नासा एक्सपर्ट्स ने क्‍यों दी 2024 में गर्मी से हालात और बिगड़ने की चेतावनी, जानिए क्‍योंकि भविष्‍य के लिए यह जानना जरूरी है Read it later

Climate Change: नासा के टॉप क्लाइमेटोलॉजिस्ट (जलवायु विज्ञानी) गेविन श्मिट ने गुरुवार को कहा कि जुलाई 2023 दुनिया का संभवतः 100 वर्षों में सबसे गर्म महीना साबित हो सकता है। इस महीने अब तक हर दिन किसी न किसी देश में गर्मी के रिकॉर्ड टूट चुके हैं। यूरोपियन यूनियन और मेन यूनिवर्सिटी में हुए अध्ययन से रिकॉर्ड तोड़ गर्मी की जानकारी मिल रही है।

इस दौरान ज़मीनी और सैटेलाइट डेटा का अध्ययन किया गया। इसमें लू का बढ़ना और उससे होने वाले नुकसान साफ नजर देखे गए हैं। क्लाइमेटोलॉजिस्ट गेविन श्मिट का कहना है कि जलवायु परिवर्तन (Climate Change) बहुत तेजी से हो रहा है। अमेरिका, यूरोप, चीन जैसे देशों में लू से हालात बद्ततर हो रहे हैं। तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक पहुंच रहा है और इसमें लगातार इजाफा हो रहा है। तापमान के रिकॉर्ड टूट रहे हैं। ये सब अल नीनो की वजह से है।

what climate change is: अल नीनो मौसम का एक ग्लाेबल मिजाज है जो हर कुछ वर्षों में एक बार अपना असर महसूस कराता है। यह घटना विश्व के सबसे बड़े महासागर प्रशांत महासागर में घटित होती है। इसमें पूर्वी प्रशांत महासागर में पानी की ऊपरी परत गर्म हो जाती है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने बताया कि क्षेत्र में औसत तापमान (Climate Change) फरवरी में 0.44 डिग्री से बढ़कर जून के मध्य तक 0.9 डिग्री हो गया था।

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इस साल के अंत तक अल नीनो का असर बढ़ जाएगा

क्लाइमेटोलॉजिस्ट श्मिट की मानें तो फिलहाल जलवायु परिवर्तन पर अल-नीनो का असर कम हो रहा है। (cause of climate change) आने वाले समय में यह बढ़ सकता है। समुद्र में पानी की ऊपरी परत तेजी से गर्म हो रही है। वातावरण में बढ़ती कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) के कारण यह तापमान दिनोंदिन बढ़ रहा है। हम ईंधन के लिए जीवाश्म ईंधन को जलाते हैं। इनके जलने से हर साल दुनिया भर से 4000 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित हो रही है।

श्मिट के अनुसार इस साल के अंत तक अल-नीनो का असर बढ़ जाएगा, अगर ऐसा हुआ तो साल 2024 इस साल से ज्यादा गर्म हो सकता है।

3 जुलाई था दुनिया का सबसे गर्म दिन अमेरिका के नेशनल सेंटर फॉर एनवायर्नमेंटल प्रेडिक्शन की मानें तो 3 जुलाई अब तक का सबसे गर्म दिन बन गया था। इस दिन औसत वैश्विक तापमान 17 डिग्री सेल्सियस को पार कर गया, जो अगस्त 2016 में अब तक दर्ज किए गए सबसे गर्म दिन (16.92 डिग्री सेल्सियस) से अधिक था।

ग्रांथम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट चेंज एंड द एनवायरमेंट के वैज्ञानिक फ्रेड्रिक ओटो इस पर चिंता जाहिर करते हुए तल्‍ख शब्‍दों मे कहते हैं कि हमने कोई मील का पत्थर पार नहीं किया है, जिसका जश्न मनाया जाए। (effect climate change) यह इको सिस्टम के लिए मौत की सजा के बराबर है।’ उन्होंने बताया कि अगर हालात ऐसे ही रहे तो जल्द ही ये रिकॉर्ड भी टूटेंगे।

 

Climate Change

अमेरिका में अब तक 11 करोड़ लोग लू की चपेट में

अमेरिका में लगातार बढ़ते पारे ने लोगों का जीना मुहाल कर दिया है। बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक अगले हफ्ते अमेरिका में तापमान खतरनाक स्तर पर (Climate Change) पहुंचने जा रहा है। वहां 11 करोड़ 30 लाख लोग लू की जद में हैं। फ्लोरिडा, कैलिफोर्निया और वॉशिंगटन में इसे लेकर एडवाइजरी जारी की गई है। अमेरिका की राष्ट्रीय मौसम सेवा ने लोगों से अपने स्वास्थ्य के साथ कोई जोखिम नहीं लेने की हिदायत दी है।

15 जुलाई को अमेरिकी राज्य एरिजोना में तापमान 48 डिग्री सेल्सियस तक जा पहुंचा। अमेरिकी मौसम विभाग ने बताया है कि इस हफ्ते कैलिफोर्निया की डेथ वैली में पारा 54 डिग्री तक पहुंच जाएगा। डेथ वैली दुनिया की सबसे गर्म जगहों में से एक मानी जाती है।

 

यूरोप के कई देशों में तापमान 45 डिग्री तक जा पहुंचा

यूरोप की अंतरिक्ष एजेंसी ने इटली, स्पेन, फ्रांस, जर्मनी और पोलैंड में गर्मी को लेकर चेतावनी जारी की है। (Climate Change) यहां का तापमान 45 डिग्री तक जा पहुंचा है। इटली ने रोम और फ्लोरेंस समेत अपने 16 शहरों के लिए लू की चेतावनी जारी की है। यहां की सरकार ने लोगों को सुबह 11 बजे से शाम 6 बजे तक घर से बाहर न निकलने की सलाह दी है।

