फ‍िल्‍म आदिपुरुष के बजट से सस्‍ता चंद्रयान-3 पृथ्वी की कक्षा में पहुंचा:ISRO चीफ बोले 23 अगस्त को भारत इतिहास रचेगा Read it later

Chandrayaan 3: इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन यानी इसरो ने शुक्रवार दोपहर 2 बजकर 35 मिनट पर Chandrayaan 3  मिशन लॉन्च किया। इस लान्चिंग में एक खास बात है जो हर भारतीय को जानना जरूरी है। वो यह कि इसकी लॉन्चिंग कॉस्ट शून्‍य है। जबकि लगभग 4 साल पहले के प्रॉजेक्‍ट चंद्रयान 2 की लॉन्चिंग कॉस्‍ट 375 करोड़ रुपए थी। दूसरी ओर Chandrayaan 3  के बजट की बात करें तो यह लगभग 615 करोड़ रुपए है। जबकि हाल ही में रिलीज हुई फिल्म आदिपुरुष का बजट 700 करोड़ रुपए था। मतलब यह कि चंद्रयान-3 इस मूवी की कॉस्ट से करीब 85 करोड़ रुपए सस्ता है। 4 साल पहले भेजे गए चंद्रयान 2 की कॉस्‍ट भी लगभग 603 करोड़ रुपए थी। इससे आप समझ सकते हैं कि फ‍िल्‍मों में पानी की तरह बहाए जाने वाले पैसों का सही उपयोग बेहतर भविष्‍य के लिए कैसे साइंस और तकनीक में हो सकता है, जबकि मूवी एक मनोरंजन का माध्‍यम है उसका दुर्गामी उदेश्‍य सिर्फ तीन घंटे का मनोरंजन करना होता है। बहरहाल आंध्र प्रदेश में श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से LVM3-M4 रॉकेट के माध्‍यम से चंद्रयान Chandrayaan 3 को स्पेस में सफलतापूर्वक भेज दिया गया है।

 

Table of Contents

LVM3-M4 व्हीकल से लॉन्च हुआ Chandrayaan 3

LVM3 इसरो का ऑपरेशनल हेवी लिफ्ट लॉन्च व्हीकल है। इस रॉकेट के जरिए Chandrayaan 3 को जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (GTO) तक पहुंचाया। LVM3 तीन स्टेज वाला रॉकेट है। पहली दो सॉलिड स्ट्रैप ऑन मोटर्स (S200), दूसरी- लिक्विड कोर स्टेज (L110) और तीसरी- हाई थ्रस्ट क्रायोजेनिक अपर स्टेज (C25) है।

ये 4000 किलो के स्पेसक्राफ्ट को GTO तक पहुंचाने में सक्षम है। 974s में ये स्पेसक्राफ्ट को 180×36000 km की ऑर्बिट में पहुंचा देता है। वहीं अगर लोअर अर्थ ऑर्बिट तक जाना हो तो 6000 किलो भार को ये 600 Km की ऊंचाई तक पहुंचा सकता है।

16 मिनट में अर्थ ऑर्बिट में पहुंचा

16 मिनट बाद चंद्रयान (Chandrayaan 3) सफलतापूर्वक अर्थ ऑर्बिट यानी पृथ्वी की कक्षा में पहुंच गया। प्रक्षेपण के बाद इसरो प्रमुख एस सोमनाथ ने कहा कि चंद्रयान -3 ने चंद्रमा की ओर अपनी यात्रा की शुरुआत कर दी है। अगर सब कुछ योजना के मुताबिक रहा तो यह 23 अगस्त को शाम 5.47 बजे चंद्रमा पर उतरेगा।

 

 

