52 Shaktipeeth: माता के 51 शक्तिपीठों का खास महत्व है। 51 शक्तिपीठों की सीरीज में आज हम आपको मां विशालाक्षी के शक्तिपीठ के बारे में बता रहे हैं।
वाराणसी में ज्योतिर्लिंग शक्तिपीठ दोनों के दर्शन का सौभाग्य मिलता है
वाराणसी का एक और भी नाम है और वो है काशी। काशी नगरी का पौराणिक महत्व बेहद पुराना है। खास बात ये है कि काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग और विशालाक्षी शक्तिपीठ इसी शहरमें स्थित हैं। ऐसा माना जाता है कि भगवान विश्वनाथ यहां रात्रि विश्राम मां विशालाक्षी के मंदिर में ही करते हैं। बता दें कि मणिकर्णिका घाट क्षेत्र में ही विशालाक्षी देवी का मंदिर है।
मंदिर में देवी के साथ श्रीयंत्र का दर्शन और पूजन होता है शुभ
मां विशालाक्षी मंदिर के अस्तित्व में आने का इतिहास हजारों वर्ष पुराना माना जाता है। स्थानीय बुजुर्ग लोगों की मानें तो मौजूदा मंदिर का जीर्णोद्धार साल 1908 के आसपास किया गया था। यहां देवी मां की प्रतिमा के सामने श्रीयंत्र भी स्थापित है। मान्यता है कि देवी के साथ श्रीयंत्र का दर्शन और पूजन करने से श्रद्धालुओं को मां का महाआशीर्वाद मिलता है।
विशालाक्षी शक्तिपीठ से जुड़ी पौराणिक मान्यता और कथा
देवी मां के 51 शक्तिपीठ देवी सती से जुड़े हुए हैं। पौराणिक कथा पर गौर करें तो देवी सती ने दक्ष प्रजापति के यज्ञ कुंड में कूदकर अपनी देह त्याग दी थी। इसके बाद महादेव देवी सती के शव को लेकर सृष्टि में इधर-उधर भटकने लगे। उस समय भगवान विष्णु ने देवी सती की देह के सुदर्शन चक्र से 51 टुकड़ों में विभाजित कर दिया था, ताकि शिव का सती के प्रति मोह टूट जाए और उनका क्रोध शांत हो जाए। इसके बाद जहां-जहां देवी सती के शरीर के टुकड़े और आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ स्थापित हो गए। इसी कथा के अनुसार मान्यता है कि विशालाक्षी शक्तिपीठ क्षेत्र में देवी सती की कान की मणि गिरी थी।
ऋषि व्यास को मां विशालाक्षी ने कराया था भोजन
यहां ऐसी मान्यता है कि ज्योतिर्लिंग और शक्तिपीठ के एक साथ दर्शन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। यहां गंगा स्नान के बाद श्रद्धालु मंदिर में धूप-दीप जलाते हैं और अपनी क्षमता के अनुसार देवी मां को उपहार और प्रसाद का भोग लगाते हैं। यहां विशालाक्षी मंदिर में भी कई शिवलिंग स्थापित हैं। स्कंद पुराण के अनुसार, एक बार ऋषि व्यास को इस क्षेत्र में देवी माँ ने भोजन भी कराया था।
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