बढ़ते तापमान के कारण स्पेन के कैनरी द्वीप समूह में जंगलों में आग लग गई है। वहीं, ग्रीस में भी लोग गर्मी से बेहाल हैं। ग्रीस में जंगलों में आग लगने का ख़तरा बढ़ता जा रहा है। यहां 2021 में भी जंगल में आग लगने की बड़ी घटना हुई थी। (Climate Change) चीन में भी लू के साथ तापमान रिकॉर्ड 35 डिग्री सेल्सियस को पार कर गया है।

अगर 2050 तक पृथ्वी का तापमान 1.5 से 2 डिग्री बढ़ा तो ये असर देखने को मिलेगा (effect of climate change)

  • 10 साल के अंदर आर्कटिक महासागर की पूरी बर्फ पिघल जाएगी
  • मालदीव जैसे कोस्‍टल एरिया के देश की पूरी तरह से डूबने की नौबत आ जाएगी।
  • मुंबई, चेन्नई, विशाखापत्तनम जैसे 12 शहर 3 फीट तक पानी में डूब जाएंगे।
  • बाढ़ का प्रवाह 2000 की तुलना में 6.7 गुना अधिक बढ़ जाएगा।
  • दुनिया की 14 फीसदी आबादी को लू का सामना करना पड़ सकता है।
  • क्‍वाला व सफ़ेद भालू सहित 4% जानवर विलुप्त होकर हम इन्‍हें सिर्फ तस्‍वीरों में देखेंगे, जैसे डायनासॉर्स को देखते हैं।

 

अल नीनो का असर क्‍या है, इसका पूरा प्रॉसेस समझें

अलनीनो को सबसे महत्वपूर्ण जलवायु (Climate Change) को प्रभावित करने वाला प्राकृतिक फिनोमिना माना जाता है। टाइम मैग्जीन के मौसम विज्ञान पत्रकार जे. मेडलिन नेश के अनुसार अलनीनो को मास्टर वेदर मेकर बताया है, उनके अनुसार यह पूरी दुनिया के जलवायु पैटर्न को बदलकर रख देता है।

इससे 4 तरह से भारत पर असर पड़ सकते हैं-

सूखा
अलनीनो का सबसे ज्यादा असर बारिश के पैटर्न पर होता है। इसकी वजह से भारत में बारिश कम होती है। और सूखा पड़ने की 60% संभावना होती है।

महंगाई
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के मुताबिक 2023 में महंगाई दर 8.8% से घटकर 6.5% रहने की संभावना है। अनी और सूखे की वजह से महंगाई घटने के और बढ़ सकता है।

खाने के सामानों की किल्लत
भारत जैसे देश जहां खेती मुख्य रूप से बारिश पर निर्भर होती है। (Climate Change) कम बारिश के कारण उत्पादन कम होने से खाने के सामानों की कमी हो सकती है।

समुद्री जीव-जंतुओं पर असर
ओशनिक रिसर्च सेंटर की एक स्टडी के मुताबिक अलनीनो इम्पैक्ट की वजह से कम से कम 135 तरह मछलियां व अन्य समुद्री जीवों का अस्तित्व खत्म हो जाता है।

अब कार्बन उत्‍सर्जन क्‍या होता है इसे आसान भाषा में समझें

कार्बन उत्सर्जन या कार्बन एमिशन एक महत्वपूर्ण पर्यावरणीय मुद्दा है जो जलवायु परिवर्तन और जीवन को प्रभावित करता है। हम यहां आपको आसान भाषा में कार्बन उत्‍सजर्न के बारे में बता रहे हैं।

• जब कोई प्रक्रिया या उत्पादन, संभावित रूप से कार्बन धारकों को परिवर्तित करते हैं और इन्हें वायुमंडल (Climate Change) में छोड़ देती है। इसे कार्बन उत्सर्जन कहते हैं।

• कार्बन उत्सर्जन का प्रमुख कारण मानवीय गतिविधियां हैं जो अलग-अलग सेक्टरों में होती हैं, जैसे उर्जा उत्पादन, वाहनों का उपयोग, उद्योग, निर्माण, कृषि आदि। ये गतिविधियां ईंधनों कोयला, – ऑयल, और गैस का उपयोग करती हैं। इनसे कार्बन उत्सर्जित होता है।

• वायुमंडल में कार्बन उत्सर्जन की वृद्धि ग्लोबल थर्मलाइजेशन का कारण बनती है। ग्लोबल थर्मलाइजेशन एक प्रकार
का जलवायु परिवर्तन है जिसमें वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों (जैसे कि कार्बन डाइऑक्साइड, मेथेन, नाइट्रस ऑक्साइड) की मात्रा बढ़ जाती है, जो बाहरी अंतरिक्ष के तापमान को बढ़ाने वाली प्रभावित करती है।

• कार्बन उत्सर्जन के कारण वायुमंडल में तापमान बढ़ जाता है, जिससे जमीन का तापमान बढ़ता है और जलवायु परिवर्तन होता है।

• कार्बन धारकों की वृद्धि वनस्पतियों और सामुद्रिक समुद्री जीवन के लिए अवांछनीय रूप से परिवर्तित होती है, जिनसे महत्वपूर्ण पर्यावरणीय प्रभाव हो सकते हैं।

 

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