चंद्रयान-3 (Chandrayaan 3) में लैंडर, रोवर और प्रोपल्शन मॉड्यूल है। लैंडर और रोवर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेंगे और 14 दिनों तक वहां प्रयोग करेंगे। प्रोपल्शन मॉड्यूल चंद्रमा की कक्षा में रहकर पृथ्वी से आने वाले रेडिएशन की स्‍टडी करेगा। मिशन सेइसरो यह पता लगाएगा कि चंद्रमा की सतह पर भूकंप किस तरह से भूकंप आते हैं। प्रपोल्‍शन चंद्रमा की मिट्टी का भी स्‍टडी करेगा।

 

चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग हो गई ऐसा करने वाला भारत चौथा देश बन जाएगा

अगर Chandrayaan 3 के लैंडर को सॉफ्ट लैंडिंग में सफलता मिल जाएगी मतलब कि मिशन सफल होता है तो अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत ऐसा करने वाला चौथा देश बन जाएगा। अमेरिका और रूस दोनों के चंद्रमा पर सफलतापूर्वक उतरने से पहले कई अंतरिक्ष यान दुर्घटनाग्रस्त हुए थे। वहीं चीन अकेला ऐसा देश है जो 2013 में चांग’ई-3 मिशन के साथ अपने पहली कोशिश में ही सफल हो गया था।

 

भारत की अंतरिक्ष यात्रा में नया चैप्‍टर इतिहास में दर्ज

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चंद्रयान-3 (Chandrayaan 3) की सक्सेसफुल लॉन्चिंग के बाद इसे भारत की अंतरिक्ष यात्रा में एक नया अध्याय बताया। उन्होंने ये भी कहा कि यह महत्वपूर्ण उपलब्धि हमारे वैज्ञानिकों के अथक समर्पण का प्रमाण है। मैं उनकी भावना और प्रतिभा को सलाम करता हूं!

चंद्रयान-3 (Chandrayaan 3) के चांद पर पहुंचने और सॉफ्टट लैंड करने की प्रक्रिया को यूं समझें

  • 14 जुलाई 2023 को दोपहर 2 बजकर 35 मिनट पर आंध्रप्रदेश में श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्‍पेस सेंटर से मिशन लॉन्‍च हुआ। 23 अगस्‍त को शाम 5:47 बजे Chandrayaan 3 मून पर पहुंचेगा। पृथ्‍वी से चंद्रमा की दूरी 3 लाख 84 हजार किलोमीटर है।
  • LVM3 रॉकेट से चंद्रयान -3 क्राफ्ट लॉन्‍च हुआ।
  • 16 मिनट बाद रॉकेट ने चंद्रयान (Chandrayaan 3) को पृथ्‍वी की कक्षा में छोड़ दिया।
  • 22 दिन तक चंद्रयान पृथ्वी की अंडाकार कक्षा में रहेगा।
  • स्पेसक्राफ्ट अपनी अंडाकार कक्षा का दायरा धीरे-धीरे बढ़ाता जाएगा।
  • कक्षा का ट्रांसफर होगा और 6 दिन तक चंद्रमा की तरफ बढ़ेगा।
  • पृथ्वी की कक्षा से निकलकर Chandrayaan 3 चंद्रमा की कक्षा में पहुंचेगा।
  • 13 दिन तक चंद्रमा के चक्‍कर लगाएगा।
  • 100 किलोमीटर चंद्रमा के ऊपर प्रोपल्शन मोड्यूल से लैंडर अलग होगा।
  • लैंडर 100 गुणा 30 किलोमीटर की कक्षा में स्पीड कम करना शुरू करेगा।
  • लैंडिंग के बाद रोवर रैप से बाहर निकलेगा और 14 दिन तक प्रयोग करेगा।

हमारा Chandrayaan 3 चंद्रमा पर क्‍या कैसे काम करेगा, क्‍या डेटा कलेक्‍ट करेगा और चंद्रमा पर जीवन की संभावना है या नहीं ये कैसे बताएगा इसे समझने के लिए नीचे दिए गए इस वीडियो को विस्‍तार से देखिए।

 

चंद्रयान 3 है चंद्रयान 2 का अपडेट वर्जन

  • लैंडिंग लेग्स मजबूत किए गए – लैंडिंग के दौरान 3 मीटर/सेकेंड की रफ्तार होने पर भी ये ब्रेक नहीं होंगे।
  • ज्यादा फ्यूल– लैट वाली सरफेस अगर सही नहीं है तो होवर करके दूसरी जगह लैंट करेगा।
  • नया सेंसर – लेजर डॉपलर वेलोसिटी मीटर सेंसर जोड़ा गया है, जो लैडिंग में मदद करेगा।
  • सॉफ्टवेयर इंप्रूवमेंट – इसकी टॉलरेंस लिमिट बढ़ाई गई है। लेटिंग में सॉफ्टवेयर ही डिसीजन लेगा।
  • पांच की जगह चार इंजन – 200 किलो वजन बढ़ाया है इसलिए एक इंजन को हटा दिया गया है।
  • सोलर पैनल और एंटीना – बेहतर तरीके से पावर जनरेशन के लिए एक्सटेंडेड सोलर पैनल लगाए गए हैं।
  • प्रोपल्शन मॉड्यूल – चंद्रयान में लोड की जगह प्रोपल्शन मॉडल है। इसे ऑर्बिटर इसलिए नहीं बोलते क्योंकि यह चंद्रमा की स्टडी नहीं करेगा। इसमें 1696.39 किलोग्राम फ्यूल है।

 

Chandrayaan 3 में तीन हिस्से हैं

1 . प्रोपल्शन मॉड्यूल

वजन: 2148 kg
मिशन लाइफ : 3-6 महीने
प्रोपल्शन मॉड्यूल लैंडर और रोवर को पृथ्वी की कक्षा से 100×100 किमी चंद्रमा की कक्षा तक ले जाएगा।
चंद्रमा की 100×100 किमी कक्षा में पहुंचने के बाद प्रोपल्शन मॉड्यूल लैंडर और रोवर से अलग हो जाएगा।

2 . विक्रम लैंडर

वजन: 1726 kg
मिशन लाइफ : 14 अर्थ डेज
विक्रम लैंडर अपने साथ रोवर लेकर जाएगा।
प्रोपल्शन मॉड्यूल से अलग होने के बाद ये ऑनबोर्ड सॉफ्टवेयर की मदद से चंद्रमा पर लैंड करेगा। लैंडिंग के वक्त इसकी स्पीड 2 मीटर/सेकेंड होगी। ये चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर और रोवर से कम्युनिकेट करेगा।

3 प्रज्ञान रोवर

वजन: 26 kg
मिशन लाइफ: 14 अर्थ डेज
प्रज्ञान रोवर विक्रम लैंडर के लैंड होने के बाद बाहर आएगा।
सोलर पैनल की मदद से ये पावर जनरेट करेगा। ये सिर्फ लैंडर से कम्युनिकेट कर सकता है। यानी रोवर लैंडर को डेटा भेजेगा और लैंडर इस डेटा को आगे पहुंचाएगा।

प्रोपल्शन मॉड्यूल पेलोड

SHAPE – स्पेक्ट्रो पोलारिमेट्री ऑफ हैबिटेबल प्लेनटरी अर्थ
चंद्रमा की कक्षा से पृथ्वी का अध्ययन करेगा। पृथ्वी जैसे रहने योग्य ग्रह के रेडिएशन में क्या कोई खास बात होती है ये देखेगा।

विक्रम लैंडर पेलोड

RAMBHA-LP लैंगम्यूर प्रोब – प्लाजमा के घनेपन और समय के साथ इसमें हुए बदलावों का पता लगाएगा। चांद पर वातावरण नहीं, इसलिए सूर्य के रेडिएशन लगातार इस पर पड़ते हैं। इससे चांद की मिट्टी जल गई है और उसमें गन पाउडर जैसी गंध आती है। इसलिए प्लाजमा का अध्ययन किया जा रहा है।

ChaSTE – चंद्र सरफेस थर्मो फिजिकल एक्सपेरिमेंट चंद्रमा के ध्रुव की सतह पर तापमान का अध्ययन करेगा।

ILSA – इंस्ट्रूमेंट फॉर लूनर सेस्मिक एक्टिविटी लैंडिंग साइट के पास भूकंप को मापेगा। चंद्रमा की ऊपरी और अंदर वाली सतह की बनावट का अध्ययन करेगा।

प्रज्ञान रोवर पेलोड

APXS – एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर –  अल्फा पार्टिकल चांद की सतह पर केमिकल और अध्ययन करेगा। मिनरल का अध्‍ययन करेगा।

LIBS – लेजर इंड्यूस्ड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप लैंडिंग साइट के आसपास मिट्टी और चट्टानों की संरचना (Mg, Al, Si, K, Ca, Ti, Fe) का अध्ययन करेगा।

 

Launch of LVM3-M4/CHANDRAYAAN-3 Mission from Satish Dhawan Space Centre (SDSC) SHAR, Sriharikota

इस मिशन से भारत पर क्‍या असर होगा

इसरो के पूर्व वैज्ञानिकों की मानें तो इस मिशन (Chandrayaan 3) के जरिए भारत दुनिया को अपनी साइंटिफ‍िक इंटेलिजेंस बतना चाह रहा है। यह बताना चाह रहा है कि भारत के पास भी अन्‍य तीन देशों की तरह चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग करने और वहां रोवर चलाने की क्षमता है। इससे दुनिया का भारत पर भरोसा और बढ़ेगा। इससे व्यापारिक कारोबार बढ़ाने में मदद मिलेगी। भारत ने अपने हेवी लिफ्ट लॉन्च व्हीकल LVM3-M4 से चंद्रयान लॉन्च किया है। भारत पहले ही इस वाहन की क्षमता दुनिया को दिखा चुका है।

पिछले दिनों अमेज़न के संस्थापक जेफ बेजोस की कंपनी ‘ब्लू ओरिजिन’ ने इसरो के LVM3 रॉकेट का उपयोग करने में अपनी रुचि दिखाई थी। ब्लू ओरिजिन LVM3 का उपयोग वाणिज्यिक और पर्यटन उद्देश्यों के लिए करना चाहता है। LVM3 के माध्यम से, ब्लू ओरिजिन अपने क्रू कैप्सूल को नियोजित लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) अंतरिक्ष स्टेशन पर ले जाएगा।

मिशन दक्षिणी ध्रुव पर ही क्यों भेजा जा रहा है? (Why ISRO wants to explore the Moon’s south pole)

चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्र अन्य क्षेत्रों से काफी भिन्न हैं। यहां कई हिस्से ऐसे हैं जहां सूरज की रोशनी कभी नहीं पहुंच पाती और तापमान -200 डिग्री सेल्सियस तक नीचे चला जाता है। ऐसे में वैज्ञानिकों का अनुमान है कि वहां अभी भी बर्फ के रूप में पानी मौजूद हो सकता है। भारत के 2008 के चंद्रयान-1 मिशन ने चंद्रमा की सतह पर पानी की मौजूदगी का संकेत दिया था।

इस मिशन की लैंडिंग साइट चंद्रयान-2 जैसी ही है। 70 डिग्री अक्षांश पर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास। लेकिन इस बार रकबा बढ़ा दिया गया है. चंद्रयान-2 में लैंडिंग साइट 500 मीटर X 500 मीटर थी। अब, लैंडिंग साइट 4 किमी X 2.5 किमी है।

अगर सब कुछ ठीक रहा तो Chandrayaan 3 चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला दुनिया का पहला अंतरिक्ष यान बन जाएगा। चंद्रमा पर उतरने वाले पिछले सभी अंतरिक्ष यान भूमध्यरेखीय क्षेत्र में, चंद्र भूमध्य रेखा के उत्तर या दक्षिण में कुछ डिग्री अक्षांश पर उतरे हैं।

इस बार चंद्रयान-3 (Chandrayaan 3) लैंडर में 5 की जगह 4 इंजन क्यों है?

इस बार लैंडर के चारों कोनों पर चार इंजन (थ्रस्टर) लगे हैं, लेकिन पिछली बार बीच के पांचवें इंजन को हटा दिया गया है। अंतिम लैंडिंग दो इंजनों की मदद से ही की जाएगी, ताकि आपात स्थिति में दो इंजन काम कर सकें। चंद्रयान 2 मिशन में आखिरी वक्त पर पांचवां इंजन जोड़ा गया। इंजन को हटा दिया गया है ताकि अधिक ईंधन साथ ले जाया जा सके।

चंद्रयान-3  14 दिन का मिशन क्यों है ?

इसरो के पूर्व साइंटिस्‍ट्स के अनुसार  चंद्रमा पर 14 दिन तक रात और 14 दिन तक रोशनी रहती है। जब यहां रात होती है तो तापमान -100 डिग्री सेल्सियस से नीचे चला जाता है। चंद्रयान (Chandrayaan 3) के लैंडर और रोवर अपने सौर पैनलों से बिजली पैदा करेंगे। इसलिए वे 14 दिनों तक बिजली उत्पादन करेंगे, लेकिन रात होते ही बिजली उत्पादन प्रक्रिया बंद हो जायेगी। यदि बिजली उत्पादन नहीं होगा तो इलेक्ट्रॉनिक्स भीषण ठंड का सामना नहीं कर पाएंगे और खराब हो जाएंगे।

 

अब इसरो की जनरल नॉलेज

इसरो ने आज Chandrayaan 3 मिशन लॉन्च किया है। आंध्र प्रदेश में श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से LVM3-M4 रॉकेट के जरिए इसे स्पेस में भेजा। जो लोग ISRO के बारे में नहीं जानते उनके लिए हम यहां इसरो की जानकारी दे रहे हैं।
  • ISRO भारत का राष्ट्रीय अंतरिक्ष संस्थान है। इसका मुख्यालय बेंगलुरु में स्थित है। 17 हजार लोग इसमें काम करते हैं।
  • ISRO की स्थापना 15 अगस्त 1969 को की गई थी। तब इसका नाम अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए भारतीय राष्ट्रीय समिति (INCOSPAR) 2TI
  • ISRO ने अपना पहला सैटेलाइट 19 अप्रैल 1975 को सोवियत संघ के सहयोग से छोड़ा था। इस सैटेलाइट का नाम आर्यभट्ट रखा गया था।
  •  7 जून 1979 को भारत ने अपना दूसरा सैटेलाइट भास्कर छोड़ा। इसका वजन
  • 442kg था। पहली बाट पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया गया।
  •  भारत में निर्मित पहला लॉन्च व्हिकल SLV-3 से रोहिणी उपग्रह छोड़ा गया। 2014 में GSET- 14 का GSLV-D5 लॉन्च किया। यह स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन था।
  •  22 अक्टूबर 2008 को भारत ने चंद्रयान-1 और 24 सितंबर 2014 को मंगलयान भेजा। मंगल पर एक ही बार में पहुंचने वाला पहला देश बना।
  • चंद्रयान-222 जुलाई 2019 में लॉन्च हुआ था, जिसके 3 साल ॥ महीने और 23 दिन बाद चंद्रयान-3 की सक्सेसफुल लॉन्चिंग की।

 

ये भी पढ़ें –

ISRO का 2021 का पहला मिशन सफल: ब्राजील उपग्रह को PSLV रॉकेट के माध्यम से कक्षा में भेजा गया, 18 अन्य उपग्रह भी लॉन्च

ISRO की 2020 में पहली लॉन्चिंग: PSLV-C49 रॉकेट से रडार इमेजिंग सैटेलाइट की सक्सेसफुल लॉन्चिंग, 9 विदेशी उपग्रह भी भेजे

 

Like and Follow us on :

Google News |Telegram | Facebook | Instagram | Twitter | Pinterest | Linkedin

Was This Article Helpful?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *