क्या परंपरा से बंधे रहना ठीक हैॽ याद रखिए ठहरा पानी भी दुर्गन्ध देने लगता है‚ क्योंकि बदलाव और बहाव दोनों समय की मांग रहती है… इसे यूं समझिए Read it later

 

क्या परंपरा से बंधे रहना ठीक हैॽ  याद रखिए ठहरा पानी भी दुर्गन्ध देने लगता है
iStock 


भारत
परम्पराओं कादेश है, यहाँ संस्कारोंसे बच्चे बड़े बनते हैंलेकिन लोग कहते हैंकि इंटरकास्ट मैरिजसे परम्पराएँ बिखर रही हैं, लेकिन आपने तीन मछलियों की कहानी सुनीही है, हम परम्पराओंका सम्मान करते हैं लेकिनयाद रखिये यदि पानी एकही जगह पर ठहरारहा, तो उससे बदबूआने में देर नहींलगती ऐसे ही कुदरतका नियम परम्पराओं परभी लागू होता है, और समय के साथपरम्पराएँ बदलनी चाहिए क्योंकि समाज बदल रहाहै. खाप पंचायतें गांवोंमें ऐसे सामुदायिक संगठनोंको कहते हैं जोकई बार अर्द्ध न्यायिकसंस्थाओं की तरह व्यवहारकरके कठोर सज़ा केफैसले सुनाती हैं


भारत में हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेशमें इनका प्रभाव नज़रआता है. माना जाताहै यहां होने वालेसम्मान के नाम परहत्या के लिए येपंचायतें अधिकांशत: ज़िम्मेदार होती हैं.देशमें सामाजिक समरसता लाने के लिएअंर्तजातीय विवाह को बढ़ावा दियाजाना आवश्यक है. वर्तमान प्रजातंत्र लोकतान्त्रिक देश में अंतरजातीयविवाह समाज के लिएकारगर साबित हो रहे हैं.

अपनी कम्युनिटी केविश्वस्त माहौल से निकलकर किसीऔर पर विश्वास करनामुश्किल लगता है. वेइसे अपनी जातीय शुद्धताके लिए प्रदूषण खतरा मानते हैं. अधिकांश लोगोंकी मानसिकता सोच मेंबदलाव नहीं पारहा, मातापिता द्वारातय किए जा रहेअधिकतर विवाहों में जातीय भावनाप्रबल रहती है.

जाति की गिरफ्तइतनी जल्दी ढीली पड़ने वालीनहीं है. ग्लोबलाइजशन नेकाफी कोशिश की मगर समाजके राजनीतिक धार्मिक सेवकोंकी वजह से हमारेअधिकांश शिक्षित समाज की सोचअभी अनपढों से भी गईगुज़री है.

देश डिजिटल होनेको बेताब है मगर मानवीयविकास के धरातल परहम ज़्यादा विकसित नहीं हो पाए.देखा जाए तो शून्यहाथ लगा, बेड़ियां जसकी तस. पढ़ लिखकरनौकरी कर रहे बच्चोंके दिमाग में हम पढ़ेलिखे विकसित, अभिजात्य, सुसंस्कृत निरंतर सभ्यकहलाने वाले अभिभावक कितनेसंजीदा तरीके से आज भीजातिवाद का ज़हर इंजेक्टकर रहे हैं यहअनुभव कर शर्म आतीहै.


क्या परंपरा से बंधे रहना ठीक हैॽ  याद रखिए ठहरा पानी भी दुर्गन्ध देने लगता है
iStock 

हर तरफ देश में बदलाव है, देश टेक्नोलॉजी में आसमान को छू रहा है, डिजिटल इंडिया का मिशन साकार होने के पड़ाव पर है।  फिर भी आज कुछ पुरानी परम्पराओ ने देश को संकीर्ण सोच में जकड रखा है। अंतरजातीय विवाह के नाम पर आज भी शिक्षित होने के बावजूद ग्रामीण ही नहीं शहरी क्षेत्रों में भी इस पर झुकाव में कमी है, क्योकि आज भी देश की अवाम अपने पुराने विचारो से बहार निकलने को तैयार नही है, कारण चाहे “लोग क्या कहेगे” वाली सोच है। 

अगर इस विचार से निकल कर एक बात को अपना लिया जाए की “कुछ तो लोग कहेगे लोगो का काम है कहना”। शादी का सफल होना इस बात पर नही करता कि विवाह अंतरजातीय विवाह या जातीय ? सही मायने में सार्थक शादी सिर्फ और सिर्फ विचारो का मेल है एवं आपसी ताल मेल यही सही मायने में सार्थक शादी है।    

निसंदेह अंतरजातीय विवाह के कुछ बहुत बड़े दुष-परिणाम है लेकिन ये सब तभी संभव है जब आपकी शैक्षणिक योग्यता में कमी है।  या आपको सामने वाले पक्ष के वाले में पूरी जानकारी नही है। अगर सब कुछ पूरी जांच पड़ताल के साथ लिया जाए तो अपनी सहमति से सारा काम हो तो सकारात्मक परिणाम ही मिलेंगे, कई कई बार अभिभावक सहमत हुते हुए भी मना कर देते है क्योकि कुछ आस पास में घटित घटनाओ के कारण वह डर जाते है साथ ही वह भविष्य को लेकर कई बार विचार करते है। 

   

क्या परंपरा से बंधे रहना ठीक हैॽ  याद रखिए ठहरा पानी भी दुर्गन्ध देने लगता है
iStock 


अध्‍ययन के मुताबिक भारत के बड़े शहरों में ही सबसे ज्‍यादा इंटर-कास्‍ट मैरेज होती हैं। दूसरे नंबर पर 3-टीयर सिटी आती हैं और फिर कस्‍बे व गांव। ऐसा माना जाता है कि इंटर कास्‍ट मैरेज की शुरुआत बॉम्बे से हुई। वैसे भी औद्योगिक नगरी और फिल्‍म इंडस्‍ट्री के यहां पर होना इसका सबसे बड़ा कारण है।

सकारात्मक सही सोचवाले समझदार लोग समाज केहर वर्ग में होतेहैं उनसे प्रेरणा पाकरही जातिवाद में सेंध लगतीहै. अनेक युवा अभिभावकोंके विरुद्ध जाकर भी तोविवाह करते हैं जहांबाद में आशीर्वाद दियाजाता है. देखा जाएतो संकीर्ण मानसिकता के लोग राजनीतिज्ञोंसे कम नहीं हैंजिनके कारण समाज बिखरापड़ा है. पहले हीसोच लिया जाए तो विवाह के मीठे में जाति का कड़वा न हो.

 

क्या परंपरा से बंधे रहना ठीक हैॽ  याद रखिए ठहरा पानी भी दुर्गन्ध देने लगता है
iStock 


दो अलग धर्म या जाति के लड़के-लड़की शादी करेंगे, तो उनके परिवार में मेल-जोल बढ़ेगा, उंच-नीच की भेदभाव मिटेंगी,प्यार से रिश्ते अटूट होंगे, नौजवान अपने मनपसंद की लड़का-लड़की के साथ शादी करेंगे.सबसे बड़ी बात देश में जाति-भेदभाव मिटेंगी और समाज में बेहतरीन सकारात्मक परिवर्तन आएगा, जिससे देश जुड़ेगा.

 

समाज के दबावमें कई पेरेंट्स अपनेबच्चों  की  खुशियों  को  भीभूल जाते हैं, भलेही उन्हें इंटरकास्ट मैरिज से कोई दिक्कत न हो पर समाज क्या कहेगा ये सवाल उनके मन में घर कर चूका होता है, सोसाइटी आप जैसे भले नागरिकों के मिलने से बना है, समाज आपसे है, आपने समाज को बनाया है और समाज को आपको चलाना है न कि समाज आपको कभी चलाएगा.

समाज में मान्यता न मिलने पर तथा एक व्यवस्थित ढाँचा न मिलने के बाद भी आज अन्तर्जातीय विवाह पहले की अपेक्षा अधिक हो रहे हैं तथा इसके विरोध की गहनता भी छट रही है. 

casteism in india | caste system | reservation india | caste system in india | reservation in india | aarakshan in india | 


 

Was This Article Helpful?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *