Global warming heatwaves research ने चौंकाने वाले आंकड़े पेश किए हैं। 2000 से 2023 के बीच हुई 213 हीटवेव्स के अध्ययन में पाया गया कि हर चौथी हीटवेव सीधे इंसानी गतिविधियों और climate change का नतीजा है। भारत इस संकट से सबसे ज्यादा प्रभावित देशों में है, जहां heatwave intensity बढ़कर 2.2°C तक पहुंच गई। स्टडी ने यह भी बताया कि बड़ी कंपनियों के carbon emissions ने हीटवेव्स को और घातक बना दिया है।
यह शोध किसने किया और कब प्रकाशित हुआ?
हाल ही में Nature Journal में प्रकाशित एक अंतरराष्ट्रीय शोध, जो ETH Zurich (Swiss Federal Institute of Technology) द्वारा किया गया, ने 2000 से 2023 के बीच दुनियाभर की 213 heatwaves का विश्लेषण किया। इसमें 63 देशों को शामिल किया गया।
शोध में क्या मुख्य निष्कर्ष सामने आए?
स्टडी में पाया गया कि लगभग 25% heatwaves सीधे global warming का नतीजा थीं। इंसानी गतिविधियों और climate change ने हीटवेव्स की संख्या और तीव्रता को कई गुना बढ़ा दिया है।
भारत पर इसका कितना असर पड़ा?
भारत सबसे अधिक प्रभावित देशों में से है। मई 2006 की heatwave की संभावना 22% तक बढ़ गई थी। वहीं 2020–2023 के बीच औसत heatwave intensity 2.2°C ज्यादा दर्ज की गई।
घनी आबादी, कमजोर इन्फ्रास्ट्रक्चर, energy resources की कमी और शहरों में प्रदूषण ने खतरे को और बढ़ाया।
किसने सबसे ज्यादा उत्सर्जन बढ़ाया?
रिपोर्ट के अनुसार, 180 बड़ी कंपनियां हीटवेव की तीव्रता बढ़ाने के लिए जिम्मेदार हैं। इनमें से Top 14 Carbon Majors (जैसे ExxonMobil, Shell, Gazprom, Coal India) ने 1850 से अब तक 30% emissions किए।
भारत में Coal India बड़ा योगदानकर्ता है।
उत्सर्जन से हीटवेव्स कैसे प्रभावित हुईं?
अध्ययन में पाया गया कि पूर्व सोवियत संघ का उत्सर्जन अकेले 53 heatwaves को 10,000 गुना अधिक संभावित बना चुका है। छोटे उत्पादक भी इस संकट में छोटे योगदानकर्ता नहीं हैं।
शहरों और ग्रामीण इलाकों पर क्या असर पड़ा?
शहरी इलाकों में urban heat island effect, प्रदूषण और बिजली की बढ़ती मांग ने खतरे को और गहरा किया। वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में संसाधनों की कमी और स्वास्थ्य ढांचे की कमजोरी ने मौतों और बीमारियों का खतरा बढ़ा दिया।
आगे का रास्ता क्या है?
विशेषज्ञों का कहना है कि climate action, ग्रीन एनर्जी की ओर बदलाव, और बड़े कार्बन उत्सर्जकों पर नियंत्रण जरूरी है। साथ ही हीटवेव्स से निपटने के लिए early warning systems, public health measures और sustainable energy policies को मजबूत करना होगा।
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