्लिसिटी के लिए याचिका दायर की। यदि कोर्ट ने ये तर्क दिया है ​तो कहीं न कहीं ये 5G तकनीक मैं ऐसा तो जरूर कुछ है जिसका विरोध हो रहा है। (disadvantages of 5g technology) यह पांचवी पीढ़ी की तकनीक अब तक की ब्रॉडबैंड सेल्युलर नेटवर्क में सबसे तेज सर्विस होगी। 

क्या थी मोबाइल नेटवर्क की पुरानी जेनरेशन
Image credit | Social Media

क्या थी मोबाइल नेटवर्क की पुरानी जेनरेशन 

5G या फिफ्थ जेनरेशन, ब्रॉडबैंड सेल्युलर नेटवर्क की वो एडवांस तकनीक है जो भविष्य में सबसे तेज सेल्युलर इंटरनेट कनेक्टिविटी यानी 4जी (असल में 4जी-एलटीई यानी फोर्थ जेनरेशन लॉन्ग टर्म इवॉल्यूशन, जो 4-जी के स्टैंडर्ड पर पूरी तरह ट्रू  नहीं है लेकिन उस तक पहुंचने की कोशिश करती है) की जगह लेगी।

 सेल्युलर नेटवर्क की पिछली जनेरेशन की बात करें तो 1-जी वायरलेस तकनीक से जहां खरखराहट भरी आवाज के जरिए कम्यूनिकेशन संभव हुआ, वहीं 2G के जरिये पहली दफा क्लियर आवाज के साथ एसएमएस जैसी बेसिक डेटा ट्रांसफर सर्विस मिली और मोबाइल इंटरनेट की नई क्रांति शुरू हुई। 

इसी तरह 3G में इंटरनेट पर तमाम तरह का एडवांस्ड कम्युनिकेशन जैसे वेबसाइट्स एक्सेस, वीडियो देखना, म्यूजिक सुनना और मेल करना आदि मुमकिन हो पाया, वहीं 4जी-एलटीई ने इसे और तेज बनाया। 

क्या ये रेडिएशन शरीर और मस्तिष्क का तापमान बढ़ा सकता है
Image credit | Social Media

क्या ये रेडिएशन शरीर और मस्तिष्क का तापमान बढ़ा सकता है

5G तकनीक  के खतरों (how dangerous 5g technology) को लेकर 2017 में पहली बार विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) कह चुका है कि इससे टिशू हीटिंग यानि ऊतकों के गर्म होने का खतरा बढ़ सकता है।  

हेल्थलाइन वेबसाइट में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार जब हमारी त्वचा किसी प्रकार की इलेक्ट्रोमैग्नेटिक ऊर्जा को सोख लेती है तो टिशु गर्म होने लगते हैं। जिससे की मस्तिष्क और शरीर का टैम्प्रेचर बढने लगता है। 

 क्या फायदे होंगे इस 5जी तकनीक से

क्या फायदे होंगे इस 5जी तकनीक से
image credit | rpc.senate


माना जा रहा हे कि 5G की स्पीड (disadvantages of 5g technology) इतनी तेज होगी कि जीबी साइज का डेटा सैकंड में डाउनलोड या अपलोड किया जा सकेगा। 

वहीं कोई भी इंसीडेंट की न्यूज इस तकनीक से तेजी से  मिल सकेगी। यानी लगभग रियल टाइम में कम्युनिकेशन मुमकिन होगा। 

वहीं माना जा रहा है कि आने वाले समय में सभी घरेलू और ऑफिस की मशीनों को कर दिया जाएगा जिससे उनके संचालन और वर्क फ्रॉम वाले कल्चर को और बल मिलेगा। 

क्या 5G तकनीक से खतरा बताया जा रहा है?

क्या 5G तकनीक से क्या खतरा बताया जा रहा
Image credit | Social Media


जैसा कि अभी हो रहा है उसी तरह इसके टावर आवासीय स्थानों या कार्यालयों के आसपास स्थित होंगे, 

यह भी कहा जा रहा है कि इतनी तेजी से काम कर रहे नेटवर्क का रेडिएशन आसपास रहने वाले लोगों पर स्वास्थ्य की दृष्टि से गंभीर खतरा (how dangerous 5g technology) पैदा कर सकते हैं। 

लोगों को डर है कि इससे इंसानों के डीएनए पर असर पड़ेगा और इससे कैंसर समेत कई गंभीर बीमारियां हो सकती हैं. दिमाग से जुड़ी जानलेवा बीमारियों की भी काफी चर्चा है।

वैज्ञानिक क्या कहते हैं?

फेडरल कम्युनिकेशन्स कमीशन (FCC) ने भी उत्तकों के गर्म यानि टिशू हीटिंग जैसी बात को माना है। लेकिन FCC ने ये भी कहा है कि ये इलेक्ट्रोमैग्नेटिक एनर्जी इतनी कम होगी कि ये त्वचा को भेद ही नहीं सकेगी। 

ऐसे में यह समस्या चिंता की बात नहीं है। वहीं ये भी कहा जा रहा है कि इससे पर्यावरण सहित पशुओं को भी खतरा हो सकता है।

अफवाहों में 5जी तकनीक को बताया गया कोरोना की वजह
Image credit | Social Media

अफवाहों में 5जी तकनीक को बताया गया कोरोना की वजह

बीते साल 2020 में जब कोरोना फैलने लगा तो ये तक कहा जाने लगा कि चीन के वुहान में 5जी इन्फ्रास्ट्रक्चर के कारण कोरोना फैला। कई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर ये अफवाह खूब फैली। 

बात यहां पहुंच गई कि युनाइटेड किंगडम में तो लोग निमार्माधीन 5जी टावर को ही नष्ट करने और जलाने लग गए। कुछ अफवाहें ऐसी भी फैली कि कोरोना वायरस कोई महामारी नहीं है बल्कि 5जी तकनीक के साइड इफेक्ट्रस को छिपाने के लिए इस बीमारी को रचा गया।

 ऐसे में ये बताना भी जरूरी होगा कि इस तरह की बातों को विशेषज्ञों ने पूरी तरह खारिज किया है।  विशेषज्ञों का कहना है कि जिन देशों में 5-जी तकनीक है ही नहीं कोरोना वहां भी फैला।

 ऐसे में  5जी को कोरोना की वजह बताना पूरी तरह गलत और निराधार है।

भारत में यह कब तक उपलब्ध होगा?

जानकारों का अनुमान है कि देश में फाइबर केबल का नेटवर्क तैयार करने और वेव टावर लगाने में करीब दो से तीन साल का समय लग सकता है। 

हाल ही एयरटेल के एक बढ़े अधिकारी ने कहा था कि भारत में 5G तकनीक के लिए इकोसिस्टम अभी तैयार नहीं है। ऐस में देश में 5जी तकनीक की उपस्थिति के लिए कम से कम दो साल लग सकते हैं।

देश के एक तिहाई टावर्स में ही फाइबर कनेक्टिविटी
Image credit | Social Media

                          

देश के एक तिहाई टावर्स में ही फाइबर कनेक्टिविटी

कुछ हालिया मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो 2025 तक देश में 5जी कनेक्टिविटी करीब 20 करोड़ लोगों तक पहुंच जाएगी। हालांकि, विशेषज्ञ इसे जल्दबाजी बताते हैं। 

उनका मानना है कि भारत में एक तिहाई से भी कम टावरों में फाइबर कनेक्टिविटी पहुंच पाई है और इस आंकड़े तक पहुंचने के लिए कम से कम 60 फीसदी टावरों को फाइबरयुक्त करने की जरूरत है, जिसमें कई साल का समय लग सकता है। 

लेकिन उम्मीद है कि साल 2022 की शुरुआत तक दिल्ली, मुंबई जैसे महानगरों में इस सेवा को शुरू किया जा सके। इसके साथ ही विशेषज्ञ यह भी सलाह दे रहे हैं कि भारतीय यूजर्स को 5जी फोन या अन्य गैजेट्स खरीदने में अभी जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। 

कितनी हो सकती है 5G टावरों की संख्या
Image credit | Social Media

 कितनी हो सकती है 5G टावरों की संख्या

5G तकनीक हाई फ्रीक्वेंसी पर काम करती है, लेकिन ये कम दूरी तक ही काम करती है। इसे ऐसे समझें कि पहले  मीडियम और शॉर्ट वेव के रेडियो हर सिटी में एक साथ सुने जाते थें, लेकिन उनकी आवाज बेहतर नहीं होती थी।

 फिर बाद में आया हाई फ्रीक्वेंसी का एफएम जिसकी साउंड क्लीयरिटी जबरदस्त हैं, लेकिन हाई फ्रीक्वेंसी पर होने के कारण एफएफ एक सिटी में ही काम करते हैं। ऐस में माना जा रहा है कि 5G टावर 4G टावरों की तुलना में छोटे और एक साथ व पास पास हो सकते हैं। 

जहां एक 4जी टावर काम करता था, उस स्थान पर दस 5जी टावर तक लगाने पड़ सकते हैं। हालांकि, टावरों की संख्या स्थान और यूजर्स की अधिकता पर निर्भर करेगी। 

जब से वायरलेस तकनीक आई है तब से इसे लेकर लोगों में कई तरह का भ्रम बना हुआ है। जैसे की बताया जा रहा है कि 5जी के कारण किसी भी चीज को छूने से लोगों को करंट लग रहा है। 

जबकि ये दावा बिल्कुल गलत है। रेडिएशन के डर को दूर करने के लिए आपको इसके पीछे का साइंस समझना होगा। रेडिएशन का मतलब है किसी स्रोत या सॉर्स से बाहर की ओर निकलने वाली एनर्जी। 

अब ये जान लिजिए कि ये एनर्जी के हर सॉर्स में होती है। जैसे आग जलने से गर्मी निकलती है। इसे एक तरह से शरीर के लिए रेडिएशन ही माना जाता है, 

वहीं सूर्य से निकलने वाली किरणे जब तेज होकर त्वचा को जलाती हैं तो वो भी यूवी यानि अल्ट्रावायलेट रेडिएशन होता है। ऐसे ही कुछ तरह के रेडिएशन आपको बीमार कर सकते हैं।

रेडिएशन दो तरह के होते हैं एक सुरक्षित और दूसरे खतरनाक
Image credit | Social Media

 रेडिएशन दो तरह के होते हैं एक सुरक्षित और दूसरे खतरनाक 

जिन्हें आयोनाइजिंग और नॉन आयोनाइजिंग कहा जाता है। आयोनाइजिंग रेडिएशन में वेव्स तेज होती हैं। उहादरण के तौर पर अल्ट्रावॉयलेट वेव्स जैसे एक्स रे और गामा रेज़। 

ये शरीर को हानि पहुंचा सकती हैं और शरीर की कोशिकाओं और डीएनए तक पर ये असर डाल सकती हैं। चिकित्सक इसलिए बार बार एक्सरे के लिए मना करते हैं। इसलिए सूरज की रोशनी में भी ज्यादा देर बैठने क लिए मना किया जाता है। 

नॉन आइयोनाइजिंग रेडिएशन में वेवलेंथ की तीव्रता कम होने से ये शरीर पर कोई रिएक्ट नहीं कर पाती हैं। मसलन रेडियो वाली मीडियम और शॉर्ट वेव और एफएम की वेव। ठीक ऐसी ही वेव्स का इस्तेमाल टीवी सिग्नल, सेलफोन 4जी और 5जी तकनीक में किया जाता है। अमेरिकन कैंसर सोसाइटी ने रेडियो वेव्स पर बरसों तक किए गए शोध में पाया कि इन  4जी और 5जी की वेव्स का इंसानों पर कोई भी बुरा प्रभाव नहीं पड़ रहा है।

5g technology in india | 5g technology upsc | 5g technology ppt | disadvantages of 5g technology | what is 5g technology and how it works | 5g vs 4g | how dangerous 5g technology | 

Was This Article Helpful?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *