पोर्न देखकर कुकर्म:शिकार’ के लिए 40 किलोमीटर चलता, मौका मिलते ही कुकर्म के बाद करता था काम तमाम Read it later

Serial Killer Ravinder Kumar Case: दिखने में बेहद सामान्य और भोला दिखने वाला युवक, लेकिन काम ऐसा कि हर किसी की रूह कांप जाए। मैड किलर, कुछ हद तक हॉलीवुड की साइकोथ्रिलर फिल्मों की तरह। रविंद्र कुमार नाम का यह दरिंदा मासूम बच्चों को अपना शिकार बनाता था। वह रोज 40 किमी पैदल चलता था कि शायद कहीं उसे अपना कोई शिकार मिल जाए। फिर वह उस बच्चे को टॉफी-चॉकलेट या पैसे का लालच देकर सुनसान जगह पर ले आता और अपनी हवस पूरी करने के बाद उसकी बेरहमी से हत्या कर देता।

हर बार शिकार करने से पहले वह गंदे वीडियो यानी अश्लील फिल्में देखता। 2008 से 2015 के बीच हत्यारे ने 2 साल से 12 साल तक के 30 बच्चों को अपना शिकार बनाया। आरोपी को हाल ही में दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया था।

 

Table of Contents

ज्यादा पोर्न देखने से शरीर में एक हार्मोन खराब हो जाता है

(Serial Killer Ravinder Kumar Case) किताब ‘द पोर्न सर्किट’ में अमेरिकी मनोवैज्ञानिक सैम ब्लैक कहते हैं कि जब कोई अपराधी पोर्न देखता है तो उसके दिमाग में भावनाओं के लिए जिम्मेदार डोपामाइन हार्मोन तेजी से रिलीज होने लगता है।

इस तरह के कंटेंट को देखकर उन्हें बेहद खुशी मिलती है। अगली बार वह और अधिक खुशी चाहता है। चूंकि पोर्न वास्तविक नहीं है, इसलिए अब उसे ऐसी चीजें वास्तविकता में करने की ललक है।

यहीं पर शरीर में एक तरह का शार्ट सर्किट होता है और अपराधी अनुकूल माहौल मिलते ही उस काम को अंजाम दे देता है। धीरे-धीरे यही इच्छा वासना में बदल जाती है, जो उसे बार-बार ऐसा करने के लिए प्रेरित करती है।

 

बार-बार पोर्न फिल्में देखने का क्या असर होता है?

2014 की एक स्टडी के मुताबिक, लगातार पोर्न देखने से दिमाग का आनंद देने वाला हिस्सा सिकुड़ जाता है। (Serial Killer Ravinder Kumar Case) बर्लिन में मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने नियमित रूप से पोर्न कंटेंट देखने वाले 60 पुरुषों का अध्ययन किया गया। वैज्ञानिकों ने इस दौरान पाया कि उनके दिमाग का एक हिस्सा सिकुड़ चुका था और यह हिस्‍सा थोड़ा छोटा भी हो गया था।

यूनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज की स्टडी में कहा गया है कि पोर्न देखना एडिक्शन जैसा है। ऐसे लोगों में कंपल्सिव सेक्सुअल बिहेवियर (CSB) देखा जाता है। यानी ऐसे लोगों के मन में हमेशा गंदे विचार रहते हैं, नौकरी, रिश्ते और जीवन के हर क्षेत्र में नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह लत इतनी बुरी हो जाती है कि व्यक्ति का अपने मन पर नियंत्रण नहीं रहता है।

कोपेनहेगन विश्वविद्यालय और कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने नियमित रूप से पोर्न देखने वाले 200 पुरुषों का अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि ज्यादा पोर्न देखने वाले लोगों में महिलाओं के बारे में नकारात्मक और रूढ़िवादी सोच विकसित हो जाती है।

 

पोर्न नया नशा है, लोग सही और गलत में फर्क नहीं कर पा रहे हैं

पोर्न देखने से तन, मन और दिमाग तीनों पर असर पड़ता है। मैरिपीडिया में प्रकाशित अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ज्यादा पोर्न देखने से व्यक्ति के दिमाग, शरीर और दिल पर असर पड़ता है। ऐसे कंटेंट को देखकर इंसान हकीकत से दूर होने लगता है और कल्पनाओं की दुनिया में जीने लगता है।

यहीं से उसका हिंसक व्यवहार शुरू होता है। बच्चों के यौन शोषण और अपराधियों के व्यवहार पर अध्ययन कर रहे ‘समाधान’ अभियान की प्रमुख अर्चना अग्निहोत्री का कहना है कि जो अपराधी अधिक पोर्न देखते हैं उनमें हताशा अधिक होती है. वे ऐसे तबके से आते हैं, जहां खुली सोच नहीं है। वे औरतों या बच्चों को सेक्स की वस्‍तु या शरीर की कामोत्‍तेजना शांत करने की वस्‍तु की तरह ट्रीट करते हैं और उनकी भावनाओं की परवाह तक नहीं करते।

यह उनकी समझ से परे है कि पोर्न में दिखाई जाने वाली सामग्री गलत है और इसे सामान्य जीवन का हिस्सा नहीं बनाया जा सकता।

ऐसे लोगों में पोर्न एक्सीलेटर का काम करता है जो उनकी आपराधिक प्रवृत्ति को बढ़ाता है। मौका मिलते ही ये अपनी गलत सोच को असल जिंदगी में उतारने की कोशिश करते हैं, जो धीरे-धीरे लत का रूप ले लेती है।

पोर्न या गंदे वीडियो देखने वाले लोगों में अलगाव, आक्रामक व्यवहार, रिश्ते और कामुकता के बारे में अंधविश्वास और गलत धारणाएं विकसित हो जाती हैं। यहां तक कि अपने बारे में नकारात्मक सोच भी बन जाती है। इसलिए पोर्न को न्यू ड्रग कहा जाता है।

 

अधिकांश पोर्न देखने वाले महिलाओं या बच्चों को सेक्स की वस्‍तु समझते हैं

दिमाग पर इम्‍पेक्‍ट : ऐसे लोगों के यौन संबंध डगमगा जाते हैं। वे रिश्ते के दौरान असामान्य व्यवहार करते हैं। (Serial Killer Ravinder Kumar Case) उनमें यौन आक्रामकता बढ़ जाती है, जैसे सिगरेट जलाना, ब्लेड मारना या पीटना और यहाँ तक कि बलात्कार की प्रवृत्ति भी बढ़ जाती है। ऐसे लोग महिलाओं और बच्चों को सेक्स ऑब्जेक्ट के रूप में देखने लगते हैं।

शरीर पर इम्‍पेक्‍ट बहुत अधिक पोर्न देखना एक लत की तरह है। हमें खुशी का अहसास कराने वाला डोपामाइन हार्मोन ज्यादा रिलीज होने लगता है। इससे नई और ज्यादा पोर्न देखने की इच्छा बढ़ती चली जाती है। इसे सच्‍च में पूरा करने के लिए इंसान सेक्स वर्कर के पास जाने लगता है। ऐसे लोगों में यौन संचारित रोगों का खतरा (Aids, HIV) भी देखा गया है।

दिल पर इम्‍पेक्‍ट: व्यक्ति के अंदर भावनाएं पूरी तरह से गायब हो जाती हैं. एक विवाहित व्यक्ति अपने यौन संबंधों से असंतुष्ट रहता है। वह पार्टनर को बेवफा समझने लगता है, भरोसा तोड़ देता है और बार-बार गुस्सा करने लगता है। कई बार यह तलाक का कारण भी बन जाता है।

 

नेक्रोफिलियाक वे भी हैं जो बच्चों का यौन शोषण करते हैं

रिटायर्ड एसीपी जगमिंदर सिंह दहिया का कहना है कि बच्चों का यौन शोषण करने वाले ज्यादातर सीरियल किलर भी नेक्रोफिलिक होते हैं। यानी बच्चे का यौन शोषण कर उसे मार देते हैं और फिर उसकी लाश का भी रेप करते हैं। ऐसे लोग गरीबों के बच्चों और गांवों के बच्चों को अपना निशाना बनाते हैं, क्योंकि ये उनके आसान शिकार होते हैं। ऐसे लोगों में पॉर्न वीडियो देखने की प्रवृत्ति भी ज्यादा देखी जाती है।

दहिया की टीम ने रविंदर को 2015 में छह साल की बच्ची की हत्या के मामले में गिरफ्तार किया था। दिल्ली की रोहिणी कोर्ट ने उसे 6 मई को दोषी करार दिया था। 2014 में एक छोटी बच्ची का यौन शोषण करने के बाद उसने उसकी हत्या कर दी और उसे सेप्टिक टैंक में फेंक दिया।

 

ज्यादातर सीरियल किलर बचपन में यौन शोषण के शिकार होते हैं

Edubardy.com पर प्रकाशित मिचेल और एमोड्ट के ‘चाइल्ड एब्यूज एंड सीरियल मर्डर’ अध्ययन के अनुसार, 74 प्रतिशत सीरियल किलर ने एक बच्चे के रूप में मनोवैज्ञानिक दुर्व्यवहार का सामना किया था, जबकि 42 प्रतिशत हत्यारों ने एक बच्चे के रूप में यौन शोषण का अनुभव किया था।

अधिकांश मनोवैज्ञानिक अभी भी मानते हैं कि सीरियल किलर पैदा नहीं होते हैं, वे परिस्थितियों और बचपन, किसी चोट, दुर्घटना या बुरी दुर्घटना के शिकार होते हैं।

डॉ. अनुजा कपूर कहती हैं कि ज्यादातर सीरियल किलर वो बनते हैं जिनका बचपन में यौन शोषण हुआ हो. खासकर अगर किसी महिला ने उस बच्चे का यौन शोषण किया हो। ऐसे हत्यारे के लिए पोर्न सामग्री उसके हिंसक व्यवहार को बढ़ाती है।

एक क्रूर हत्यारे का भी कूलिंग ऑफ पीरियड होता है

अमेरिका की संघीय जांच एजेंसी (एफबीआई) ने साइको किलर और सीरियल किलर (Serial Killer Ravinder Kumar Case) पर अध्ययन के बाद अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि सीरियल किलर विभिन्न व्यक्तित्व विकारों से पीड़ित होते हैं। इनमें मनोरोगी और असामाजिक व्यक्तित्व पाया जाता है।

ऐसा व्यक्ति नियमित अंतराल पर एक के बाद एक कम से कम 3 या 4 हत्याएं करता है। सीरियल किलर का कूलिंग ऑफ पीरियड भी होता है, जिसमें वह कोई मर्डर नहीं करता है। ज्यादातर सीरियल किलर अपने दिमाग से संघर्ष करते हैं और किसी को मारने के बाद संतुष्टि महसूस करते हैं। उन्हें अपने शिकार पर अत्याचार करने और मारने में मजा आता है।

 

सीरियल किलर निर्दयी और नासमझ होते हैं

(Serial Killer Ravinder Kumar Case) क्रिमिनल साइकोलॉजिस्‍ट दीपक सोलंकी कहते हैं, ज्यादातर सीरियल किलर असामाजिक होते हैं। उनके पास दया नहीं है, न ही वे किसी कानून का पालन करते हैं। उन्हें दूसरों के अधिकारों की भी परवाह नहीं है। न ही उन्हें पछतावे का कोई भाव है। ऐसे लोग इतने नासमझ होते हैं कि उन्हें लगता है कि वे सही कर रहे हैं।

सीरियल किलर कौन हैं, कहां से आते हैं? उनका मन क्या है और उनका व्यक्तित्व क्या है? पोर्न कंटेंट का उनके दिमाग पर क्या असर पड़ता है?

ऐसे लोग शिकारी व्यक्तित्व के होते हैं, जो शिकार का ब्लू प्रिंट बना लेते हैं

क्रिमिनल साइकोलॉजिस्ट और एडवोकेट डॉ. दीपक सोलंकी का कहना है कि ऐसे लोग शिकारी व्यक्तित्व के होते हैं। ऐसे लोग अपनी योजना का पहली बार में ही ब्लू प्रिंट बना लेते हैं।

ये देखने में अच्छे होते हैं और द्विध्रुवीय व्यक्तित्व वाले होते हैं और आम लोगों के बीच इतने घुले-मिले रहते हैं कि इन्हें आसानी से पहचाना नहीं जा सकता।

वे घात लगाकर अंधेरे में अपने शिकार का पीछा करते हैं। अपनी वासना को पूरा करने का मौका पाकर वे उसे मार डालते हैं। यहां आपको बता दें कि टेड बंडी और चार्ल्स शोभराज ऐसे ही हत्यारे थे।

सीरियल किलर का दिमाग असामान्य होता है, बचपन की चोट उन्हें हिंसक बनाती है

अमेरिका के एमेन क्लीनिक्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सीरियल किलर का दिमाग आम लोगों जितना स्वस्थ नहीं होता है। मस्तिष्क के कई हिस्सों में असामान्य गतिविधि पाई जाती है। खासकर प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स में। दिमाग का यह हिस्सा हम सभी में करुणा का भाव जगाता है, निर्णय लेने और सोच-समझकर कुछ करने के बारे में बताता है।

जर्नल ऑफ न्यूरोसाइंस के अनुसार, अगर किसी व्यक्ति को अतीत में कभी मस्तिष्क की चोट लगी हो, तो उस व्यक्ति के व्यवहार के हिंसक होने की संभावना बढ़ जाती है। उनमें हत्या या आत्महत्या करने की प्रवृत्ति अधिक देखी जाती है।

 

नेक्रोफिलियाक वे भी हैं जो बच्चों का यौन शोषण करते हैं

रिटायर्ड एसीपी जगमिंदर सिंह दहिया का कहना है कि बच्चों का यौन शोषण करने वाले ज्यादातर सीरियल किलर भी नेक्रोफिलिक होते हैं। यानी बच्चे का यौन शोषण कर उसे मार देते हैं और फिर उसकी लाश का भी रेप करते हैं।

ऐसे लोग गरीबों के बच्चों और गांवों के बच्चों को अपना निशाना बनाते हैं, क्योंकि ये उनके आसान शिकार होते हैं। ऐसे लोगों में पॉर्न वीडियो देखने की प्रवृत्ति भी ज्यादा देखी जाती है।

दहिया की टीम ने रविंदर को 2015 में छह साल की बच्ची की हत्या के मामले में गिरफ्तार किया था। दिल्ली की रोहिणी कोर्ट ने उसे 6 मई को दोषी करार दिया था। 2014 में एक छोटी बच्ची का यौन शोषण करने के बाद उसने उसकी हत्या कर दी और उसे सेप्टिक टैंक में फेंक दिया।

 

ज्यादातर सीरियल किलर बचपन में यौन शोषण के शिकार होते हैं

Edubardy.com पर प्रकाशित मिचेल और एमोड्ट के ‘चाइल्ड एब्यूज एंड सीरियल मर्डर’ अध्ययन के अनुसार, 74 प्रतिशत सीरियल किलर ने एक बच्चे के रूप में मनोवैज्ञानिक दुर्व्यवहार का सामना किया था, जबकि 42 प्रतिशत हत्यारों ने एक बच्चे के रूप में यौन शोषण का अनुभव किया था।

अधिकांश मनोवैज्ञानिक अभी भी मानते हैं कि सीरियल किलर पैदा नहीं होते हैं, (Serial Killer Ravinder Kumar Case) वे परिस्थितियों और बचपन, किसी चोट, दुर्घटना या बुरी दुर्घटना के शिकार होते हैं।

क्रिमिनल साइकोलॉजिस्‍ट दीपक सोलंकी के अनुसार ज्यादातर सीरियल किलर वे ही लोग बनते हैं जिनका बचपन में यौन शोषण हुआ हो। ज्‍यादातर उस कैसे में यदि किसी महिला ने उस बच्चे का यौन शोषण किया हो। ऐसे हत्यारे के लिए पोर्न सामग्री उसके हिंसक व्यवहार को और ज्‍यादा बढ़ाती जाती है और रेप के साथ मर्डर की भाावना दिमाग में घर कर जाती है।

 

एक क्रूर हत्यारे का भी कूलिंग ऑफ पीरियड होता है

अमेरिका की संघीय जांच एजेंसी (एफबीआई) ने साइको किलर और सीरियल किलर पर अध्ययन के बाद अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि सीरियल किलर विभिन्न व्यक्तित्व विकारों से पीड़ित होते हैं। इनमें मनोरोगी और असामाजिक व्यक्तित्व पाया जाता है।

ऐसा व्यक्ति नियमित (Serial Killer Ravinder Kumar Case) अंतराल पर एक के बाद एक कम से कम 3 या 4 हत्याएं करता है। सीरियल किलर का कूलिंग ऑफ पीरियड भी होता है, जिसमें वह कोई मर्डर नहीं करता है। ज्यादातर सीरियल किलर अपने दिमाग से संघर्ष करते हैं और किसी को मारने के बाद संतुष्टि महसूस करते हैं। उन्हें अपने शिकार पर अत्याचार करने और मारने में मजा आता है।

 

सीरियल किलर निर्दयी और नासमझ होते हैं

क्रिमिनल साइकोलॉजिस्‍ट दीपक सोलंकी कहते हैं, ज्यादातर सीरियल किलर असामाजिक होते हैं। (Serial Killer Ravinder Kumar Case) उनके पास दया नहीं है, न ही वे किसी कानून का पालन करते हैं। उन्हें दूसरों के अधिकारों की भी परवाह नहीं है। न ही उन्हें पछतावे का कोई भाव है। ऐसे लोग इतने नासमझ होते हैं कि उन्हें लगता है कि वे सही कर रहे हैं।

सीरियल किलर कौन हैं, कहां से आते हैं? उनका मन क्या है और उनका व्यक्तित्व क्या है? पोर्न कंटेंट उन पर मेंटली पर क्या असर डालता है?

 

ऐसे लोग शिकारी व्यक्तित्व के होते हैं, जो शिकार का ब्लू प्रिंट बना लेते हैं

क्रिमिनल साइकोलॉजिस्ट और एडवोकेट डॉ. दीपक सोलंकी का कहना है कि ऐसे लोग शिकारी व्यक्तित्व के होते हैं। ऐसे लोग अपनी योजना का पहली बार में ही ब्लू प्रिंट बना लेते हैं।

(Serial Killer Ravinder Kumar Case) ये देखने में अच्छे होते हैं और द्विध्रुवीय व्यक्तित्व वाले होते हैं और आम लोगों के बीच इतने घुले-मिले रहते हैं कि इन्हें आसानी से पहचाना नहीं जा सकता।

वे घात लगाकर अंधेरे में अपने शिकार का पीछा करते हैं। अपनी वासना को पूरा करने का मौका पाकर वे उसे मार डालते हैं। यहां आपको बता दें कि टेड बंडी और किलर चार्ल्स शोभराज इसी प्रवृति के हत्यारे थे।

 

सीरियल किलर का दिमाग असामान्य होता है, बचपन की चोट उन्हें हिंसक बनाती है

अमेरिका के एमेन क्लीनिक्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सीरियल किलर का दिमाग आम लोगों जितना स्वस्थ नहीं होता है। (Serial Killer Ravinder Kumar Case) मस्तिष्क के कई हिस्सों में असामान्य गतिविधि पाई जाती है। खासकर प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स में। दिमाग का यह हिस्सा हम सभी में करुणा का भाव जगाता है, निर्णय लेने और सोच-समझकर कुछ करने के बारे में बताता है।

जर्नल ऑफ न्यूरोसाइंस के अनुसार, अगर किसी व्यक्ति को अतीत में कभी मस्तिष्क की चोट लगी हो, तो उस व्यक्ति के व्यवहार के हिंसक होने की संभावना बढ़ जाती है। (Serial Killer Ravinder Kumar Case) उनमें हत्या या आत्महत्या करने की प्रवृत्ति अधिक देखी जाती है।

 

एक साइकोकिलर के शरीर में बहुत अधिक कैमिकल लोचा होता है, इसमें कोई दो राय नहीं

अमेरिकी शोधकर्ता जोएल नॉरिस अपनी किताब ‘सीरियल किलर’ में बताते हैं कि सीरियल किलर अक्सर बहुत गुस्से में होते हैं। उन्हें कुछ रोमांचकारी करने की इच्छा होती है और वे लोगों से धन और ध्यान आकर्षित करने के लिए हत्याएं भी करते हैं।

सीरियल किलर के शरीर में बहुत अधिक रासायनिक असंतुलन होता है। वह अवसाद से जूझता रहता है। (Serial Killer Ravinder Kumar Case) उनके पास बहुत कम मोनोमाइन ऑक्सीडेज और सेरोटोनिन का स्तर भी होता है। सेरोटोनिन हार्मोन आक्रामक व्यवहार को नियंत्रित करता है।

 

Serial Killer Ravinder Kumar
KD Kempamma , cynaide mallika

केम्पम्मा भारत की पहली महिला सीरियल किलर थी, साइनाइड मल्लिका के नाम से थी मशहूर

भाारत की बात करें तो सुरिंदर कोली और मोनिंदर सिंह पंढेर सबसे घातक सीरियल किलर थे। केडी केम्पम्मा, (Serial Killer Ravinder Kumar Case) जिसे साइनाइड मल्लिका के नाम से जाना जाता है, भारत की पहली महिला सीरियल किलर थी।  केंपम्मा ने 1999 में पहली बार जल्दी अमीर बनने के लिए एक महिला की हत्या की थी। उसका मारने का तरीका भी काफी हैरान करने वाला था।

उसका मुख्य उद्देश्य लूटपाट करना रहा होगा। (Serial Killer Ravinder Kumar Case) वह एक भक्त के रूप में मंदिरों में जाती थी और फिर वहां ऐसी महिलाओं को निशाना बनाती थी जो बहुत परेशान और उदास दिखती थीं। उसने 5 महिलाओं को मार डाला।

साइनाइड मल्लिका उर्फ केडी केंपम्मा कर्नाटक के कग्गलीपुरा की रहने वाली थी। पुलिस के मुताबिक, मल्लिका को मंदिरों के आसपास ऐसी महिलाएं मिलती थीं, जो मानसिक रूप से परेशान रहती थीं। वह महिलाओं के अमीर होने की पूरी जानकारी ले लेती थी। उसने खुद को भगवान का भक्त और एक धार्मिक महिला की इमेज बना रखी थी। वह महिलाओं को अपनी साजिश में फंसा लेने में माहिर थी।

वह महिलाओं को यह कहकर फंसाती थी कि वह पूजा के जरिए उनकी सभी समस्याओं का समाधान कर देंगी। (Serial Killer Ravinder Kumar Case) इसके बाद वह महिलाओं को अपना शिकार बनाती थी। उसका पहला शिकार 1999 में बैंगलोर के बाहरी इलाके में रहने वाली ममता राजन नाम की एक 30 वर्षीय महिला थी।

केंपम्मा ने ममता को पूजा के नाम पर फंसाया और खाने में साइनाइड मिलाकर दे दिया था। इससे उसकी मौत हो गई और वह ममता का कीमती सामान लेकर फरार हो गई। यहां से वह अपराध की दुनिया में आगे बढ़ी, फ‍िर उसने कई वारदातों को अंजाम दिया।

 

दुनिया का प्रथम सीरियल किलर जहर देकर मार देता था… (Serial Killer Ravinder Kumar Case)

इतिहास में दर्ज पहला सीरियल किलर 2100 साल पहले रोमन साम्राज्य में था। ऐसा माना जाता था कि टिड्डा नाम का यह हत्यारा इतना खूंखार था कि वह शाही परिवार के आम लोगों को जहर देकर मार देता था।

क्या एक विशिष्ट जीन मनुष्‍य को साइकोकिलर बना देता है?

हालांकि जेनेटिक्स होम रेफरेंस के मुताबिक किसी को साइको किलर बनाने में उसके माहौल, उसके साथ व्यवहार या किसी भी घटना का हाथ होता है।

लेकिन नए शोध में कहा गया है कि MAOA जीन एक प्रकार का एंजाइम है जो मोनोअमाइन को तोड़ता है, जो मस्तिष्क को संदेश पहुंचाता है। ये रसायन सेरोटोनिन, एपिनेफ्रीन और डोपामाइन हैं। सेरोटोनिन व्यक्ति के मूड, भावनाओं, नींद और भूख को प्रभावित करता है।

और जेनेटिक लिटरेसी प्रोजेक्ट के अनुसार, CDH13 जीन मस्तिष्क की कोशिकाओं और सिज़ोफ्रेनिया, बाइपोलर डिसऑर्डर और अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (ADHD) से जुड़ा है।

हालांकि, मनोवैज्ञानिकों के बीच अभी भी यह आम राय नहीं है कि एक जीन किसी को सीरियल किलर बनाता है। उनका कहना है कि यह मानना गलत है कि जीन में बदलाव किसी को अपराधी बना देता है।

साइकोलॉजी टुडे में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, सीरियल किलर में हार्मोन टेस्टोस्टेरोन का स्तर दूसरों की तुलना में काफी अधिक होता है।

 

लुधियाना कोर्ट ने कहा- अपराध इतना जघन्य है कि 25 साल से जमानत नहीं

लुधियाना की एक अदालत ने 1 साल की बच्ची से रेप करने वाले शख्स को उम्रकैद की सजा सुनाते हुए कहा- आरोपी का जुर्म इतना जघन्य है कि उसे 25 साल तक पैरोल नहीं मिलनी चाहिए। चार्जशीट दाखिल होने के 60 दिन के भीतर कोर्ट ने यह फैसला सुनाया था।

क्या मेंटल डिजीज और सीरियल किलर के बीच कोई संबंध है?

क्रिमिनल साइकोलॉजिस्‍ट डॉ. विनोद दुआ कहते हैं, ज्यादातर माना जाता है कि सीरियल किलर मानसिक रूप से बीमार होते हैं। जबकि हकीकत इससे उलट होती है। (Serial Killer Ravinder Kumar Case) सच्‍चाई तो ये है कि सीरियल किलर मानसिक रूप से बीमार ही नहीं होते हैं। कुछ मामलों में मानसिक बीमारी मौजूद हो सकती है, लेकिन सीरियल किलिंग में यह प्राथमिक कारण नहींं होता।

 

पारिवार में लड़ाई या परिवार का आपराधिक इतिहास बनाता है हत्यारा

दिल्‍ली के पर्सनैलिटी कोच विकास थापर का कहना है कि ज्यादातर सीरियल किलर उन परिवारों से आते हैं जहां घर में हमेशा लड़ाई-झगड़े होते हैं या परिवार का आपराधिक इतिहास रहा है या रिश्तों में बहुत तनाव रहता है। (Serial Killer Ravinder Kumar Case) ऐसा सीरियल किलर अक्सर अपने परिवार को ही पहला शिकार बनाता है। एड केम्पर एक ऐसा ही सीरियल किलर था, जिसने सबसे पहले अपने दादा-दादी की हत्या की थी।

साइको किलर्स से पीड़‍ि‍तों की रक्षा के लिए कार्य कर रहीं त्रिशा शर्मा का कहना है कि ऐसे अपराधों को रोकने के लिए समाज को नैतिक रूप से मजबूत होना होगा। अपराधी कोई भी बनता है तो कहीं न कहीं उसके लिए समाज भी जिम्मेदार होता है।

 

ये भी पढ़ें –

एडल्ट फिल्मों को Blue Films क्यों कहते हैं‚ क्या आप जानते हैं पोर्न फिल्मों की शुरुआत कैसे हुई?

Research: भाषा से ज्यादा प्रभाव आपके भावों का होता है‚ जानिए कैसेॽ

 

Like and Follow us on :

Google News |Telegram | Facebook | Instagram | Twitter | Pinterest | Linkedin

Was This Article Helpful?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *